जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु कार्ययोजना (Action plan to tackle climate change)
चर्चा में क्यों ?
- केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के अनुसार जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु कार्ययोजना को भारत सर्कार द्वारा जल्द ही स्थानीय स्तर पर एक्शन प्लान तैयार करेगा।

मुख्य बिंदु :-
- जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु कार्ययोजना के तहत सामर्थ्य के साथ स्थितरता (सस्टेंबिलिटी विथ अफोर्डेबिलेटी) का सूक्ति वाक्य देते हए उन्होंने कहा कि ग्लास्गो में काप-26 के दौरान इको फ्रेंडली जीवनशैली की बात कही गयी थी। भारत में प्राकृतिक खेती और सोलर के साथ-साथ हाइडोजन पर भी फोकस किया रहा है।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु कार्ययोजना को लेकर मंत्रालय ने थिंक टैंक को आमंत्रित किया है। खुली चर्चा के साथ तर्क की कसौटी पर ही कोई कारगर कार्ययोजना बनाई जाएगी।
- मानव जीवन केवल सुखी नहीं, निरोग भी होना चाहिए। देश में वन संरक्षण कानून पर भी विचार विमर्श चल रहा है। वन बचाने व वन क्षेत्र बढ़ाने के सोच के साथ यह कानून भी जल्द लाया जाएगा।
- जलवायु परिवर्तन को लेकर इंटर गवर्नमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) की रिपोर्ट जारी होने के अगले दिन पर्यावरण मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार पहले से ही काम कर रही है। जैसे-
- 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य रखा गया है।
- 2030 तक योजना अक्षय ऊर्जा से 500 गीगावाट बिजली प्राप्त करने की है।
- 2030 तक ही रेलवे का विद्युतीकरण भी किया जाएगा, जिससे 80 अरब टन उत्सर्जन में कमी आएगी।
- बड़े पैमाने पर एलईडी बल्ब लगाने की भी योजना बना रहे हैं, जिससे 40 अरब टन उत्सर्जन कम हो सकता है।
- इसके अलावा पेट्रोलियम पदार्थों पर सबसे ज्यादा टैक्स भारत में है तो इलेक्ट्रिसिटी की लागत भी कहीं ज्यादा है।
- भारत सरकार जमीनी स्तर पर काम कर रही है। विश्व में हमारी आबादी 17 प्रतिशत, जबकि ग्लोबल वार्मिंग में हिस्सेदारी केवल चार प्रतिशत है। इसके बावजूद ग्लास्गो में विकासशील देशों की आवाज उठाई। विकसित देशों को अपना दायित्व समझना ही होगा। केवल चर्चा या दूसरों की जिम्मेदारी तय करने से कोई हल नहीं निकलेगा।
- पिछले दो साल में खासतौर पर कोरोना और जलवायु परिवर्तन दोनों ने भारत सहित विश्वभर के देशों के लिए समस्याएं खड़ी की हैं।
- चरम मौसमी घटनाएं भी बढ़ी हैं। कोई भी घटना भले एक दिन की हो, लेकिन उसके परिणाम वर्षों तक झेलने पड़ते हैं। इस दिशा में अविलंब पुख्ता कार्ययोजना तैयार और उस पर क्रियान्वयन करने की भी आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतरसरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल (आइपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट मानव के लिए बढ़ रहे खतरे को गहराई से रेखांकित करती है। स्पष्ट किया गया है कि वैश्विक स्तर पर बढ़ते कार्बन उत्सर्जन की कारण से बदलती जलवायु मानव जीवन के लिए बड़ा खतरा बन रही है।
- पहली बार आइपीसीसी की रिपोर्ट जलवायु अनुकूलन व उसके प्रति लचीले विकास पर केंद्रित है और साथ ही जोर देती है कि ऐसा विकास ग्लोबल वार्मिंग को सीमित कर भूख, गरीबी और लैंगिक असमानता को कम करेगा।
बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग और वेट-बल्ब तापमान
- कार्बन उत्सर्जन में कटौती के बिना, निकट भविष्य में गर्मी और उमस मानव सहनशीलता की सीमा को पार कर जाएगी। रिपोर्ट में वेट-बल्ब तापमान का उल्लेख है, जो तापमान की गणना करते समय गर्मी और उमस को भी जोड़ कर देखता है।
- एक आम व्यक्ति के लिए 31 डिग्री सेल्सियस का वेट-बल्ब तापमान बेहद खतरनाक है। 35 डिग्री सेल्सियस में तो छाया में भी किसी स्वस्थ वयस्क को करीब छह घंटे से अधिक समय तक जीवित रहना मुश्किल होगा।
- भारत में वेट-बल्ब तापमान शायद ही कभी 31 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है। अधिकांश जगह अधिकतम वेट-बल्ब तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस ही होता है।
- यदि उत्सर्जन में कटौती की जाती है, तब भी उत्तरी और तटीय भारत के कई हिस्से सदी के अंत तक 31 डिग्री सेल्सियस से अधिक के बेहद खतरनाक वेट-बल्ब तापमान अनुभव करेंगे। यदि उत्सर्जन में ऐसी वृद्धि जारी रही तो देश के अधिकांश हिस्से में वेट-बल्ब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा।
जलवायु परिवर्तन से भारत के तटीय शहर अधिक संवेदनशील
- भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के तटीय शहरों में बुनियादी ढांचे का नुकसान हो सकता है। भारत के तटीय शहरों में लू(हीट वेव) और वर्षा के कारण होने वाली बाढ़ गंभीर होती हैं।
- देश में 7,500 किलोमीटर लंबा तटीय इलाका है। मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पुरी और गोवा जैसे इलाकों में ज्यादा गर्मी पड़ सकती है। भारी बारिश, ट्रापिकल (उष्णकटिबंधीय) चक्रवात और सूखा व बाढ़ भारत में बहुत लोगों को घर छोड़ने पर मजबूर करेंगे।
- अगले 15 साल में देश की 60 करोड़ आबादी शहरों में रहेगी, जो अमेरिका की मौजूदा आबादी से दोगुनी होगी।
- हिमालय की नाजुक प्रणाली ग्लोबल वार्मिंग के कारण खतरे में शीघ्र आती है। फिर से चमोली जैसी आपदाएं हो सकती हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से हिमालयी क्षेत्र में पानी की कमी हो सकती है और इसके प्रति अनुकूलन नहीं किया जा सकता।
लखनऊ, पटना, इंदौर में मौसम की मार
- रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ और पटना 35 डिग्री सेल्सियस के वेट-बल्ब तापमान तक पहुंच जाएंगे। भुवनेश्वर, चेन्नई, मुंबई, इंदौर और अहमदाबाद में वेट-बल्ब तापमान 32-34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने की आशंका है।
- कुल मिलाकर असम, मेघालय, त्रिपुरा, बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
समुद्र से भी तबाही की आशंका
- अगर सरकारें अपने मौजूदा उत्सर्जन कटौती के वादे पूरे करती हैं तो इस सदी में वैश्विक स्तर पर समुद्र का स्तर 44.76 सेंटीमीटर तक बढ़ जाएगा। तेज उत्सर्जन कटौती से 28-55 सेमी तक सीमित की जा सकती है। खारे पानी की घुसपैठ से भूमि जलमग्न होगी। नियमित रूप से बाढ़ आएगी और जमीन कृषि के लिए अनुपयुक्त हो जाएगी।
देश में खाने और पानी की हो सकती है कमी
- भारत में लगभग 40 प्रतिशत लोग 2050 तक पानी की कमी के साथ जिएंगे जो अभी 33 प्रतिशत है। कुछ हिस्से में चावल का उत्पादन 30 प्रतिशत गिर सकता है। उत्सर्जन में कटौती से यह आंकड़ा 10 प्रतिशत रहेगा। मक्के का उत्पादन 70 प्रतिशत तक गिर सकता है। मछली उत्पादन में हिल्सा, शाद और बाम्बे डक में नाटकीय रूप से गिरावट की आशंका है।
अनुकूलन नहीं है विकल्प
- रिपोर्ट के अनुसार, तमाम विशेषज्ञों का मानना है कि एडाप्टेशन या अनुकूलन उत्सर्जन में कटौती का विकल्प नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार भारत और बांग्लादेश ने समय रहते परिवर्तन नहीं किया तो दोनों देशों की जलवायु समस्या बढ़ेगी।
- सूरत, भुवनेश्वर और इंदौर एडाप्टेशन योजना बना चुके हैं, लेकिन वे एक ही खतरे पर केंद्रित हैं। मसलन इंदौर केवल पानी की कमी को देखता है। इन शहरों को हाइब्रिड व मल्टीसेक्टोरल यानी कई क्षेत्रों पर फोकस करने की जरूरत है।
अधिक जनसंख्या से भारत की स्थिति सबसे कमजोर
- भारत अपनी विशाल जनसंख्या के कारण से समुद्र स्तर में वृद्धि से प्रभावित होने वाले देशों में सबसे कमजोर है। 2050 तक देश में लगभग 35 मिलियन (साढ़े तीन करोड़) लोगों को वार्षिक तटीय बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है। सदी के अंत तक 45-50 मिलियन (साढ़े चार से पांच करोड़) लोग जोखिम में होंगे।
- रिपोर्ट के अनुसार मानव जनित ग्लोबल वार्मिंग न होने की स्थिति की तुलना में 1991 के बाद से भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 16 प्रतिशत कम हुई है। भारत ऐसा देश है जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक आर्थिक रूप से प्रभावित है। अधिक चरम मौसम से अस्वस्थता और अकाल मृत्यु में खतरनाक वृद्धि होगी।
- सभी 51 एशियाई देशों में चिंता व तनाव जैसी मानसिक बीमारियां बढ़ने की भी आशंका है। वह दिन दूर नहीं जब जलवायु परिवर्तन की कारण से लोग पलायन पर मजबूर होंगे। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब स्थानीय स्तर तक आ पहुंचा है।
- इससे निपटने के लिए क्षेत्रवार तरीके से जलवायु परिवर्तन की रोकथाम की कार्ययोजनाओं को तैयार कर लागू करें। बाढ़, सूखा, तूफान और बारिश की फ्रिक्वेंसी के लिंक भी ढूंढने होंगे।
भारत में पीएम 2.5 प्रदूषण से होने वाली मौत में दो दशकों में 2.5 गुना वृद्धि
- सेंटर फार साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशकों में भारत में पीएम5 प्रदूषण के कारण होने वाली मौत में 2.5 गुना वृद्धि हुई है।
- रिपोर्ट के अनुसार 2019 में वायु प्रदूषण के कारण हर चार में से एक मौत भारत में हुई। पर्यावरण क्षेत्र के थिंक टैंक सीएसई द्वारा एकत्र किए गए आंकड़े, और इसकी ‘भारत की पर्यावरण रिपोर्ट की स्थिति’ में दिखाया गया कि दुनिया में वायु प्रदूषण के कारण 7 लाख लोग मारे गए। इनमें से 16.7 लाख मौतें भारत में हुईं। चीन में वायु प्रदूषण के कारण 18.5 लाख लोगों की मौत हुई।
- रिपोर्ट के अनुसार 2019 में वायु प्रदूषण के जोखिम से जुड़े स्वास्थ्य प्रभावों के कारण वैश्विक स्तर पर 4,76,000 बच्चों की मृत्यु हुई। इन बच्चों की उम्र एक महीने तक थी। इनमें से 1,16,000 बच्चों की मौत भारत में हुई।
- खराब वायु गुणवत्ता, वर्ष 2019 में दुनिया भर में समय से पहले मौत का चौथा प्रमुख कारक थी। पिछले दो दशकों में भारत में हवा में मौजूद पीएम5 के कारण होने वाली मौतों में 2.5 गुना वृद्धि हुई है। यह 1990 में 2,79,500 से बढ़कर 2019 में 9,79,900 हो गई।
- हालांकि, आंकड़ों से पता चलता है कि देश में घरेलू स्तर पर वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में 40 फीसद से ज्यादा की कमी आई है जो 1990 में 10,41,000 से 2019 में 6,06,900 हो गईं।
पीएम2.5 सूक्ष्म कण
- पीएम5 का मतलब अति सूक्ष्म कणों से है जो शरीर में भीतर तक प्रवेश करते हैं और फेफड़ों तथा श्वसन पथ में सूजन को बढ़ावा देते हैं, जिससे कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली सहित हृदय और श्वसन संबंधी समस्याओं का खतरा होता है।