अभिक्षमता (aptitude)
अभिक्षमता क्या है | What is Aptitude
- अभिक्षमता (Aptitude) का अर्थ किसी व्यक्ति की उस तत्परता, योग्यता, क्षमता या रूझान से है जो किसी कार्य या व्यवसाय में भावी सफलता पाने हेतु आवश्यक हेाती है तथा जिसका प्रस्फुटन शिक्षा एवं अभ्यास के द्वारा होता है। ऐसी प्रतिभा, योग्यता या क्षमता प्रायः जन्मजात होती है।
- विंघम के शब्दों में अभिक्षमता (Aptitude) ‘किसी विशिष्ठ’ प्रशिक्षण के उपरान्त दिए गये क्षेत्र में कुछ ज्ञान का कौशल या प्रतिक्रियाओं के समुच्चय को अर्जित करने की किसी व्यक्ति की योग्यता को लाक्षणिक रूप से व्यक्त करने वाली विशेषता अथवा दशाओं का समुच्चय अभिक्षमता हैं।
अभिक्षमता (Aptitude) की पांच प्रमुख विशेषताएं

सिविल सेवा के लिए अभिक्षमता (Aptitude)
- अभिक्षमता (Aptitude) वास्तव में दक्षता का ही हिस्सा है। यह वह गुण है जिसके तहत व्यक्ति किसी विशिष्ट कार्य को विशिष्ट तरीके से करने में सक्षम रहता है। इसे हम गुण की श्रेणी में रखते है। अभिक्षमता (Aptitude) भौतिक या मानसिक दोनों हो सकती है।
- अभिक्षमता (Aptitude) प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान, समझ, सीखी या समझी गई कुशलता नहीं है। अभिक्षमता (Aptitude) और इंटेलीजेंस क्वोंसेट एक दूसरे से संबंधित है। इंटेलीजेंस क्वोंसेट मानवीय बौद्धिकता का आकलन करता है, इसी के अंतर्गत सभी प्रकार की मानसिक क्षमताएं शामिल होती है।
- वही दूसरी ओर अभिक्षमता के तहत अलग-अलग प्रकार की विशिष्टता का बोध होता है, जिनकी श्रेष्ठता में कोई आपसी संबंध नहीं होता है। उदाहरण: सैन्य हवाई जहाज उड़ाने की क्षमता, कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग चलाने की क्षमता या वायु-यातायात के नियंत्रण की क्षमता इत्यादि। यह वास्तव में बहु बौद्धिकता के सिद्धांत से जुड़ा हुआ है।
अभिक्षमता (Aptitude) के प्रकार
सामाजिक अभिक्षमता (Aptitude)
- सामाजिक अभिक्षमता (Aptitude) एक सिविल सेवक से यह अपेक्षा और संभावना रखती है कि वह समाज को समझता है। एक समाज में व्यापक मात्र में विविधता पायी जाती है। अनेक धर्म, जाति और संप्रदाय के लोग निवास करते है। अतः एक व्यक्ति में सहिष्णुता की भावना प्रत्येक स्तर पर होनी चाहिए। सहिष्णुता व्यक्ति को समायोजन सिखाती है।
- समायोजन दो व्यक्ति के बीच विचारधारा को सामंजस्यपूर्ण बनाने पर बल देती है और यह सामंजस्य तभी आ पायेगा जब व्यक्ति में सामाजिक अन्तर्क्रिया के दौरान परस्पर संवाद हो।
- अतः एक व्यक्ति में प्रतिक्रिया, कुतर्क और विक्षोभ के स्थान पर संवाद के गुण पाये जायें, जिसके आधार पर सिविल सेवा में जाने के पश्चात् संवेदनशील प्रशिक्षण जैसी प्रक्रिया के माध्यम से सिविल सेवक सांगठनिक और सामाजिक स्तर पर सहिष्णुता विकसित करने का सफल प्रयास कर सके।
- सामाजिक अभिक्षमता (Aptitude) के दूसरे आयाम को हम समर्पण की भावना से जोड़कर देख सकते हैं जब एक व्यक्ति अपने परिवार के प्रति, अपने कार्य के प्रति, अपने मित्रें के प्रति समर्पित है, तब इस बात की प्रबल संभावना है कि आगे चलकर उस व्यक्ति में सिविल सेवा के लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव पैदा किया जा सके।
- क्योंकि जब तक व्यक्ति इस अहम् का त्याग नही कर पायेगा, तब तक उसमें समर्पण की भावना विकसित नहीं हो पायेगी। क्योंकि समर्पण से ही संवेदना विकसित होती है और यह संवदेना किसी के लिए कुछ बेहतर करने हेतु व्यक्ति में साहस और सक्षमता प्रदान करता है।
सामुदायिक अभिक्षमता (Aptitude)
- समुदाय समाज में एक व्यक्ति से भागीदारी की अपेक्षा रखता है। समुदाय साथ रहकर जीना सिखाता है। अतः एक व्यक्ति में सिविल सेवक बनने से पूर्व समुदाय के साथ जुड़कर कार्य करने की विशेषता होनी चाहिए, क्योंकि यही संभावना एक सिविल सेवक को जनता के करीब लाने में मदद करती है।
- जब आप किसी सामुदायिक गतिविधि में भाग लेते है, तब सभी को साथ लेकर, सभी की भावनाओं को समझते हुए, सभी की ऊर्जा को एक स्थान पर एकत्रित करने का नाम ही सामुदायिकता है। अतः सामुदायिकता की भावना के लिए व्यक्ति को बहिर्मुखी (Extroverted) व्यक्तित्व का होना चाहिए।
- इस प्रकार प्रारंभ से ही एक सिविल सेवक में सामुदायिकता के गुण विद्यमान होने चाहिए, ताकि आज वर्तमान प्रशासन में जनता और प्रशासन के बीच बढ़ रही दूरियों को कम किया जा सके।
- इसके लिये सामुदायिक भावना की समझ, पहल करने की क्षमता, आलोचना सुनने की क्षमता, सभी के भावनाओं को समझने का प्रयास इत्यादि सामुदायिक अभिक्षमता (Aptitude) के प्रारंभिक घटक है।
तकनीकी अभिक्षमता (Aptitude)
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह चिंता व्यक्त की है कि हाल के वर्षों में जो सिविल सेवक चयनित हुए हैं, इनमें तकनीकी नवाचार को लेकर अभिक्षमता (Aptitude) का अभाव दृष्टिगोचर होता है।
- जिस प्रकार आज परिणाम आधारित सिविल सेवा की अपेक्षा की जा रही है, उस अनुरूप एक सिविल सेवक में मितव्ययिता, दक्षता, प्रभावशीलता, नवीनतम तकनीकों को सीखने की अभिरूचि होना अनिवार्य है।
- अतः इसी संदर्भ को ध्यान में रखते हुए हाल ही में संघ लोकसेवा आयोग ने सिविल सेवा अभियोग्यता जाँच परीक्षा के द्वितीय पत्र को शामिल किया है जो व्यक्ति के भीतर विभिन्न संभावित अभिक्षमताओं को जाँचने का प्रयास करता है जैसे- गणित के प्रश्न गणितीय अभिक्षमता की जाँच करने हुए वस्तुनिष्ठता की जाँच करता है।
- जब अभ्यर्थी निर्णयन से जुड़े प्रश्न को हल कर रहा होता है, तब उस की तार्किक अभिक्षमता (Aptitude) की जाँच हो पा रही है। इसी प्रकार जब तर्कशक्ति से जुड़े प्रश्नों का समाधान कर रहा होता है, तब उसमें कल्पनाशीलता और सृजनशीलता की संभावनाओं को पता लगाने का प्रयास किया जा रहा होता है।
सांगठनिक अभिक्षमता (Aptitude)
- एक सफल संगठन संचालन के लिए एक सफल नेतृत्व की आवश्यकता है और यह नेतृत्व कई विशेष गुणों की संभावनाओं पर टिका होता है। एक संगठन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसका कार्यकारी प्रमुख कितना बेहतर तरीके से नियोजन करता है।
- संगठन के सभी कार्मिकों को कार्य हेतु दिशा-निर्देश देता है। अपने सीमित संसाधनों में लक्ष्यों की प्राप्ति का प्रयास करता है तथा वह कितना बेहतर तरीके से अपने अधीनस्थों के साथ जुड़कर लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है।
- एक सिविल सेवक में संगठन संचालन के दौरान मितव्ययिता, दक्षता, प्रभावशीलता, मानवीयता, अभिप्रेरणा की समझ, टीम निर्माण की क्षमता, अनुशासनप्रियता जैसे गुण विद्यमान होने चाहिए। इन सभी गुणों का विकास एक उम्मीदवार में किसी न किसी रूप में कुछ मात्र में विद्यमान रहता है।
कुछ महत्त्वपूर्ण संगठनात्मक अभिक्षमता (Aptitude)
अभिक्षमता (Aptitude) और अभिरूचि में अंतर
- कई बार अभिक्षमता (Aptitude) और अभिरूचि को एक ही मान लिया जाता है। हो सकता है कि आपकों वायलिन बजाने में अभिरूचि हो, पंरतु आप में उसे बजाने की अभिक्षमता न हो।
- या यह भी हो सकता है कि आप में पहले से ही वाद्य यंत्रें को बजाने की क्षमता हो, क्योंकि आपने अपने भाई को इसे बजाते हुए देखा था। परंतु आप इसमें अभिरूचि नही लेना चाहते है। अतः यदि कोई सफल वायलिन वादक बनना चाहता है, तो उसमें अभिरूचि और उसे बजाने की संभाव्यता दोनों होनी चाहिये।
- अतः अभिरुचि किसी विशेष कार्य करने के प्रति वरीयता या महत्व को प्रदर्शित करता है, वहीं अभिक्षमता (Aptitude) उन विशेषताओं को प्रदर्शित करता है जो यह संभावना व्यक्त करता है कि वह अच्छा वायलिन प्रशिक्षण देने पर बजा सकता है। इस प्रकार अभिक्षमता (Aptitude) और अभिरूचि दोनों किसी विशेष क्षेत्रें में सफलता के लिए होनी अनिवार्य है।
- आपने थ्री इडियट फिल्म जरूर देखी होगी। तीनों पात्र तीन स्थितियों को प्रदर्शित करते है। यदि आपने फरहान को देखा होगा तब आपने पाया होगा कि उसने इंजीनियरिंग की परीक्षा पास तो कर ली, परंतु उसमें इंजीनियर बनने की अभिरुचि नही थी। अतः यहाँ अभिक्षमता (Aptitude) तो है, परंतु अभिरूचि फोटोग्राफर बनने की थी।
- वहीं दूसरा पात्र रस्तोगी इंजीनियर बनने की अभिरूचि तो रखता है, परंतु इंजीनियरिंग का पेशा जिस तार्किकता की अपेक्षा रखता है, वह उसमें कम थी।
- अतः रस्तोगी में अभिरूचि तो है, परंतु अभिक्षमता (Aptitude) का अभाव है, वही तीसरा पात्र रैंचो है जो इंजीनियर बनने की अभिरुचि भी रखता है और उसमें सफल इंजीनियर बनने की अभिक्षमता भी विद्यमान थी।
- अतः एक बात तो सिद्ध होती है कि किसी विशेष क्षेत्र में सफलता के लिए अभिरूचि और अभिक्षमता (Aptitude) का साथ में होना आवश्यक है। क्योंकि यही अभिरूचि सिविल सेवा के क्षेत्र में समर्पण का भाव लाता है तथा उम्मीदवार में विद्यमान साहस, सद्भाव, सहिष्णुता, समर्पण, संवेदनशील जैसे गुणों की संभाव्य अभिक्षमता को विकसित करता है।
- अतः एक सफल सिविल सेवक तभी बन सकता है, जब उसमें सिविल सेवा के प्रति अभिरुचि और अभिक्षमता (Aptitude) दोनों विकसित हो।
- अभिरूचि और अभिक्षमता (Aptitude) अलग होते हुए भी सफल कार्य के लिए परस्पर संबंधित है। हम यह समझ सकते है कि जब आप इतने मेहनत और लगन से अध्ययन कर रहे है तो आपमें अवश्य ही सिविल सेवा के प्रति अभिरुचि विद्यमान है।
सिविल सेवा में अभिक्षमता (Aptitude) से संबंधित गतिविधियां
- जटिल से जटिल सूचनाओं को तुरंत ग्रहण कर उसका मूल्यांकन और निदान करना।
- मंत्रियों, उच्चाधिकारियों इत्यादि का प्रारूपण तैयार करना।
- दिए गए कार्य की योजना तैयार करना और व्यवस्थित करना ताकि समयबद्ध एवं दक्षतापूर्ण क्रियान्वयन संभव हो सके।
- विभिन्न संगठनों के साथ संचार स्थापित करना। (उदाहरण-मीडिया)
- संगठन के अंदर बेहतर ढंग से कार्य करना।
लोक सेवकों की दिनचर्या
लोकसेवा अधिकारियों में निम्न अभिक्षमता (Aptitude) का होना आवश्यक है-
- जिस व्यक्ति में नैतिक एवं व्यावहारिक मूल्य बेहतर हो और जो व्यक्ति तार्किक हो और अपने कार्यों का निपटारा बेहतर ढंग से करने में सक्षम हों, वही लोक सेवा के योग्य है।
सिविल सेवा का प्रशासन में निम्न कारणों से महत्व है-
- सिविल सेवकों का विशेष दायित्व होता हैं क्योंकि समाज को जो संसाधन प्राप्त होता है, उसका प्रबंधन करने का दायित्व इन्हीं पर होता है और इनके निर्णय का प्रभाव पूरे समुदाय पर पड़ता है। अतः समुदाय अधिकारपूर्वक यह उम्मीद करता है कि लोक सेवक बिना किसी भेदभाव के समान रूप से कार्य करे।
लोक सेवा के आधारभूत या क्रियात्मक मूल्य
- प्रशासन चलाने के लिए विद्यमान नियम-कानून और सिद्धांत ही लोकसेवा के आधारभूत मूल्य हैं। किसी भी संगठन के संगठनात्मक संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण भाग मूल्य है। यही मूल्य व्यवहार को सुनिश्चित, निर्देशित एवं सूचित करती है।
- ‘लोक सेवा मूल्य’ की परिकल्पना सरकार एवं प्रशासन का आधार है। स्वयं, परिस्थिति एवं समाज के मेलजोल या अन्तः क्रिया से व्यक्ति में मूल्य का समावेश होता है।
- सामाजिक परिस्थितियां परिवर्तित होती रहती हैं, अतः मूल्यों का परीक्षण और तत्पश्चात् परिवर्तन उसी अनुसार होना चाहिए। उच्च लोकसेवा अधिकारी अगर उच्च ‘लोकसेवा मूल्य’ के साथ अपने कार्यों का निष्पादन करें तो इससे आम जनता का विश्वास एवं मनोबल बढ़ेगा।
1996 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने लोक सेवकों के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय आचार संहिता’ स्वीकृत किया-
- लोक-कार्यालय विश्वास का प्रतीक है अतः लोक सेवकों को सदा जनहित में कार्य करना चाहिए।
- लोक अधिकारियों को दक्षतापूर्वक एवं कानून के तहत कार्य करना चाहिए।
- सरकारी अधिकारियों को निष्पक्षता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।
मूल्यों का वर्गीकरण
- हुड एवं टूनेन ने तीन आधारभूत मूल्यों को चिह्नित किया है, जिनका लोक सेवा में महत्व है-
- मितव्ययिता एवं आर्थिकता (parsimony & economy) (संसाधनों का दक्ष उपयोग एवं प्रावधान)।
- ईमानदारी, समता एवं सच्चाई (Fairness. equity & rectitude) (सरकार की छवि जनता में बेहतर बनाना)।
- Robustnesa (कठिन परिश्रम) Resilience & Sustainability (सम्पोषनीयता) (सरकार विभिन्न दबाव की स्थिति में मजबूत रहेगी परन्तु आवश्यकता पड़ने पर जनहित में लचीलापन भी दिखाएगी।
लोक सेवा में अभिक्षमता (Aptitude) के मूल्यों को हम लोग निम्न स्तरों पर वर्गीकृत करते हैः-
- OECD ने मूल्य को निम्न रूप से परिभाषित किया है आर्थिक सहयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठन। यह व्यक्तिगत सिद्धांत का पैमाना है जो व्यक्ति को उपयुक्त और बेहतर करने को प्रेरित करता है।
अखिल भारतीय सेवाओं में अभिक्षमता (Aptitude) का मौलिक रूप
- ब्रिटेन में सार्वजनिक जीवन के पैमाने के निर्धारण के लिए एक समिति गठित हुई जिसका नाम नोलन समिति था। इसका संबंध सार्वजनिक जीवन के मूल्यों एवं सिद्धांतों से है। जैसे-निःस्वार्थता, सत्यनिष्ठा, वस्तुनिष्ठता, जवाबदेही, प्रत्यक्षता, ईमानदारी, नेतृत्व।
असमर्थकवादी/गैर तरफदारी
- भारतीय समाज में अनेक प्रकार के विभेद विद्यमान है। भारतीय समाज एक पारंपरिक समाज रहा है। इसमें जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, लिंग आदि सभी भेद प्रारंभ से ही विद्यमान रहे है। भारत विविधताओं का देश है। भारतीय सामाजिक संरचना मूलतः वर्ण व्यवस्था पर आधारित रही है, जो समाज को अनेक वर्गों में वर्गीकृत करता है।
- भारतीय समाज में जाति व्यवस्था की जड़े अत्यंत गहरी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के 66 वर्ष के पश्चात भी जातिवाद पूर्णतः समाप्त नही हो सका है। भारतीय ग्रामीण समाज जातिवाद से पूर्णतः ग्रसित है। जो समाज को अनेक वर्गों में विभक्त कर देता है। वास्तव में जातिवाद समाप्त न होने का एक मुख्य कारण जातिवादी राजनीति है।
- भारतीय राजनीति में अनेक क्षेत्रीय पार्टियों का आधार ही जातिवाद है। ये किसी जाति विशेष का प्रतिनिधित्व करती है। यद्यपि वे उस जाति के विकास के लिए कोई विशेष योजना नहीं बनाते, केवल उनकी जातिवादी मानसिकता का शोषण करते है। विगत वर्षों में भारतीय राजनीति ने जातिवाद को और गहरा किया है।
- सिविल सेवक इसी जातिवादी समाज से निकल कर आते है। उनकी सोच और मानसिकता पारंपरिक रहती है। इसका प्रभाव न केवल उनके व्यक्तित्व बल्कि उनकी प्रशासनिक कार्यशैली पर भी पड़ता है।
- भारतीय समाज में दूसरा प्रमुख भेद धर्म के नाम पर है। भारत अनेक धर्मों वाला देश है। यहाँ हिन्दू, इस्लाम, बौद्ध, जैन, सिक्ख, ईसाई और पारसी पारंपरिक रूप से विद्यमान रहे है।
- राजनीतिक पार्टियाँ इस धर्मभेद का भी लाभ उठाने में तत्पर रहती है। कुछ समाज और क्षेत्रीय पार्टियों का तो आधार ही धर्म है। यद्यपि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। लोकतंत्र और बहुसंस्कृतिवाद एक-दूसरे के पूरक है, लेकिन भारतीय समाज में धर्मों में परस्पर भेदभाव विद्यमान रहता है।
- भारतीय समाज में भाषागत भेद भी विद्यमान रहा है, यहाँ संप्रेषण की सामान्य भाषा का भी अभाव है। उत्तर भारत में कुछ हिन्दी भाषी राज्य हैं, लेकिन दक्षिण भारत के राज्यों की भाषाएँ प्रायः अलग-अलग हैं।
- पूर्वोंत्तर में भी एक सामान्य भाषा का अभाव है। अलग-अलग भाषा के कारण संप्रेषण में कठिनाई होती है। यह कठिनाई प्रशासन में भी विद्यमान है। भारत के सभी राज्यों में प्रशासनिक कार्य क्षेत्रीय भाषाओं में होते हैं और उन्हें अंग्रेजी में अनुवादित किया जाता है। अंग्रेजी को प्रशासन की सामान्य भाषा बनाने में भी अनेक कठिनाइयाँ है। यह भाषायी भेद प्रशासनिक कठिनाइयों को बढ़ाता है।
- भारतीय समाज में लैंगिक भेद पारंपरिक रूप से विद्यमान रहा है। महिलाओं के प्रति सभी अपराधों का कारण मूलतः लैंगिक भेद है। यद्यपि लैंगिक भेद सर्वथा जैविक है। लेकिन जब यह जैविक लैंगिक भेद सामाजिक लैंगिक भेद का रूप ले लेता है, तो समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महिलाओं से संबंधित अनेक अपराध बढ़ गए हैं। आवश्यकता समय रहते ही इस पर नियंत्रण पाने की है। इस पर नियंत्रण केवल प्रशासनिक सक्रियता से ही संभव है। प्रशासन को इस संदर्भ में अत्यधिक संवेदनशील और सक्रिय होने की आवश्यकता है।
- वास्तव में कठिनाई तो तब होती है, जब स्वयं प्रशासनिक अधिकारी लैंगिक भेद की उपेक्षा करते है। ये अधिकारी भी इसी समाज की देन है। वे वस्तुतः पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता से उबर नही पाते।
- आवश्यकता इनको भी विशेष प्रशिक्षण की है। यदि संभव हो सके तो इसे ट्रेनिंग के दौरान एक अतिरिक्त विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। क्योंकि महिलाएँ पूरी जनसंख्या का 50% होती हैं और किसी भी स्वस्थ समाज में महिला उत्पीड़न स्वीकार्य नही हो सकता।
- सिविल सेवा के अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है, कि वे भाषा, जाति, धर्म, लिंग आदि सभी भेदों से ऊपर उठकर व्यक्ति को समानता के रूप में देखें।
- किसी भी प्रकार का नकारात्मक भेद उनकी मानसिकता में नही होना चाहिए। बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक व्यक्ति को एक समान रूप से देखना चाहिए। लेकिन सकारात्मक भेद का बने रहना आवश्यक है।
- वस्तुतः सकारात्मक भेद इस नकारात्मक भेद को संतुलन में लाने का ही प्रयास है। अधिकारी को अपने अधिकार क्षेत्र में वे सभी प्रयास करने चाहिए जिससे भेदभाव रहित समाज का निर्माण हो सके और यह तभी संभव होगा, जब अधिकारी की मानसिकता स्वयं भेदभाव रहित हो।
- यदि गैरतरफदारी को समझने का प्रयास किया जाये तो यह भी सुशासन की स्थापना की दिशा में प्रमुख साधन है। इस प्रकार एक सिविल सेवक जहाँ अपने परिवार सगे संबंधियों, मित्रें के प्रति तरफदारी न दिखाये, वहीं किसी भी राजनीतिक पार्टी की विचारधारा और सदस्यता से इसका कोई संबंध नही होगा।
- अतः एक सिविल सेवक को राजनीतिक दल द्वारा स्थापित सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन के संदर्भ में पूर्णतः निष्पक्ष रहना चाहिये।
- सरकार चाहे किसी भी राजनीतिक पार्टी की हो उसके द्वारा स्थापित नीतियों का अनुपालन सिविल सेवकों का कर्तव्य है। इसी कारण प्रशासनिक सेवा में नियमितता के सिद्धांत पर कार्य करने का प्रचलन और प्रावधान रखा गया है।
- इसके अंतर्गत समस्त सेवा का संपादन सिविल सेवकों द्वारा किया जाता है, परंतु अंतिम उत्तरदायित्व संसद में राजनीतिक प्रतिनिधियों पर होता हैै। इस व्यवस्था के माध्यम से सिविल सेवकों में निष्पक्षता और गैरतरफदारी की स्थिति बनी रहती है।
- गैर तरफदारी को एक संदर्भ में इस रूप में भी लिया जा सकता है कि सिविल सेवकों को सिर्फ राजनीतिक विचारधारा से नहीं बल्कि स्वयं को अपने परिवारवाद, भाई-भतीजावाद धर्म, जाति संप्रदाय से पृथक होकर निर्णय लेना चाहिए।
- भारतीय शासन एवं प्रशासन में भाई-भतीजावाद, वंशवाद और तरफदारी व्यापक रूप से विद्यमान रहा है। प्रशासनिक सेवाओं में भाई-भतीजावाद का अत्यधिक लाभ लिया जाता है। शिक्षण संस्थाओं, स्वास्थ्य सेवाओं आदि में भी व्यापक रूप से भाई-भतीजावाद विद्यमान रहता है।
- भारतीय शासन में वंशवाद की भी समस्या बनी हुई है। केन्द्र एवं राज्य स्तर पर अनेक राजनीतिक पार्टियों में वंशवाद को प्रश्रय मिलता रहता है। विधायकों एवं सांसदों में भी ये परंपरा विद्यमान है। ये पीढ़ी दर पीढ़ी शासन में बने रहते है।
- ऐसी स्थिति में जनसामान्य के प्रति शासन में भागीदारी के लिए अवकाश नही बचता। वंशवाद भारतीय राजनीति के लिए एक गंभीर समस्या है। प्रशासनिक तंत्र में तरफदारी विद्यमान रहती है। अधिकारी वर्ग अपने संबंधियों को परोक्ष या अपरोक्ष रूप से लाभ पहुँचाते रहते है।
- अनेक गैर सरकारी संगठन शासन एवं प्रशासन के संबंधियों का होता है। जिसमें उन्हें अनेक ढंग से लाभ पहुँचाया जाता है। सरकारी निर्माण से संबंधित विज्ञप्तियों का ठेका भी प्रायः शासन एवं प्रशासन के संबंधियों को ही प्राप्त होता है। बड़े औद्योगिक घरानों को भी राजनैतिक संरक्षण मिलता रहा है।
- वर्तमान प्रशासनिक तंत्र की माँग गैर तरफदारी है। सिविल सेवक से अपेक्षा की जाती है, कि वह अपने संबंधियों को प्रशासनिक लाभ न पहुँचाए। गैर तरफदारी की इस मानसिकता का विकास आवश्यक है।
- सिविल सेवक को अपने अधिकार एवं कर्तव्यों के अनुरूप वही करना चाहिए, जो समाज के लिए उचित हो। यद्यपि यह कार्य कठिन है, लेकिन फिर भी इसके पहल की आवश्यकता है। प्रायः अधिकारी कुछ पूर्वाग्रह से ग्रसित रहते है। वे किसी भाषा, क्षेत्र या जाति के प्रति विशेष झुकाव रखते है। यह प्रशासन के लिए उचित नही है।
- प्रशासनिक अधिकारी को लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए। वास्तव में ये अधिकारी भी समाज से ही आते है। समाज के पूर्वाग्रह उनके व्यक्तित्व में बने हुए रहते है।
- यद्यपि सिविल सेवा परीक्षा का प्रारूप एवं प्रणाली इस प्रकार बनाई गई है, कि इसके अध्ययन के दौरान प्रायः अभ्यर्थी इन सभी पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ जाते है।