भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन (Arrival of Europeans in India)
भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन (Arrival of Europeans in India) का क्रम-
क्रम संख्या | कंपनी का नाम | आने का वर्ष |
1. | पुर्तगाली | 1498 सी.ई. |
2. | ईस्ट इंडिया कंपनी (UK) | 1600 सी.ई. |
3. | डच (नीदरलैंड) | 1602 सी.ई. |
4. | डेनिश (डेनमार्क) | 1616 सी.ई. |
5. | फ्रांस | 1664 सी.ई. |
भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन (Arrival of Europeans in India)
- 15वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी के बीच निम्नलिखित यूरोपीय कम्पनियाँ क्रमशः भारत आयी- पुर्तगीज, डच, अंग्रेज, डेनिश, फ्रांसीसी।
परन्तु इन कम्पनियों के स्थापना का क्रम थोड़ा सा भिन्न था। ये निम्नलिखित क्रम में स्थापित हुई- पुर्तगीज-अंग्रेज-डच-डेनिश-फ्रांसीसी। - पुर्तगीज सबसे पहले भारत पहुँचे, बाकी सभी कम्पनियाँ प्रारम्भ में भारत न आकर दक्षिण पूर्व एशिया की ओर गई। इसमें फ्रांसीसी कम्पनी सरकारी थी।
- ये सभी कम्पनियाँ मूलतः मसाले के लिए भारत आयीं, परन्तु इन्होंने सबसे अधिक व्यापार सूती वस्त्रों का किया। लेकिन इस समय अधिकतर सोना नील के जरिए आता था।
- 1500 ई0 के लगभग भारत के समूचे व्यापार को करने वाला प्रमुख समुदाय कोरोमण्डल, चेट्टियार समुदाय था इनके साथ एक अन्य दक्षिण-पूर्वी व्यापारी समुदाय चूलिया मुसलमान था।
पुर्तगाली
- 1453 सी.ई. में कुस्तुनतुनिया का पतन हुआ। तुर्कों का यूरोप की ओर जाने वाले मार्ग पर अधिकार हो गया।
- पुर्तगाल के राजकुमार प्रिंस हेनरी ‘द नेवीगेटर’ के प्रयासों से भौगोलिक खोजों का कार्य आसान हुआ।
- 1487 सी.ई. में पुर्तगाली नाविक बार्थोलोम्यो डियाज ने उत्तम-आशा अंतरीप (Cape of good hope) खोजा, जिसे उसने तूफानी अंतरीप कहा।
- 1492 सी.ई. में स्पेन के निवासी कोलम्बस ने भारत पहुँचने का मार्ग ढूंढ़ते हुए अमरीका की खोज की।
- भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन के अंतर्गत 1498 सी.ई. में पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा, जिसे मैनुएल प्रथम ने भेजा था, एक हिन्दुस्तानी गुजराती व्यापारी अब्दुल मजीद (नामक गुजराती) की सहायता से 10 महीने 14 दिन में लिस्बन से कालीकट के प्रसिद्ध बंदरगाह ‘कथाकडाबू’ (नामक स्थान पर) पहुंचा। उस समय कालीकट का शासक जमोरिन था।
- वास्कोडिगामा भारत से जो मसाले लेकर गया वे वह मसाले वहाँ 60 गुना अधिक दाम पर बिके। कालीकट में बसे अरब व्यापारियों ने वास्कोडिगामा के प्रति वैमनस्य का भाव दिखाया।
- कोलंबस के यूरोप लौटने के पश्चात पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन कुछ समय के लिए समस्त यूरोपीय व्यापार का केन्द्र बन गई और पुर्तगाली शासक मैनुअल- प्रथम ने वाणिज्य प्रधान की उपाधि धारण की।
- 1500 सी.ई. में पेड्रो अल्वारेज केब्रल के नेतृत्व में द्वितीय पुर्तगाली अभियान कालीकट पहुंचा।
- 1502 सी.ई. में वास्कोडिगामा पुनः जहाजी बेड़ों के साथ भारत आया।
- 1503 सी.ई. में अल्बुकर्क भारत आया और इसी वर्ष 1503 सी.ई. में पुर्तगालियों ने कोचीन में पहली फैक्ट्री स्थापित की।
- पुर्तगालियों का भारत में प्रारंभिक लक्ष्य मसाला व्यापार पर एकाधिकार जमाना था, परन्तु कैब्रल के अभियान के उपरांत पुर्तगाल ने पूर्वी जगत व यूरोप के मध्य होने वाले संपूर्ण व्यापार पर एकाधिकार करने का निश्चय किया।
- अतः सन् 1505 सी.ई. में एक नई नीति के तहत 3 वर्षों के लिए भारतीय क्षेत्रों हेतु एक गवर्नर को नियुक्त किया गया।
- पुर्तगालियों द्वारा यूरोप एवं भारत के बीच सीधा समुद्री मार्ग खोजने के पीछे आर्थिक कारण सक्रिय थे।
फ्रांसिस्को डी अलमीडा (1505-09 सी.ई.)
- प्रथम भारतीय पुर्तगाली गवर्नर जनरल बना था। इसका मुख्य उद्देश्य शांतिपूर्वक व्यापार करना था। उसकी यह नीति ब्लू वाटर पॉलिसी या शांत जल की नीति कहलायी। इसने कुछ किले बनवाए- अजानवीवा, कीवा, बेसीन एवं कोचीन।
- इसने 1508 सी.ई. में संयुक्त मुस्लिम सैनिक बेड़े (मिड्ड, तुर्की और गुजरात के बेगड़ा) से चौल के समीप युद्ध किया।
- इस युद्ध में वह पराजित हुआ और उसका पुत्र मारा गया। परन्तु 1509 सी.ई. में इसने संयुक्त नौसैन्य बेड़े को पराजित किया, फलतः एशिया में ईसाई जगत की नौसैनिक श्रेष्ठता स्थापित हुई। इसी के साथ होरमुज पर पुर्तगीजों का कब्जा हो गया।
अल्फांसो डी अल्बुकर्क (1509-15 सी.ई.)
- अलमीडा के पश्चात 1509 सी.ई. में अल्बुकर्क गवर्नर बना। यह भारत में पुर्तगीज शक्ति का वास्तविक संस्थापक था। इसने कोचीन को मुख्यालय बनाया।
- 1510 सी.ई. में इसने बीजापुर के शासक इस्माइल आदिल शाह से गोवा छीन लिया। इसके साथ ही भारत में क्षेत्रीय पुर्तगाली राज्य की स्थापना हुई।
भारत के समुद्री मार्ग की खोज
- अल्बुकर्क ने प्रथम बार पुर्तगाली पुरुषों को भारतीय स्त्रियों से विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया। क्योंकि वह भारत में स्थायी पुर्तगीज आबादी बसाना चाहता था।
- अल्बुकर्क ने अपने क्षेत्र में सती प्रथा बंद कर दी। परंतु वह मुस्लिमों के प्रति असहिष्णु था।
- उसने 1511 सी.ई. में मलक्का पर नियंत्रण किया। 1515 सी.ई. में हॉरमुज पर इसका अधिकार हो गया। उसने विजयनगर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए।
नीनो डी कुन्हा (1529-38 सी.ई.)
- अल्बुकर्क के बाद यह गवर्नर बना। 1530 सी.ई. में इसने सरकारी कार्यालय कोचीन से गोवा स्थानांतरित कर दिया। इसके साथ ही गोवा भारत में पुर्तगाली राज्य की औपचारिक राजधानी बन गयी।
- इसने अफ्रीकी समुद्र तट मोम्बासा पर अधिकार कर लिया और मद्रास के करीब सेंटथोमे तथा बंगाल में हुगली में बस्ती स्थापित की। उसने 1534 सी.ई. में बसी ने तथा 1535 सी.ई. में दीव पर अधिकार कर लिया। उस समय गुजरात का शासक बहादुरशाह था। उसने तुर्की से संपर्क साधा।
- तुर्की के सुलेमान रईस की अध्यक्षता में शक्तिशाली जहाजी बेड़ा गुजरात भेजा गया।
- इसी जहाज में रूमी खां आया था। वह लड़ाई में पुर्तगीजों को पीछे हटाने में सफल रहा। इसके बाद बहादुरशाह का हुमायूं से युद्ध प्रारंभ हुआ।
- अतः उसने पुर्तगीजों को बसीन देकर उन्हें अपनी ओर मिला लिया। दीव के पुर्तगीजों ने पुनः तुर्कों से संपर्क किया।
- 1536 सी.ई. में सुलेमान पासा के नेतृत्व में एक शक्तिशाली जहाजी बेड़ा भेजा गया।
- बहादुरशाह पुर्तगाली गवर्नर नीनो डी कुन्हा से मिलने समुद्र में गया जहाँ हाथापाई में जहाज से गिरकर उसकी मृत्यु हो गई।
जोआ डी कास्त्रों
- इसने गोवा पर आक्रमण करने वाली बीजापुरी सेना को पराजित किया।
पुर्तगालियों की समुद्री बस्तियां
- प्रमुख बस्तियां दीव, दमन, कालीकट, कोचीन, गोवा, बम्बई, सूरत, बसीन, चौक, सेंथोंमे, चिटगांव (पोटौग्रिन्डे या ग्रेन्डपोत), हुगली।
- 1662 सी.ई. में ब्रिटिश राजकुमार चार्ल्स द्वितीय की शादी पुर्तगीज राजकुमारी कैथरीन से हुई एवं दहेज के रूप में बम्बई अंग्रेजों को प्राप्त हुआ।
- 1668 सी.ई. में चार्ल्स द्वितीय ने बम्बई अंग्रेजों को 10 पौण्ड वार्षिक किराये पर दे दिया।
भारत में पुर्तगाली फैक्ट्रियाँ |
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सन | फैक्ट्री |
1503 सी.ई. | कोचीन |
1505 सी.ई. | कन्नूर |
1510 सी.ई. | गोवा |
1511 सी.ई. | मलक्का (दक्षिण पूर्व एशिया में 1641 सी.ई. में डचों ने जीत लिया) |
1515 सी.ई. | हारमुज |
1534 सी.ई. | बसीन |
1535 सी.ई. | द्वीव |
1559 सी.ई. | दमन |
पुर्तगालियों की सैन्य पराजय
- कालांतर में अनेक स्थानों पर पुर्तगालियों को सैन्य पराजय का सामना करना पड़ा।
- 1598 सी.ई. में दक्षिण पूर्वी एशिया में आने के बाद अगले 20 वर्षों में डचों ने पुर्तगालियों को इस क्षेत्र से बाहर खदेड़ दिया।
- 1654 सी.ई. में पुर्तगालियों ने अंग्रेजों को अपने अधिकृत पूर्वी प्रदेशों में निवास व व्यापार करने की मान्यता प्रदान की।
- 1641 सी.ई. में संपूर्ण श्रीलंका व 1663 सी.ई. में मालाबारी दुर्ग डचों के अधीन हो गए।
- 1611 सी.ई. में सूरत के निकट स्वाली तट पर अंग्रेजों ने पुर्तगाली नौसेना को पराजित किया।
- 1628 सी.ई. में फारसी सेना की सहायता से अंग्रेजों ने हॉरमुज पर कब्जा कर लिया।
- मुगल सम्राट शाहजहां के काल में कासिम खां ने 1632 सी.ई. में हुगली पर कब्जा कर लिया।
- 1739 सी.ई. में मराठों ने सॉलसेट व बसीन पर कब्जा कर लिया।
- केवल गोवा, दमन व दीव 1961 सी.ई. तक पुर्तगालियों के अधिकार में बने रहे।
पुर्तगाली नियंत्रण की विधि एवं प्रक्रिया
- पुर्तगाली सामुद्रिक साम्राज्य को ‘एस्तादो द इंडिया’ नाम दिया गया। इन्होंने हिन्द महासागर में होने वाले व्यापार को नियंत्रित करने व उस पर कर लगाने का प्रयास किया।
- पुर्तगालियों ने अपनी कार्टेज-आर्मेडा काफिला व्यवस्था द्वारा साम्राज्य पर गहरा प्रभाव डाला। उनका मुख्य साधक था कार्टेज या परमिट जिसके पीछे आर्मेडा का बल होता था। वे अपने को सागर का स्वामी कहते थे व कार्टेज आर्मेडा व्यवस्था को उचित ठहराते थे।
भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन
- इसके अंतर्गत पुर्तगालियों द्वारा सामुद्रिक मार्गो पर सुरक्षा कर वसूल किया जाता था। मुगल बादशाह भी सूरत से मक्का जाने वाले अपने जहाजों हेतु परमिट लेते थे। यह प्रमाण पत्र पहली बार 1502 सी.ई. में जारी किया गया।
- मुगल सम्राट अकबर ने पुर्तगालियों से प्रतिवर्ष एक निःशुल्क कार्टेज प्राप्त करके एक प्रकार से समुद्र पर उनका नियंत्रण स्वीकार कर लिया।
भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन तथा बस्तियों का विवरण
पुर्तगालियों का पतन
उनके पतन के अनेक कारण रहे-
- धार्मिक असहिष्णुता की नीतियों से भारतीयों के मन में उनके प्रति घृणा उत्पन्न हुई। ईसाई पादरियों ने धार्मिक असहिष्णुता को ईसाई धर्मान्यायाधिकरण के द्वारा बढ़ावा दिया।
- 1542 सी.ई. में पुर्तगाली गवर्नर मार्टिज डिसूजा के साथ प्रसिद्ध जीजस संत जेवियर भारत आया।
- मुगल सम्राट अकबर के दरबार में तीन जेसुइट मिशन आए। जेसुइटों को भ्रम था कि अकबर मसीही मत स्वीकार करना चाहता है।
- भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन होने के बाद पुर्तगालियों ने व्यापार के साथ लूट-मार की नीति भी जारी रखी। इन सामुद्रिक लुटेरों के वंशज फिरंगियों के नाम से प्रसिद्ध थे।
- इसके अतिरिक्त पतन का सर्वप्रमुख कारण उनके पीछे आने वाली अन्य यूरोपीय कंपनियों से उनकी लगातार प्रतिद्वंदिता रही जिसमें वे पिछड़ गए।
- भारत से लाई गई वस्तुओं खासकर काली मिर्च और अन्य मसालों का आंशिक रूप में तांबे के माध्यम से भुगतान होता था। अतः ताम्बे की बड़ी मात्रा में आवश्यकता लगातार बढ़ती जा रही थी।
पुर्तगालियो का योगदान
- भारत का जापान के साथ व्यापार प्रारंभ करने का श्रेय, वहां से इन्हें तांबा व चांदी प्राप्त होती थी। इनके द्वारा मध्य अमेरिका से तम्बाकू, आलू व मक्का को भारत में लाया गया।
- पुर्तगालियों ने जहांगीर के समय भारत में तम्बाकू की खेती का प्रचलन किया। पुर्तगालियों ने ही 1556 सी.ई. में पहली प्रिटिंग प्रेस की स्थापना गोवा में की।
1498 सी.ई. | वास्कोडिगामा का भारत आगमन। |
1500 सी.ई. | द्वितीय पुर्तगाली यात्री कैब्राल का भारत आगमन। |
1502 सी.ई. | दूसरी बार वास्कोडिगामा का भारत आगमन। |
1510 सी.ई. | गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार। |
1530 सी.ई. | कोचीन की जगह गोवा पुर्तगालियों की राजधानी बानी। |
1599 सी.ई. | ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना। |
1602 सी.ई. | डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना। |
1661 सी.ई. | पुर्तगालियों ने ब्रिटेन के राजा को बम्बई दहेज़ में दिया। |
1664 सी.ई. | फ़्रांसिसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापाना। |
1690 सी.ई. | जॉब चारनौक द्वारा कलकत्ता की स्थापना। |
1708-09 सी.ई. | ब्रिटेन की दो प्रतिद्वंदी कंपनियों का आपस में विलय। |
1759 सी.ई. | बेदरा का निर्णायक युद्ध जिसमे अंग्रेजों ने डचों को पराजित कर भारतीय व्यापार से बहार किया। |
1760 सी.ई. | वदिवाश का निर्णायक युद्ध जिसमे अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को पराजित कर भारतीय व्यापर से बाहर कर दिया। |
डच
- डच नीदरलैण्ड या हॉलैण्ड के निवासी थे। वे पुर्तगीजों के बाद भारत में आए। 1595-96 सी.ई. में कार्नेलिश-डे-हाउटमैन के नेतृत्व में पहला बेड़ा पूर्व की ओर आया।
- 1602 सी.ई. में विभिन्न डच कंपनी को मिलाकर United East India Company of Nitherland के नाम से एक विशाल व्यापारिक संस्थान की स्थापना हुई। इस कंपनी का मूल नाम वेरीगे ओस्त इण्डिशे कंपनी (Bereerigoe Oast Eodische Compagonis) था।
- कंपनी की देखरेख के लिए 17 व्यक्तियों का एक बोर्ड बनाया गया, इसे भद्रजन XVII कहते थे।
- कंपनी को हॉलैण्ड सरकार द्वारा 21 वर्ष के लिए भारत व पूर्वी जगत के साथ व्यापार करने एवं आक्रमण तथा विजय करने सम्बन्धी व्यापक अधिकार दिए गए।
- सभी संधियां डच सरकार के नाम से संपन्न होती थी।
- हॉलैण्ड में डच ईस्ट इंडिया कंपनी कभी भी अस्त्र-शस्त्र के बल पर व्यापार बढ़ाने के पक्ष में नहीं रहती थी।
- वे गवर्नर व उसके परिषद को निर्देश देते थे कि जहां तक हो सके सशस्त्र संघर्ष टाला जाए।
- आरंभ में डच व्यापारियों ने मसालों के व्यापार में रुचि दर्शायी। इसलिए उन्होंने सुदूर पूर्व में अपना ध्यान ज्यादा केन्द्रित किया। उनके लिए भारत एक व्यापारिक डिपो मात्र था।
- भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन के अंतर्गत 1605 सी.ई. में डचों ने पुर्तगीजों से अम्बायना छीन लिया।
- 1619 सी.ई. में जकार्ता जीतकर वहां बैटोविया नगर बसाया।
- डच नौसेना नायक वादेर हेग जब सूरत एवं मालाबार में असफल हुआ तो उसने 1605 सी.ई. में मसूलीपट्टनम में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना की।
- इन्होंने 1606 सी.ई. में अपना प्रथम डच फैक्ट्री उत्तरी कोरोमण्डल के पेटापुल में स्थापित किया। इसी वर्ष मसूलीपट्टनम में दूसरा डच फैक्ट्री लगाया।
- धीरे-धीरे उन्होंने महसूस किया कि मसाला द्वीप (इंडोनेशिया) से मसाले के बदले कपड़े का विनिमय लाभदायक होगा।
- अतः उन्होंने भारत में क्षेत्रीय विस्तार की नीति अपनानी शुरू कर दी।
- 1610 सी.ई. में पुलीकट की जगह नागापट्टनम को डचों का मुख्यालय बनाया गया।
- भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन के तहत बंगाल में प्रथम डच फैक्टरी की स्थापना पीपली में सन् 1627 सी.ई. में की गई।
- 1653 सी.ई. में चिनसुरा में डच फैक्टरी की स्थापना की गई। चिनसुरा के डच किले को ‘गुस्ताकुस कोर्ट’ के नाम से जाना जाता था।
- औरंगजेब ने 1664 सी.ई. में डचों को 5% वार्षिक चुंगी पर बंगाल, बिहार और उड़ीसा में व्यापार करने का अधिकार दे दिया।
- 1690 सी.ई. में पुलीकट की जगह नागापट्टनम को डचों का मुख्यालय बनाया गया।
- डचों ने मसालों के स्थान पर भारतीय कपड़ों के निर्यात को ज्यादा महत्त्व दिया जो कोरोमण्डल तट, बंगाल व गुजरात से निर्यात होते थे।
- डचों द्वारा निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएं थीµसूरत से नील, भड़ौच से कपड़े, बिहार व बंगाल से शोरा व नमक, गंगाघाटी से अफीम, बंगाल से सूती कपड़ा, कच्चा रेशम, शोरा व अफीम।
- भारत से भारतीय वस्त्र को निर्यात की जाने वाली वस्तु बनाने का श्रेय डचों को जाता है।
- चूंकि कोरोमण्डल तट के कपड़ा व्यापार की तुलना में मालाबार का मसाला व्यापार कम लाभप्रद था। अतः डचों ने मालाबार प्रदेश की उपेक्षा की।
- डचों ने मसाले के स्थान पर भारतीय कपड़ों के निर्यात को अधिक महत्त्व दिया।
- डच कोरोमण्डल बंदरगाह से इतना ज्यादा निर्यात करते थे कि कोरोमण्डल से किए जाने वाले व्यापार को मलक्का और आसपास के द्वीपों को हैड़ी ब्रोअर ने बायां हाथ कहा है।
डचों द्वारा कोरोमण्डल से आयात की जाने वाली वस्तुएं थी-
- द्वीप समूहों से आयातित चंदन की लकड़ी और काली मिर्च, जापान से तांबा, चीन से रेशम।
- 1759 सी.ई. में अंग्रेजों से बेदरा (बंगाल) के युद्ध में डच पराजित हुए।
- 1795 सी.ई. में अंग्रेजों ने डचों को अंतिम रूप से भारत से खदेड़ दिया।
- डच भारत में व्यापारिक स्वार्थ से प्रेरित होकर आए थे।
- डच व्यापारिक व्यवस्था सहकारिता या कार्टल पर आधारित था।
- इस व्यवस्था का उल्लेख 1722 सी.ई. के दस्तावेज में किया गया है जिसे नागापट्टनम के डच गवर्नर और 6 तेलुगू व्यापारियों के बीच समझौते के रूप में स्पष्ट रूप लिखा गया है।
भारत में फैक्ट्रियाँ:- |
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1605 सी.ई. | मसूलीपट्टनम- वादेर हेग के द्वारा। |
1610 सी.ई. | पुलीकट- इसे अपना मुख्यालय बनाया और यहीं अपने स्वर्ण सिक्के पगोड़ा ढाले |
1616 सी.ई. | सूरत– नागपट्टम में स्थापित की। |
1641 सी.ई. | विमलीपट्टम में एक फैक्ट्री स्थापित की गयी। |
पूर्व में:- | |
1627 सी.ई. | पीपली-उड़ीसा में सर्वप्रथम डच फैक्ट्री। |
1653 सी.ई. | बंगाल में हुगली के पास चिनसुरा में। इस फैक्ट्री को इन्होंने किलेबन्द किया। इस फैक्ट्री को गुस्ताओं फोर्ट के नाम से जाना जाता है। इसके बाद कासिम बाजार बालासोर पटना में फैक्ट्रियां स्थापित की गयी। |
दक्षिण में:- | |
1660 सी.ई. | गोलकुण्डा में। |
1663 सी.ई. | कोचीन में। इसी समय उन्होंने क्रागेनूर में। |
अंग्रेजी कंपनी
- भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन के अंतर्गत भारत में अंग्रेजों का आगमन डचों के बाद हुआ। हालांकि ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना डच ईस्ट इंडिया कंपनी से पूर्व हो चुकी थी।
- 1759 सी.ई. में अंग्रेज विलियम ड्रेक ने पूर्वी क्षेत्र का दौरा किया। 1788 सी.ई. में स्पेनिश आर्मेडा की हार के साथ ब्रिटिश की नौसैनिक श्रेष्ठता स्थापित हो गई।
- 1599 सी.ई. में ब्रिटिश मर्चेण्ट एडवेन्यर्स कंपनी की स्थापना हुई। इसका नाम ‘गवर्नर एण्ड कम्पनी ऑफ मर्चेण्ट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इण्डीज’ रखा गया।
- 31 दिसम्बर 1600 सी.ई. में महारानी एलिजाबेथ ने एक आज्ञा पत्र द्वारा इसे 15 वर्षों के लिए पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने का एकाधिकार दिया। इस कंपनी का तात्कालिक उद्देश्य पूर्वी द्वीप समूह से मसाले तथा काली मिर्च को प्राप्त करना था।
- कम्पनी के प्रबंधन हेतु एक समिति थी, इसमें एक निदेशक एक उप-निदेशक और 24 सदस्य होते थे।
- इन्हें कंपनी में शामिल सौदागरों की आम सभा द्वारा चुना जाता था। यही समिति बाद में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के नाम से जानी गई।
- इसके साथ ही पूर्वी व्यापार पर ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार हो गया।
- रानी एलिजाबेथ की मृत्यु (1603 सी.ई.) के बाद जेम्स प्रथम ने चार्टर (1609 सी.ई.) को बढ़ाकर अनिश्चित काल तक कर दिया।
- 1623 सी.ई. में चार्टर द्वारा कंपनी को अपने सेवकों को नियंत्रित करने व दण्ड देने का भी अधिकार मिल गया।
- चार्ल्स प्रथम के काल में कंपनी को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
- 1635 सी.ई. में चार्ल्स प्रथम ने सर विलियम्स कोर्टन को पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने के लिए एक नये व्यापारिक निकाय असाडा कंपनी स्थापित करने की अनुमति दे दी। परंतु यह ईस्ट इंडिया कंपनी के सामने नहीं टिक सकी।
- कंपनी ने चार्ल्स द्वितीय को कर्ज के रूप में 1 लाख 70 हजार पौण्ड दिए तथा बदले में मानदों की एक पूरी शृंखला प्राप्त की जिसके द्वारा उसके पुराने विशेषाधिकारों की पुष्टि कर दी गई।
- चार्ल्स द्वितीय ने 1661 सी.ई. में कंपनी को दूसरा चार्टर प्रदान किया इसके द्वारा कंपनी को अपने प्रशासन हेतु गवर्नर व अधीनस्थ अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार मिल गया।
- 1668 सी.ई. के चार्टर ने कंपनी को मात्र व्यापारिक निकाय से बदलकर एक क्षेत्रीय शक्ति बना दिया।
- यहां तक 1676 सी.ई. में कंपनी को बॉम्बे में सिक्के ढालने का भी अधिकार मिल गया।
- 1687 सी.ई. में कंपनी को मद्रास में एक नगर निगम और मेयर की अध्यक्षता में न्यायालय स्थापित करने का अधिकार मिला।
- 1688 सी.ई. के बाद ब्रिटिश शासक का उद्देश्य पूर्वी व्यापार के लिए स्वतंत्र व्यापारियों को प्रोत्साहन देना था।
- कुछ स्वतंत्र व्यापारी ईस्ट इंडिया के समानांतर पूर्वी क्षेत्रों में व्यापार करने लगे। वे अपने को स्वतंत्र व्यापारी कहते थे।
- 1693 सी.ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने ब्रिटिश शासक को एक बड़ी राशि घूस में दी। किन्तु 1694 सी.ई. में ब्रिटिश संसद ने एक प्रस्ताव द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार वापस लेते हुए प्रत्येक पूर्वी व्यापार पर ब्रिटिश का अधिकार माना।
- 1698 सी.ई. में न्यू कंपनी का गठन हुआ। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भय से इसके अधिकांश शेयर खरीद लिए।
- अंततः लॉर्ड मोडोलिन के हस्तक्षेप से 1702 सी.ई. में दोनों कंपनियों ने विलय का निर्णय लिया।
- 1708 सी.ई. में दोनों कंपनियां संयुक्त हो गई। इस संयुक्त कंपनी का नाम था- The Limited Company of Merchant of England trading to the east India.
- कंपनी का यह नाम 1833 सी.ई. तक कायम रहा, 1833 सी.ई. के चार्टर द्वारा इसका संक्षिप्त नाम ईस्ट इंडिया कंपनी कर दिया गया।
भारतीय शासक और अंग्रेज
- भारत में व्यापारिक कोठियाँ खोलने का प्रथम प्रयास 1608 सी.ई. में हुआ। कैप्टन हॉकिन्स के नेतृत्व में हैक्टर नामक प्रथम अंग्रेजी जहाज सूरत बंदरगाह पर आकर रुका। हॉकिन्स प्रथम अंग्रेज था जो समुद्र के रास्ते भारत आया।
- हॉकिन्स तुर्की बोल सकता था, वह जेम्स प्रथम का पत्र लेकर जहांगीर के दरबार में पहुंचा। दरबार में उसने फारसी में बात की। जहांगीर ने उसे 400 का मनसब दिया, जागीर दी तथा खान की उपाधि दी।
- हॉकिन्स ने अंग्रेजों के लिए सूरत में फैक्ट्री खोलने की अनुमति मांगी। प्रारंभिक अनुमति देने के बाद पुर्तगीजों के शत्रुतापूर्ण व्यवहार और सूरत के सौदागरों के विरोध के कारण यह अनुमति रद्द कर दी गई।
- सन् 1611 सी.ई. में आगरा के पुर्तगीजों के विरोध पर ब्रिटिश कमांडर मिडिल्टन एवं वेस्ट ने स्वाली नामक स्थान पर पुर्तगालियों को पराजित किया।
- 1613 सी.ई. में जहांगीर अंग्रेजों से प्रभावित होकर सूरत में स्थायी कारखाना बनाने की अनुमति दे दी। इसके पूर्व 1611 सी.ई. में ब्रिटिश मछलीपट्टनम में एक व्यापारिक कोठी स्थापित कर चुके थे।
- मछलीपट्टनम में डचों के विरोध के फलस्वरूप 1626 सी.ई. में अरमागांव में एक अन्य कोठी खोली गई।
- 1632 सी.ई. में गोलकुण्डा के सुल्तान ने एक सुनहरा फरमान द्वारा 500 पैगोडा के बदले उन्हें अपने क्षेत्र से स्वतंत्र व्यापार करने की अनुमति प्रदान कर दी।
- 1639 सी.ई. में फ्रांसिस डे ने चंद्रगिरि के शासक से मद्रास (फोर्ट-सेण्ट जार्ज) प्राप्त किया।
- 1615-19 सी.ई. के दौरान सर टॉमस रो जहांगीर के दरबार में रहा। यह जेम्स प्रथम का सीधा प्रतिनिधि था।
- 1623 सी.ई. तक अंग्रेजों ने सूरत भड़ौच, अहमदाबाद, आगरा और मसुलीपट्टनम में अपनी फैक्ट्रियां स्थापित कर ली।
- 1661 सी.ई. में इंग्लैण्ड के शासक चार्ल्स द्वितीय का विवाह पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन के साथ हुआ। फलतः पुर्तगालियों ने चार्ल्स द्वितीय को दहेज के रूप में बम्बई द्वीप प्रदान किया।
- 1668 सी.ई. में चार्ल्स द्वितीय ने बम्बई का द्वीप 10 पौण्ड वार्षिक किराये पर ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया।
- 1687 सी.ई. में सूरत की जगह बम्बई अंग्रेजों की मुख्य व्यापारिक बस्ती बन गई। 1633 सी.ई. में उड़ीसा के हरिहरपुर तथा बालासोर में कोठियां कायम की गई।
- 1651 सी.ई. में एक कोठी ब्रिजमैन के अधीन हुगली में खोली गई। इसके बाद पटना, ढाका तथा कासिम बाजार में भी कोठियां खुली।
- 1651 सी.ई. में शाहशुजा ने 3000 रु. वार्षिक की निश्चित राशि के बदले अंग्रेजों को बंगाल में व्यापार की अनुमति दे दी।
- 1686 सी.ई. में बंगाल में किले बंदी के प्रश्न पर अंग्रेजों का औरंगजेब से विवाद हुआ।
- 1669 सी.ई. में सर जार्ज ऑक्सनडेन के उत्तराधिकारी के रूप में जेराल्ड औंगियार, सूरत का प्रेसीडेंट और बम्बई का गवर्नर बना। उसने संचालक समिति को लिखा कि हमें एक हाथ में प्रार्थना पत्र व दूसरे हाथ में तलवार चाहिए।
- वैसे ही बोर्ड आफ डायरेक्टर्स के अध्यक्ष जोशुआ चाइल्ड ने 1687 सी.ई. में मद्रास के अधिकारी को लिखा ‘अब हमें यह आधार निर्मित करना चाहिए जिस पर प्रशासनिक व सैनिक ढांचा खड़ा हो।’
- मक्का जाने वाले एक जहाज पर अधिकार करने के कारण औरगंजेब ने इनके विरुद्ध कार्यवाही कर इन्हें ब्रिटिश को Fever island पर शरण लेने को बाध्य कर दिया। परन्तु जॉब चारनॉक द्वारा औरंगजेब से माफी मांग लेने के कारण पुनः उसे सारी सुविधाएं मिल गई।
- अंग्रेजों ने सभी पकड़े गये जहाजों को लौटा दिया तथा हर्जाने के रूप में 1.5 लाख रुपया देना स्वीकार किया।
- 1691 सी.ई. में शाइस्तां खां ने शुजा के फरमान पर मुहर लगाकर ब्रिटिशों को पुनः सारी सुविधाएं सौंप दी।
ब्रिटिश व्यापारिक कोठी
1608 सी.ई. | सूरत (अनुमति रद्द)। (टामस एल्डवर्थ) |
1611 सी.ई. | मसूलीपट्टम। |
1611 | स्वाल्ली का युद्ध। |
1612 सी.ई. | सूरत (किलेबन्द फैक्ट्री) |
दक्षिण में फैक्ट्रियाँ | |
1611 सी.ई. | मसूली पट्टम |
1626 सी.ई. | अर्मागाँव (कर्नाटक) |
1632 सी.ई. | Golden Ferman – गोलकुण्डा के शासक के द्वारा जारी किया गया। इसके 500 पगोज सलाना कर के बदले अंग्रेजों को गोलकुण्डा राज्य के बन्दरगाहों से व्यापार करने की छूट प्राप्त हो गयी। |
1639 सी.ई. | फोर्ट सेंट जार्ज की स्थापना। |
बंगाल में अंग्रेजी शक्ति
- बंगाल मे 1651 सी.ई. में सर्वप्रथम अंग्रेजों को व्यापारिक छूट मिली जब बार्टन जो कि शाहशुजा (बंगाल का सूबेदार) के साथ दरबारी चिकित्सक के रूप में रहता था, एक फाइसेंस अंग्रेजी कंपनी के लिए प्राप्त किया। इसमें 3000 रु. वार्षिक कर के बदले बंगाल, बिहार व उड़ीसा में मुफ्त व्यापार करने की अनुमति दी गई।
- 1680 सी.ई. में औरगंजेब ने एक फरमान जारी किया जिसमें आदेश था कि कोई चुंगी के लिए कंपनी के आदमियों को तंग न करे और न ही उसके व्यापार में रुकावट डाले।
- साथ ही अंग्रेजों से 2 प्रतिशत चुंगी के अलावा 1.5 प्रतिशत जजिया वसूलने का भी आदेश था।
- अक्टूबर 1686 सी.ई. में अंग्रेजों ने हुगली को लूटा। परंतु औरंगजेब द्वारा पराजित होकर वे फीवर आइलैंड भाग गए और जॉब चारनॉक ने पुनः सुविधाएं प्राप्त की।
- जॉब चारनॉक ने अगस्त 1690 सी.ई. में सूतानाटी में एक अंग्रेज कोठी कायम की। 1691 सी.ई. में शइस्ता खां के उत्तराधिकारी इब्राहिम खां ने एक फरमान द्वारा 3000 रु. वार्षिक कर के बदले अंग्रेजों को चुंगी कर से मुक्ति दे दी।
- बर्दवान के जमींदार शोभा सिंह के विद्रोह से अंग्रेजों को 1696 सी.ई. में नई कोठी के किलेबंदी की अनुमति मिल गई। बंगाल के सूबेदार अजीमुरशान ने 1698 सी.ई. में अंग्रेजों को सूतामाटी, कोलीकाता और गोविन्दपुर नामक तीनों गांवों की जमींदारी प्रदान की।
- जॉब चॉरनॉक ने इसी स्थल पर कलकत्ता की स्थापना की जहां इंग्लैण्ड के सम्राट के सम्मान में उक्त किलेबंद प्रतिष्ठान का नाम फोर्ट विलियम रखा गया और जिसका प्रथम प्रेसिडेंट सर चार्ल्स आयर हुआ।
- सन् 1700 सी.ई. में इसे पहला प्रेसिडेन्सी नगर घोषित किया गया। यह 1774 सी.ई. से फरवरी 1911 सी.ई. तक ब्रिटिश भारत की राजधानी रहा।
- 1698 सी.ई. में ब्रिटिश शासक विलियम तृतीय ने व्यापारिक सुविधाएं प्राप्त करने के लिए सर विलियम नॉरिस को औरंगजेब के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा, जो असफल रहा।
- 1717 सी.ई. में फर्रूखशियर के समय ब्रिटिश अधिकारी जॉन सुरमन को मुगल दरबार में भेजा गया। इसने औरंगजेब के समय से प्राप्त विशेषाधिकारों के अलावा बंगाल में सिक्का ढालने तथा कलकत्ता के पास 38 गांव खरीदने की याचना की।
- इस दूतमंडल में एडवर्ड स्टीफेंसन, विलियम हैमिल्टन नामक सर्जन और ख्वाजा सेर्हुद नामक एक अर्मेनियन द्विभाषिया था।
- हैमिल्टन ने फर्रूखशियर एक दर्दनाक बीमारी से निजात दिलाया।
- फलतः फर्रूखशियर ने प्रसन्न होकर में 1717 सी.ई. में शाही फरमान जारी किया। इसमेंµ
- 3000 रु. वार्षिक कर के बदले बंगाल में मुफ्रत व्यापार की छूट बम्बई में कंपनी द्वारा ढाले गए सिक्कों को संपूर्ण मुगल राज्य में चलाने की अनुमति
- 10,000 रु. वार्षिक कर के बदले कंपनी को सूरत में सभी करों से मुक्ति मिल गयी।
- ब्रिटिश इतिहासकार ओर्म (Aurm) ने इसे कंपनी का मैग्नाकार्टा कहा।
- बंगाल के सूबेदार मुर्शिद कुली खां ने अंग्रेजों को 38 गांवों को दिए जाने का विरोध किया।
डेन
- अंग्रेजों के बाद डैनिश कंपनी का आगमन 1616 सी.ई. में हुआ। तंजौर जिले के त्रावणकोर नामक क्षेत्र में 1620 सी.ई. में इन्होंने अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की।
- बंगाल के श्रीरामपुर में 1676 सी.ई. में दूसरी फैक्ट्री कायम की। इनके व्यापारिक केन्द्र मसूलीपट्टनम, पोर्टोनोवा थे।
- 1745 सी.ई. में इन्होंने अपनी सभी फैक्ट्री ब्रिटिश को बेच दी और भारत से वापस चले गए।
स्वीडिश
- 1731 सी.ई. में स्वीडिश ईस्ट इंडिया कंपनी स्थापित हुई। इसकी गतिविधियां भारत के बजाय चीन में अधिक क्रियाशील थी।
फ्रांसीसी
- भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन के क्रम में देखे तो फ्रांसिसियों ने पूर्वी व्यापार में देर से प्रवेश किया। फ्रांस के सम्राट लुई XIV के समय उसके प्रसिद्ध मंत्री कोलबर्ट के प्रयासों के फलस्वरूप 1664 सी.ई. में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई। इस कंपनी का नाम कंपनी इंडेसे ओरियंतलेस था।
कम्पनियां | फैक्ट्रियां |
पुर्तगीज | कोचीन, कन्नूर |
डच | मसूलीपट्टनम,पोतोपल्ली |
अंग्रेज | सूरत, मसूली पट्टम |
फ्रांसीसी | सूरत, मसूली पट्टम |
डेनिश | ट्रांकेबोर, सीरमपुर |
कर्नाटक युद्ध
- कर्नाटक युद्ध ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध से प्रारंभ होकर सप्त वर्षीय युद्ध की समाप्ति के साथ खत्म हुआ।
प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-1748 सी.ई.)
- युद्ध की शुरुआत तब हुई जब यूरोप में ऑस्ट्रिया का उत्तराधिकार युद्ध प्रारंभ हुआ।
- एक ब्रिटिश नौसेना अधिकारी बर्नेट ने कुछ फ्रांसीसी जहाजों को पकड़ लिया। फलतः फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले ने मॉरीशस के गवर्नर ला बोर्डने से सहायता मांगी। इसने मद्रास पर कब्जा कर लिया।
- मद्रास का गवर्नर मोर्स अपनी सेना के साथ हुगली चला गया। तब कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन ने हस्तक्षेप किया।
- 1746 सी.ई. में सेंट टोमे की लड़ाई में कैप्टन पैराडाइज के अधीन छोटी फ्रांसीसी सेना ने महफूज खाँ के अधीन अनवरुद्दीन की सेना को पराजित किया।
- 1748 सी.ई. में यूरोप में फ्रांस एवं ब्रिटिश के बीच एक्स-ला-शापेल की संधि हुई। इसी के साथ प्रथम कर्नाटक युद्ध समाप्त हो गया और मद्रास ब्रिटिश को लौटा दिया गया।
द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-1754 सी.ई.)
- यह युद्ध हैदराबाद और कर्नाटक के उत्तराधिकार की समस्या एवं यूरोपीय कंपनियों की महत्त्वाकांक्षा के कारण प्रारंभ हुआ। हैदराबाद में सत्ता के दो दावेदार थे- नासिरजंग एवं मुज्जफरजंग।
- मुज्जफरजंग को मुगल सम्राट ने नियुक्त किया था परंतु उसे गद्दी प्राप्त नहीं हुई। फ्रांसिसियों ने मुज्जफर जंग का साथ दिया।
- कर्नाटक में सत्ता के दो दावेदार थे, अनवरुद्दीन एवं चंदा साहब। फ्रांसिसियों ने चंदा साहब को सहायता दी। अंततः फ्रांसीसी, मुज्जफरजंग एवं चंदा साहब के बीच संधि हुई।
- 1749 सी.ई. में अंबुर की लड़ाई में फ्रांसीसी, चंदा साहब एवं मुज्जफर जंग ने अनवरुद्दीन को मार डाला। चंदा साहब को कर्नाटक का नवाब बनाया गया।
- प्रसन्न होकर उसने फ्रांसिसियों को पांडिचेरी के अंतर्गत 80 गांव तोहफे में दिए। दूसरी तरफ अनवरुद्दीन का पुत्र मोहम्मद अली ब्रिटिश खेमे से तिरुचिरापल्ली भाग गया। चंदा साहब ने तिरुचिरापल्ली में भी घेरा डाल दिया।
- इस प्रकार तीनों की संयुक्त सेना ने हैदराबाद के नासिरजंग को पराजित किया। नवाब मुज्जफरजंग ने खुश होकर डूप्ले को मसूलीपट्टनम एवं पांडिचेरी के क्षेत्र प्रदान किए।
- डूप्ले को कृष्णा नदी से कन्याकुमारी तक के क्षेत्र का गवर्नर नियुक्त किया गया। डूप्ले ने हैदराबाद के दरबार में बुस्सी नामक सैन्य अधिकारी को नियुक्त किया।
- जब एक दिन मुज्जफर जंग की मृत्यु हो गई तो सलावत जंग को नया नवाब घोषित किया गया। बदले में सलावत जंग ने फ्रांस को उत्तरी सरकार का क्षेत्र दिया।
- इस क्षेत्र में मुस्तफानगर, चिरक्काल, एलोरा एवं राजमुंदरी शामिल थे।
- ब्रिटिश बदले की भावना पर उतारु थे। ब्रिटिश क्लर्क क्लाईव ने एक योजना बनाई।
- क्लाइव का मानना था कि अगर अर्काट पर घेरा डाल दिया जाता है तो चंदा साहब दबाव में आकर तिरुचिरापल्ली का घेरा उठाने के लिए विवश होगा।
- उसने कुछ सैनिकों की सहायता से अर्काट का घेरा डाल दिया। उसका अनुमान सही निकला क्योंकि इसके परिणामस्वरूप चंदा साहब यह घेरा उठाने पर मजबूर हुआ।
- एक युद्ध में चंदा साहब को मार डाला गया और कर्नाटक पर ब्रिटिश नियंत्रण स्थापित हुआ।
- 1754 सी.ई. में डूप्ले को फ्रांसीसी सरकार द्वारा वापस बुला लिया गया एवं उसकी जगह गोडेहू को गर्वनर बनाकर भेजा गया।
- इस तरह 1754 सी.ई. में द्वितीय कर्नाटक युद्ध समाप्त हो गया।
तृतीय कर्नाटक युद्ध (1758-1763 सी.ई.)
- सप्तवर्षीय युद्ध के कारण ब्रिटिश एवं फ्रांसिसियों के बीच पुनः संघर्ष शुरू हो गया। 1756 सी.ई. में क्लाइव तथा वाटसन ने फ्रांसीसी उपनिवेश चंद्रनगर को अपने अधिकार में ले लिया।
- फ्रांस से गोडेहू की मदद के लिए काउन्ट डी लाली को भेजा गया। लाली से यह भूल हुई कि उसने हैदराबाद के दरबार से बुस्सी को बुला लिया।
- इसके पश्चात हैदराबाद में फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व कानफलां नामक एक अयोग्य अधिकारी के हाथ में आ गया। जिसे कर्नल फोर्ड के अधीन ब्रिटिश सेना ने पराजित किया। परिणामतः हैदाबाद भी फ्रांसिसियों के हाथ से निकल गया।
- 22 जनवरी 1760 सी.ई. में वांडीवाश की लड़ाई में आयरकूट के अधीन ब्रिटिश सेना ने लाली को परास्त किया। इस तरह फ्रांसीसियों का सितारा पूर्णतः डूब गया।
- 1763 सी.ई. में दोनों के बीच पेरिस की संधि हुई। इस संधि के अनुसार फ्रांसीसियों को भारत स्थित फैक्टरियां लौटा दी गईं परन्तु वे उनकी किलेबंदी नहीं कर सकते थे बल्कि केवल व्यापारिक केंद्र के रूप में उपयोग कर सकते थे।
- लाली युद्धबंदी के रूप में 2 साल ब्रिटेन में रहा जहाँ से 1763 सी.ई. में फ्रांस लौटा। यहां पर भी वह 2 साल तक बास्तिल में कैद रहा। इसके पश्चात उसे फांसी दे दी गई।
- जे. ए. आर. मैरिवत ने आंग्ल-फ्रांसीसी युद्ध के बारे में लिखा कि ‘‘डूप्ले ने भारत की पूंजी मद्रास में तलाश कर भयानक भूल की। क्लाईव ने इसे बंगाल में खोजा तथा प्राप्त किया।’’
आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष |
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संघर्ष | वर्ष | कारण | संधि | परिणाम |
प्रथम कर्नाटक युद्ध | 1746-48 | आस्ट्रिया का उत्तराधिकार युद्ध | एक्स-ला-शापेल संधि (1748 सी.ई.) | इस युद्ध में फ्रांसीसियों की विजय हुई, जिससे डूप्ले की महत्त्वाकांक्षा बढ़ गई। |
द्वितीय कर्नाटक युद्ध | 1749-54 | हैदराबाद तथा कर्नाटक के आंतरिक मामले में विवाद | पांडिचेरी संधि (1754 सी.ई.) | अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों ने भारतीय राजाओं एवं नवाबों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का वादा किया। फ्रांसीसी प्रमुख को हानि हुई तथा अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ा। |
तृतीय कर्नाटक युद्ध | 1758-63 | सप्तवर्षीय युद्ध से प्रभावित | पेरिस संधि (1763 सी.ई.) | 1760 सी.ई. के वांडीवाश के युद्ध में इंग्लिश कम्पनी ने फ्रांसीसियों को निर्णायक रूप से पराजित कर दिया। |
कारखाने, किले व वाणिज्यिक संस्थाएं
- काहिरा व अलेक्जेन्ड्रिया में व्यापार व वाणिज्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए इतालवी व्यापारियों ने भण्डारगृहों (कारखानों) की स्थापना की।
- इसकी नकल पर पुर्तगालियों ने भी भारत व एशिया के विभिन्न स्थानों के तटीय प्रदेशों में कारखानों की स्थापना की।
- कारखानादार कारखाने का सर्वोच्च अधिकारी होता था। उसके सहायतार्थ कई लोग होते थे, जिनकी नियुक्ति पुर्तगाली सम्राट किया करता था। कारखानादार सम्राट का प्रतिनिधि होता था।
यूरोपीय कम्पनियों के व्यापारिक केंद्र
भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन (Arrival of Europeans in India) |
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कम्पनी | देश | स्थापना | स्थल | गवर्नर |
पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कम्पनी (एस्तादो द इंडिया) | पुर्तगाली | 1498 ई. | कालीकट | एफ-डी-अल्मोड़ा |
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी (द गवर्नर एंड कम्पनी ऑफ मर्चेंट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडीज) | ब्रिटेन | 1600 ई. | सूरत | सर टॉमस रो |
डच ईस्ट इंडिया कम्पनी | हॉलैण्ड | 1602 ई. | मसूलीपट्टनम | विर्निच ओ |
डेनिश ईस्ट इंडिया कम्पनी | डेनमार्क | 1616 ई. | सूतानाती | डिहस्तमान |
फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी (द इंडेस ओरयंतलेस) | फ्रांस | 1664 ई. | सूरत | कॉल्बर्ट/मार्टिन |
स्वीडिश ईस्ट इंडिया कम्पनी | स्वीडन | 1731 | गोहनबर्ग | विलियम-यूसेलिक्स |
निर्यात-आयात की वस्तुएं
- भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन के बाद दक्षिण-पूर्व एशिया के मसाले, रेशम, चीनी मिट्टी, लाख आदि वस्तुएं मालाबार तट पर लायी जाती थी, जहां से लाल सागर एवं फारस की खाड़ी से होकर इन्हें परिश्चमी देशों को भेजा जाता था।
- पश्चिमी देशों को भेजी जाने वाली अन्य महत्त्वपूर्ण वस्तुएं थी-सूती कपड़ा, नील, मसाले और जड़ी-बूटियां। इस समय गुजरात से भारी मात्रा में सूती कपड़े का निर्यात होता था।
- मालाबार व कोंकण से सबसे ज्यादा काली मिर्च का निर्यात होता था। मालाबार से निर्यात की जानी वाली प्रमुख वस्तु अदरक थी।
- मालाबार व कोंकण से अन्य निर्यातित वस्तुओं में- दाल, चीनी, चंदन की लकड़ी, लाख, नील, सुपारी, कपड़े, हाथी दांत, इमली व दाल आदि का भी निर्यात होता था।
- गोवा के गवर्नर अल्बुकर्क ने 1513 सी.ई. में पुर्तगाल के राजा को उन वस्तुओं की सूची दी थी जिन्हें भारत में बेचा जा सकता था जैसे- मूंगा, तांबा, पारा, जरी, मखमल, कालीन आदि।
- ये सभी वस्तुएं पुर्तगाल में नहीं मिलती थी लेकिन पुर्तगाली इन्हें इंग्लैण्ड, जर्मनी आदि देशों से प्राप्त करते थे।
- उत्तर पश्चिम भारत में ताफ्रटा भी निर्यात की जाने वाली महंगी वस्तुओं में से एक थी।
- गुजरात तट से विभिन्न प्रकार के रेशमी उत्पाद पुर्तगाल निर्यात होता था। इनमें रेशम का उत्पादन बुरहानपुर बालाघाट में होता था। चिंटस कैम्बे में बनता था।
- पूर्वी तट से विभिन्न प्रकार के कपड़ों का निर्यात होता था। जटामांसी बंगाल में उपजाया जाता था। कोरोमंडल से पुर्तगाल को चंदन की लकड़ी भी भेजी जाती थी।
- 1500 सी.ई. के लगभग भारत के समूचे व्यापार को नियंत्रित करने वाला प्रमुख समुदाय था, कोरोमंडल का चेट्टियार समुदाय। इस व्यापार में उनके साथ एक अन्य दक्षिण-पूर्वी व्यापारी सहयोगी समुदाय था चूलिया मुसलमान।
- इस प्रकार भारत से पुर्तगालियों के आगमन के समय विशिष्ट समुद्री मार्गों पर विशिष्ट व्यापारिक समुदायों का प्रभुत्व था।
भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन (Arrival of Europeans in India) से संबद्ध व्यक्ति |
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वास्कोडिगामा | भारत आने वाला प्रथम यूरोपीय यात्री |
पेड्रो अल्वरेज कैब्राल | भारत आने वाला द्वितीय पुर्तगाली |
फ्रांसिस्को डी अल्मेड़ा | भारत का प्रथम पुर्तगाली गवर्नर |
जॉन मिल्देनहॉल | भारत आने वाला प्रथम ब्रिटिश नागरिक |
कैप्टन हॉकिंस | प्रथम अंग्रेज दूत जिसने सम्राट जहांगीर से भेट की |
जैराल्ड औंगियार | बंम्बई का संस्थापक |
जॉब चार्नोक | कलकत्ता का संस्थापक |
चाल्र्स आयर | फोर्ट विलियम (कलकत्ता) का प्रथम प्रशाशक |
विलियम नारिश | 1638 ई. में स्थापित नई ब्रिटिश कंपनी ‘ट्रेडिंग इन द ईस्ट’ का दूत जो व्यापारिक विशेषाधिकार हेतु औरंगजेब के दरबार में उपस्थित हुआ |
फ्रैंकोइस मार्टिन | पांडिचेरी का प्रथम फ़्रांसिसी गवर्नर |
फ्रांसिस डे | मद्रास का संस्थापक |
शोभा सिंह | बर्धमान का जमींदार, जिसने 1690 में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह किया |
इब्राहिम खान | कालिकाता, गोविंदपुर तथा सूतानटी का जमींदार |
जॉन सुरमन | मुग़ल सम्राट फर्रुखसियर से विशेष व्यापारिक सुविधा प्राप्त करने वाला शिस्टमण्डल का मुखिया |
फादर मोंसरेट | अकबर के दरबार में पहुँचने वाले प्रथम शिष्टमंडल के अध्यक्ष |
कैरोंन फ्रैंक | इसने भारत में प्रथम फ़्रांसिसी फैक्ट्री की सूरत में स्थापना की |