वायुमंडल की संरचना | Composition of the Atmosphere
वायुमंडल की संरचना (Composition of the Atmosphere) का निर्माणकाल
- पृथ्वी की उत्पत्ति के साथ ही वायुमंडल (Atmosphere) का निर्माण हुआ। पृथ्वी आंरभ में गैसीय अवस्था में थी और कालांतर में वर्तमान रूप में आई।
- पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद इससे हीलियम और हाइड्रोजन जैसी अत्यंत हल्की गैसें अलग हुई, जिनसे प्राथमिक वायुमंडल (Atmosphere) की रचना हुई होगी।ये दोनों गैसें आज वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत में पाई जाती हैं।

वायुमंडल (Atmosphere) का महत्व
- हम मानव तथा पृथ्वी पर रहने वाले अन्य जीवों को जीवन प्रदान करने वाली गैसें वायुमंडल से ही प्राप्त होती हैं।
- वायुमंडल, अपनी आर्द्रता और तापमान द्वारा हमारे जीवन को प्रभावित करता है तथा तरह-तरह के प्राकृतिक दृश्य उपस्थित करने में सहायक होता है। वायुमंडल पृथ्वी से विकिरित गर्मी को रोके रखता है और यहाँ औसतन 15°c तापमान बनाए रहता है।
- वायुमंडल (Atmosphere) सूर्य के भयंकर उत्ताप से पृथ्वी और पार्थिव जीवों की रक्षा करता है। वायुमंडल की निचली तह में धूलकणों की उपस्थिति के कारण ही हमे सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के बाद भी कुछ समय तक प्रकाश मिलता है। ये धूलकण न हों तो हमें कमरों में दिन रहते प्रकाश नहीं मिल सकेगा।
- वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प बादल बनकर वर्षा करते हैं, फिर वर्षाजल वाष्पन द्वारा वायुमंडल में पहुँच जाता है। इस तरह, वायुमंडल के कारण जलचक्र बना रहता है और वृष्टि का नियमित वितरण नियंत्रित होता है।
वायुमंडल की संरचना (Composition of the Atmosphere) या संघटन
- वायुमंडल अनेक गैसों का सम्मिश्रण है। भारी गैसें पृथ्वीतल के समीप (80km की ऊँचाई तक) मिलती हैं और इससे ऊपर हल्की गैसें।
- शुद्ध शुष्क वायु 78% नाइट्रोजन और 21% ऑक्सीजन से बनी होती है। शेष 1% में ऑर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, नियॉन, हीलियम, ओजोन और हाइड्रोजन गैसें हैं।
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वायुमंडल की संरचना (Composition of the Atmosphere) की स्थिति और स्थायी गैसें
घटक | सूत्र | द्रव्यमान प्रतिशत |
नाइट्रोजन | N2 | 78.8 |
ऑक्सीजन | O2 | 20.95 |
आर्गन | Ar | 0.93 |
कार्बन डाईआक्साइड | CO2 | 0.036 |
निऑन | Ne | 0.002 |
हीलियम | He | 0.0005 |
क्रिप्टॉन | Kr | 0.001 |
जेनान | Xe | 0.00009 |
हाईड्रोजन | H2 | 0.00005 |
- उपर्युक्त गैसों के अतिरिक्त वायुमंडल में जलवाष्पए धूलकणए सागरीय लवण के कणए धुआँ और कुछ जीवीय पदार्थ (organic matters) भी मिलते हैं।
- वायुमंडल की रचना जिन गैसों से हुई हैं, उनमें कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और ओजोन (O3) की मात्र ऊँचाई के अनुसार बदलती रहती है। इनमें स्थायित्व का अभाव है। कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वीतल के समीप ही मिलता है, 20 कि.मी. से अधिक ऊँचाई पर नहीं मिलता।
- इस गैस की एक विशेषता यह है कि यह सौर विकिरण को तो आने (पार होने) देती है पर पार्थिव विकिरण को पार होने से रोक देती है। पार्थिव विकिरण का कुछ अंश अवशोषण कर लौटा देती है जिससे पृथ्वीतल के समीप वायु गर्म बनी रहती है। इस गैस की मात्र में कमी होने से भूमंडलीय जलवायु में परिवर्तन आ सकता है।
- पिछली शताब्दी में (20 वीं सदी में) इस गैस की मात्र में वृद्धि हुई है। मानव ज्वलनशील पदार्थों का प्रयोग बढ़ाता जा रहा है जिससे वायुमंडल का संतुलन बिगड़ सकता है। 1870 और 1970 के बीच कार्बन डाइऑक्साइड में 11% की वृद्धि आँकी गई है।
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- प्रकाशसंश्लेषण द्वारा, अर्थात सूर्य-प्रकाश से पेड़-पौधे हरे पदार्थ ‘क्लोरोफिल’ द्वारा प्रति वर्ष पृथ्वी पर फैले कार्बन डाइऑक्साइड का 3% साफ होकर ऑक्सीजन में बदल जाता है। क्योटो प्रोटोकाल (1997) के द्वारा कार्बन डाई आक्साइड की मात्र में कमी किए जाने के बारे में वैश्विक सहमति बनी।
- इस प्रकार, भूमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड में संतुलन स्थापित करने में सहातया मिलती है। यही कारण है कि आज पेड़-पौधे लगाने पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
- ओजोन गैस का महत्व सूर्य की पराबैंगनी किरणों के अवशोषण (सोख लेने) के कारण है। ओजोन की अधिक मात्र 15 से 60 कि.मी. की ऊँचाई पर और 80 से 100 कि.मी. की ऊँचाई पर मिलती है। ऑक्सीजन के अभाव में कोई प्राणी जीवित नहीं रह सकता।
- समुद्री जीव भी जल में घुली ऑक्सीजन गैस लेकर जीवित रहते हैं। वायुमंडल में 100 कि.मी. से अधिक ऊँचाई पर इस गैस का अभाव है। रासायनिक दृष्टि से यह सर्वाधिक सक्रिय गैस है।
- ओजोन परतको क्षरित होने से बचाने के लिए 1987 में मांट्रियल प्रोटोकाल पर तहमति बनी।नाइट्रोजन वायुमंडल की निचली परतों में मिलने वाली निष्क्रिय गैस मानी जाती है पर यह अधिक भाग घेरे हुए है और ऑक्सीजन की उत्कटता कम करती है जिससे ऑक्सीजन साँस लेने योग्य बन पाती है।
- वायुमंडल के निचले स्तर पर 99 प्रतिशत भाग नाइट्रोजन और ऑक्सीजन से ही बना है। नाइट्रोजन भी वायुमंडल में 100 कि.मी. की ऊँचाई तक उपलब्ध है।
वायुमंडल (Atmosphere) में विभिन्न कणों के स्रोत
प्रकार | स्रोत |
धूलकण | ज्वालामुखीय उद्गार, वहन, पवन क्रिया, उद्योग सागरीय स्प्रे, वन अग्नि |
हाइड्रोकार्बन | आंतरिक दहन इंजन, वैक्टीरिया, पौधे |
सल्फर | बैक्टीरिया, जीवाश्म इंधनों का दहन, ज्वालामुखी, सागरीय स्प्रे |
नाइट्रोजन यौगिक | बैक्टीरिया, दहन |
- वायुमंडल (Atmosphere) में जलवाष्प निचली परत में ही (8 कि.मी. की ऊँचाई तक) मिलता है। ध्रुवीय क्षेत्रें में इसकी मात्र नगण्य होती है। बादल, कुहरा, हिम और वर्षा का ड्डोत जलवाष्प ही है।
- जलवाष्प का संबंध वायु के ताप से है। तप्त वायु अधिक जलवाष्प ग्रहण कर सकती है और तापन से जलाशयों का वाष्पन अधिक होता है। यही कारण है कि विषुवतीय क्षेत्र में जलवाष्प अधिक पाया जाता है। ध्रुवीय प्रदेशों और मरुस्थलों में जहाँ इसकी मात्र 1 प्रतिशत से भी कम है वहीं विषुवतीय प्रदेशों या उष्णार्द्र क्षेत्रें में इसकी मात्र 4 प्रतिशत से भी अधिक हो सकती है।
- जलवाष्प की 50 प्रतिशत मात्र दो किमी. की ऊँचाई तक ही प्राप्तय है, शेष मात्र 2 से 8 किमी. की ऊँचाई के वायुमंडल में व्याप्त है। जलवाष्प भी सूर्य से आने वाले ताप का अवशोषण करने में सक्षम है। सौर विकिरण का कुछ अंश इसके द्वारा अवशोषित हो जाने से पृथ्वीतल पर पहुँचने वाली गर्मी में कमी आ जाती है। यह पृथ्वीतल से निकलने वाली गर्मी को भी रोकता है। इस तरह, यह कंबल का काम करती है।
- जलवाष्प वायुमंडल का सबसे अधिक परिवर्तनशील घटक है। वायु में संतुलन और असंतुलन की दशाएँ बहुत हद तक इसकी क्रियाशीलता पर निर्भर करती है।
- वाष्पन प्रक्रिया में यह ऊष्मा ग्रहण कर उसे पवन द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करता है। संघनन और वर्षण प्रक्रिया द्वारा यह ऊष्मा बाहर निकल जाती है।
- उष्ण क्षेत्रें में अत्यधिक मात्र में इस गैस के निकलने से तूफानी मौसम और चक्रवात उत्पन्नहोते हैं। वायुमंडल में धूलकण भी होते हैं, जो मिट्टी, समुद्री लवण या ज्वालामुखी विस्फोट से प्राप्त होते हैं।
- धूलकण आर्द्रताग्राही होते हैं, अतः वर्षा में इनका योगदान रहता है। धूलकणों पर ही जलवाष्प टिकते हैं। धूलकण प्रकाश फैलाने में भी सहायक होते हैं। धूलकण वायुमंडल की निचली तह में ही मिलते हैं। हाँ, वायु की संवहनीय धाराएँ इन्हें अधिक ऊँचाई तक पहुँचा सकती हैं।
- लकण सूर्य से आने वाली गर्मी को कुछ हद तक रोकते हैं और उसे परावर्तित करते हैं। इनकी उपस्थिति में ही घना कुहरा-कुहासा और धुआँसा (smog) बनते हैं। धूलकणों की अधिकता से वायुमंडल गंदला हो जाता है। अशुद्धियों या प्रदूषकों के प्रवेश से वायु भी दूषित हो जाती है और ऐसे वायु में साँस लेना स्वास्थ्य के लिए हानिकार है। ऊँचाई के अनुसार, वायुमंडल के संघटन में बदलाव पाया जाता है।
- निचली तहों में भारी गैसें मिलती हैं, वे अपनी तह या परत नहीं बनातीं, किंतु 80 कि.मी. की ऊँचाई के बाद जहाँ वायुमंडल क्षीण होने लगता है तथा गंदगी भी कम पाई जाती है, वे अपनी अलग परत स्थापित करने में सफल हो जाती हैं।
- कृत्रिम उपग्रहों और रॉकेटों द्वारा खोज कर पता लगाया गया है कि पृथ्वी के चारों ओर अलग-अलग गैसों की संकेंद्री परतें (concentric layers) हैं, जैसे नाइट्रोजन परत (100 से 200 कि.मी. की ऊँचाई पर), ऑक्सीजन परत (200 से 1,000 कि.मी. की ऊँचाई तक), हीलियम परत (1,000 से 3,500 कि.मी. की ऊँचाई तक) और हाइड्रोजन परत (सबसे अधिक ऊँचाई पर, 3,500 कि.मी. के ऊपर)।
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- हाइड्रोजन परत की सबसे ऊपरी सीमा का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। भारी गैसों से बनी निचली परतों को ‘सममंडल’ (homosphere) और हल्की गैसों से बनी ऊपर की परतों को ‘विषमंडल’ (heterosphere) कहा गया है।
वायुमंडल की संरचना (Composition of the Atmosphere) के अवयवों की विशेषताएं
गैसें | विशेषताएं/कार्य |
नाइट्रोजन | रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, रासायनिक रूप से अधिक सक्रिय नहीं, ऑक्सीजन के लिए तनुकारक मृदा व पादपों के माध्यम से प्रोटीन अणुओं में प्रवेश कर जाता है। |
ऑक्सीजन | रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, रासायनिक रूप से सक्रिय प्रकाश संश्लेषण में पौधों द्वारा आयुक्त किया जाता है। प्राणियों एवं पादपों द्वारा श्वसन हेतु ग्रहण किया जाता है। |
कार्बन डाइ ऑक्साइड | पादपों द्वारा प्रकाश संश्लेषण हेतु प्रयोग किया जाता पृथ्वी से आने वाली तापीय विकिरण को अवशोषित कर लेता है, फलतः हरित गृह प्रभाव का कारण बनता है अर्थात निचले वायुमंडल का तापमान बढ़ा देता है। |
आर्गन, नियॉन, क्रिप्टॉन, जेनान | रासायनिक रूप से निष्क्रिय, अत्यल्प मात्र में उपस्थित, इन्हें नोबल गैसें (Noble gases) भी कहते हैं। |
जलवाष्प | अधिकांश मात्र वायुमंडल के निचले 16 किमी. तक ही संकेद्रित होती है सर्वाधिक परिवर्तनशील अनुपात में होते हैं, वाष्पीकरण व संघनन द्वारा पुनर्चक्रित होता है पृथ्वी से होने वाले ताप विकिरण को अवशोषित कर लेता है सूर्य से आने वाले विकिरण का भी कुछ अंश अवशोषित कर लेता है और पृथ्वी तक आने वाले सौर विकिरण की मात्र में कुछ कमी करता है। |
वायुमंडल की संरचना (Composition of the Atmosphere) का संघटन एवं महत्व
गैस | आयतन के अनुसार प्रतिशत | मौसम एवं जलवायु के लिए महत्व | अन्य कार्य/स्रोत | भूमिका | |
स्थायी गैस | नाइट्रोजन (N2) | 78.80 | मुख्यतः निष्क्रिय | पादप वृद्धि के लिए। | मानवीय गतिविधियों एवं प्राणियों व पादप अवशिष्टों पर सूक्ष्मजीवों की क्रियाओं के माध्यम से चक्रित होता है। |
ऑक्सीजन (O3) | 20.95 | प्रकाश संश्लेषण द्वारा उत्पन्न, निर्वनीकरण द्वारा घट जाती है। | प्राणियों एवं पादपों के श्वसन द्वारा तथा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा चक्रित होता है। | ||
परिवर्तनशील गैस | जलवाष्प | 0.2-4.0 | मेघ निर्माण एवं वर्षण का स्रोतः आगत और विकिरण को अवशोषित या परावर्तित करता वैश्विक तापमान को स्थिर रखता हरित गृह प्रभाव का प्रमुख अंश प्रदान करता है। | पृथ्वी पर जीवन के लिए अनिवार्य है बर्फ/हिम के रूप में संग्रहित हो सकता है। | |
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) | 0.03 | पृथ्वी से आने वाली दीर्घ तरंग विकिरण को अवशोषित कर लेता है और इस प्रकार हरितगृह प्रभाव में योगदान करता है। मानवीय गतिविधियों के कारण इसकी मात्र में वृद्धि वैश्विक ऊष्मन का एक प्रमुख कारण है। | पादपों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रयुक्त होता है। निर्वनीकरण एवं जीवाश्म ईंधनों के दहन के द्वारा इसकी मात्र बढ़ गई है। | श्वसन एवं प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से ऑक्सीजन के साथ विनिमय प्रक्रियाओं के द्वारा चक्रित होता है, यह जीवाश्म ईधनों के दहन का भी उत्पादन है। | |
ओजोन (O3) | 0.00006 | आगत पराबैंगनी विकिरणों को अवशोषित करता है। | क्लोरो फ्रलोरो कार्बन (CFCs) द्वारा नष्ट कर दिया या कम कर दिया जाता है। | ओजोन, सूर्य की पराबैंगनी विकिरण द्वारा ऑक्सीजन अणु के एकल परमाणुओं के साथ संयुक्त हो जाने से निर्मित होता है। (O + O2 → O3) | |
निष्क्रिय गैसें | ऑर्गन (Ar) | 0.93 | रासायनिक रूप से निष्क्रिय, सिर्फ कुछ औद्योगिक प्रयोग ही होता है। | ||
हीलियम, 0.0005 नियॉन, 0.002 क्रिप्टान 0.001 | अत्यल्प | रासायनिक रूप से निष्क्रिय सिर्फ कुछ औद्योगिक प्रयोग ही है। | |||
गैर-गैसीय | धूल | अत्यल्प | आगत विकिरण को अवशोषित या परावर्तित कर देता मेघ निर्माण हेतु आवश्यक संघनन नाभिक का निर्माण करता है। | ज्वालामुखीय धूल, उल्कापातीय धूल, पवन द्वारा मृदा अपरदन। | |
प्रदूषक | सल्फर डाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, मिथेन | अत्यल्प | विकिरण को प्रभावित करता अम्लीय वर्षा करता है। | उद्योगों, विद्युत केंद्रों एवं मोटर वाहन से। |
वायुमंडल की संरचना (Composition of the Atmosphere) के अंतर्गत परते
- रॉकेटों और कृत्रिम उपग्रहों से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि वायुमंडल की कुछ परतें गर्म हैं और कुछ ठंडी। गर्म परतें धरती के निकट हैं और ठंडी परतें धरती से दूर।
- सभी परतें संकेंद्रित और एक-दूसरे से अलग हैं तथा उनकी संरचना में भिन्नता है। धरती के निकट की वायु अधिक सघन है। ऊपर की ओर वायु क्षीण होती जाती है।
- अतः वहाँ घनत्व घटता जाता है। वायु का तापमान धरती के निकट सबसे अधिक है जबकि ऊपर की वायु का तापमान बदला हुआ पाया जाता है। तापीय संरचना की दृष्टि से वायुमंडल निम्नांकित परतों में विभक्त हैं-
- क्षोभमंडल का परिवर्तीमंडल
- समतापमंडल
- मध्यमंडल
- ऊष्ममंडल जिसे आयनमंडल भी कहते है।
- बहिर्मडल
क्षोभमंडल
- वायुमंडल (Atmosphere) का सबसे निचला स्तर क्षोभमंडल है। इसे ‘अधोमंडल’ भी कहा जाता है। इसकी ऊँचाई ध्रुवों पर 8 कि.मी. और विषुवत रेखा पर 18 कि.मी. है। वहाँ अत्यधिक तापन के कारण वायु की संवहन धाराएँ तीव्र होती हैं और उनसे धरातल की ऊष्मा अधिक ऊँचाई को पहुँच जाती है।
- ऊँचाई के साथ तापमान घटता जाता है (प्रति किमी.6.5°c की दर से) जिसे सामान्य ह्रास दर (normal lapse rate) कहते हैं।
- क्षोभमंडल में वायुमंडल का 75%पदार्थ समाविष्ट है। वायुमंडल (Atmosphere) का समस्त जलवाष्प और धूलकण इसी स्तर में उपलब्ध है। अतः क्षोभमंडल में ही मौसमी परिवर्तन (तापमान, वायुदाब, आर्द्रता) होते हैं। इस कारण इसे ‘परिवर्तीमंडल’ भी कहा जाता है।
- बादल का गरजना, बिजली का चमकना, आँधी-तूफान आना और वर्षन जैसी मौसमी घटनाएँ इसी मंडल में घटित होती हैं। इसी मंडल में ऋतु-परिवर्तन संभव है, अतः इसका बड़ा महत्व है। वायुमंडल के इस स्तर से मानव का सीधा संबंध है।
- क्षोभमंडल की ऊपरी सीमा ‘क्षोभ सीमा’ (tropopause) कहलाती है जहाँ वायुमंडल (Atmosphere) की दशा शांत रहती है और उससे ऊपर बढ़ने पर तापमान की प्रवणता विपरीत जाती है, अर्थात ट्टणात्मक तापह्रास होने लगता है।
- क्षोभसीमा की पट्टी 1 कि.मी. से 2 कि.मी. मोटी है। क्षोभमंडल का फैलाव धरातल से 10-15 किमी. ऊँचाई तक है। क्षोभसीमा के निकट अत्यधिक तीव्र गति से चलने वाली पवनों को ‘जेट पवन’ कहते हैं।
समतापमंडल
- वायुमंडल (Atmosphere) का दूसरा प्रमुख स्तर है जो क्षोभमंडल के ऊपर स्थित है। यह धरती से 50 किमी. की ऊँचाई तक फैला हुआ है। इसके दो भाग किए जा सकते हैं। निचला भाग जो 20 कि.मी. की ऊँचाई तक है और ऊपर का भाग जो 50 कि.मी. की ऊँचाई तक है। यहाँ ऊँचाई के साथ तापमान घटता नहीं, बल्कि बढ़ता है। निचले भाग में अत्यंत धीमी गति से तापमान बढ़ता है और ऊपर के भाग में तेज गति से।
- अत्यंत धीमी गति से तापमान बढ़ने के कारण कहा जाता है कि इसमें लगभग एक समान तापमान बना रहता है और इस कारण इसका नाम समतापमंडल पड़ा। ऊपर के भाग में 30 कि.मी. की ऊँचाई से 50 कि.मी. की ऊँचाई क तापमान में अत्यधिक बढ़ोतरी का कारण वहाँ ओजोन गैस की प्रधानता है।
- वहाँ वायु का घनत्व बहुत कम है जिससे ओर विकिरण का थोड़ा भी अवशोषण होने पर ओजोन के कारण तापमान हमें आशातीत वृद्धि होने लगती है। ओजोन गैस सौर विकिरण के अवशोषण की क्षमता रखती है और सूर्य की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वीतल तक पहुँचने से रोकती है।
- ये किरणें त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद आदि अनेक रोगों को जन्म देती हैं। समतापमंडल में न जलवाष्प मिलता है और न धूलकण। समतापमंडल की ऊपरी सीमा ‘समताप सीमा’ कहलाती है जहाँ वायुमंडल की दशा शांत हो जाती है। तापमान स्थिर हो जाता है। समतापमंडल का फैलाव लगभग 40 km की मोटाई में है।
मध्यमंडल
- मध्यमंडल की स्थिति समतापमंडल के ऊपर है। धरातल से 50 कि.मी. की ऊँचाई पर यह आंरभ होता है और 80 कि.मी. की ऊँचाई पर अंत होता है, अर्थात् यह स्तर 30 किमी. मोटा हैं।
- यहाँ ऊँचाई के साथ तापमान घटता जाता हैं 80 कि.मी. की ऊँचाई पर घटकर 100°c आ जाता है। यहाँ वायुदाब बहुत कम रहता है। (1 mb से 0.01 mb)।
ऊष्पमंडल/आयतमंडल
- ऊष्णमंडल की स्थिति मध्यमंडल के ऊपर है। यहाँ आयन (ion) और इलेक्ट्रॉन मिलते हैं जो विद्युत-आवेशित कण हैं। यहाँ सूर्य की पराबैंगनी किरणों के अत्यधिक प्रभाव से गैसें आयनित हो जाती हैं। अतः इस मंडल को ‘आयनमंडल’ भी कहा जाता है।
- ऊष्ममंडल में ऊँचाई के साथ तापमान बढ़ने लगता है, क्योंकि वायु सौर विकिरण से बहुत अधिक तप्त हो जाती है। रेडियो तरंगों की सहायता से इस मंडल की जानकारी प्राप्त की जा रही है। यह मंडल रेडियो तरंगों को परावर्तित कर पृथ्वी पर एक वक्र मार्ग से लौटा देता है। जिससे हम रेडियो या टेलीविजन पर ध्वनि सुन पाते हैं। इसी मंडल में ‘ध्रुवीय ज्योतियाँ’ उत्पन्नहोती हैं।
बहिर्मंडल
- बहिर्मंडल वायु का सबसे ऊपरी भाग है जो 640 किमी. की ऊँचाई से लेकर हजार/हजारों किमी. ऊपर तक विस्तृत है।यहाँ वायु अत्ंयत विरल है, बल्कि वायु का अभाव है।
- यह हीलियम और हाइड्रोजन के अणुओं से बना है। यहाँ गैस के नियम लागू नहीं हो पाते। यह अत्यंत गर्म मंडल माना जाता है। इसकी निश्चित ऊपरी सीमा निर्धारित नहीं हो पाती और बाहरी अंतरिक्ष में विलीन हो जाती है। वायु का अभाव और यहीं से अंतरिक्ष का आंरभ होना इसकी विशेषताएँ हैं।
- स्पष्ट है कि वायुमंडल की विशेषताओं में पृथ्वीतल से ऊपर की ओर बढ़ने पर बदलाव आता है। नीचे की वायु-परतों की तुलना में ऊपर वायु-परतों की खोज पूरी नहीं हो पाई है।
- बहिर्मंडल के बाहर चुंबकीय क्षेत्र मिलता है, जहाँ पृथ्वी के चुंबकत्व का अनुभव किया जाता है, पर वहाँ वायुमंडल नहीं है। वह वायुमंडल (Atmosphere) से परे का क्षेत्र है।
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