मनोवृत्ति या अभिवृत्ति
मनोवृत्ति या अभिवृत्ति क्या है?
- मनोवृत्ति या अभिवृत्ति एक दी गई परिस्थिति में किसी व्यक्ति की मानसिक दशा है। यह किसी व्यक्ति की अन्य व्यक्तियों, विचारों, सामाजिक परिस्थितियों के प्रति एक प्रकार की प्रस्तुती है।
- सामान्य अर्थों में अभिवृत्ति बहुत सारी वस्तुओं, व्यक्तियों, इत्यादि के प्रति पसंद, नापसंद से सम्बन्धित पक्ष होता है।
- व्यक्तियों की अभिवृत्तियां महत्त्वपूर्ण होती हैं क्योंकि इनके द्वारा व्यक्तियों को अहसास, व्यवहार एवं विचारों के बारे में समझा जा सकता है।
- इसका पूर्वानुमान किया जा सकता है। किसी सिविल सेवक के लिये यह आवश्यक है कि वह अपने अधीनस्थों, सहकर्मियों, अधिकारियों एवं आम नागरिकों/समुदायों की अभिवृत्तियों को समझता हो और इन सभी व्यवहारों का पूर्वानुमान कर पाता हो, तभी वह एक कुशल व प्रभावी प्रशासक हो सकता है।
- मनोवृत्ति या अभिवृत्ति की सभी परिभाषाएँ इस बिंदु पर एकमत हैं कि अभिवृत्ति मन की एक अवस्था है। यह किसी विषय (जिसे ‘अभिवृत्ति-विषय’ कहा जाता है) के संबंध में विचारों का एक पुंज है जिसमें एक मूल्यांकनपरक विशेषता (सकारात्मक, नकारात्मक अथवा तटस्थता का गुण) पाई जाती है।
- इससे संबद्ध एक सांवेगिक घटक होता है तथा अभिवृत्ति-विषय के प्रति एक विशेष प्रकार से क्रिया करने की प्रवृत्ति भी पाई जाती है।
- विचारपरक घटक को संज्ञानात्मक (Cognitive) पक्ष कहा जाता है। सांवेगिक घटक को भावात्मक (Affective) पक्ष के रूप में जाना जाता है तथा क्रिया करने की प्रवृत्ति को व्यवहारपरक (Behavioural) या क्रियात्मक घटक कहा जाता है।
- संक्षेप में इन तीनों घटकों (उनके अंग्रेजी नाम के प्रथम अक्षर के आधार पर) को अभिवृत्ति का ए-बी-सी- घटक (A–B–C Components) कहा जाता है। हिंदी में हम इसे अभिवृत्ति का संभाव्य (सं-भा-व्यः संज्ञानात्मक, भावात्मक एवं व्यवहारपरक) घटक कह सकते हैं।
- यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अभिवृत्ति स्वयं में व्यवहार नहीं है परन्तु वह एक निश्चित प्रकार से व्यवहार या क्रिया करने की प्रवृत्ति को प्रकट करती है। ये संज्ञान के अंग हैं जो सांवेगिक घटक से युक्त होते हैं तथा इनका बाहर से प्रेक्षण नहीं किया जा सकता है।
- मनोवृत्ति या अभिवृत्ति को दो अन्य घनिष्ट रूप से संबंधित संप्रत्ययों, विश्वास (Beliefs) एवं मूल्य (Values) से अंतर किया जाना चाहिए। विश्वास, अभिवृत्ति के संज्ञानात्मक घटक को इंगित करते हैं तथा एक ऐसे आधार का निर्माण करते हैं जिन पर अभिवृत्ति टिकी है, जैसे ईश्वर में विश्वास या राजनीतिक विचारधारा के रूप में प्रजातंत्र में विश्वास।
- मूल्य, ऐसी अभिवृत्ति या विश्वास है जिसमें ‘चाहिए’ का पक्ष निहित रहता है, जैसे आचारपरक या नैतिक मूल्य। एक व्यक्ति को मेहनत करनी चाहिए, या एक व्यक्ति को हमेशा ईमानदार रहना चाहिए, क्योंकि ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है, ऐसे विचार मूल्य के उदाहरण हैं।
- मूल्य का निर्माण तब होता है जब कोई विशिष्ट विश्वास या अभिवृत्ति व्यक्ति के जीवन के प्रति उसके दृष्टीकोण का एक अभिन्न अंग बन जाती है। अभिवृत्ति के द्वारा किन उद्देश्यों की पूर्ति होती है?
- मनोवृत्ति या अभिवृत्ति वह पृष्ठभूमि प्रदान करती है जो एक व्यक्ति को यह निर्णय करने में सुविधा प्रदान करती है कि नई परिस्थिति में किस प्रकार से कार्य करना है। उदाहरण के लिए, विदेशियों के प्रति हमारी अभिवत्ति उनसे मिलने पर हमें उनके प्रति किस प्रकार से व्यवहार करना चाहिए इसके लिए यह प्रत्यक्ष रूप से एक मानसिक ‘रूपरेखा’ या ‘ब्लूप्रिंट’ प्रदान करती है।
- भावात्मक, संज्ञानात्मक एवं व्यवहारपरक घटकों के अतिरिक्त अभिवृत्तियों की और भी विशेषताएँ हैं।
अभिवृत्ति की चार प्रमुख विशेषताएँ हैं-
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- अभिवृत्ति की कर्षण शक्ति हमें यह बताती है कि अभिवृत्ति-विषय के प्रति कोई अभिवृत्ति सकारात्मक है अथवा नकारात्मक।
- उदाहरण के लिए मान लीजिए कि किसी अभिवृत्ति (जैसे नाभिकीय शोध के प्रति अभिवृत्ति) को 5- बिन्दु मापनी पर व्यक्त करना है। जिसका प्रसार 1 (बहुत खराब), 2 (खराब), 3 (तटस्थ-नख न अच्छा), 4 (अच्छा) से 5 (बहुत अच्छा) तक है।
- यदि कोई व्यक्ति नाभिकीय शोध के प्रति अपने दृष्टीकोण या मत का आकलन इस मापनी पर 4 या 5 का करता है तो स्पष्ट रूप से यह एक सकारात्मक अभिवृत्ति है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति नाभिकीय शोध के विचार को पसंद करता है।
- इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति नाभिकीय शोध के विचार को नापसंद करता है एवं सोचता है कि यह कोई खराब चीज है। तटस्थ अभिवृत्तियों को भी स्थान दिया जाता हैं।
- यदि इस उदाहरण में नाभिकीय शोध के प्रति तटस्थ अभिवृत्ति इस मापनी पर अंक 3 के द्वारा प्रदर्शित की जाएगी तो एक तटस्थ अभिवृत्ति में कर्षण-शक्ति न तो सकारात्मक होगी, न ही नकारात्मक।
चरम-सीमा:
- एक अभिवृत्ति की चरम सीमा यह इंगित करती है कि अभिवृत्ति किस सीमा तक सकारात्मक या नकारात्मक है।
- नाभिकीय शोध के उपर्युक्त उदाहरण में मापनी मूल्य ‘1’ उसी चरम-सीमा का है जितना की ‘5’। बस अंतर इतना है कि दोनों ही विपरीत दिशा में हैं अर्थात् दोनों की कर्षण-शक्ति एक-दूसरे के विपरीत है। मापनी मूल्य ‘2’ और ‘4’ कम तीव्र हैं। तटस्थ अभिवृत्ति निःसंदेह न्यूनतम तीव्रता की है।
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सरलता या जटिलता: (बहुविधता) (Multifarious)
- इस विशेषता से तात्पर्य है कि एक व्यापक अभिवृत्ति के अंतर्गत कितनी अभिवृत्तियाँ होती हैं। उस मनोवृत्ति या अभिवृत्ति को एक परिवार के रूप में समझना चाहिए जिसमें अनेक सदस्य अभिवृत्तियाँ हैं।
- बहुत से विषयों (जैसे स्वास्थ्य एवं विश्व शाति) के संबंध में लोग एक अभिवृत्ति के स्थान पर अनेक अभिवृत्तियाँ रखते हैं।
- यदि स्वास्थ्य एवं कुशल-क्षेम के प्रति अभिवृत्ति को उदाहरण के तौर पर लिया जाये तो इस अभिवृत्ति तंत्र में अनेक अभिवृत्तियों के पाए जाने की संभावना है, जैसे व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का संप्रत्यय, प्रसन्नता एवं कुशल के प्रति उसका दृष्टीकोण एवं व्यक्ति स्वास्थ्य एवं प्रसन्नता कैसे प्राप्त कर सकता है, इस संबंध में उसका विश्वास एवं मान्यताएँ।
- इसके विपरीत, किसी व्यक्ति विशेष के प्रति अभिवृत्ति में मुख्य रूप से एक अभिवृत्ति के पाए जाने की संभावना है। एक अभिवृत्ति तंत्र के प्रत्येक सदस्य अभिवृत्ति में भी संभाव्य (या A-B-C-) घटक होता है।
महत्त्वपूर्ण शब्दार्थ तथा अंतरसंबंध
अभिवृत्ति का स्वरूप
- सामाजिक मनोविज्ञान के अन्तर्गत अभिवृत्ति विषयक अध्ययन मनोवैज्ञानिकों के लिए बहुत पहले से केन्द्रीय अध्ययन का क्षेत्र रहा है और आज भी इसकी लोकप्रियता बनी हुई है।
- हम दूसरे व्यक्तियों के बारे में अभिवृत्ति निर्धारित करने का प्रयास करते हैं एवं भविष्य में होने वाले उस व्यक्ति के व्यवहार के संदर्भ में पूर्वकथन करते हैं।
- यदि हमारे भविष्य के कथन सही होते हैं तो हम अनुभव करते हैं कि कुछ सीमा तक सामाजिक जगत पर हमारा नियंत्रण है। परंतु आश्चर्यजनक बात तब होती है जब किसी व्यक्ति को किसी मुद्दे पर एक परिस्थिति में एक तरह का और दूसरी परिस्थिति में विपरीत प्रकार का व्यवहार करते हुए पाते हैं।
- यह परिवर्तन इस तथ्य को इंगित करता है कि अभिवृत्तियाँ सापेक्षिक रूप से स्थायी, व्यक्तित्त्व, गुण या विशेषताएं हैं एवं व्यक्ति के विश्वासों, भावों एवं व्यवहारों में संगति पायी जाती है।
- अभिवृत्ति (Attitude) शब्द को लैटिन शब्द Aptitudo से लिया गया है जिसका आशय फिटनेस यानी उपयुक्तता से है। काफी हद तक अभिवृत्ति एक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक अवधारणा है।
- प्रारंभ में इसे सामाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से सामाजिक रूप से प्राप्त किया जाता है तथा मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति के साथ धारण कर रखा जाता है। इसमें इसे धीरज और ज्येष्ठता नामक दोहरे स्तंभों द्वारा मजबूती प्रदान की जाती है।
- यह कभी भी पूर्ण अलगाव में विकसित नहीं होती है। जब इसे अनुरूप कार्रवाई द्वारा मजबूत बनाया जाता है तो अभिवृत्ति हमारी पहचान की अभिव्यक्ति के एक माध्यम के रूप में कार्य करती है तथा दूसरों को श्रेय देने या इसका ठीक उल्टा करने का भी कार्य करती है।
- अंततः यह किसी व्यक्ति या समूह की खुद या अन्य के प्रति समग्र धारणा को प्रभावित करती है। दैनिक जीवन में अभिवृत्ति की असीम प्रासंगिकता है।
- यह किसी वस्तु या लक्ष्य के प्रति सर्वोत्तम और निरंतर अनुरूप व्यवहार प्रारूप के दायरे को निर्धारित करती है। इसमें हमारी परंपराओं, नैतिकता और मूल्यों से सीख ली जाती है। यह अक्सर अशांत जीवन में शांति स्थापना हेतु मार्ग दर्शन करने में सहायता करती है।
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अभिवृत्ति एक सापेक्षिक अवधारणा:
- यह सदैव किसी चीज के संबंध में मौजूद होती है, निर्वात में नहीं। यद्यपि मनोवृत्ति या अभिवृत्ति का निर्माण सामाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा होता है, किंतु किसी व्यक्ति की खुद की प्रवृत्ति, धारणा और व्याख्या के भाव भी अभिवृत्ति एवं व्यवहार के निर्माण की प्रक्रिया को प्रभावित करते है।
- इसलिए अभिवृत्ति सामाजीकरण की प्रक्रिया की अपेक्षा व्यापक होती है, तो भी यह निश्चित रूप से काफी हद तक इंसान के व्यक्तिगत मनोविज्ञान द्वारा निर्देशित होती है। इससे इस तथ्य की ओर झुकाव परिलक्षित होता है कि व्यक्ति महज सामाजिक भावना का एक निष्क्रिय प्राप्तकर्ता नहीं है।
- वह अपने अनुभव और समाज से ग्रहण किए गए हिस्सों की राशि की अपेक्षा कुछ अधिक होता है। व्यक्ति हमेशा समाज से जो कुछ भी ग्रहण करता है उसमें कुछ जोड़ने और उसे पुष्ट बनाने की क्षमता रखता है।
- किसी व्यक्ति के जीवन और सोचने के तरीके पर समझ विकसित करने, अभिकल्पना करने एवं निरूपण करने में अभिवृत्ति व्यापक भूमिका निभाती है।
- यह मनोवृत्ति या अभिवृत्ति ही है जो किसी व्यक्ति को दूसरे से अलग करती है तथा नेताओं, राजनेताओं, वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों, पेशेवरों, आलोचकों और यहां तक की आतंकवादियों, बेघरों और भिखारी
- आदि सभी लोगों को उत्पन्न भी करती है।
अभिवृत्ति की मुख्य विशेषताएं
- कार्यस्थलों पर कर्मचारियों की अभिवृत्ति जो कि एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में व्यवहार को प्रभावित करती है, कई रूपों में प्रशासन एवं प्रबंधन के लिए महत्त्वपूर्ण है। नई परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाने में अभिवृत्ति बहुत ही सहायक है।
- विपरीत और कठिन परिस्थितियों में सक्षमता के साथ लड़ने, समसामयिक परिस्थितियों के मुताबिक मूल्यों की अभिव्यक्ति करने तथा आशावादी व्यक्तित्व के विकास में अभिवृत्ति बहुत सहायक होती है।
- अभिवृत्ति किसी वस्तु या घटना को अपने ढंग से देखने का दृष्टिकोण या विचारधारा है। अभिवृत्ति कार्य करने की मानसिक तत्परता है, जिसमें सोच, संज्ञान तथा भावनाये सभी सामान्य रूप से समाहित होती है।
- यह किसी वस्तु, व्यक्ति, समूह या विचार का एक विशेष परिस्थिति में देखने की मानसिकता है। एक व्यक्ति की कई अभिवृत्तियां हो सकती है।
- यह किसी परिस्थिति के हिसाब से अनुकूल और प्रतिकूल दोनों हो सकती है। अब किसी का, किसी भी प्रकार की घटना में कोई झुकाव न हो तो इस प्रकार की अभिवृत्ति को उदासीनता की संज्ञा दी जाती है।
- उदासीनता एक प्रकार की अभिवृत्ति है, जिसमें झुकाव का अभाव, हस्तक्षेप का अभाव, किसी घटना, व्यक्ति या परिस्थितियों के प्रति होता है।
- अभिवृत्ति विश्वास और भावनाओं की वह युग्मित विचारधारा है, जो लोगों को विशेष विचारों, परिस्थितियों या दूसरे लोगों के प्रति होता है। यह एक महत्त्वपूर्ण यांत्रिकी है, जिसके द्वारा लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
- अभिवृत्ति मूल्यांकन हेतु कथन है, जो कि व्यक्ति, वस्तु या व्यवहार की बारंबारता को दिखाने के लिए प्रयोग की जाती है।
- मनोवृत्ति या अभिवृत्ति का अध्ययन तब और सार्थक और महत्त्वपूर्ण हो जाता है, जब व्यक्ति अपनी भावनाओं, विश्वास और विचारों को अपने कार्यरत संस्था और कार्य के ऊपर रखता है।
- अभिवृत्ति को विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अलग- अलग ढंग से परिभाषित करने की कोशिश की है। अभिवृत्ति व्यक्तित्त्व की संरचना से संबंधित अन्य कारकों में से व्यक्ति का नई परिस्थिति या संदर्भ के साथ सामंजस्य है, तथा यह निर्धारित करना की भविष्य में कैसे व्यवहार करना है, ताकि यह व्यवहार लाभप्रद हो।
- इसके बावजूद भी अभिवृत्ति सीखने की प्रक्रिया के द्वारा अर्जित की जाती है और यह मुख्य रूप से पांच विभिन्न कारकों जैसे परिवार, समान समूह, भूमिका आदर्श, अनुभवों एवं संस्कृति से अर्जित और प्रभावित होती है।
- अनुभव एवं विश्वास दूसरे लोगों, वस्तु या विचारों की ओर निर्देशित होते हैं। जब कोई व्यक्ति कहता है, मै अपने रोजगार को पसंद करता हूँ, तब वह अपने रोजगार के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति बताता है।
- मनोवृत्ति या अभिवृत्ति एक मनोवैज्ञानिक घटना है, जिसे प्रत्यक्ष रूप से अवलोकित नहीं किया जा सकता। अभिवृत्ति को अप्रत्यक्ष रूप से परिणामों के अवलोकन के द्वारा ही देखा जा सकता है। जैसे कि जब कोई व्यक्ति अपने रोजगार के प्रति निरंतरता प्रदर्शित करता है, तो हम कह सकते हैं कि व्यक्ति अपने रोजगार को पसंद करता है, और संतुष्ट है।
- अभिवृत्ति प्रायः लोगों के व्यवहार एवं क्रिया को सम्पादित करती है। व्यवहार को अभिवृत्ति के परिणाम के रूप में देखा जा सकता है। जैसे- पसंद, नापसंद, प्रतिबद्धता और संतुष्टि।
- अभिवृत्ति मूल्यांकनकारी होती है, यह अनुकूल या प्रतिकूल हो सकती है। जब कोई व्यक्ति कहता है कि वह किसी व्यक्ति या वस्तु को पसंद या नापसंद करता है, यह उस व्यक्ति की सकारात्मक और नकारात्मक अभिवृत्ति को प्रदर्शित करता है।
- अभिवृत्ति को क्रमबद्ध ढंग से बढ़ते हुए अवधि में सीखकर अर्जित किया जाता है। सीखने की प्रक्रिया बचपन से प्रारंभ होकर जीवन भर चलती रहती है। प्रारंभिक काल में परिवार के सदस्यों का प्रभाव बच्चे के जीवन में अभिवृत्ति निर्माण में सर्वाधिक पड़ता है।
- अभिवृत्ति की प्रक्रिया अचेतन अवस्था में प्रभावित होती है। हमारी अधिकांश अभिवृत्तियां उन वस्तुओं के विषय में हो सकती है, जिसके प्रति हम सजग या जागरूक नहीं होते हैं, जिसका पूर्वधारणा या पूर्वाग्रह बहुत ही अच्छा उदाहरण है।
- अभिवृत्ति तटस्थ नहीं होती।
- अभिवृत्ति संदर्भात्मक होती है।
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अभिवृत्ति एवं व्यवहार
- अभिवृत्ति को समझने की दिशा में पहला कदम अभिवृत्ति व व्यवहार के मध्य संबंध को समझना आवश्यक है। सामान्यतया यह माना जाता है कि व्यक्ति की मनोवृत्ति या अभिवृत्ति उसके व्यवहार को निर्धारित करती है।
- कई बार तो व्यक्ति का व्यवहार उसकी अभिवृत्ति के ही अनुरूप होता है। लेकिन कई बार व्यक्ति की अभिवृत्ति व व्यवहार में अंतर विद्यमान होता है।
- सामाजिक मनोवैज्ञानिकों द्वारा विकसित अभिवृत्ति प्रतिमान में व्यवहार व अभिवृत्ति के बीच सह-संबंध को विश्लेषित किया गया है। इस प्रतिमान के अनुसार किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा विचार के प्रति हमारी जो अभिवृत्ति होती है, उसी से उस व्यक्ति अथवा वस्तु के संदर्भ में हमारा व्यवहार निर्धारित होता है।
- सकारात्मक एवं नकारात्मक अभिवृत्ति को समझना बहुत ही आवश्यक है, क्योंकि यह व्यवहार से घनिष्ठ रूप से संबंधित है। प्रबंधक, स्वनिर्देशक होते हैं, क्योंकि किसी कर्मचारी को नियुक्त या पदोन्नत करते हैं।
- ये कई कारकों की अपेक्षा व्यवहार का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। संचालक या प्रबंधक इस बात में ज्यादा रूचि दिखाते हैं कि कोई कर्मचारी के रूप में क्या करने का इच्छुक है, न कि वह जो जानता है।
- रिचर्ड वेबर ने अपने वक्तव्य में कहा है व्यक्ति का शीर्षक या ऊँचाई मनोवृत्ति या अभिवृत्ति से निर्धारित होती है, न कि अभिरूचि सेय् उन्होनें आगे कहा है कि आप ऊंचे लक्ष्य रख सकते हैं, आप उच्चतम आदेश रख सकते है, किंतु हमेशा याद रखिये आपके प्रयास के बिना सब अपूर्ण है।
- यह वास्तव में मनोवृत्ति या अभिवृत्ति ही है, जो सफलता निर्धारित करती है, न कि अभिरूचि।
अभिक्षमता
- सरल शब्दों में मनोवृत्ति या अभिवृत्ति अन्य व्यक्तियों, समूहों, विचारों व वस्तुओं के प्रति हमारी भावनाओं, विश्वास व झुकाव को व्यक्त करते है।
- उदाहरण के लिए दूसरे के धर्म, जाति, वेशभूषा, खान-पान सकारात्मक या नकारात्मक विश्वास हमारी अभिविृत्ति को दर्शाता है।
व्यवहार
- व्यवहार किसी निश्चित परिस्थिति में किसी व्यक्ति की अनुक्रिया या प्रतिक्रिया को दर्शाता है।
- जिसमें शारीरिक प्रतिक्रियाएं, गतियों, मौखिक वक्तव्य या व्यक्तिगत अनुभव भी शामिल होता है।
- उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति को गिरते हुए देखकर हमारे शरीर का अनायास ही उसे उठाने के लिए झुकना अथवा दूसरे के मुंह से अभद्र शब्द सुनकर शरीर का क्रोध से आवेशित हो जाना व्यवहार का उदाहरण है।
- मनोवृत्ति या अभिवृत्ति के वर्गीकरण का सामान्य तरीका है, उनके विषय में सकारात्मक एवं नकारात्मक सोच। जो लोग आदतन अपने रोजगार या विश्व के विषय में नकारात्मक अभिवृत्ति दिखाते हैं, उन्हें निराशावादी कहा जाता है।
- जो लोग जीवन के सकारात्मक एवं स्वर्णिम पहलू को देखते हैं, आशावादी कहलाते हैं। समान अनुभव के प्रति अलग-अलग अभिवृत्ति दोनों के द्वारा विभिन्न अभिवृत्ति व्यक्त होती है।
- इसलिये निराशावादी रोजगार स्थानांतरण को एक अवांछनीय परिवर्तन, जिसके द्वारा संभवतः हताश एवं समस्या उत्पन्न हुई जानता है।
- जबकि आशावादी इसी स्थिति को एक नये अवसर तथा चुनौती के रूप में देखता है। दोनों ही स्थिति में व्यक्ति की अभिवृत्ति ही उसके नजरियों को प्रभावित करती है।
- वास्तव में, संभवतः रोजगार परिवर्तन से कुछ समस्या अवश्य आती है, जैसे-रहने के लिए नये स्थान को पाना। किंतु एक आशावादी परिस्थिति के वांछनीय व सकारात्मक पहलू पर केंद्रित होता है, जबकि निराशावादी उसके नकारात्मक पक्ष पर।
- बहुत ही कम लोग अपने आप को निराशावादी के रूप में देखते हैं। अधिकतम व्यक्ति यह सोचते हैं कि वे परिस्थिति को वैसे ही देखते हैं, जैसे की वह वास्तव में है।
- अभिवृत्ति में सुधार के लिए उपयुक्त उद्देश्य हो सकता है सकारात्मकता पर जोर दे, नकारात्मकता को हटा दे।
- सकारात्मक अभिवृत्ति के उदाहरण जैसे- सहनशीलता, उत्साह, आशावादिता, विश्वास एवं सजगता आदि।
- नकारात्मक अभिवृत्ति के उदाहरण जैसे- बदला लेने की प्रवृत्ति, संदेह, निराशावाद, अलगाव, असहयोगिता। हमें अपनी नकारात्मक अभिवृत्तियों की जांच करनी होगी, ताकि हम उन्हें निकाल सकें।
- निम्न आत्मसम्मान से व्यक्ति स्वयं, दूसरों एवं सामान्य रूप में विश्व के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति के विकास के लिए सहायक होती है।
- सि. स्कॉट ने ‘संपूर्ण नकारात्मकता’ शब्द दिया तथा इसके विषय में उन्होनें बताया कि यह, वह विशेष अभिलक्षण है, जिसमें कि व्यक्ति अज्ञानता से अपनी विद्यमान क्षमता को सीमित करने लगता है, स्वयं को इस बात की सांत्वना देते हैं कि वे जो चाहते है, उसे प्राप्त नहीं कर सकते हैं तथा अपनी इच्छा, सपनों एवं आशाओं को दबाये रखते हैं।
- यद्यपि, इसका यह अर्थ नहीं है कि आपकी अभिवृत्ति स्व-पराजित करने वाली है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमारी अभिवृत्ति हमारे व्यवहार को विशेष रूप से प्रभावित करती है तथा इसी के द्वारा हमें जीवन में सफलता मिलती है।
- मार्टिन सेलिगमेन ने ‘सिखाया आशावाद’ में बताया है कि जीवन की असफलता एवं दुखांतक का आशावादी एवं निराशावादी पर समान रूप से प्रभाव पड़ता है, किंतु आशावादी उनसे बेहतर ढंग से सामना करते हैं।
- आशावादी पराजितता के दुःख से उबरकर जल्दी सामने आते हैं तथा उसको पुनः प्राप्ति का प्रयास करते हैं। जहां तक निराशावादियों का सवाल है वे प्रयास करना छोड़ देते हैं एवं अवसाद वाली स्थिति में चले जाते हैं। अपनी पुनर्शांति के पश्चात् आशावादी को कार्य स्कूल एवं खेल के मैदानों में और अधिक सफलता मिलती है।
- किसी व्यक्ति के द्वारा वो जो कहते हैं या करते हैं उसको अभिवृत्ति के द्वारा नियंत्रण करना अधिक आसान है। यद्यपि अभिवृत्ति एवं व्यवहार एक दूसरे को प्रभावित करते हैं किसी विशेष दिशा में कार्य करते हुए कोई क्या महसूस करता, को प्रभावित किया जा सकता है।
- हतोत्साहित की भावना को किसी संरचनात्मक एवं सृजनात्मक कार्यों के द्वारा कम किया जा सकता है। यदि आपके कार्य का एक निश्चित भाग आपको प्रोत्साहित नहीं करता है उस स्थिति में अधिक संतोषप्रद कार्य को करने से सकारात्मक एवं विश्वासजनक अभिवृत्ति का विकास होता है।
- यदि हमें किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति का पता हो, तो उसके व्यवहार के बारे में पूर्वानुमान किया जा सकता है। लेकिन कई बार यह सत्य नहीं होता और लोगों की अभिवृत्ति कुछ और होती है और व्यवहार कुछ और होता है।
- यदि आम नागरिकों से पूछा जाये कि शहर में हरे-भरे उद्यान होने चाहिए अथवा नहीं, तो अधिकतर नागरिक इस पर सकारात्मक अभिवृत्ति दर्शाएंगे। लेकिन यदि सरकार उद्यान निर्माण के लिए नागरिकों पर अतिरिक्त कर लगाने की घोषणा करती है, तो नागरिक इस निर्णय के प्रति आक्रोश पूर्ण व्यवहार दर्शा सकते है।
- इस प्रकार से कई बार अभिवृत्ति व व्यवहार का अंतर नीतियों के क्रियान्वयन में भी बाधा खड़ा करता है। व्यक्ति के अभिवृत्ति व व्यवहार में असंगति के लिए कुछ कारक उत्तरदायी होते है, जिन्हें सामान्यतया हस्तक्षेपवादी कारक कहा जाता है।
अभिवृत्ति, विश्वास एवं मूल्य
- मनोवृत्ति या अभिवृत्ति प्रतिमान के अध्ययनों में इस तथ्य का भी विश्लेषण हुआ है कि कई बार व्यक्ति की अभिवृत्ति व व्यवहार में असंगतता दिखती है और इस असंगतता का एक प्रमुख कारण मूल्यों और विश्वासों तथा व्यक्तिगत आवश्यकताओं का भिन्न होना है।
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विश्वास
- विश्वास एक ऐसी सूचना अथवा ज्ञान है, जो व्यक्ति, वातावरण के बारे में एकत्र करता है और वातावरण के प्रति उसे साध्य मानता है।
मूल्य
- मूल्य व्यक्ति मात्र की सामान्य अनुभूतियां है, जो व्यक्ति अथवा घटना के प्रति उसके सकारात्मक व नकारात्मक विश्वास को दर्शाती है।
- यदि व्यक्ति के विश्वास व मूल्य भी सकारात्मक हो तथा अभिवृत्ति भी सकारात्मक हो तो मनुष्य का व्यवहार उसकी अभिरुचि के अनुरूप होता है।
- मूल्य व विश्वासों का हमारे व्यवहार पर व्यापक प्रभाव होता है। मूल्य व विश्वासों से अभिवृत्ति का निर्माण होता है और अभिवृत्ति से व्यवहार का जन्म होता है। अभिवृत्ति, मूल्य तथा विश्वास से अलग होती है। मनोवृत्ति या अभिवृत्ति तत्पर रहने की स्थिति या एक तरीके से स्थिति को जवाबदेहिता का एक तरीका है।
- विश्वास मुख्य रूप से इस बात पर बल देता है कि विश्व के विषय में क्या जाना गया है, इसका केंद्रीय बिंदु ‘वास्तविकता क्या है’ होता है। वहीं मूल्य का मुख्य विषय होता है क्या होना चाहिए एवं क्या वांछनीय है।
- ग्रॉस कहते हैं, ‘किसी विश्वास को अभिवृत्ति में बदलने के लिए ‘मूल्य’ के अवयव आवश्यक होते हैं, जिसकी परिभाषा के अनुसार किसी व्यक्ति की संवेदना के अनुसार कार्य करना, क्या वांछनीय, अच्छा, सर्वोपरि है आदि को समाहित करने से है।
- ग्रॉस ने यह सुझाव दिया कि जहां, युवाओं में हजारों विश्वास, केवल सैकड़ों में अभिवृत्ति तथा कुछ दर्जन मूल्य होते हैं। हाफ स्टीड ने मूल्य को इस प्रकार परिभाषित किया है, दूसरों पर निश्चित स्थिति वाले मामले को प्राथमिकता देने की विशाल प्रवृत्ति अभिवृत्ति है।
- मिल्टन रॉकेट के अनुसार- मूल्य, मौलिक विचारधारा को जिसमें व्यवहार के एक विशेष तरीके या अस्तित्त्व अंत की अंतिम अवस्था जो व्यक्तिगत या सामाजिक रूप से किसी विपरीत व्यवहार का अवांछनीय तरीका या प्राथमिकतायें निर्धारित करता है या किया जाता है।
- मूल्य, लोगों के व्यवहार, उनके नजरिये, व्यक्तित्व एवं उत्साह में इस प्रकार से मिले होते हैं कि इन्हें आसानी से निष्कर्ष में देखा जा सकता है। अभिवृत्ति एवं मूल्य शब्द एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित है, जिसमें अभिवृत्ति एक विशेष लक्ष्य को अभिव्यक्त करती है जबकि मूल्य अधिक वैश्विक तथा भावनात्मक है।
- कार्य मूल्य सापेक्षतः स्थिर तथा जीवन के महत्त्वपूर्ण अवयव के विषय में अधिक समय तक चलने वाले विश्वास है। मूल्य तथा मूल्य व्यवस्था किसी संगठन में व्यवहार को प्रभावित करती है। प्रत्येक प्रबंधक को मूल्य एवं मूल्य व्यवस्था की उपयुक्त समझ होनी चाहिए।
- मूल्यों के द्वारा अभिवृत्ति, दृष्टिकोण तथा उद्देश्य को समझने के लिये आधार तैयार किया जाता है जिससे व्यक्ति के व्यवहार का निर्माण होता है। संगठन के मूल्यों के आदान-प्रदान की व्यवस्था से सांगठनिक संस्कृति के विकास में मदद मिलती है।
- संगठनात्मक मूल्य जो कि नैतिक तथा समाज के हित में होते हैं उनसे संगठन की छवि में सुधार होता है। मूल्य व्यवस्था किसी संगठन में एक विशेष आचरण के नियम पर बल देते है।
- यह प्रभावकारी प्रबंधन एवं सु-प्रशासन के लिए उदारता एवं नैतिकता पर विशेष बल देते है। इससे जवाबदेहिता, ईमानदारी, एवं बुद्धिमत्ता का विकास होता है।
अभिवृत्ति की आवश्यकता प्रशासन में क्यों?
- अभिवृत्ति व्यक्ति के विचार, विश्वास, मूल्य एवं उपलब्धि से संबंधित है। सकारात्मक अभिवृत्ति सफलता की ऊँचाईयों को तय करती है और जीवन में सुख, संतुष्टि और उपलब्धि प्राप्त करने में सहायता करती है।
- यह प्रशासन एवं संचालन में निम्न रूपों में सहायता करती है-
- सकारात्मक अभिवृत्ति व्यक्ति को आशावादी बनाता है। आशावादी व्यक्तियों में साहस, जोखिम उठाने की संभावना अधिक होती है। ये लोग जीवन के सकारात्मक पक्ष पर अधिक ध्यान देते है। इसलिए यह प्रशासन एवं मानव प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- अभिवृत्ति सामाजिक मूल्यों के प्रदर्शन का माध्यम है, कुशल प्रशासन प्रबंधन और संचालन के लिए सामाजिक मूल्यों का निर्वाह आवश्यक है जो व्यवहार के विभिन्न पक्षों में प्रकट होती है। उदाहरणस्वरूप- ईमानदारी, निष्ठा, शिष्टाचार, कर्तव्य पालन, आदर, प्रतिबद्धता या उपलब्धि।
- सकारात्मक अभिवृत्ति परिस्थितियों या विपरीत परिस्थितियों को अवसर के रूप में लेता है और उसे सफल बनाने के लिए प्रयासरत रहता है। इसलिए प्रशासनिक अधिकारी के लिए लोक सेवक के लिए सकारात्मक अभिवृत्ति आवश्यक है क्योंकि वह कठिन एवं विपरीत परिस्थितियों को उचित और सुनियोजित चुनौती के रूप में लेता है और उसकी उपलब्धि उच्चतम होती है।
- सकारात्मक अभिवृत्ति में कार्य संतुष्टि एवं कार्य प्रतिबद्धता सम्मिलित है। इसलिए जो व्यक्ति अपने कार्य से संतुष्ट है और अपने कार्य से प्रतिबद्ध है, तो उस व्यक्ति की उपलब्धि सर्वश्रेष्ठ होगी और कार्य करने में निपुणता आयेगी। इस प्रकार संतुष्टि एवं प्रतिबद्धता कार्य को नियमित एवं निपुण बनाती है।
- सकारात्मक अभिवृत्ति जिम्मेदारी लेने की भावना, निष्ठा से संबंधित है। इसलिए यह लोक सेवक के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में कार्य करती है।
- सकारात्मक अभिवृत्ति सामाजिक समायोजन की क्षमता विकसित करती है। सद्भावना एवं सहानुभूति जैसी व्यक्तिगत विशेषताओं को विकसित करती है। जो कुशल प्रशासन एवं संचालन के लिए महत्त्वपूर्ण कारक है।
- यह अभिवृत्ति की भावनात्मक पक्ष का उपयोग सामाजिक जीवन में दर्शाता है।
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सकारात्मक अभिरुचि एवं प्रवृत्ति
- मनोवृत्ति या अभिवृत्ति का शासन, प्रशासन, समाज में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह निजी एवं सार्वजनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह कुशल प्रशासन, प्रभावशाली सामाजिक व्यवस्था तथा कुशल आर्थिक प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- अतः प्रशासन में अभिवृत्ति का अध्ययन अति महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रशासन सार्वजनिक मुद्दों तथा सार्वजनिक नीतियों के समाधान के लिए नीतियों के निर्माण व नीतियों के क्रियावयन से जुड़ा है।
- किसी भी नीति के प्रति यदि प्रशासकों को नागरिकों की अभिवृत्ति का ज्ञान होगा, तो अधिक सकारात्मक नीतियां व कार्यक्रम लाये जा सकेंगे।
- सरकारी नीतियों की सफलता काफी सीमा तक विभिन्न मुद्दों पर नागरिकों की अभिवृत्ति से निर्धारित होती है। जैसे- ऊर्जा संरक्षण, शहरी भूमि का उपयोग, मादक पदार्थ नियंत्रक, सरकार के विभिन्न प्रकार के विनियमन, सरकार की कर नीतियां, पुलिस सुरक्षा, राजमार्ग सुरक्षा, जनसंख्या नियंत्रण, बाल-विवाह उन्मूलन, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा इत्यादि।
- इन सभी मुद्दों पर तथा सार्वजनिक जीवन से जुड़े हुए अन्य असंख्य मुद्दों पर सरकारी नीतियों की सफलता लोगों की अभिरूचि का अध्ययन करके सुनिश्चित की जा सकती है।
- भारत में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए असंख्य विधिक उपाय होने के बावजूद भी पुत्र संतान के प्रति समाज की सकारात्मक अभिवृत्ति व कन्या के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति सबसे महत्त्वपूर्ण बाधाएं है।
- इस प्रकार वर्तमान समय में यह महसूस किया जाने लगा है कि नीतिगत सफलता सुनिश्चित करने के लिए मनोवृत्ति या अभिवृत्ति को लोक-प्रशासन में महत्व दिया जाना चाहिए।
संज्ञानात्मक घटक:
- यह किसी व्यक्ति-वस्तु से जुड़ी हुई हमारी सोच, विचार को दिखाती है जो उस वस्तु से जुड़ी हुई सकारात्मक एवं नकारात्मक गुणों से बनता है। जैसे-
- एक कार खरीदते समय खरीदार इसके सुरक्षा उपायों, माइलेज, मेंटनेंस चार्ज आदि को ध्यान में रखता है। विभिन्न कारों के प्रति व्यक्ति के विचार विभिन्न कारों से जुड़े हुए सकारात्मक एवं नकारात्मक लक्षणों को ध्यान में रखते हुए तैयार हुई।
- किसी व्यक्ति का किसी नेता के प्रति लगाव उस व्यक्ति का करिश्माई नेतृत्व, बुद्धिमान होने तथा ऐसे विचारों के होने को लेकर हो सकता है जो समाज में आर्थिक समानता ला सके।
प्रभावी घटक:
- यह किसी खास वस्तु से जुड़ी हुई विचारों एवं भावनाओं को दिखलाती है। यह अवयव भी अभिवृत्ति को कई प्रकारों से प्रभावित करती है। जैसे-कई व्यक्ति मकड़ी को देखकर डर जाते हैं।
- इस प्रकार व्यक्तियों का मकड़ी के प्रति यह नकारात्मक सोच, मकड़ी के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति उत्पन्न करती है।
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व्यावहारिकः
- यह किसी वस्तु के प्रति पूर्व के व्यवहार व अनुभव को दर्शाता है। जैसे- किसी व्यक्ति को यह लग सकता है कि कारखाना कृषि के प्रति उसका अभिवृत्ति नकारात्मक है क्योंकि पूर्व में उसने कारखाना कृषि के खिलाफ एक वाद पर हस्ताक्षर किया या क्योंकि वह फैक्ट्री फार्मिग में जन्तुओं के प्रति होने वाले क्रूरता को गलत मानता था।
- यहां कारखाना कृषि के प्रति उसकी अभिवृत्ति उसके पूर्व के अनुभव से प्रभावित है।
अभिवृत्ति के कार्य
- मनोवृत्ति या अभिवृत्ति के कार्यों के संदर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण विचार डैनिल काज (Daniel Katz) तथा एजरा स्टोटलैण्ड (Ezra Stotland) ने दिया है।
- उन्होंने अभिवृत्ति के प्रेरणात्मक तंत्र (motivational system) पर बल दिया और इसी संदर्भ में उनका कार्यात्मक सिद्धांत 1959 में विकसित हुआ। इस दृष्टिकोण से अभिवृत्ति के कार्यों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया है–
साधनात्मक कार्य
- साधनात्मक कार्य का अर्थ यह है कि व्यक्ति को जिस व्यवहार से लाभ या पुरस्कार मिलता है या मिलने की संभावना होती है, उसे वह दुहराता है और जिस व्यवहार से दण्ड मिलता है या मिलने की संभावना होती है, उससे बचता है।
- इस प्रकार जिन व्यक्तियों अथवा वस्तुओं से व्यक्ति को पुरस्कार मिलता है या मिलने की संभावना रहती है, उनके प्रति उसकी अभिवृत्ति सकारात्मक बन जाती है।
- दूसरी ओर जिन व्यक्तियों या वस्तुओं से दण्ड मिलता है या मिलने की संभावना रहती है, उनके अभिवृत्ति नकारात्मक बन जाती है। इस प्रकार पुरस्कार पाने तथा दण्ड से बचने में अभिवृत्ति एक साधन का काम करती है।
अहम रक्षात्मक कार्य
- अभिवृत्ति के रक्षात्मक कार्य का अर्थ यह है कि व्यक्ति अपनी वर्तमान अभिवृत्ति में परिवर्तन लाकर अथवा नई अभिवृत्ति को निर्मित करके अपने आप को चिन्ता उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों से बचाता है। जैसे-जब लोमड़ी को लाख कोशिश करने पर भी अंगूर नहीं मिले तो अंगूर के प्रति उसकी सकारात्मक अभिवृत्ति नकारात्मक बन गयी और उसने कहा कि ये अंगूर खट्टे हैं।
- इस अभिवृत्ति परिवर्तन के आधार पर उसने अपनी असफलता से उत्पन्न निराशा, चिन्ता एवं द्वंद्व से अपनी रक्षा कर ली। इस अहम् रक्षा मनोरचना (Ego Defense Mechanism) को युक्त्याभास (Rationalization) कहा जाता है।
- इसी तरह अन्य नई अहम रक्षा-मनोरचनाओं का उपयोग आवश्यकता के अनुसार करके चिन्ता एवं द्वंद्व से व्यक्ति अपना बचाव करता है।
मूल्य उन्मुख कार्य
- अभिवृत्ति का कार्य यह है कि व्यक्ति अपने व्यक्तिगत मूल्य (Personal Value) के अनुकूल अपनी अभिवृत्ति में परिवर्तन लाता है, तो उसे अधिक संतुष्टि मिलती है। इस अर्थ में अभिवृत्ति का एक कार्य यह है कि व्यक्ति को अपने मूल्य के अनुकूल व्यवहार करने को प्रेरित करती है।
- मूल्य के अनेक प्रकार हैं-धार्मिक मूल्य, आर्थिक मूल्य, नैतिक मूल्य, सामाजिक मूल्य इत्यादि। प्रशासन में अभिवृत्ति के इस प्रकार्य का अत्यधिक महत्व है।
- मनोवृत्ति या अभिवृत्ति निर्माण के दौरान यदि व्यक्ति का समाजीकरण ऐसे समावेशी एवं सहिष्णु मूल्यों के अनुरूप हुआ है, जो कल्याण, सद्भाव और शांति के भाव से युक्त हैं।
- तब व्यक्ति की अभिवृत्ति सदैव उसे ऐसे कार्यों को करने के लिए प्रेरित करती है, जो उसके मूल्यों के अनुसार सही है।
- व्यक्ति अपने मूल्यों के अनुरूप कार्य करके संतुष्टि का अनुभव करता है।
ज्ञान कार्य
- इस सिद्धांत के अनुसार, मनोवृत्ति या अभिवृत्ति का एक कार्य ज्ञान से संबंधित है। अनुकूल अभिवृत्ति की स्थिति में ज्ञान बढ़ता है, जबकि प्रतिकूल अभिवृत्ति की स्थिति में ज्ञान सीमित बन जाती है।
- किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना के प्रति सकारात्मक या अनुकूल अभिवृत्ति होने पर उससे संबंधित अनुभवों का भंडार विकसित हो जाता है। यहाँ महत्त्वपूर्ण और गौर करने वाली बात यह है कि किसी व्यक्ति में अभिवृत्ति विषय के प्रति यदि पहले से ही नकारात्मक होगी, तो उस स्थिति में हम उस विषय के प्रति तटस्थ भाव से जानकारी नहीं प्राप्त कर पाएंगे।
- इसलिए एक प्रशासक के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपने परिवेश में उपस्थित सभी घटनाओं, परिस्थितियों, वस्तुओं तथा व्यक्तियों के लिये तटस्थ रहे और बिना किसी पूर्वाग्रह के इनके सभी पक्षों का मूल्यांकन करने में सक्षम हो।
अभिवृत्तिक उभयवृत्तिता का मूल्यांकन
- मुख्य रूप से उभयवृत्तिका (Ambivalence) के द्वारा प्रतिक्रिया केन्द्रीयकरण के बारे में पता चलता है। कोई व्यक्ति अगर किसी वस्तु के प्रति उच्च उभयवृत्तिका हैं तो वह उसके लक्षणों से काफी प्रभावित होता है एवं उसी संदर्भ में उस वस्तु के प्रति सकारात्मकता एवं नकारात्मकता की धारणा बनता है।
- यह व्यक्ति को उस वस्तु के प्रति अधिक अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है (अगर अच्छा विचार है तो) एवं उसी प्रकार गलत व्यवहार करने को प्रेरित करता है (नकारात्मक विचार है तो)।
- इसी तरह जो व्यक्ति उभयवृत्तिक (Ambivalence) नहीं होते हैं वो वस्तु की सकारात्मकता या नकारात्मकता से अधिक प्रभावित नहीं होते।
उभयवृत्तिका के प्रकार
- संभावित उभयवृत्तिका: यह एक दुविधा की स्थिति है इस स्थिति में व्यक्ति को किसी मनोवृत्ति या अभिवृत्ति वस्तु के प्रति एक साथ सकारात्मक और नकारात्मक अभिवृत्ति का अहसास होता है। संभावित उभयवृत्तिका कहने का कारण यह है कि व्यक्ति की उभयवृत्तिका के बारे में समझ नहीं होती।
- महसूस किए जाने वाली उभयवृत्तिका: इस स्थिति में व्यक्ति वास्तव में तनाव की स्थिति में होता है। इस उभयवृत्तिका का अंदाजा व्यक्ति की वस्तु के प्रति नकारात्मकता और सकारात्मकता की सीमा को देखकर लगाया जाता है।
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अभिवृत्ति-व्यवहार का अंतर्संबंध
- विद्यार्थियों के लिए एक समूह ने एक उबाऊ (bolving) प्रयोग में भाग लिया, इन्हें कहा गया कि जो विद्यार्थी कमरे के बाहर खडे़ है उन्हें बतलाया जाए कि प्रयोग बहुत ही मजेदार (Interesting) था।
- इस झूठ को कहने के लिए आधे विद्यार्थी को 10 रुपये का भुगतान किया गया और बचे विद्यार्थी को इसी झूठ को बोलने के लिए 200 रुपये का भुगतान किया गया।
- कुछ सप्ताह के उपरान्त जो लोग उबाऊ प्रयोग में हिस्सा लिए थे उन्हें प्रयोग याद करने को कहा गया और फिर पूछा गया कि प्रयोग उन्हें कितना रुचिकर लगा था। 10 रुपये समूह को प्रयोग 200 रुपये समूह कि तुलना में ज्यादा रूचिकर लगा इसका वर्णन निम्न प्रकार से दिया जा सकता हैः-
- 10 रुपये समूह वाला विद्यार्थियों ने प्रयोग के प्रति अपने अभिवृत्ति में परिवर्तन दिखाया क्योंकि संज्ञानात्मक मतभेद का अनुभव किया।
10 रुपये समूह में शुरूआती संज्ञानात्मकता | प्रयोग बहुत उबाऊ था। मैंने इन्तजार करते हुए विद्यार्थियों को कहा कि प्रयोग रुचिकर था। मैने केवल 10 रुपये के लिए झूठ बोला। |
परिवर्तित संज्ञानात्मकता | वास्तव में प्रयोग मजेदार था। मैंने इन्तजार करते हुए विद्यार्थियों को कहा कि प्रयोग मजेदार था। केवल 10 रुपये के लिए हमें झूठ नहीं बोलना चाहिए था। |
- 200 रुपये समूह वाले विद्यार्थियों ने इसका अनुभव नहीं किया। इसीलिए उन्होंने प्रयोग के प्रति अपने अभिवृत्ति में परिवर्तन नहीं किया और कह दिया कि यह प्रयोग वास्तव में उबाऊ था।
- 200 रुपये समूह में संज्ञानात्मकता होगी-
- प्रयोग काफी उबाऊ था।
- इंतजार करते हुए विद्यार्थियों को मैंने कहा कि प्रयोग रुचिकर है।
- मैंने झूठ बोला क्योंकि, हमें 200 रुपये दिया गया।
- अगर किसी व्यक्ति को एक अभिवृत्ति का दो अनूभूति अनुभव होता है, और दोनों मतभेद है, ऐसी परिस्थिति में दो अनुभूति में से एक का परिवर्तन मतभेद की दिशा में होगा। उदाहरण के तौर परः-
निम्न मतभेद के बारे में विचार करें
- मतभेद I: पान मसाला से मुख कैंसर होता है, जो जानलेवा होता है।
- मतभेद II: मैं पान मसाला खाता हूं।
- व्यक्ति अगर दोनों विचार एक साथ रखता है तो पान मसाला के प्रति अंसगत मनोवृत्ति या अभिवृत्ति होगी। इसलिए दोनों में से एक विचार परिवर्तित होगा ताकि इस को प्राप्त किया जा सके।
- ऊपर दिए गए उदाहरण में असंगतता को कम करने के लिए, व्यक्ति पान मसाला खाना बंद कर देगा। यही तार्किक, एवं स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से असंगतता को कम करने का रास्ता है।
- उम्मीद की जाती है व्यवस्था अभिवृत्ति के ही अनुरूप हो। कई बार व्यक्ति का व्यवहार अभिवृत्ति के अनुरूप नहीं होता। अपितु अभिवृत्ति के विरोधाभासी होता है।
- अनुसंधान ने यह साबित किया है कि निम्न परिस्थितियों में अभिवृत्ति और व्यवहार के बीच सामंजस्य पाया जाता है-
- जब अभिवृत्ति अत्यंत मजबूत हो और अभिवृत्ति तंत्र में केन्द्रीय स्थान धारण किया हुआ हो। (केन्द्रीयकरण का गुण-जिस अभिवृत्ति तंत्र में, जिस मनोवृत्ति या अभिवृत्ति का प्रभाव सबसे ज्यादा होता है उसे हमलोग केन्द्रीयकरण वाला अभिवृत्ति कहते है। एक वृहत्त अभिवृत्ति कई लघु अभिवृत्तियों का समुच्चय होता है, इन संपूर्ण लघु अभिवृत्तियों के समुच्च्य को अभिवृत्ति तंत्र कहा जाता है।
अभिवृत्ति का आधारभूत ज्ञान
तीव्रता (Extremences):
- यह Balance की मात्र बताता है अर्थात् किसी वस्तु के प्रति attitude कितना सकारात्मक, नकारात्मक या उदासीन है।
संयोजक (Valence):
- यह बताता है कि किसी के प्रति अभिवृत्ति सकारात्मक, नकारात्मक या उदासीन है।
सरलता या जटिलता (Simplicity or complexity):
- एक अभिवृत्ति तंत्र में कई प्रकार की अभिवृत्तियां हो।
केन्द्रीयता (Centrality):
- किसी अभिवृत्ति तंत्र में किसी खास अभिवृत्ति की भूमिका बताता है। ज्यादा केन्द्रीयता वाली अभिवृत्ति अन्य अभिवृत्तियों को ज्यादा प्रभावित करती है, उस अभिवृत्ति की तुलना में जिसमें कम केन्द्रीयता पाई जाती है।
उदाहरण:
- विश्व शांति के प्रति अभिवृत्ति-उच्च सैन्य खर्च के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति इस विषय पर केन्द्रित मनोवृत्ति या अभिवृत्ति के रूप में उपस्थित हो सकता जो कि बहु अभिवृत्तिक तंत्र में अन्य को प्रभावित करता है।
- जब व्यक्ति अपनी अभिवृत्तियों को जान (अनुभव कर) रहा है।
- जब किसी रूप में व्यवहार करने के लिए बाह्य दवाब नहीं होगा।
- जब व्यक्ति के व्यवहार पर किसी का ध्यान नहीं हो या उसके व्यवहार का कोई मूल्यांकन नहीं कर रहा हो।
- जब व्यक्ति यह सोचता है कि उसका व्यवहार एक सकारात्मक परिणाम होगा और इसलिए वह इस व्यवहार को करना चाहता है।
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अभिवृत्ति निर्माण की प्रक्रिया
अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक
संज्ञानात्मक मतभेद का सिद्धांतः (लियोन फेस्टिंगर के द्वारा)
- यह सिद्धांत आत्मबोध पर जोर देता है। (संज्ञानात्मक घटक पर)
- आधारभूत सिद्धांत है कि संज्ञानात्मक घटक और अभिवृत्ति एक दूसरे के अनुरूप होना चाहिए न कि विरोधाभासी।
- यदि कोई व्यक्ति उदाहरणस्वरूप यह पाता है कि किसी अभिवृत्ति के प्रति दो संज्ञानात्मक मतभेद है तो एक को संगतता की दिशा में परिवर्तन करना होगा।
THE TWO STEP CONCEPT
- इस सिद्धांत की परिकल्पना एस.एम. मोहसीन के द्वारा की गई थी। उनके अनुसार अभिवृत्ति में परिवर्तन निम्न 2 चरणों में होता है।
- उदाहरण-प्रीति समाचार-पत्र में पढ़ती है कि जिस शीतल पेय को वह पसंद करती है, वह अत्यंत ही हानिकारक है। लेकिन प्रीति देखती है कि उसका पसंदीदा खिलाड़ी इस पेय का विज्ञापन करता रहा है। वह खुद को अपने पसंदीदा खिलाड़ी की तरह मानती है और पेय का सेवन जारी रखती है। अब, यह मान लिया जाए कि वही खिलाड़ी लोगों के सोच को उस शीतल पेय के लिए सकारात्मक से नकारात्मक करना चाहता है।
- शुरू में खिलाड़ी प्रशंसकों को संबंधित पेय पदार्थ के प्रति सकारात्मक विचार बता रहा था। अब वह खिलाड़ी संबंधित पेय पदार्थ के सेवन की अपनी आदत को बदल देता है। (अर्थात् त्याग देता है।) उदाहरणस्वरूप यहां देखा गया है कि संभवतः वह शीतलपेय के बदले में अब स्वास्थ्यवर्द्धक पेय पदार्थ पीने लगे और प्रचार भी करने लगे।
- अगर खिलाड़ी वास्तव में अपना स्वभाव बदल देता है तो प्रीति की भी उस हानिकारक शीलतपेय के प्रति अभिवृत्ति बदल जाएगी। और प्रीति हानिकारक शीतल पेय पीना छोड़ देगी।
निम्न अवस्थाओं में अभिवृत्ति में परिवर्तन होता है-
प्रथम:
- इस अवस्था मे लक्ष्य में परिवर्तन की पहचान उसके स्रोत से होती है। स्रोत वह व्यक्ति हैं जिसके प्रभाव से परिवर्तन लाना है। Identification से तात्पर्य है कि उद्देश्य का स्रोत के प्रति सम्मान है या नहीं।
- संबंधित व्यक्ति अपने को लक्ष्य के स्थान पर रखता है, और वह अपने को उसके जैसा समझता है। स्रोत का target के प्रति सकारात्मक सोच आवश्यक रूप से होना चाहिए और सम्मान और आकर्षण पारस्परिक होना चाहिए।
दूसरा:
- कोई स्रोत अभिवृत्ति परिवर्तन दिखाता है, और ऐसा अभिवृत्ति वस्तु के प्रति व्यवहार परिवर्तन के रूप में दिखता है।
- स्रोत के अभिवृत्ति और व्यवहार में परिवर्तन को महसूस किया जाता है, लक्ष्य भी व्यवहार के अभिवृत्ति में परिवर्तन दिखाता है और यह व्यवहार के माध्यम से ही दिखता है। यह एक प्रकार का अवलोकन या सीखना है।
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अभिवृत्ति परिवर्तन के कारक
उपस्थित या विद्यमान मनोवृत्ति या अभिवृत्ति की विशेषता
- Valence – संयोजक
- Extremences – तीव्रता
- Multiplity (Simplicity/Complexity)
- Centrality Attitude (ये सभी Attitude परिवर्तन के कारक हैं।)
- उहाहरण: नकारात्मक अभिवृत्ति की तुलना में सकारात्मक अभिवृत्ति में परिवर्तन आसान है। तीव्र और केन्द्रीय अभिवृत्ति में परिवर्तन अत्यंत कठिन है।
- जबकि Peripheral अभिवृत्ति में बदलाव अत्यंत आसान है। बहुल अभिवृत्ति की तुलना में साधारण अभिवृत्ति में परिवर्तन आसान है। यहां पर अभिवृत्ति परिवर्तन की दिशा और मात्र दोनों पर ध्यान रखा जाता है।
- यहां पर परिवर्तन संज्ञानात्मक भी हो सकता है। उदाहरण के तौर पर नकारात्मक अभिव्यक्ति सकारात्मक व सकारात्मक अभिव्यक्ति नकारात्मक हो सकती है। उदाहरण: किसी व्यक्ति का महिला सशक्तिकरण के प्रति यदि सकारात्मक अभिवृत्ति है तो सफल महिला के विषय में पढ़ने से यह अभिवृत्ति और सकारात्मक हो जाएगी।
- ऐसा परिवर्तन अनुकूल परिवर्तन होगा। वहीं दूसरी ओर अभिवृत्ति परिवर्तन के प्रतिकूल भी हो सकती है। उदाहरण- उपरोक्त उदाहरण में सफल महिला के बारे में पढ़कर यह भी सोचा जा सकता है कि महिला अगर सशक्त हो जाती है तो अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वाहन नहीं कर सकती है।
- ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति की सकारात्मक अभिवृत्ति कम सकारात्मक या नकारात्मक हो सकती है। यह incongruent परिवर्तन होगा।
- जिस दिशा में सूचना प्रदान की जा रही है, कभी-कभी मनोवृत्ति या अभिवृत्ति इससे विपरीत भी हो जाती है। जैसे-एक पोस्टर है जिसमें दांत की सफाई के महत्व को बतलाया जा रहा है। जिसके लिए पोस्टर में भंयकर सड़े हुए दांतों की तस्वीर दी गई है।
- अत्यंत भयानक होने के कारण लोग इस पोस्टर पर अविश्वास भी कर सकते है। इस प्रकार दांतों की सुरक्षा के प्रति उनकी अभिवृत्ति नकारात्मक उत्पन्न होगी।
- अनुसंधान से यह ज्ञात हुआ है कि लोगों को मनाने में कई बार भय की उपयोगिता सिद्ध हुई है। परन्तु संदेश से यदि काफी भय उत्पन्न होता है तो श्रोता पर उनका नगण्य प्रभाव पड़ता है और धारणा में इसका प्रभाव काफी कम देखा गया है।
स्रोत की विशेषता
- स्रोत की विश्वसनीयता और आकर्षण का भी प्रभाव अभिवृत्ति परिवर्तन पर पड़ता है। अगर संदेश अधिक विश्वसनीय स्रोत से आता है तो मनोवृत्ति या अभिवृत्ति परिवर्तन का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है। इसका व्युत्क्रम भी सही होता है।उदाहरण: अगर कोई बुजुर्ग लैपटॉप खरीदना चाहते हैं तो इस विषय में अगर कोई कंप्यूटर इंजीनियर बोलता है तो यह ज्यादा प्रभावी होगा, इस तुलना में कि यह विशेषता कोई विद्यालय का छात्र बताए।
संदेश की विशेषता
- संदेश वह सूचना है, जिसे मनोवृत्ति या अभिवृत्ति परिवर्तन के उद्देश्य से प्रस्तुत किया जाता है। अभिवृत्ति में परिवर्तन तभी देखा जाएगा जब सूचना की मात्र उपयुक्त हो (न अधिक हो और न ही कम हो) सूचना अगर तार्किक व भावनात्मक हो तो इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। उदाहरण: प्रेशर कुकर के विज्ञापन के दौरान-
- तार्किक अपील: ईंधन की बचत व कम खर्चीला।
- भावनात्मक अपील: प्रेशर कुकर में भोजन पकाने पर पोषक तत्त्व संरक्षित होता है। अगर कोई अपने परिवार के स्वास्थ्य को ध्यान में रखना चाहता है तो वह पोषक तत्त्व के विषय में अवश्य सोचेगा।
- संदेश से जाग्रत किए गए उद्देश्य का भी अभिवृत्ति परिवर्तन पर प्रभाव पड़ता है- उदाहरण: दूध के विज्ञापन में यह बताया जा सकता है कि दूध पीने से एक व्यक्ति स्वस्थ, सुंदर, ऊर्जावान और अपने कार्य में सफल बनता है। संदेश पहुंचाने के माध्यम का भी अभिवृत्ति परिवर्तन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है। सामने प्रत्यक्ष रूप से बैठे व्यक्ति को दिया गया संदेश अप्रत्यक्ष संदेश से ज्यादा प्रभावी होता है।
उद्देश्य की विशेषता
- उद्देश्य की मंशा, पूर्वाग्रह, आत्मसम्मान और बौद्धिकता का प्रभाव अभिवृत्ति परिवर्तन पर पड़ता है। उदाहरण: जिनके व्यक्तित्त्व में खुलापन एवं लचीलापन है उसमें परिवर्तन करना आसान है।
- ऐसे व्यक्तियों पर प्रचार-प्रसार का असर अधिक होगा। जिनके व्यक्तित्त्व में पूर्वाग्रह अधिक होती है, उनमें मनोवृत्ति या अभिवृत्ति परिवर्तन आसानी से नहीं होता है। इसका व्युत्क्रम भी सही होता है।
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