अवध राज्य (Awadh State)
- अवध राज्य (Awadh State) का संस्थापक सआदत खां ‘बुरहान-उल-मुल्क’ (1722-39 सी.ई.) था। सैयद बंधुओं के विरुद्ध रचे गए षड्यंत्र में सआदत खां ने मुगल सम्राट मुहम्मदशाह का पक्ष लिया था
- प्रसन्न होकर मुहम्मद शाह ने उसे बुरहान-उल-मुल्क की उपाधि से विभूषित किया। इसका पूरा नाम ‘मीर मोहम्मद अमीन सआदत खां था।

सआदत खां (1722-39 सी.ई.)
- सआदत खां एक ईरानी शिया था तथा निशापुर के सैय्यदों का वंशज था। ईरानी गुट का अग्रणी सदस्य होने के कारण मुगल दरबार में तूर्रानी दल का नेता ‘आसफजाह निजाम-उल-मुल्क’ उसका शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वी था।
- 1720 सी.ई. में सआदत खां को ‘बयाना’ का फौजदार नियुक्त किया गया।
- 1720-22 सी.ई. तक वह ‘आगरा का गवर्नर भी रहा, किंतु वहां का शासन अपने नायब नीलकंठ नागर द्वारा चलाया करता था।
- 1722 सी.ई. में वह अवध का सूबेदार बना। 1723 सी.ई. में उसने नया राजस्व बंदोबस्त लागू किया, उसने जमींदारों का दमन किया।
- 1739 सी.ई. में सआदत खां ने नादिरशाह को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया और 20 करोड़ रुपए मिलने की आशा दिलाई।
- दिल्ली पहुंचने के बाद नादिरशाह ने सआदत खां ने 20 करोड़ रुपए की मांग की। मांग पूरी न कर पाने के कारण उसने विष खाकर आत्महत्या कर ली।
- सादात खान, जो शिया मतावलम्बी और निशापुर के एक ईरानी के अमीर थे, ने 1707 सी ई में भारत में उस समय प्रवेश किया जब केन्द्रीकृत मुगल साम्राज्य बादशाह औंरगजेब के अधीन ह्रास की ओर बढ़ रहा था।
- खान, जिसे बुरहान उल मुल्क के नाम से भी जाना जाता था, का सितारा उसकी पैतृत भूमि में गर्दिश में था और इसलिए वह दिल्ली के दरबार में नए अवसरों की खोज में आया
- मुगल शासक ने 1719 में खान को आगरा का फ़ौजदार नियुक्त किया और बाद में 1721 में उसे अवध के सूबादार के रूप में पदोन्नत कर दिया गया।
- यह एक कठिन और चुनौतीपूर्ण क्षेत्र था जहां अर्ध स्वतंत्र सामंती जमींदार अपनी निजी सेना तथा दीवानी संस्थानों के माध्यम से प्रजा पर न्यायिक अधिकार बनाए रखते थे।
- खान ने एक आवश्यक कदम यह उठाया कि उसने नगर में अपना मुख्यालय स्थापित किया जिसने प्रान्त में उसके आधार को अत्यन्त मजबूत स्थिति प्रदान की।
सफदरजंग (1739-54 सी.ई.)
- सफदरजंग सआदत खां का भतीजा व दामाद था। उसका पूरा नाम ‘अबुल मैसूर खां सफदरजंग’ था। सम्राट मुहम्मदशाह ने एक फरमान द्वारा इसे अवध राज्य का नवाब नियुक्त किया था।
- 1748 सी.ई. में अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के विरुद्ध सफदरजंग ने युद्ध में भाग लिया था।
- अतः 1748 सी.ई. में मुगल बादशाह अहमदशाह ने उसे अपना वजीर नियुक्त किया। उस समय से अवध राज्य के नवाब ‘नवाब-वजीर’ के नाम से जाने जाते रहे।
- सफदरजंग ने बंगश पठानों के खिलाफ 1750-51 सी.ई. में युद्ध किया और इस युद्ध में मराठों की सैनिक सहायक एवं जाटों का समर्थन प्राप्त किया। उसने पेशवा के साथ भी एक समझौता किया किंतु यह समझौता अस्तित्व में न आ सका।
- सफदरजंग ने अपने शासन में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच निष्पक्षता की नीति अपनाई। उसकी सरकार में सबसे बड़े पद पर हिन्दू महाराजा नवाब राय पदासीन था।
शुजाउद्दौला (1754-75 सी.ई.)
- सफदरजंग की मृत्यु के बाद उसका पुत्र शुजाउद्दौला अवध राज्य का नवाब बना।
- तुर्रानी वजीर इमादुल्मुल्क की शत्रुता के कारण जब मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय (अली गौहर) को सुरक्षा की दृष्टि से दिल्ली छोड़ना पड़ा तो शुजाउद्दौला ने 1759 सी.ई. में अपने राज्य में शरण दी।
- 1761 सी.ई. के पानीपत के तृतीय युद्ध में शुजाउद्दौला ने अहमदशाह अब्दाली का साथ दिया था।
- शुजाउद्दौला ने बंगाल के अपदस्थ नवाब मीरकासिम को अपने राज्य में शरण दी।
- 1764 सी.ई. में बक्सर के युद्ध में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय, मीरकासिम और नवाब शुजाउद्दौला का त्रिगुट संघर्ष अंग्रेजों के विरुद्ध था, जिसमें अंग्रेज विजयी हुए।
- 1765 सी.ई. में क्लाइव ने अवध राज्य (Awadh State) के नवाब शुजाउद्दौला से इलाहाबाद की संधि की और उससे कड़ा तथा इलाहाबाद का क्षेत्र लेकर मुगल बादशाह को दे दिया।
- 1773 में अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा वारेन हेस्टिंगस के बीच ‘बनारस की संधि’ हुई। इसके अनुसार 50 लाख रुपए लेकर इलाहाबाद और कड़ा नवाब को पुनः वापस कर दिए गए।
- कम्पनी ने रूहेलों के विरुद्ध नवाब की सहायता का वचन दिया। उसके लिए नवाब को 40 लाख रुपया कम्पनी को देने पड़ते थे। इस संधि के अवसर पर अंग्रेज कमांडर सर रॉबर्ट वार्कर मौजूद थे।
- अवध राज्य के साथ की गई इस संधि का मुख्य उद्देश्य मराठों के विरुद्ध कम्पनी की सीमाओं की सुरक्षा था।
- इसी संधि से प्रेरित होकर नवाब शुजाउद्दौला ने 1774 सी.ई. में रूहेलखंड पर आक्रमण कर ‘मीरनपुरकटरा के युद्ध’ में रूहेला सरदार हाफिज रहमत खां को पराजित कर मार डाला।
- 20 हजार रूहेलों को देश निकाला दिया गया और रूहेलखण्ड को अवध राज्य में सम्मिलित कर लिया गया।
- इस युद्ध में अंग्रेजों और अवध की संयुक्त सेना ने भाग लिया। रूहेला युद्ध के विषय में हेस्टिंग्स की नीति की वर्क, मैकाले आदि विद्वानों ने कटु आलोचना की जबकि जॉन स्टेªची ने समर्थन किया।
आसफउद्दौला (1775-97 सी.ई.)
- जनवरी 1775 सी.ई. में शुजाउद्दौला का पुत्र आसफउद्दौला अवध का नवाब बना।
- अंग्रेजों ने 1775 सी.ई. में आसफउद्दौला के साथ ‘फैजाबाद की संधि’ की। इस संधि के अनुसार बनारस और गाजीपुर के जिले कम्पनी को प्रत्यक्ष अधीनता में दिए गए।
- नवाब को प्रायः अपना संपूर्ण खजाना पिछले नवाब की विधवा पत्नियों को देने के लिए बाध्य किया गया।
- अवध के नवाब ने अंग्रेजी सेना की सहायता प्राप्त करने पर उसके व्यय के लिए पहले से अधिक धन देना स्वीकार किया।
- आसफउद्दौला ने अपनी राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानांतरित की। 1784 सी.ई. में मुहर्रम मनाने के लिए उसने लखनऊ में इमामबाड़ा का निर्माण कराया।
वजीर अली (1797-98 सी.ई.)
- आसफउद्दौला की मृत्यु के बाद वजीर अली नवाब बना किंतु शुजाउद्दौला के भाई सादात अली खां ने स्वयं नवाब बनने का दावा पेश किया।
सआदत अली खां (1798-1819 सी.ई.)
- गवर्नर जनरल सर जॉन शोर के हस्तक्षेप से 1798 सी.ई. में सआदत अली अवध राज्य (Awadh State) का नवाब बना। उसने इलाहाबाद का किला अंग्रेजों को दे दिया।
- 10 नवंबर 1801 को गवर्नर जनरल वेलेजली ने नवाब के साथ सहायक संधि की। जिसके अनुसार रूहेलखण्ड दोआब और गोरखपुर सदा के लिए अंग्रेजी राज्य में सम्मिलित कर लिया गया। इस क्षेत्र की वार्षिक आय 1.35 करोड़ रुपए थी।
- 1819 सी.ई. में लॉर्ड हेस्टिंग्स ने इसे ‘राजा’ की उपाधि दी और बदले में दो करोड़ रुपए लिए।
वाजिद अली शाह (1847-56)
- यह अवध राज्य (Awadh State) का अंतिम नवाब था। लॉर्ड डलहौजी ने कुशासन के आरोप में 1856 में अवध को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।
- सर्वप्रथम अवध के रेजीडेन्ट स्लीमैन अवध के संदर्भ में सरकारी रिपोर्ट पेश की जिसमें कुशासन का सारा दोष नवाब के सिर पर डाल दिया गया था। किंतु स्लीमैन अवध के विलय के पक्ष में नहीं था।
- स्लीमैन के पश्चात् आउट्स ने अवध में व्याप्त भ्रष्टाचार और अव्यवस्था का विस्तृत विवरण तैयार किया। इसकी रिपोर्ट के आधार पर ही अवध को अंग्रेजी राज्य में मिला दिया गया।
- अवध के संदर्भ में गैर सरकारी रिपोर्ट विशेष हीबर एवं कैप्टन लोकेट ने तैयार की थीं जिसमें अवध के शासन की प्रशंसा की गई थी।
- अवध राज्य को ‘बफर राज्य’ के रूप में जाना जाता है। अवध राज्य ने अंग्रेजी साम्राज्य के पोषण में धाय की भूमिका निभाई।
प्रशासनिक और आर्थिक केंद्र के रूप में लखनऊ
- आसफ़उद्दौला के द्वारा 1775 में राजधानी फ़ैजाबाद से लखनऊ स्थानान्तरित करने के पश्चात् यह व्यापारिक गतिविधियों, कोषागार, अदालत तथा कारागार का केंद्र बन गया। महल परिसर कूटनीतिक, सरकारी, न्यायिक, वित्तीय और सैन्य कार्याें का केंद्र बन गया।
- परिसर के अंदर भिन्न-भिन्न भवन थे जो विशिष्ट कार्यों के लिए आवंटित थे। महल में शाही कोचवान, अंगरक्षक, शाही शिविरों और शिकार संबंधी उपकरणों के प्रभारियों, कलाकार तथा निपुण शिल्पकारों को भी जगह दी गई थी।
- 18वीं सदी में लखनऊ की समृद्ध दरबारी संस्कृति के उत्फ़ुलन को इसके उस समय की जीवंत वाणिज्यिक वस्तताओं तथा विलक्षण वास्तुकला संबंधी विरासत, जो कि आज भी नगर में सर्वत्र व्याप्र है, से मापा जा सकता है।
- प्रसिद्ध दरबार वह धुरी था जिसके चारों ओर नगरीय जीवन घूमता था।
- नवाबों ने बृहत महल बागानों, विशाल मस्जिदों, दरवाजों, इमामबाड़ों और चौकों का निर्माण कराया। सम्पन्न नवाबों ने अपने विशेषाधिकार प्राप्त अनुचरों के साथ सामंती प्रवृतियों को प्रदर्शित किया तथा विलासिता में निमग्न रहे।
- प्रशासनिक और सैन्य अभिजात्य वर्ग अधिकतर मच्छी भवन किला (एक मध्यकालीन किला जो अंशतः 1857 में ढ़हा दिया गया और 1890 तक ध्वंसावशेष में बदल गया) सहित शाही र्क्वाटरों में और उनके आसपास के क्षेत्र में केंद्रित थे। अमीरों ने अपने अलग आवासीय महल बनाए जो मोहल्लों, मस्जिदाें और बाजारों के साथ फ़ैले हुए थे।
- लखनऊ अवध राज्य (Awadh State) के मुख्य अनाज व्यापार केंद्र के रूप में उभरा और इस दरबार नगर को इसका राजस्व मुख्यतः गांवों से प्राप्त होता था। प्रशासनिक कर्मचारी अपने आर्थिक निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भर थे।
- संस्कृत शब्द ‘गंज’ अनाज बाजार को निर्दिष्ट करने के लिए प्रयोग में था हालांकि अनेक गंजों का विस्तार अनेक प्रकार की वस्तुओं के लिए खुदरा केंद्राें के रूप में हुआ।
- गंज शब्द से या तो सड़कों या क्वार्टरों या अनाज व्यापार के नए केंद्रों का भी अर्थ निकलता था जो बाद में कस्बों में विकसित हो गए।
- लखनऊ में संस्थापकों के नाम या उनकी उपाधि सामान्यतः गंज शब्द से पूर्व जोड़ दी गई और इस प्रकार प्रसिद्ध बाजारों को नामांकित किया गया जैसे हजरतगंज, नवाबगंज, वजीरगंज और विक्टोरियागंज।
- नगर का सामंती शासक तंत्र राजस्व के लिए मुख्यतः गांवों पर निर्भर था। तथापि, कतिपय व्यक्ति, जो कुलीनों के लिए विलासिता की वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करते थे, की वाणिज्यिक लाभ की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता।
- दरबार की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए दस्तकारों शिल्पकारों, आभूषण निर्माताओं की कर्मशालाएं तथा बैंकरों और व्यापारियों के काम में उछाल आया और लखनऊ उतर भारत में विलासितापूर्ण वस्तुओं के उद्योगों का केंद्र बन गया।
- साधारण दस्तकारों की संख्या कुल जनसंख्या का दो तिहाई थी और वे केवल निर्वाह मजदूरी पर जीवन यापन कर रहे थे, इसके विपरीत उच्च वर्ग ने अपनी आडम्बरपूर्ण जीवनशैली पर अनुमानतः करोड़ों रूपया (एक करोड एक मिलियन पाउंड स्टर्लिंग) खर्च किया।
- सौदागर, व्यापारी और दस्तकार, जो शाही परिवारों या अमीरों की सेवा करते थे, उनके निवासों के समीप ही रहते थे।
- लखनऊ में व्यापार और उद्योगों की फ़लती-फ़ूलती स्थिति का कारण अवध राज्य (Awadh State) के शासकों, विशेषकर नवाब शुजाउद्दौला और सादात अली खान द्वारा सुविचारित नीति का अनुसरण करना भी था।
- ईस्ट इंडिया कंपनी के वाणिज्यिक प्रवेश का प्रतिरोध करने के लिए उन्होंने ऊंचीं व्यापार सीमा शुल्क की बाधा भी खड़ी की।
- चौक शाब्दिक अर्थ एक चौराहा ( विलासिता की वस्तुओं से परिपूर्ण मुख्य बाजार) वाणिज्यिक विनिमय के लिए मुख्य स्थान था।
- यह लखनऊ का सबसे प्राचीन तथा सतत् रूप से बसा हुआ क्षे= था और मध्यकाल से ही प्रमुख मार्ग था द्धजोन्स, 2006: 193ऋ। यह गोल दरवाजा और अकबरी दरवाजे के बीच पड़ता था और दोनों दरवाजों के बीच इस खंड में अनेक दुकानें थीं। उदाहरण के लिए, गहनों की दुकानों के समूह को सरार्फा के नाम से जाना जाता था।
- मंडी या थोक बिक्री बाजार कम मूल्य की भारी-भरकम वस्तुओं जैसे इमारती लकड़ी, घास, कोयला, सब्जियों, सब्जी मंडी, खाद्यान, गल्ला मंडी इत्यादि से संबंधित था।
- यह किसी भी जिन्स के लिए व्यापार का स्थान था और आरम्भ में दो मंडियां- एक डालीगंज में और दूसरी सादातगंज में थीं।
- कटरा भी एक बाजार था जहां निम्न स्तर की सस्ती वस्तुएं बेची जाती थी। यह कभी-कभी व्यापार विशेष में विशेषज्ञता प्राप्त दस्तकारों की प्रधानता वाले उपनगर को भी इंगित करता है।
- विभिन्न व्यापारों और शिल्पों में संलग्न दस्तकार बहुधा जाति श्रेणी बना लेते थे और वे विशिष्ट स्थानीय समूहों के रूप में उभरे। जिन क्षेत्रों में वे रहते थे उससे यह प्रतिबिम्बित होता है और सड़कें तथा क्वार्टर्स लोकप्रिय श्रेणियों के नाम से जानी जाती थी जैसे रस्तोगी टोला या कश्मीरी मोहल्ला।
- बाजार अपने सामान्य शब्द क्रय-विक्रय केंद्र को इंगित करने के अलावा विदेशों के साथ व्यापार तथा विनिमय संबंधों के विस्तार को भी दर्शाता था।
- लखनऊ में कांधारी और चीनी बाजार क्रमशः अफ़गान और चीन के पुराने व्यापार केंद्रों के रूप में अस्तित्व में आए।
- आसफ़उद्दौला के शासन के दौरान (1775), यह नगर चीनी, नील तथा कपड़े का निर्यात इंग्लैड और अफ़गानिस्तान में करता था।
- यह वाणिज्यिक केंद्र था जिसमें बुलियन (सोने चांदी) का बाजार था और इसने ताम्बे के काम में, जो कि इसके सबसे बड़े उद्योगों में एक था, ख्याति प्राप्त की।
- नवाबों के अधीन चांदी-सोने के बर्तनों के निर्माता, लेस बनाने वाले और इत्र बेचने वाले खबू फ़ले- फ़ूले। श्राफ़ों, साहूकारों के अधीन पुराने व्यवसाय जैसे साहूकारी फ़लते- फ़ूलते रहे।
- चालू वर्ष में ढ़ाले गए सिक्कों में नवाबों का नाम उत्कीर्ण होता था तथा पूर्ववर्ती शासकों के नाम हटा दिए जाते थे। तम्बाकू उत्पादन, चीनी शोधन, कताई और बुनाई जैसे प्रमुख उद्योग भी चलते रहे।
रूहेल एवं बंगश पठान
- अफगान सरदार वीर दाउद और उसके पुत्र अली मोहम्मद खां ने बरेली में एक छोटी सी जागीर का विस्तार कर रूहेलखण्ड के स्वतंत्र राज्य स्थापित किया।
- रूहेलखंड क्षेत्र में बरेली, बदायूं के क्षेत्र आते हैं। यह राज्य उत्तर में कुमायूं से दक्षिण में गंगा नदी तक फैला था।
- फर्रूखाबाद क्षेत्र में मुहम्मद खां बंगश ने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। बाद में इसने बुंदेलखण्ड क्षेत्र पर भी अपना प्रभुत्व जमाया।
राजपूत
आमेर राज्य
- 18वीं शताब्दी का सबसे श्रेष्ठ राजपूत शासक आमेर का सवाई जय सिंह था। सवाई जय सिंह ने 1699-1743 सी.ई. तक शासन किया।
- इसे सवाई की पदवी मुगल सम्राट फर्रूखशियर ने दी थी।
- जय सिंह सवाई एक प्रख्यात राजनेता, खगोल शास्त्री, गणितज्ञ और समाज सुधारक था। इसने जयपुर शहर की स्थापना की।
- सवाई जय सिंह ने पांच स्थानों पर वेधशालाएं बनवाई दिल्ली, मथुरा, जयपुर, उज्जैन तथा वाराणसी।
- खगोल शास्त्र के अध्ययन के लिए उसने एक सारणी बनाई जो ‘जिजमुहम्मदशाही’ के नाम से जानी जाती है।
- जय सिंह ने युक्लिड के रेखा गणित के तत्व का अनुवाद संस्कृत में कराया।
- जय सिंह एक समाज सुधारक भी था। उसने राजपूतों में दहेज प्रथा को खत्म करने की कोशिश की ताकि लड़की की शादी में किसी राजपूत को अत्यधिक खर्च करने के लिए मजबूर न होना पड़े।
- जय सिंह ने अपने शासन काल में दो अश्वमेध यज्ञ कराया था। वैज्ञानिक पद्धति पर स्थापित पहला शहर जयपुर है।
जाट
- दिल्ली, मथुरा, आगरा के समीपवर्ती क्षेत्रें में जाट मूलतः कृषक थे। जाट किसानों ने औरंगजेब की नीतियों के विरुद्ध जाट जमींदारों के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया था। यह मूलतः कृषक विद्रोह था।
- सर्वप्रथम विद्रोह तिलपत के जमींदार गोकुल ने 1669 सी.ई. में किया तथा मथुरा के फौजदार अब्दुल नवी को युद्ध में हराकर उसकी हत्या कर दी।
- 1686 सी.ई. में राजाराम के नेतृत्व में जाटों ने विद्रोह किया। विद्रोह का केन्द्र सिनसिनी और सौंधी था।
- मनूची ने लिखा है कि राजाराम ने सिकंदर में स्थित अकबर के मकबरे को लूटा और मकबरे से उसकी हड्डियों को निकालकर जला दिया।
- औरंगजेब ने बिशनसिंह कट्टवाहा को मथुरा का फौजदार नियुक्त कर जाटों के दमन का आदेश दिया। राजाराम पकड़ा गया और मारा गया।
चूड़ामन (1690-1721 सी.ई.)
- राजाराम के बाद उसका भतीजा चूड़ामन उसका उत्तराधिकारी हुआ।
- चूड़ामन ने 1700 सी.ई. में भरतपुर राज्य की स्थापना की। उसने थूम (थीम) नामक स्थान पर एक सुदृढ़ किले का निर्माण कराया।
- 1721 सी.ई. में आगरा के सूबेदार जय सिंह के अधीन मुगल सेना ने इसके विरुद्ध अभियान का थूम के किले को जीत लिया। चूड़ामन ने आत्महत्या कर ली।
- फलस्वरूप कुछ समय तक मुखम सिंह ने जाटों का नेतृत्व संभाला। तत्पश्चात चूड़ामन के भतीजे बदन सिंह ने जाटों का नेतृत्व किया।
बदन सिंह (1721-56 सी.ई.)
- बदन सिंह ने देग, कुम्बेर, वेद तथा भरतपुर में चार दुर्ग बनवाए। बदन सिंह ने आगरा तथा मथुरा पर अधिकार कर लिया।
- अहमदशाह अब्दाली ने बदन सिंह को ‘राजा’ और ‘महेन्द्र की उपाधि दी। चूड़ामन के साथ बदन सिंह को भी भरतपुर राज्य की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है।
- जयपुर के राजा सवाई जय सिंह ने बदन सिंह का टीका कर उसे ‘ब्रम्हराज’ की पदवी दी थी।
सूरज मल (1756-63 सी.ई.)
- बदन सिंह के बाद उसका दत्तक पुत्र सूरज मल 1756 सी.ई. में उसका उत्तराधिकारी बना।
- सूरज मल ने जाट राज्य को अपनी चतुराई, सूक्ष्म बुद्धि तथा स्पष्ट दृष्टिकोण दी। अतः सूरज मल को जाटों का अफलातून (प्लेटों) कहा जाता है।
- 1761 सी.ई. में पानीपत के तृतीय युद्ध में सूरज मल ने मराठों को सहयोग देने की बात कही थी परंतु सदाशिव राव भाउ से मतभेद हो जाने के कारण उसने अपने आपको युद्ध से अलग रखा।
- 1763 सी.ई. में सूरज मल की मृत्यु के बाद जाट राज्य का पतन हो गया।
हैदराबाद
- मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला के समय चिनकिलिच खां निजामुलमुल्क ने 1724 सी.ई. में हैदराबाद राज्य की स्थापना की।
- वस्तुतः 1720 सी.ई. में चिनकिलिच खां को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया गया और 1722 सी.ई. में उसे वापस दिल्ली बुलाकर वजीर का पद दिया गया।
- दरबार में षड्यंत्र के वातावरण से क्षुब्ध होकर वह दक्षिण की ओर शिकार के बहाने चला गया।
- दरबार से उसका पलायन सद्गुण और निष्ठा के पलायन का प्रतीक माना जाता है। इस समय दक्षिण का सूबेदार मुबारिज खां था।
- 1724 सी.ई. में शुकरखेड़ा के युद्ध में चिनकिलिच खां ने मुबारिज खां को मार डाला और दक्कन का स्वामी बन गया।
- मजबूर होकर मुहम्मद शाह ने निजाममुलमुल्क को दक्कन का वायसराय नियुक्त किया और आसफजाह की उपाधि दी।