आर्थिक समीक्षा 2021-22 (Economic Survey 2021-22)
भारत की जीडीपी
- भारत की जीडीपी चौतरफा टीकाकरण, आपूर्ति सुधार और नियमन में आसानी से होने वाले लाभ, निर्यात में तेज बढ़ोतरी और पूंजी खर्च करने में तेजी लाने के लिए वित्तीय मौके की उपलब्धता की मदद से वर्ष 2022-23 में 0-8.5 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी।
- केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती सीतारमण ने संसद में आर्थिक समीक्षा 2021-22 पेश की। आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार आने वाले वर्ष में निजी क्षेत्र में अधिक निवेश होगा, क्योंकि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने हेतु मदद के लिए वित्तीय व्यवस्था अच्छी स्थिति में है।
- वर्ष 2022-23 में इस वृद्धि का अनुमान इस मान्यता पर आधारित है कि अब महामारी संबंधित और आर्थिक बाधाएं नहीं आएंगी, म़ॉनसून सामान्य रहेगा, दुनिया के प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा वैश्विक तरलता की निकासी बड़े स्तर पर समझदारी के साथ होगी, तेल की कीमतें 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहेंगी और इस वर्ष वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं में तेजी से कमी आएगी।
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार उपरोक्त अनुमान की तुलना विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक की वर्ष 2022-23 के लिए जीडीपी वृद्धि में क्रमशः 7 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत के हालिया अनुमान से की जा सकती है।
- 25 जनवरी 2022 को जारी आईएमएफ के हालिया विश्व आर्थिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ) वृद्धि अनुमान के अनुसार, वर्ष 2021-22 और 2022-23 के लिए भारत की वास्तविक जीडीपी के 9 प्रतिशत की दर से और 2023-24 में 1 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया गया है।
- यह भारत को इन तीनों वर्ष में पूरी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में पेश करता है।
- पहले पूर्वानुमान के अनुसार आर्थिक समीक्षा 2021-22 बताया गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के 2021-22 में सही मायने में 2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करने का अनुमान है जो 2020-21 में 7.3 प्रतिशत थी। इससे पता चलता है कि समग्र आर्थिक गतिविधि महामारी के पूर्व स्तर की स्थिति को पार कर गई है।
- लगभग सभी संकेतक के अनुसार पहली तिमाही में दूसरी लहर के आर्थिक प्रभाव वर्ष 2020-21 में संपूर्ण लॉकडाउन चरण के दौरान के प्रभाव से काफी कम हैं, हालांकि संपूर्ण लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य क्षेत्र पर काफी अधिक प्रभाव दिखा था।

कृषि और उससे जुड़े क्षेत्र
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों पर महामारी का बहुत कम असर पड़ा है और इस क्षेत्र के वर्ष 2021-22 में 9 प्रतिशत की दर से वृद्धि दर्ज करने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष इसमें 3.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी।
- खरीफ तथा रबी फसलों के बुआई क्षेत्र और गेहूं तथा धान के उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी होती रही है। मौजूदा वर्ष में खरीफ मौसम में खाद्य उत्पादन में रिकॉर्ड 5 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान है।
- केंद्रीय पूल के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ वर्ष 2021-22 में खाद्यान्नों की खरीद अपनी बढ़ोतरी का रुझान लगातार बनाए हुए है। इससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय में वृद्धि हुई है।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कृषि क्षेत्र के इस बेहतरीन प्रदर्शन में सरकार की नीतियां काफी मददगार रही हैं, जिससे किसानों को महामारी संबंधी बाधाओं के बावजूद समय पर बीजों और उर्वरकों की आपूर्ति सुनिश्चित हुई।
- कृषि क्षेत्र को अच्छी मॉनसून बारिश से भी मदद मिली है, जो जल संचय स्थलों के 10 साल की औसत से अधिक स्तर के रूप में दिखता है।
- सर्वेक्षण के अनुसार उद्योग क्षेत्र में एक तीव्र बदलाव आया है और यह 2020-21 के 7 प्रतिशत के संकुचन से इस वित्त वर्ष में 11.8प्रतिशत के विस्तार में आ गया है। विनिर्माण, निर्माण एवं खनन उप क्षेत्रों में भी समान बदलाव आया।
- हालांकि उपयोगिता वर्ग में ज्यादा विचलन महसूस किया गया,क्योंकि आधारभूत सेवाओं जैसे बिजली, जल आपूर्ति राष्ट्रीय लॉकडाउन के समय भी बरकरार रही। जीवीए में उद्योगों की वर्तमान भागीदारी अनुमानित 2 प्रतिशत रही।
सेवा क्षेत्र
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार सेवा क्षेत्र महामारी से सर्वाधिक प्रभावित रहे। खासतौर से वह क्षेत्र जिनमें मानवीय संपर्क की जरूरत है। अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में इस क्षेत्र की प्रगति 2 प्रतिशत पर रहेगी,जबकि पिछले साल इसमें 8.4 प्रतिशत का संकुचन आया था।
- विभिन्न उप-क्षेत्रों में क्षमता प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है। वित्त/रियल स्टेट तथा सार्वजनिक प्रशासन क्षेत्र इस समय कोविड पूर्व स्तर से काफी उच्च स्तर पर आ गए हैं। लेकिन यात्रा,व्यापार और होटल जैसे क्षेत्र अभी भी पूरी तरह इससे उबर नहीं सके हैं।
- जहां सॉफ्टवेयर और सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी सेवाओं के निर्यात में उछाल दर्ज हुआ है वहीं पर्यटन के क्षेत्र में तीव्र गिरावट आई है।
कुल उपभोग
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार 2021-22 में कुल उपभोग अनुमानत: 0 प्रतिशत की दर से बढ़ा है और इसमें सरकारी उपभोग का पिछले वर्ष की ही तरह सबसे बड़ा योगदान है।
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार अनुमान है कि सरकार उपभोग 6 प्रतिशत की दर से मजबूती से बढ़ेगा और वह महामारी पूर्व के स्तर को पार कर जाएगा।
- निजी उपभोग में भी अनुमानत: महत्वपूर्ण सुधार आएगा और वह भी महामारी पूर्व के स्तर की तुलना में 97 प्रतिशत बढ़ेगा। इसके साथ ही यह टीकाकरण की तीव्र कवरेज और आर्थिक गतिविधियों के तेजी से सामान्य होने के कारण और भी तेजी से बढ़ेगा।
Also Read: भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि | Growth in Indian Economy |
सकल स्थायी पूंजी निर्माण
- सर्वेक्षण के अनुसार सकल स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) के पैमाने पर निवेश में 2021-22 में 15 प्रतिशत की मजबूत प्रगति होगी और यह महामारी पूर्व स्तर से पूरी तरह उबर जाएगा।
- कैपेक्स और अवसंरचना व्यय के जरिए सरकार की प्रगति की रफ्तार को तेज करने की नीति के चलते अर्थव्यवस्था में पूंजी निर्माण में तेजी आई है और इससे 2021-22 में जीडीपी में निवेश का अनुपात बढ़कर 6 प्रतिशत हो गया है,जो कि पिछले सात साल में सर्वोच्च है।
- हालांकि निजी निवेश रिकवरी अभी भी काफी निचले स्तर पर है फिर भी कई ऐसे संकेतक हैं जो बताते हैं कि भारत अब अधिक मजबूत निवेश की ओर अग्रसर है। एक स्थिर और स्वच्छ बैंकिंग क्षेत्र निजी निवेश को पर्याप्त सहयोग देने के लिए तैयार है।
- निर्यात और आयात मोर्चे पर,सर्वेक्षण कहता है कि भारत का माल एवं सेवा निर्यात 2021-22 में काफी हद तक बहुत मजबूत हो रहा है। 2021-22 के आठ महीनों में उत्पाद निर्यात, महामारी से संबद्ध बहुत सी वैश्विक आपूर्ति बाधाओं के बावजूद 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा रहा है।
कुल सेवा निर्यात
- कुल सेवा निर्यात में भी तीव्र उछाल आया है और यह उछाल व्यावसायिक और प्रबंधन सलाहकार सेवाओं,ऑडियो-विजुअल और संबद्ध सेवाओं, माल ढुलाई सेवाओं, दूर संचार, कंप्यूटर और सूचना सेवाओं के माध्यम से आया है।
- मांग के नजरिए से भारत के कुल निर्यात में 2021-22 में 5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है और यह महामारी पूर्व के स्तर को पार कर लेगा। आयात में भी घरेलू मांग बढने और आयातित कच्चे तेल तथा धातुओं की कीमत में वृद्धि के चलते काफी मजबूती आई है।
- आयात के 2021-22 में 4 प्रतिशत की वृद्धि हासिल करने का अनुमान है और यह भी महामारी पूर्व के स्तर को पार कर लेगा। परिणामस्वरूप भारत का निर्यात 2021-22 के पहले छह महीनों में नकारात्मक रहा है,जबकि 2020-21 की इसी अवधि में यह अतिरिक्त रहा था, लेकिन अनुमान है कि चालू खाता घाटा संभालने योग्य स्थिति में रहेगा।
भारत का भुगतान संतुलन
- इसके अलावा आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार वैश्विक महामारी से उत्पन्न सभी अवरोधों के बावजूद भारत का भुगतान संतुलन पिछले दो वर्षों के दौरान अधिशेष में बना रहा। इससे भारतीय रिजर्व बैंक को अपना विदेशी मुद्रा भंडार संचित रखने में मदद मिली।
- यह भंडार 31 दिसम्बर, 2021 को 634 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। यह आयात के 2 महीनों के समतुल्य और देश के बाह्य ऋण से अधिक है।
मुद्रा स्फीति
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार मुद्रा स्फीति उन्नत और उभरती हुई दोनों अर्थव्यवस्थाओं में ही दोबारा एक वैश्विक मुद्दे के रूप में उभरी है।
- ऊर्जा मूल्यों, गैर-खाद्य वस्तुओं, अन्य वस्तु मूल्यों, वैश्विक आपूर्ति श्रंखला के अवरोध और मालभाड़ा लागत में बढ़ोतरी होने से वैश्विक मुद्रा स्फीति में वर्ष के दौरान वृद्धि हुई।
- भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रा स्फीति वर्ष 2021-22 (अप्रैल-दिसम्बर) में 2 प्रतिशत पर कम रही। जबकि यह 2020-21 की इसी अवधि में 6.6 प्रतिशत थी। यह दिसम्बर, 2021 में 5.6 (वर्ष दर वर्ष) थी जो लक्ष्य के अनुसार सहन-योग्य ही है।
- वर्ष 2021-22 में खुदरा मुद्रा स्फीति में गिरावट खाद्य मुद्रा स्फीति कम होने के कारण हुई है। थोक मूल्य मुद्रा स्फीति (डब्ल्यूपीआई) हालांकि दो अंकों में चल रही है।
राजकोषीय नीति
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था के लिए राजकोषीय सहायता के साथ-साथ स्वास्थ्य सहायता के कारण राजकोषीय घाटा बढ़ा है।
- हालांकि 2021-22 में अभी तक सरकारी राजस्वों में पुनः मजबूती आयी है। अप्रैल-नवम्बर, 2021 के दौरान केन्द्र सरकार की राजस्व प्राप्तियों में 2 प्रतिशत (वर्ष दर वर्ष) की बढ़ोतरी हुई है जबकि अस्थायी आकड़ों की तुलना में 2021-22 के बजट अनुमानों में 9.6 प्रतिशत बढ़ोतरी की उम्मीद की गई थी।
- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों करों के संग्रह में भारी वृद्धि हुई है और जुलाई 2021 से सकल मासिक जीएसटी संग्रह लगातार एक लाख करोड़ से अधिक चल रहा है।
- इससे पता चलता है कि सतत राजस्व संग्रह और भारत सरकार की लक्षित व्यय नीति के कारण अप्रैल-नवम्बर, 2021 के लिए राजकोषीय घाटा बजट अनुमानों के 2 प्रतिशत पर सीमित रहा है जो पिछले दो वर्षों (अप्रैल-नवम्बर 2020 में बजट अनुमानों का 135.1 प्रतिशत और अप्रैल-नवम्बर 2019 में बजट अनुमानों का 114.8 प्रतिशत) की इसी अवधि के दौरान पहुंचे अनुपात का लगभग एक-तिहाई है।
वित्तीय क्षेत्र
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार वित्तीय क्षेत्र कठिन समय के दौरान हमेशा ही तनाव का संभावित क्षेत्र रहा है। हालांकि भारत के पूंजीगत बाजार ने वांछनीय रूप से अच्छा कार्य किया है और भारतीय कंपनियों को रिकार्ड जोखिम पूंजी जुटाने में मदद की है।
- सेंसेक्स और निफ्टी ने 18 अक्तूबर, 2021 को क्रमशः 61,766 और 18,477 के शिखर को छुआ है। अप्रैल-नवम्बर, 2021 में 75 आईपीओ इश्यू के माध्यम से 89,066 करोड़ रुपये जुटाए गए हैं जो पिछले दशक के किसी साल में जुटाई गई राशि से कहीं अधिक हैं।
- इसके अलावा बैंकिंग प्रणाली अच्छी तरह पूंजी से परिपूर्ण हैं और एनपीए में ढ़ांचागत रूप से गिरावट दिखाई दे रही है।
- सकल अनुत्पादक अग्रिम (जीएनपीए) अनुपात (यानी सकल अग्रिम के प्रतिशत रूप में जीएनपीए) तथा अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के शुद्ध अनुत्पादक अग्रिमों (एनएनपीए) का 2018-19 से कम होना जारी रहा।
- अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का जीएनपीए अनुपात सितंबर, 2020 के 5 प्रतिशत से घटकर सितंबर, 2021 के अंत में 6.9 प्रतिशत रह गया।
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार भारत की आर्थिक कार्य की एक और विशिष्टता मांग प्रबंधन पर पूर्व निर्भरता की जगह आपूर्ति पक्ष के सुधारों पर बल है।
- आपूर्ति पक्ष के सुधारों में अनेक क्षेत्रों को नियंत्रणमुक्त बनाना, प्रक्रियाओं को सरल बनाना, पूर्वव्यापी कर जैसे विषयों की समाप्ति, निजीकरण, उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन शामिल हैं।
- सरकार द्वारा पूंजी व्यय में अधिक वृद्धि को मांग और आपूर्ति दोनों के उत्तर के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि यह व्यय भविष्य की वृद्धि के लिए अवसंरचना क्षमता सृजन करता है।
Also Read: यूक्रेन पर रूस-अमेरिका में टकराव | Russia-US confrontation |
भारत की आपूर्ति क्षेत्र रणनीति के दो समान थीम हैः
- लचीलापन में सुधार तथा नवाचार जैसे सुधार ताकि कोविड के बाद के विश्व की दीर्घकालिक अनिश्चितता से निपटा जा सके। इसमें बाजार सुधार, अंतरिक्ष, ड्रोन, आकाशीय मैपिंग, व्यापार वित्त कारक, सरकारी खरीद, प्रक्रिया में सुधार तथा दूरसंचार सुधार, पूर्वव्यापी टैक्स की समाप्ति, निजीकरण तथा मुद्रीकरण, भौतिक अवसंरचना सृजन आदि।
- ऐसे सुधार जिसका उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था की अनुकूलता में सुधार लाना है। ऐसे सुधार जलवायु/पर्यावरण से संबंधित नीतियों से लेकर नल से जल आपूर्ति, शौचालय, बुनियादी आवास, गरीबों के लिए बीमा जैसी सामाजिक अवसंरचना तक हैं।
- आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत प्रमुख उद्योंगों को समर्थन, विदेश व्यापार समझौतों की पारस्परिकता पर ठोस बल आदि है।
- आर्थिक समीक्षा में जिस महत्वपूर्ण विषय की चर्चा की जाती रही है, वह है, ‘प्रक्रियागत सुधार।’
- नियंत्रण मुक्त किये जाने और प्रक्रियागत सुधारों के बीच अंतर किया जाना महत्वपूर्ण है।
- पहला, किसी गतिविधि विशेष में सरकार की भूमिका में कमी लाने अथवा उसे समाप्त करने से संबंधित है।
- इसके विपरीत दूसरा, ऐसी गतिविधियों की प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाने से संबंधित है, जिनमें सहायक अथवा नियंत्रक के रूप में सरकार की उपस्थिति आवश्यक है।
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार कोविड-19 महामारी के कारण पिछले दो वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बहुत कठिन रहे हैं। संक्रमण की लहरों, आपूर्ति श्रृंखला में रूकावटेंऔर हाल ही में वैश्विक मुद्रास्फीति ने विशेषतौर पर नीति निर्धारण के कार्य को चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
- इन चुनौतियों का सामना करते हुए भारत सरकार ने‘बार्बेल रणनीति’ अपनाई, जो समाज के कमजोर वर्गों और कारोबारी क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभावों के लिए सुरक्षा जाल का सम्मिश्रण है।
- इसके बाद अर्थव्यवस्था को संधारणीय दीर्घकालिक विस्तार के लिए अर्थव्यवस्था को तैयार करने के लिए मीडियम-टर्म डिमांड उत्पन्न करने तथा साथ ही साथ आपूर्ति संबंधी उपायों को प्रबलता से लागू करने के लिए अवसंरचना से संबंधित पूंजीगत व्यय में महत्वपूर्ण वृद्धि की गई। यह लचीला और विविध स्तरीय दृष्टिकोण आंशिक रूप से‘त्वरित’ फ्रेमवर्क पर आधारित है, जो फीडबैक-लूप्स का उपयोग और रियल टाइम डाटा की निगरानी करता है।
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 में रेखांकित किया गया है कि महामारी फैलने के बाद से विकास को सहारा देने और उसमें सहायता प्रदान करने के लिए मौद्रिक नीतितैयार की गई है, लेकिन उसे सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया गया है, ताकि अतिरिक्त नकदी को अगले कुछ वर्षों में कहीं और न लगा दिया जाए। इस सुरक्षा जाल का एक अन्य पहलू सामान्यत: अर्थव्यवस्था और विशेषतौर पर एमएसएमई की सहायता के लिए सरकारी प्रतिभूतियों का उपयोग है।
- पिछले दो वर्षों में सरकार ने उद्योग,सेवा, वैश्विक रूझानों, व्यापक स्थिरता, संकेतकों और सार्वजनिक तथा निजी स्रोतों दोनों की कई अन्य गतिविधियों सहित 80 उच्च आवृत्ति संकेतकों (हाई फ्रीक्वेंसी इंडीकेटर्स-एचएफआई) से लाभ उठाया है, ताकि अर्थव्यवस्था की स्थिति का वास्तविक आधार पर आकलन किया जा सके।
- इन एचएफआई ने भारत और दुनिया के ज्यादातर देशों में नीति निर्धारण की परम्परागत पद्धति – वाटरफॉल फ्रेमवर्क की पूर्व परिभाषित प्रतिक्रियाओं के स्थान पर नीति निर्माताओं को उभरती स्थितियों के मुताबिक कदम उठाने में सहायता की है।
- आर्थिक समीक्षा 2021-22 में इस बात की प्रबल आशा व्यक्त की गई है कि व्यापक आर्थिक स्थायित्व संकेतक यह इंगित कर रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2022-23 की चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तत्पर है और इसका एक कारण यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी विशिष्ट प्रतिक्रिया रणनीति के तहत अच्छी स्थिति में है।
आर्थिक समीक्षा 2021-22 की मुख्य बातें |
केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री ने संसद में आर्थिक समीक्षा 2021-22 पेश की। आर्थिक समीक्षा की मुख्य बातें इस प्रकार हैं :- |
अर्थव्यवस्था की स्थिति : |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार 2020-21 में 7.3 प्रतिशत की गिरावट के बाद 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 9.3 प्रतिशत (पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार) बढ़ने का अनुमान है। |
o 2022-23 में जीडीपी की विकास दर 8 – 8.5 प्रतिशत रह सकती है। |
o आर्थिक पुनरुद्धार को समर्थन देने के लिए आने वाले साल में वित्तीय प्रणाली के साथ निजी क्षेत्र के निवेश में बढ़ोतरी की संभावना है। |
o 2022-23 के लिए यह अनुमान विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक की क्रमश: 8.7 और 7.5 प्रतिशत रियल टर्म जीडीपी विकास की संभावना के अनुरूप है। |
o आईएमएफ के ताजा विश्व आर्थिक परिदृश्य अनुमान के तहत, 2021-22 और 2022-23 में भारत की रियल जीडीपी विकास दर 9 प्रतिशत और 2023-24 में 7.1 प्रतिशत रहने की संभावना है, जिससे भारत अगले तीन साल तक दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था बनी रहेगी। |
o 2021-22 में कृषि और संबंधित क्षेत्रों के 3.9 प्रतिशत; उद्योग के 11.8 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र के 8.2 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। |
o मांग की बात करें तो 2021-22 में खपत 7.0 प्रतिशत, सकल स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) 15 प्रतिशत, निर्यात 16.5 प्रतिशत और आयात 29.4 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। |
o बृहद आर्थिक स्थायित्व संकेतकों से पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2022-23 की चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है। |
o ऊंचे विदेशी मुद्रा भंडार, टिकाऊ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निर्यात में वृद्धि के संयोजन से 2022-23 में वैश्विक स्तर पर तरलता में संभावित कमी के खिलाफ पर्याप्त समर्थन देने में सहायता मिलेगी। |
o 2020-21 में लागू पूर्ण लॉकडाउन की तुलना में ‘दूसरी लहर’ का आर्थिक प्रभाव कम रहा, हालांकि इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव काफी गंभीर था। |
o भारत सरकार की विशेष प्रतिक्रिया में समाज के कमजोर तबकों और कारोबारी क्षेत्र को प्रभावित होने से बचाने के लिए सुरक्षा जाल तैयार करना, विकास दर को गति देने के लिए पूंजीगत व्यय में खासी बढ़ोतरी और टिकाऊ दीर्घकालिक विस्तार के लिए आपूर्ति के क्षेत्र में सुधार शामिल रहे। |
o सरकार की लचीली और बहुस्तरीय प्रतिक्रिया आंशिक रूप से ‘त्वरित’ रूपरेखा पर आधारित है, जिसमें बेहद अनिश्चिता के माहौल में खामियों को दूर करने पर जोर दिया गया और 80 हाई फ्रीक्वेंसी इंडीकेटर्स (एचएफआई) का इस्तेमाल किया गया। |
राजकोषीय मजबूती : |
o 2021-22 बजट अनुमान (2020-21 के अनंतिम आंकड़ों की तुलना में) 9.6 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि की तुलना में केन्द्र सरकार की राजस्व प्राप्तियां (अप्रैल-नवम्बर, 2021) 67.2 प्रतिशत तक बढ़ गईं। |
o सालाना आधार पर अप्रैल-नवम्बर, 2021 के दौरान सकल कर-राजस्व में 50 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई। यह 2019-20 के महामारी से पहले के स्तरों की तुलना में भी बेहतर प्रदर्शन है। |
o अप्रैल-नवम्बर, 2021 के दौरान बुनियादी ढांचे से जुड़े क्षेत्रों पर जोर के साथ पूंजी व्यय में सालाना आधार पर 13.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। |
o टिकाऊ राजस्व संग्रह और एक लक्षित व्यय नीति से अप्रैल-नवम्बर, 2021 के दौरान राजकोषीय घाटे को बजट अनुमान के 46.2 प्रतिशत के स्तर पर सीमित रखने में सफलता मिली। |
o कोविड-19 के चलते उधारी बढ़ने के साथ 2020-21 में केन्द्र सरकार का कर्ज बढ़कर जीडीपी का 59.3 प्रतिशत हो गया, जो 2019-20 में जीडीपी के 49.1 प्रतिशत के स्तर पर था। हालांकि अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ इसमें गिरावट आने का अनुमान है। |
बाह्य क्षेत्र: |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार भारत के वाणिज्यिक निर्यात एवं आयात ने दमदार वापसी की और चालू वित्त वर्ष के दौरान यह कोविड से पहले के स्तरों से ज्यादा हो गया। |
o पर्यटन से कमजोर राजस्व के बावजूद प्राप्तियों और भुगतान के महामारी से पहले के स्तरों पर पहुंचने के साथ सकल सेवाओं में अच्छी बढ़ोतरी दर्ज की गई। |
o विदेशी निवेश में निरंतर बढ़ोतरी, सकल बाह्य वाणिज्यिक उधारी में बढ़ोतरी, बैंकिंग पूंजी में सुधार और अतिरिक्त विशेष निकासी अधिकार (एसडीआर) आवंटन के दम पर 2021-22 की पहली छमाही में सकल पूंजी प्रवाह बढ़कर 65.6 बिलियन डॉलर हो गया। |
o सितम्बर 2021 के अंत तक एक साल पहले के 556.8 बिलियन डॉलर की तुलना में भारत का बाह्य कर्ज बढ़कर 593.1 बिलियन डॉलर हो गया। इससे आईएमएफ द्वारा अतिरिक्त एसडीआर आवंटन के साथ ही ज्यादा वाणिज्यिक उधारी के संकेत मिलते हैं। |
o 2021-22 की पहली छमाही में विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर से ऊपर निकल गया और यह 31 दिसम्बर, 2021 तक 633.6 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया। |
o नवम्बर, 2021 के अंत तक चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद भारत चौथा सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार वाला देश था। |
मौद्रिक प्रबंधन तथा वित्तीय मध्यस्थताः |
|
|
|
वाणिज्यिक बैंकिंग प्रणाली द्वारा अच्छी तरह महामारी के आर्थिक झटके को दूर कर दिया हैः |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार 2021-22 में वार्षिक आधार पर ऋण वृद्धि अप्रैल, 2021 के 5.3 प्रतिशत से बढ़कर 31 दिसंबर, 2021 तक 9.2 प्रतिशत हुई। |
o अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का कुल अनुत्पादक अग्रिम अनुपात 2017-18 अंत के 11.2 प्रतिशत से घटकर सितंबर, 2021 के अंत में 6.9 प्रतिशत हो गया। |
o समान अवधि के दौरान शुद्ध अनुत्पादक अग्रिम अनुपात 6 प्रतिशत से घटकर 2.2 प्रतिशत हो गया |
o अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का पूंजी-जोखिम भारांक परिसंपत्ति अनुपात 2013-14 के 13 प्रतिशत से बढ़ते हुए सितंबर, 2021 के अंत में 16.54 प्रतिशत रहा। |
o सितंबर, 2021 में समाप्त होने वाली अवधि के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए परिसंपत्तियों पर रिटर्न और इक्विविटी पर रिटर्न सकारात्मक बना रहा है। |
पूंजी बाजारों के लिए असाधारण वर्षः |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार अप्रैल-नवंबर, 2021 में 75 प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) से 89,066 करोड़ रुपये उगाहे गए, जो पिछले एक दशक के किसी भी वर्ष में सबसे अधिक है। |
o 18 अक्टूबर, 2021 को सेंसेक्स और निफ्टी 61,766 तथा 18,477 की ऊंचाई पर पहुंचे। |
o प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्था में भारतीय बाजारों ने अप्रैल-दिसंबर, 2021 में समकक्ष बाजारों से अच्छा प्रदर्शन किया। |
मूल्य तथा मुद्रास्फीतिः |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार औसत शीर्ष सीपीआई-संयुक्त मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में सुधरकर 5.2 प्रतिशत हुई, जबकि 2020-21 की इसी अवधि में यह 6.6 प्रतिशत थी। |
o खुदरा स्फीति में गिरावट खाद्य मुद्रास्फीति में सुधार के कारण आई। |
o 2021-22 (अप्रैल से दिसंबर) में औसत खाद्य मुद्रास्फीति 2.9 प्रतिशत के निम्न स्तर पर रही, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 9.1 प्रतिशत थी। |
o वर्ष के दौरान प्रभावी आपूर्ति प्रबंधन ने अधिकतर आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित रखा। |
o दालों और खाद्य तेलों में मूल्य वृद्धि नियंत्रित करने के लिए सक्रिय कदम उठाए गए। |
o सैंट्रल एक्साइज में कमी तथा बाद में अधिकतर राज्यों द्वारा वैल्यू एडेट टैक्स में कटौतियों से पेट्रोल तथा डीजल की कीमतों में सुधार लाने में मदद मिली। |
o थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित थोक मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान 12.5 प्रतिशत बढ़ी। |
ऐसा निम्नलिखित कारणों से हुआः |
|
|
|
|
सीपीआई-सी तथा डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति के बीच अंतरः |
|
|
इस अंतर की व्याख्या निम्नलिखित कारकों द्वारा की जा सकती हैः |
|
|
|
|
|
|
o डब्ल्यूपीआई में बेस प्रभाव की क्रमिक समाप्ति से सीपीआई-सी तथा डब्ल्यूपीआई में अंतर कम होने की आशा की जाती है। |
सतत विकास तथ जलवायु परिवर्तनः |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार नीति आयोग एसडीजी इंडिया सूचकांक तथा डैशबोर्ड पर भारत का समग्र स्कोर 2020-21 में सुधरकर 66 हो गया, जबकि यह 2019-20 में 60 तथा 2018-19 में 57 था। |
o फ्रंट रनर्स (65-99 स्कोर) की संख्या 2020-21 में 22 राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में बढ़ी, जो 2019-20 में 10 थी। |
o नीति आयोग पूर्वोत्तर क्षेत्र जिला एसडीजी सूचकांक 2021-22 में पूर्वोत्तर भारत में 64 जिले फ्रंट रनर्स तथा 39 जिले परफॉर्मर रहे। |
o भारत, विश्व में दसवां सबसे बड़ा वन क्षेत्र वाला देश है। |
o 2010 से 2020 के दौरान वन क्षेत्र वृद्धि के मामले में 2020 में भारत का विश्व में तीसरा स्थान रहा। |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार 2020 में भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र में कवर किए गए वन 24 प्रतिशत रहे यानी विश्व के कुल वन क्षेत्र का 2 प्रतिशत। |
o अगस्त, 2021 में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2021 अधिसूचित किए गए, जिसका उद्देश्य 2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक को समाप्त करना है। |
o प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए विस्तारित उत्पादक दायित्व पर प्रारूप विनियमन अधिसूचित किया गया। |
o गंगा तथा उसकी सहायक नदियों के तटों पर अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (जीपीआई) की अनुपालन स्थिति 2017 के 39 प्रतिशत से सुधर कर 2020 में 81 प्रतिशत हो गई। |
o उत्सर्जित अपशिष्ट में 2017 के 349.13 मिलियन लीटर दैनिक (एमएलडी) से 2020 में 280.20 एमएलडी की कमी आई। |
o प्रधानमंत्री ने नवंबर, 2021 में ग्लास्गो में आयोजित पक्षों के 26वें सम्मेलन (सीओपी-26) के राष्ट्रीय वक्तव्य के हिस्से के रूप में उत्सर्जन मे कमी लाने के लिए 2030 तक प्राप्त किए जाने वाले महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की घोषणा की। |
o एक शब्द ‘लाइफ’ (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) प्रारंभ करने की आवश्यकता महसूस करते हुए बिना सोचे-समझे तथा विनाशकारी खपत के बदले सोचपूर्ण तथा जानबूझकर उपयोग करने का आग्रह किया गया है। |
कृषि तथा खाद्य प्रबंधनः |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार पिछले दो वर्षों में कृषि क्षेत्र में विकास देखा गया। देश के कुल मूल्यवर्धन (जीवीए) में महत्वपूर्ण 18.8 प्रतिशत (2021-22) की वृद्धि हुई, इस तरह 2020-21 में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 2021-22 में 3.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। |
o न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नीति का उपयोग फसल विविधिकरण को प्रोत्साहित करने के लिए किया जा रहा है। |
o 2014 की एसएएस रिपोर्ट की तुलना में नवीनतम सिचुएशन असेसमेंट सर्वे (एसएएस) में फसल उत्पादन से शुद्ध प्राप्तियों में 22.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। |
o पशुपालन, डेयरी तथा मछलीपालन सहित संबंधित क्षेत्र तेजी से उच्च वृद्धि वाले क्षेत्र के रूप में तथा कृषि क्षेत्र में सम्पूर्ण वृद्धि के प्रमुख प्रेरक के रूप में उभर रहे हैं। |
o 2019-20 में समाप्त होने वाले पिछले पांच वर्षों में पशुधन क्षेत्र 8.15 प्रतिशत के सीएजीआर पर बढ़ा रहा। |
o कृषि परिवारों के विभिन्न समूहों में यह स्थाई आय का साधन रहा है और ऐसे उन परिवारों की औसत मासिक आय का यह लगभग 15 प्रतिशत है। |
o अवसंरचना विकास, रियायती परिवहन तथा माइक्रो खाद्य उद्यमों के औपचारिकरण के लिए समर्थन जैसे विभिन्न उपायों के माध्यम से सरकार खाद्य प्रसंस्करण को सहायता देती है। |
o भारत विश्व का सबसे बड़ा खाद्य प्रबंधन कार्यक्रम चलाता है। सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) जैसी योजनाओं के माध्यम से खाद्य सुरक्षा नेटवर्क कवरेज का और अधिक विस्तार किया है। |
उद्योग और बुनियादी ढ़ांचाः |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार अप्रैल-नवम्बर, 2021 के दौरान औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक (आईआईपी) बढ़कर 17.4 प्रतिशत (वर्ष दर वर्ष) हो गया। यह अप्रैल-नवम्बर, 2020 में (-)15.3 प्रतिशत था। |
o भारतीय रेलवे के लिए पूंजीगत व्यय 2009-2014 के दौरान 45,980 करोड़ रुपये के वार्षिक औसत से बढ़कर 2020-21 में 155,181 करोड़ रुपये हो गया और 2021-22 में इसे 215,058 करोड़ रुपये तक बढ़ाने का बजट रखा गया है, इस प्रकार इसमें 2014 के स्तर की तुलना में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है। |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार वर्ष 2020-21 में प्रतिदिन सड़क निर्माण की सीमा को बढ़ाकर 36.5 किलोमीटर प्रतिदिन कर दिया गया है जो 2019-20 में 28 किलोमीटर प्रतिदिन थी, इस प्रकार इसमें 30.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। |
o बड़े कॉरपोरेट के बिक्री अनुपात से निवल लाभ वर्ष 2021-22 की जुलाई-सितम्बर तिमाही में महामारी के बावजूद 10.6 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया है। (आरबीआई अध्ययन) |
o उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के शुभारंभ से लेनदेन लागत घटाने और व्यापार को आसान बनाने के कार्य में सुधार लाने के उपायों के साथ-साथ डिजिटल और वस्तुगत दोनों बुनियादी ढांचे को बढ़ावा मिला है, जिससे रिकवरी की गति में मदद मिलेगी। |
सेवाएं: |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार जीवीए की सेवाओं ने वर्ष 2021-22 की जुलाई-सितम्बर तिमाही में पूर्व-महामारी स्तर को पार कर लिया है। व्यापार, परिवहन आदि जैसे कॉन्टेक्ट इंटेन्सिव सेक्टरों का जीवीए अभी भी पूर्व-महामारी स्तर से नीचे बना हुआ है। |
o समग्र सेवा क्षेत्र जीवीए में 2021-22 में 8.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार अप्रैल-दिसम्बर, 2021 के दौरान रेल मालभाड़ा ने पूर्व-महामारी स्तर को पार कर लिया है जबकि हवाई मालभाड़ा और बंदरगाह यातायात लगभग अपने पूर्व-महामारी स्तरों तक पहुंच गये हैं। हवाई और रेल यात्री यातायात में धीर-धीरे वृद्धि हो रही है जो यह दर्शाता है कि महामारी की पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर का प्रभाव कहीं अधिक कम था। |
o वर्ष 2021-22 की पहली छमाही के दौरान सेवा क्षेत्र ने 16.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त किया जो भारत में कुल एफडीआई प्रवाह का लगभग 54 प्रतिशत है। |
o आईटी-बीपीएम सेवा राजस्व 2020-21 में 194 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया। इस अवधि के दौरान इस क्षेत्र में 1.38 लाख कर्मचारी शामिल किए गए। |
o प्रमुख सरकारी सुधारों में आईटी-बीपीओ क्षेत्र में टेलिकॉम विनियमों को हटाना और निजी क्षेत्र के दिग्गजों के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलना शामिल है। |
o सेवा निर्यात ने 2020-21 की जनवरी-मार्च तिमाही में पूर्व-महामारी स्तर को पार कर लिया और इसमें 2021-22 की पहली छमाही में 21.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सॉफ्टवेयर और आईटी सेवा निर्यात के लिए वैश्विक मांग से इसमें मजबूती आई है। |
o भारत अमेरिका और चीन के बाद विश्व में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम बन गया है। नये मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप्स की संख्या 2021-22 में बढ़कर 14 हजार से अधिक हो गई है जो 2016-17 में केवल 735 थी। |
o 44 भारतीय स्टार्ट-अप्स ने 2021 में यूनिकॉर्न दर्जा हासिल किया इससे यूनिकॉर्न स्टार्ट-अप्स की कुल संख्या 83 हो गई है और इनमें से अधिकांश सेवा क्षेत्र में हैं। |
सामाजिक बुनियादी ढ़ांचा और रोजगारः |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार 16 जनवरी, 2022 तक कोविड-19 टीके की 157.94 करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं। इसमें 91.39 करोड़ पहली खुराक और 66.05 करोड़ दूसरी खुराक शामिल हैं। |
o अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान से रोजगार सूचकांक वर्ष 2020-21 की अंतिम तिमाही के दौरान वापस पूर्व-महामारी स्तर पर आ गए हैं। |
o मार्च, 2021 तक प्राप्त तिमाही आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएफएलएस) आंकड़ों के अनुसार महामारी के कारण प्रभावित शहरी क्षेत्र में रोजगार लगभग पूर्व महामारी स्तर तक वापस आ गये हैं। |
o कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) आंकड़ों के अनुसार दूसरी कोविड लहर के दौरान रोजगारों का औपचारीकरण जारी रहा। कोविड की पहली लहर की तुलना में रोजगारों के औपचारीकरण पर कोविड का प्रतिकूल प्रभाव कम रहा है। |
o सामाजिक सेवाओं (स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य) पर जीडीपी के अनुपात के रूप में केन्द्र और राज्यों का व्यय जो 2014-15 में 6.2 प्रतिशत था 2021-22 (बजट अनुमान) में बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गया। |
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 के अनुसार: |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2019-21 में घटकर 2 हो गई जो 2015-16 में 2.2 थी। |
o शिशु मृत्यु दर (आईएमआर), पांच साल से कम शिशुओं की मृत्यु दर में कमी हुई है और अस्पतालों/प्रसव केन्द्रों में शिशुओं के जन्म में 2015-16 की तुलना में 2019-21 में सुधार हुआ हैं। |
o जल जीवन मिशन के तहत 83 जिले ‘हर घर जल’, जिले बन गए हैं। |
o आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में असंगठित श्रम के लिए बफर उपलब्ध कराने हेतु महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमएनआरईजीएस) के लिए निधियों का अधिक आवंटन। |
Also Read: ज़िला सुशासन सूचकांक- 2021 | District Good Governance Index |