सांवेगिक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence)
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता (Emotion intelligence) बुद्धि (समझ) के सम्प्रत्यय को उसके बौद्धिक क्षेत्र से अधिक विस्तार देता है और संवेगो (Emotions) को भी बुद्धि के अंतर्गत सम्मिलित करता है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता का विकास सामान्य बुद्धि की भारतीय परंपरा की अवधारणा से निर्मित हुआ है। सांवेगिक बुद्धिमत्ता अनेक कौशलों जैसे अपने तथा दूसरे व्यक्तियों के संवेगों का परिशुद्ध मूल्यांकन, प्रकटीकरण तथा संवेगों का नियमन आदि का एक समुच्चय है। यह बुद्धि का भावनात्मक पक्ष होता है।
- भावना का शब्दिक अर्थ ‘गति’ से है। भावना हमें आंतरिक रूप से हिला देती है। गतिशीलता का अनुभव हमें मनौवैज्ञानिक परिवर्तन के कारण होता है, जहां खुशनुमा अनुभव होता है। यहां मनोवैज्ञानिक से तात्पर्य है, शारीरिक अंतः क्रिया में परिवर्तन।
- तकनीकी दृष्टिकोण से हम भावना को निम्न रूप से परिभाषित करते है। यह एक जटिल प्रक्रिया है, जहां निम्न परिवर्तन देखने को मिलते है। शारीरिक अंतः क्रिया संज्ञानात्मक परिवर्त्तन या प्रक्रिया, स्वभाव एवं अभिव्यक्ति में, हाव-भाव इत्यादि में ऐसा परिवर्तन जो विशिष्ट परिस्थिति में देखने को मिलता है।
- ये प्रतिक्रियाएं व्यक्ति विशेष में भिन्न-भिन्न होती हैः- ‘उदाहरण क्रोध, हर्ष इत्यदि’। डार्विन के अनुसार भावना का संबंध अनुकूलन एवं संसार में टिके रहने से है।
भावना के दो आधार हैं-

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1. शारीरिक क्रिया विधि (Physiological Basic)
2. संज्ञानात्मक विधि (Cognitive Basic)
शारीरिक क्रिया विधि
- भावना का स्पष्ट प्रभाव तंत्रिका तंत्र पर पड़ता है। भावना के समय शरीर के अन्दर रासायनिक परिवर्तन देखने को मिलता है। पॉलीग्राफ परीक्षण ऊपर दिए गए सिद्धांत पर आधारित है।
- इस जांच में भावनात्मक परिस्थिति में होने वाले विद्युत सिग्नल में हुए परिवर्तन केा माप लिया जाता है। लाईडिटेक्शन टेस्ट इसी पर आधारित है।
- परीक्षण में व्यक्ति से एक या अनेक उदासीन प्रश्न पूछे जाते है, इसके बाद वैसे प्रश्न पूछे जातें है, जिनका संबंध अपराध से हो। दोनों परिस्थिति में भिन्न-भिन्न प्रकार का विद्युत सिग्नल प्राप्त होता है। इसके बाद परिणाम को संबंधित कर लिया जाता है।
संज्ञानात्मक आधार
- संज्ञानात्मकता अनुभूति, एक मानसिक प्रक्रिया जिसके तहत मस्तिष्क किसी विषय वस्तु के प्रति विशिष्ट जानकारी प्राप्त करता है। निर्णय क्षमता में इसकी भूमिका है।
- भावनात्मक स्थिति में शारीरिक क्रिया विधि में उछाल आ जाता है। भावनात्मक स्थिति में यह केन्द्रीय भूमिका में रहता है। फिर भी इससे हमें भिन्न-भिन्न भावनात्मक स्थिति की जानकारी नहीं मिलती है। संभवतः एक तरह का शारीरिक परिवर्तन हमें अलग-अलग भावनात्मक स्थिति से मिलता है।
- प्रेम या क्रोध दोनों परिस्थिति में हमें एक समान शारीरिक परिवर्तन देखने को मिलता है। भावना तब जागती है, जब परिस्थितियों का कोई अर्थ हमारे लिए हो। इससे स्पष्ट है कि भावना निम्न से व्युत्पन्न होती है –
- शारीरिक क्रिया परिवर्तन।
- शारीरिक क्रिया परिवर्तन पर चिन्ह लगने के कारण।
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भावनात्मक समझ किसे कहते हैं?
- किसी विषय वस्तु के बारे में ग्रहण क्षमता, सोचना, समझना इत्यादि बुद्धिमत्ता कहलाता है। भावनात्मक समझ की परिकल्पना बुद्धिमत्ता की परिकल्पना को और व्यापक बना देता है, जहां बुद्धिमत्ता के अर्न्तगत भावना को भी समाहित कर लिया जाता है।
- भावनात्मक समझ एक विशेष प्रकार का हुनर है, जहां भावनाओं का उचित उल्लेख अभिव्यक्ति एवं नियंत्रण में देखा जाता है। यह भावना का अनुभव वाला हिस्सा है।
- ऐसा भी देखा गया है कि जिन लोगों का बुद्धिमत्ता स्तर (I.Q.) ज्यादा होता है वे भी कई बार सफल नहीं होते है। इसलिए इस क्षेत्र में एक नई परिकल्पना सामने आयी जहां बुद्धिमता को भावना के साथ जोड दिया गया। इसके उपरान्त अब भावनात्मक समझ की परिकल्पना सामने आयी। अब देखा जा रहा है कि जिनका भावानात्मक समझ अधिक है वे ज्यादा सफल हैं।
भावनात्मक समझ वाले व्यक्तियों की सामान्य विशेषताएं
इस प्रतिमान के अनुसार भावनात्मक समझ के निम्न विशेषताएं होते है-
- स्वयं सक्रियकरण: इस क्षमता के तहत व्यक्ति अपनी भावना, मजबूती, कमजोरी, मूल्य लक्ष्य आदि को जानता है।
- स्वयं नियमीकरण: इसके अंतर्गत व्यक्ति अपनी विनाशकारी भावनाओं केा नियंत्रित करता है और उसे सही दिशा में निर्देशित करता है और बदली हुई परिस्थिति में स्वयं को संतुलित करता है।
- सामाजिक कौशल: व्यक्तिगत संबंधों का प्रबंधन इस प्रकार हो कि व्यक्तिगत संबंधों के प्रबंधन से निकला परिणाम उपयोगी हो।
- समानुभूति: निर्णय लेते समय दूसरे लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखना।
- अभिप्रेरणा: यह आंतरिक आवेग है जो हमें सफलता के लिए प्रेरित करती है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता को आजकल प्रभावी प्रशासन तथा उत्तम शासन-प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक माना जा रहा है। आज के आधुनिक दौर में सांवेगिक बुद्धिमत्ता जीवन में सफलता और उससे उत्पन्न प्रसन्नता के लिए अभिप्राय हो गयी है।
- सुकरात के काल से ही यह शब्द प्रचलन में है, उनके शब्दों में ‘अपने आप या स्वयं को पहचानों’ (To Know Your Self) सदियों पूर्व के सुकरात के दर्शन जिसको औपचारिक रूप से हम सामाजिक और सांवेगिक शिक्षा के नाम से जानते है और इस प्रक्रिया से हम उच्च सांवेगिक बुद्धिमत्ता प्राप्त कर सकते है।
- डार्विन के प्रारंभिक कार्यों, जिसमें सांवेगिक बुद्धिमत्ता के आधार के रूप को देखा जा सकता है, वह उसके अस्तित्व एवं अनुकूलन के भावनात्मक अभिव्यक्ति के रूप में प्रकट होती है।
- 90 के दशक में यद्यपि बुद्धि की पांरपरिक परिभाषा के संज्ञानात्मक पहलु जैसे- याद्दाश्त, समस्या समाधान पर ही केन्द्रित थे तथा साथ ही साथ बौद्धिकता के क्षेत्र के उच्च विख्यात शोधकर्ताओं ने बुद्धि के संज्ञानात्मक पहलु के ईतर समझने और व्याख्या करने का प्रयास किया।
- थार्नडाइक (1920) ने सर्वप्रथम लोगों को समझने और प्रबंधन हेतु सामाजिक बुद्धि के शब्द का प्रयोग किया। थानेडाइक ने सामाजिक बुद्धि के सम्प्रत्य को विकसित किया और सांवेगिक बुद्धिमत्ता को परिभाषित करते हुए कहा कि महिला-पुरूष, बालक-बालिका को समझने एवं प्रबंधन की योग्यता तथा मानव व्यवहार के बुद्धिमतापूर्ण व्यवहार को सामाजिक बुद्धि कहा जाता है।
सांवेगिक बुद्धिमता (Emotion intelligence) का शासन-प्रशासन में उपयोगिता:
- एक प्रशासक के रूप में सफल होने के लिए उसका भावुक रूप से बुद्धिमान होना अत्यंत आवश्यक है। (उदाहरणस्वरूप एक ऐसा नेता जो विपरीत परिस्थितियों में अपना धैर्य नहीं खोता और शांतचित होकर समस्या का समाधान खोजता है, उस नेता की तुलना में ज्यादा सफल होता है जो आपा खोकर अपने कार्यकर्त्ताओं पर चिल्लाने लगता है।)
मुख्यरूप से 3 तत्व हैं जो बतातें है कि प्रशासक भावनात्मक रूप से बुद्धिमान है या नहीं-
खुद को जानना (Self Awarness)
- अगर आप (प्रशासक) अपने विषय में जानते हैं और यह महसूस कर सकते हैं कि आपकी भावनाएं और उसके द्वारा किए गए कार्य किस प्रकार आपके आस-पास के लोगों पर प्रभाव डालते है तो आपको अपनी क्षमताओं और कमजोरियों का सही आकंलन है इसका तात्पर्य है कि आप में मानवता है।
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स्वयं सक्रियकरण का विकास कैसे?
- व्यक्तिगत डायरी (journal) रखे: व्यक्तिगत डायरी अपने आपको जानने में काफी सहायक होगी। प्रतिदिन अपने विषय में अगर आप लिखते हैं तो अपने विषय में जानने में यह काफी मददगार होगी।
- गुस्से पर नियंत्रण (शांत रहें): जब आपको गुस्सा या ऐसे ही विचार आते हैं तो आप तुरंत प्रतिक्रिया करने के बजाए कुछ देर रूकें और सोचे कि ऐसा क्यूं हो रहा है। हमेशा यह ध्यान रखें कि परिस्थितियां चाहे कैसे भी हो ये यह निर्णय करना है कि इसका जवाब किस रूप में दे।
आत्म नियंत्रण (Self Regulation)
- वैसे प्रशासक जो अपने ऊपर नियंत्रण रखते है वो शायद ही कभी किसी पर भौतिक रूप से प्रहार करते हैं और जल्दी में या भावनाओं में बहकर निर्णय लेने वाले है। ऐसे प्रशासक अपने नैतिक मूल्यों के साथ भी समझौता नहीं करते हैं। आत्म नियंत्रण एक प्रशासक के व्यक्तिगत उत्तरदायित्व व व्यवहार को भी नियंत्रित करता है।
आत्म नियंत्रण की क्षमता कैसे बढ़ाएं?
- अपना मूल्य जाने: आपको अगर यह पता है कि आप किसी परिस्थिति में समझौता नहीं करेंगे। वो कौन से मूल्य हैं जो आपके लिए अति आवश्यक हैं। इसके लिए कुछ समय नैतिक आचार-संहिता का स्वपरीक्षण करने में बिताए। इस प्रकार अगर आप यह जान जाएगें कि आपके लिए सबसे जरूरी क्या है तो कोई भी नैतिक निर्णय लेने से पहले आपको सोचना नहीं होगा और आप तुरंत सही निर्णय पर पहुंच जाएंगे।
खुद को जिम्मेदार बनाएं:
- अपनी गलतियों को स्वीकार करना सीखें और दूसरों को दोष न दें। गलतियों से उत्पन्न होने वाली परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो, उसका सामना करने को तैयार रहे। इससे रात में नींद अच्छी आएंगी और ऑफिस में आपके सह-कर्मचारी आपका सम्मान करेंगे।
शांत रहने का अभ्यास करें:
- अगली बार जब आप चुनौतिपूर्ण परिस्थितियों में हों तब सोच-समझकर निर्णय लें व दूसरों पर चिल्लाकर अपनी झुंझलाहट न दूर करें। गहरी सांस ले व अपने-आप को शांत करें। साथ ही जो नाकरात्मक ख्याल आपके मन में आए उसे निकालकर फेंक दें। मन से निकालने के लिए कागज पर लिखकर फेंक दें। अपने सहकर्मियों पर चिल्लाने के बजाए यह बेहतर है। सबसे जरूरी है कि विपरीत परिस्थितियों में भी इसकी सहायता से निर्णय ले।
प्रोत्साहन (Motivation)
- आत्मप्रेरित प्रशासक हमेशा अपने लक्ष्य की तरफ कार्य करता है और इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसके पास उच्च आदर्श होते है।
आत्म-प्रोत्साहन का विकास कैसे करें?
- इस बात का पुनः परीक्षण करके कि आप यह कार्य कर रहें हैं- यह भूलना आसान है कि आप अपने कैरियर से क्यों प्रेम करते है।
- अतः कुछ समय ले याद करें कि आपको यह नौकरी क्यों चाहिए थी। अगर अपने वर्तमान भूमिका से आप खुश नहीं है और यह याद करने में मुश्किल हो रही है कि आपको यह नौकरी क्यों चाहिए थी तो हमेशा समस्या की जड़ तक जाने का प्रयास करें और नए तरीके से देखें। तय करें कि आपके नए लक्ष्य ऊर्जापूर्ण होने चाहिए।
अपनी क्षमता पहचाने
- यह निश्चित करें कि आप नेतृत्व करने के लिए प्रेरित है, अगर और प्रेरणा की आवश्यकता है तो उन विचारों तक पहुंचने का प्रयास करें जो आपको और प्रेरित कर सकें।
हमेशा आशान्वित रहें और अच्छाई की खोज करें-
- आत्मप्रेरित व्यक्ति साधारणतया आशापूर्ण होते हैं चाहे परिस्थिति कैसी भी क्यों न हो। इस तरह की क्षमता विकसित करने में समय भले ही लगे, परंतु लगातार प्रयास करने से यह संभव है। हर असफलता से अच्छी चीज सीखने का प्रयास करें, भले ही यह सीख छोटी हो।
सामाजिक गुण
- वैसे प्रशासक जो भावनात्मक समझ के इस तत्व में निपुण होते हैं वे अच्छे संप्रेषणकर्ता होते हैं। वह बुरी खबरों को भी उसी प्रकार सुनते है, जैसे अच्छी खबरों को।
- किसी भी परिस्थिति में अपने सहकर्मियों की सहायता प्रदान कर लेते हैं और सभी चुनौतियों का सामना और विवादों का समाधान निपुणता से करते हैं। वे चीजों को उसी प्रकार स्वीकार नहीं करते जैसा कि वे दिखते हैं, बल्कि उसका सकारात्मक रूप से समाधान निकालते हैं। वे केवल सहकर्मियों से ही काम करवाकर संतुष्ट नहीं हो जाते, बल्कि अपने व्यवहार से उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
सामाजिक गुण के विकास से प्रशासनिक गुण का निर्माण कैसे करें?
- मतभेद का निपटारा सीखें: प्रशासक को यह आवश्यक रूप से जानना चाहिए कि अपने सहकर्मियों, ग्राहकों इत्यादि के मध्य होने वाले मतभेद को कैसे दूर किया जाए। मतभेद दूर करने की क्षमता होना एक प्रशासक के लिए आवश्यक है।
- संवाद संप्रेषण को सुधारे: एक प्रशासक के रूप में सफल होने के लिए अपने विचारों से सबको सहमत कराना अत्यंत आवश्यक है, बेहतर संप्रेषण कला यह संभव बनाती है।
- दूसरों की प्रशंसा करना सीखे: अपने सहकर्मियों को प्रोत्साहित कर अपने प्रति उनकी निष्ठा को आप बढ़ा सकते है। हमेशा याद रखें कि हर परिस्थिति या असफलता में कुछ सकारात्मक बातें होती हैं, बस आपको उसकी तरफ देखना है।
समानुभूति (Empathy)
- किसी संगठन या टीम का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने के लिए सद्भावपूर्ण होना आवश्यक है। एक प्रशासक जो सद्भावपूर्ण है, अपने-आप को दूसरों की परिस्थितियों में आराम से रख कर उन्हें सकारात्मक सुझाव भी देता है। अतः अपने सहकर्मियों का सम्मान व विश्वास जीतने के लिए सद्भावपूर्ण होना आवश्यक है।
समानुभूति कैसे विकसित करें?
- स्वयं को अन्य के स्थान पर रखे: अपने विचारों का समर्थन आसान है, थोड़ा समझ लें और उन्हें अपने सहकर्मियों की नजर से देखने का प्रयास करें।
- हाव-भाव पर ध्यान दें: दूसरों की बात को सुनते समय आप विभिन्न शारीरिक प्रतिक्रियाएं जैसे-हाथ मोड़ना, होठों को काटना आदि, करते है। इन शारीरिक प्रतिक्रियाओं से समाने वाले को पता चल जाता है कि आप उनके बारें में क्या सोचते है, इसका एक नकारात्मक प्रभाव पड़़ता है। शारीरिक क्रियाओं को पढ़ना एक प्रशासक के लिए अत्यंत सहायक होता है। इससे दूसरों की भावनाओं को समझने में काफी सहायता मिलेगी और यह आपको एक प्रशासक के रूप में सही निर्णय लेने में काफी सहायता करेगा।
- भावनाओं की कद्र करें: अगर आपके आग्रह पर आपके सहायक देर तक कार्य करते हैं और अपनी इच्छा को दबाते हैं तो आपको उनकी भावना को समझना चाहिए और उन्हें महत्व देना चाहिए। अगर संभव हो तो भविष्य में उससे अतिरिक्त कार्य न लें और ले तो अगले दिन।
भावनात्मक समझ का सारांश
- भावनात्मक समझ का विचार बुद्धिमता (intelligence) की समझ को बौद्धिक आवरण से परे ले जाता है और यह बताता है कि बुद्धिमान होने के लिए भावनापूर्ण होना भी आवश्यक है।
- भावनात्मक समझ ऐसे गुणों का समूह है जो भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त करना सीखाता है। यह भावना को समझने का तरीका है।
भावनात्मक रूप से बुद्धिमान व्यक्ति के लक्षण
सांवेगिक बुद्धिमत्ता के तत्व
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता के तत्वों को मूलतः दो भागों में बांटा गया है-
- वैयक्तिक तत्व (Personal Components)
- अंतवैर्यक्तिक तत्व (Interpersonal Components)
वैयक्तिक तत्व
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता का आधार आत्म-ज्ञान होता है। इसमें व्यक्ति अपने संवेग से तो अवगत होता ही है साथ ही साथ इसमें वह दूसरों के संवेग को प्रबंधित भी करता है तथा इसमें आत्म-अभिप्रेरण भी सम्मिलित होता है। अतः सांवेगिक बुद्धिमत्ता के तीन वैयक्तिक तत्व बतलायें गए है जो इस प्रकार है-
स्वानुभूति (Empathy):
- अपने संवेगों से अवगत होना- सांवेगिक बुद्धिमत्ता का सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह है कि इसमें व्यक्ति अपने संवेगों से खुद अवगत होता है। दूसरे शब्दों में, वह अपने भावों एवं संवेगों से जिस रूप में वे उत्पन्न होते है, अवगत होता है।
- इसका मतलब यह हुआ कि इसमें व्यक्ति सिर्फ अपनी मनोदशा (moods) से अवगत ही नहीं होता है बल्कि उन मनोदशा के बारे में उत्पन्न चिंतन से भी वह अवगत होता है। जो लोग इन भावों को मॉनीटर करने में सफल हो जाते है, वे दूसरो के वश में नहीं होते है।
- यह भी यहां बता देना उचित होगा कि बोध या जानकारी से मतलब आत्म-तल्लीनता से नहीं होता है बल्कि इससे तात्पर्य व्यक्ति के उस आन्तरिक अवस्था, संवेग एवं चिन्तन से होता है जो वह उत्पन्न करता है। जो व्यक्ति अपने भावों से अवगत होते है, वे सिर्फ उन भावों के आधार पर व्यवहार नहीं करते है, बल्कि उससे उत्पन्न चिंतन पर ध्यान देकर ही व्यवहार करते है।
दृढ़ता (Perseverance):
- अपने संवेगों को प्रबंधित करना- सांवेगिक बुद्धिमत्ता का दूसरा तत्व अपने संवेगों को प्रबंधित करना होता है। संवेगों को महसूस करने से तात्पर्य यह नहीं होता है कि संवेगों को दबाकर रखा जाये। बल्कि इससे तात्पर्य यह होता है कि उन संवेगों को उचित ढंग से अभिव्यक्त किया जाए और उन्हें नियंत्रण से बाहर न होने दे।
- जिन व्यक्तियों में सांवेगिक बुद्धिमत्ता अधिक होती है वे यह भी जानते है कि अपने मनोदशा का नियमन कैसे किया जाए और अपने क्रोध, विषाद आदि से अपनी जिदंगी को प्रभावित नहीं होने देते है।
आत्म-अभिप्रेरणा:
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता का एक अन्य तत्व आत्म-अभिप्रेरण है। आत्म-अभिप्रेरण से तात्पर्य ऐसे सांवेगिक आत्म-नियंत्रण से होता है जो व्यक्ति को उत्तम लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रखता है, कुंठित होने पर भी व्यक्ति को कार्यरत रखता है तथा तात्कालिक तुष्टि के लिए प्रलोभन को रोकने में मदद करता है।
- इन सबों का सार तत्व यह है कि आवेगशील व्यवहार को रोकना या नियंत्रित करके रखना सभी तरह के सांवेगिक आत्म-नियंत्रण की जड़ होता है।
- आत्म-अभिप्रेरण का यह तत्व का संबंध जीवन के विभिन्न क्षेत्र में प्राप्त होने वाले सफलता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है क्योंकि इसमें व्यक्ति किसी कठिन कार्य को मेहनत से करने के लिए प्रेरित रहता है, भविष्य के उत्तम फल के लिए आशान्वित होता है और तात्कालिक तुष्टि को रोकने में भी सफल होता है।
- यही आत्म-अभिप्रेरण को ध्यान में रखते हुए थॉमस एडिसन जो एक मशहूर खोजकर्ता थे, ने कहा है कि सफलता दो प्रतिशत अन्तःप्रेरण और अन्ठानवे प्रतिशत मेहनत के कारण होता है। इस मेहनत में सिर्फ मेहनत ही नहीं बल्कि आत्म-अभिप्रेरण भी सम्मिलित होता है।
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(2) अन्तर्वैयक्तिक तत्व
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता के इस तत्व में दूसरों के संवेगों को समझना तथा उसके प्रति संवदेनशीलता दिखलाना तथा संवेगों को उचित ढंग से संचालित करना आदि सम्मिलित होता है। इस श्रेणी के निम्नांकित दो तत्व प्रधान है-
परानुभूति:
- दूसरों के संवेगों की पहचान करना- परानुभूति सांवेगिक बुद्धिमत्ता का एक अन्य तत्व है जिसमें व्यक्ति दूसरों के अभिप्रेरण एवं संवेगों को समझता है और उनकी पर्याप्त पहचान करता है।
- परानुभूति का आधार आत्म-बोध होता है। अगर व्यक्ति को अपने संवेगों की समझ नहीं होती है तो बहुत उम्मीद इस बात की है कि वह दूसरों के संवेगों न तो ठीक ढंग से समझेगा और न ही उसके प्रति संवदेनशीलता विकसित करेगा।
- परानुभूति का सबसे प्रमुख सूचक अशाब्दिक व्यवहार की समझ, एवं व्याख्या करने की क्षमता है। अशाब्दिक व्यवहार में व्यक्ति का हाव-भाव, वाक् भाव, दूसरों की आनन (Facial) अभिव्यक्ति आदि प्रमुख है।
- आशाब्दिक व्यवहार को सचमुच में संवेग की भाषा बतलायी गयी है क्योंकि व्यक्ति अपने भावों की अभिव्यक्ति इस माध्यम से अक्सर करता है।
संबंधों को संचालित करना:
- दूसरों के साथ उत्तम संबंध को संचलित करना भी सांवेगिक बुद्धिमत्ता का एक महत्वपूर्ण तत्व है। कुछ लोग ऐसे होते है जो दूसरों के साथ उत्तम एवं संतोषजनक संबंध बनाये रखने में सक्षम होते है। स्पष्टतः इनमें सांवेगिक बुद्धिमत्ता का यह तत्व है जो दो अन्य तत्वों अर्थात् अपने संवेगो को प्रबंधित करके रखने की क्षमता तथा परानुभूति का परिणाम होता है।
- जिन व्यक्तियों में इन दोनों तत्वों को प्रधानता होती है, वे लोग आसानी से दूसरों के साथ उत्तम एवं संतोषजनक संबंध बनाकर रखते है और उसका ठीक ढंग से संचालन भी करते है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता के इन उपरोक्त तत्वों जिन पर सैलोभी एवं मैयर ने मूलतः बल डाला था, के अलावा भी एक और कारक है जिसे सांवेगिक बुद्धिमत्ता का तत्व माना जा सकता है और वह कारक है- आशावादिता। जो लोग आशावादी होते है उन्हें यह काफी विश्वास होता है कि एक दिन जरूर ही सभी चीजें ठीक हो जायेगी।
- आशावादिता को व्यक्ति अपने जीवन काल में सीख सकता है या विकसित कर सकता है। सांवेगिक बुद्धिमत्ता के परिप्रेक्ष्य में आशावादिता का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि किस तरह से आशावादी लोग अपनी सफलता एवं असफलता की व्याख्या करते है।
- जब एक आशावादी व्यक्ति को असफलता हाथ लगती है, तो वह इस असफलता का कारण कुछ विशेष परिस्थिति बतलाता है जिसे परिवर्तित किया जा सकता है।
- फलतः उन्हें विश्वास हो जाता है कि कड़ी मेहनत करके वे अगले बार सफल हो सकते है। परन्तु जब एक निराशावादी व्यक्ति असफल होता है, तो वह अपने आप को ही दोषी मानने लगता है और वह इस असफलता का कारण कुछ व्यक्तिगत गुण मानने लगते है, जिसे बदला नहीं जा सकता है।
सांवेगिक बुद्धिमत्ता के आयाम (भारतीय संदर्भ)
- भारतीय संदर्भ में विशिष्ट सांस्कृतिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं व्यवहारात्मक पक्षों को ध्यान में रखते हुए सांवेगिक बुद्धिमत्ता के तीन आयाम बतलाये गए हैं-
सांवेगिक सामर्थ्यता:
- इसमें भारतीय विशेषज्ञों द्वारा कई तरह की क्षमताओं को रखा गया है जिनमें विभिन्न परिस्थितियों में उत्पन्न उद्दीपकों के प्रति उचित ढंग से सांवेगिक अनुक्रिया करने की क्षमता, उच्च आत्म-सम्मान, आशावादिता दिखलाना, पर्याप्त सांवेगिक आत्म-नियंत्रण, तनाव, वर्कआउट आदि से उत्पन्न सांवेगिक थकान को दूर करने की क्षमता, कुंठा, संघर्ष तथा हीनता मनोग्रन्थियों से उत्पन्न सांवेगिक अस्त-व्यस्तता को कम करना आदि मुख्य रूप से सम्मिलित होते है।
सांवेगिक परिपक्वता:
- इसमें अन्य बातों के अलावा अपना एवं दूसरों के संवेगों का मूल्यांकन करना, भावों की पहचान करना एवं अभिव्यक्त करना, दिल एवं दिमाग के बीच सन्तुलन बनाये रखना, नम्यता एवं अनुकूलता दिखलाना, दूसरों के विचारों की प्रशंसा करना, तात्कालिक मनोवैज्ञानिक तुष्टि को विलम्बित करने की क्षमता आदि सम्मिलित होते है।
सांवेगिक संवेदनशीलता:
- आयाम में सांवेगिक उत्तेजन की देहलीज को समझना, तात्कालिक वातावरण को प्रबंधित करना, दूसरों के साथ सौहार्दयता बनाकर रखना तथा दूसरों को अपने साथ होने पर उनमें अच्छा भाव उत्पन्न होने देना आदि मुख्य रूप से सम्मिलित होते है।
- इसके अतिरिक्त इसमें अन्तर्वैयक्तिक संबंधों में ईमानदारी बरतना तथा दूसरे लोग किस तरह से उनका मूल्यांकन करते है, कि जानकारी रखना आदि भी सम्मिलित होते है।
- इन आयामों को ध्यान में रखते हुए प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक दलीप सिंह ने सांवेगिक बुद्धिमत्ता को इस प्रकार परिभाषित किया है, ‘तात्कालिक वातावरण तथा आन्तरिक आत्मन् से उत्पन्न विभिन्न प्रकार के सांवेगिक उद्दीपकों के प्रति उचित ढंग से एवं सफलतापूर्वक अनुक्रिया करने की क्षमता को सांवेगिक बुद्धिमत्ता कहा जाता है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता के तीन मनोवैज्ञानिक आयाम होते है- सांवेगिक सामर्थ्यता, सांवेगिक परिपक्वता तथा सांवेगिक संवदेनशीलता, जो मानव व्यवहार के गतिकी को सच्चे ढंग से पहचान करने में, ईमानदारीपूर्वक उसकी व्याख्या करने में तथा व्यवहारिक ढंग से संचालित करने में मदद करता है।’
सांवेगिक बुद्धिमत्ता के प्रतिदर्श
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता के अब तक तीन मुख्य प्रतिदर्श है –
क्षमता आधारित प्रतिदर्श
- मेयर तथा साल्वी ने प्रतिपादित किया कि सांवेगिक बुद्धिमत्ता फ्भावनाओं को पहचानना, उन्हें एकीकृत करते हुए विचारों से भावनाओं को समझने में सहायता प्रदान करना तथा भावनाओं को अनुशासित करना और व्यक्तिगत उन्नति को प्रोत्साहन देना है। योग्यता आधारित प्रतिदर्श भावनाओं को एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में देखती है। जिसके माध्यम से सामाजिक पर्यावरण को समझाया जाता है।
- यह प्रतिदर्श बताता है कि हर व्यक्ति सूचना संप्रेषण की क्षमता भावनात्मक प्रकृति के अनुसार अलग-अलग तथा बृहद संज्ञानात्मक से भावनात्मक प्रक्रियाओं से संबंधित करने के अनुसार होती है। सांवेगिक बुद्धिमत्ता की योग्यता स्वयं के ही अनुकूलन और परिस्थिति के अनुसार व्यवहार के द्वारा पाया जा सकता है।
इस प्रतिदर्शन में सांवेगिक बुद्धिमत्ता के चार विशिष्ट गुणों की पहचान की गई है-
भावनाओं को पहचानना:
- इस क्षमता के अंतर्गत भावनाओं की पहचान एवं परख करने की उस योग्यता से हे, जिसमें चेहरा, फोटो ध्वनी, सांस्कृतिक विशिष्टिता के द्वारा स्वयं एवं अन्य की भावनाओं को संज्ञान में लाया जा सकता है।
- संवेदनाओं की पहचान, सांवेगिक बुद्धिमत्ता की आधारभूत विशेषता है, जिसके द्वारा अन्य भावनात्मक सूचनाओं की प्रतिक्रियायें संभव होती है।
भावनाओं का उपयोग:
- इस योग्यता के द्वारा भावनाओं की समझ का उपयोग करके अन्य विभिन्न भावनात्मक क्रियाओं को सम्पादित किया जाता है, जैसे चिन्तन एवं समस्या समाधान आदि।
- उच्च सांवेगिक बुद्धिमत्ता वाला कोई व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार बदलते हुए अपने संवदेनाओं को नियंत्रित करके, दिये गये कार्य को बेहतरीन ढंग से सम्पादित कर देता है।
भावनाओं की समझ:
- इस योग्यता के द्वारा संवेदनात्मक भाषाई ज्ञान एवं जटिल संवदेनात्मक रिश्तों को संभालना सम्मिलित है। उदाहरण स्वरूप भावनाओं को समझकर संवदेनशील होने की क्षमता को परखा जा सकता है तथा इसके अध्ययन प्रयोग से भावनाओं का समय के साथ कैसे विकास हुआ, इसे पहचानने एवं वर्णित करने की क्षमता तथा भावनाओं के बीच के अंतर को समझा जा सकता है।
भावनाओं का प्रबंधन:
- इस प्रकार योग्यता द्वारा स्वयं तथा दूसरों में भावनाओं के नियंत्रण की क्षमता का पता चलता है। इसलिए उच्च सांवेगिक बुद्धिमत्ता वाला कोई व्यक्ति भावनाओं को समझ सकता है, भले ही वह नकारात्मक क्यों न हो तथा उनका प्रबंधन कर उद्देश्य को प्राप्त कर लेता है।
योग्यता प्रतिदर्श
- डेनियल गोलमैन द्वारा प्रतिपादित यह प्रतिदर्श सांवेगिक बुद्धिमत्ता को प्रशासन और संचालन के लिए सहायक योग्यताओं और कौशलों की व्यापक चरण के रूप में देखता है।
- गोलमैन ने EI के प्रकार्यों को रोजगार के आधार पर विस्तार किया तथा यह अनुमान लगाया कि कार्य स्थलों पर सफलता का अनुमान लगाने वाला सबसे बड़ा कारक बताया।
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गोलमैन इस प्रतिदशो के पांच अवयव बताये:-
उपाय सजगता:
- स्वयं के भावनाओं को पहचानना जो कि सांवेगिक बुद्धिमत्ता की परिधि के भीतर आती है। भावनाओं के प्रतिक्षण नियंत्रण करने की योग्यता, मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि तथा स्वयं को समझने की कुंजिका है।
- महत्वपूर्ण व्यक्तिक निर्णय लेते समय भावनाओं की समझ आत्म विश्वास प्रदान करती है। जैसा कि किससे विवाह करना या रोजगार के लिए किस रास्ते को चुने।
भावनाओं का प्रबंधन:
- उपयुक्त भावनात्मक प्रतिक्रिया के द्वारा आत्म-अनुभूत की उपयुक्त क्षमता का विकास हो सकता है। चिंता, क्रोध, वंचन आदि के नकारात्मक प्रभाव को न्यूनतम करने में एक महत्वपूर्ण भावनात्मक योग्यता होती है।
- संवदेनात्मक उपयुक्तता के माध्यम से एक व्यक्ति जीवन भर के विशाल कष्टों से निपटारा प्राप्त कर सकता है तथा जिन व्यक्तियों में इस प्रकार की भावनात्मक नियंत्रण का अभाव होता है, वे हतोत्साहित एवं निराशा के शिकार हो जाते है।
स्व-प्रेरणा:
- किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए लक्ष्य पर ध्यान लगाये रखना अति-आवश्यक है। जीवन में उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रलोभित नहीं होना तथा संवदेना को नियंत्रित करना बहुत ही कठिन है।
- वे व्यक्ति जो अपनी भावनाओं पर विश्वास करते है तथा निराशा या अवसाद के बाद भी आशा करते एवं आशावादी होते है, वे सामान्यतः बहुत ही उत्पादक तथा प्रभावकारी होते है।
दूसरे की भावनाओं को समझना:
- सहानुभूति, भावनात्मक आत्म सजता जो कि अंतर्व्यैक्तिक प्रभावशीलता के लिए आधारभूत है, एक नई योग्यता है। वे जो अपने सामाजिक परिवेश के साथ तालमेल बनाकर चलते है, वे व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक जीवन में ज्यादा सफल है।
रिश्तों के साथ तालमेल:
- यह संबंधों को बनाये रखने की वह कला जिसके द्वारा दूसरों की भावनाओं को प्रबंधन दिया जाता है। सामाजिक समरसता के लिए लोकप्रियता, नेतृत्वशैली तथा अंतवैयक्तिक प्रभावशीलता आवश्यक है।
सामाजिक बुद्धि प्रतिदर्श
- मनोवैज्ञानिक रांवेन बारआन (2006) ने सर्वप्रथम सांवेगिक बुद्धिमत्ता के मापन में सांवेगात्मक बुद्धि (EQ) शब्द का प्रयोग किया। इन्होंने सांवेगिक बुद्धिमत्ता को स्वयं एवं अन्य व्यक्ति को प्रभावशाली ढंग से समझने लोगों से बेहतर संबंध बनाने, अपने आस-पास के पर्यावरण के साथ, उनके पारिस्थितिकी मांग के अनुरूप, सफलतापूर्वक अनुकूलन तथा अनुकरण से संबंधित बताया।
- बारऑन ने बताया कि सांवेगिक बुद्धिमत्ता का विकास समय के साथ होता है तथा इसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं उपचार माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
- बारऑन ने यह उपकल्पना की कि वे व्यक्ति जिनका सांवेगिक बुद्धिमत्ता औसत से अधिक होता है, वे पर्यावरण भार एवं दबाव को सफलता पूर्वक झेल लेते है। इन्होंने यह भी बताया कि सांवेगिक बुद्धिमत्ता को कमी से सफलता में कमी तथा भावनात्मक समस्यायें आने लगती है।
- विचारात्मक जटिलता भी पर्यावरण के व्यवहार के अनुकरणों में बड़ी समस्या है। बारऑन के अनुसार सामान्य समस्या इन व्यक्तियों के बीच सत्य परीक्षण की कमी, समस्या समाधान तनाव, सहनशीलता तथा संवेगों के नियंत्रण से है।
- सामान्य रूप में बारऑन के अनुसार सांवेगिक बुद्धिमत्ता तथा संज्ञानात्मक बुद्धि समान रूप से सामान्य बुद्धि को सहयोग प्रदान करते है। सांवेगिक बुद्धिमत्ता के द्वारा जीवन में सफल होने की क्षमता की सूचना प्राप्त होती है।
- प्रत्येक सांवेगिक बुद्धिमत्ता प्रतिदर्श के व्यवहारिक अनुप्रयोग में व्यक्तिगत भिन्नता पायी जाती है। प्रत्येक व्यक्ति की मास्तिष्कीय संरचना, उसकी सांवेगिक बुद्धिमत्ता के अलग-अलग योग्यता को निर्धारित करता है, इस मस्तिष्कीय के संरचना की अनुकूलन की क्षमता ही यह निर्धारित करती है, कि परिस्थिति के अनुसार कैसे अपना स्वरूप बदलना है।
- वर्तमान (2002) में गोलमैन ने सांवेगिक बुद्धिमत्ता के केवल चार अवयवों का समर्थन किया है, जिसका उन्होंने अपनी पुस्तक ‘प्राथमिक नेतृत्व’ (Primal Leadership) में वर्णन किया है।
ये चार अवयव इस प्रकार है-
- आत्म जागरूकता: इसके अंतर्गत भावनात्मक आत्म-संज्ञान, सही-सही आत्म आकलन तथा आत्म-विश्वास सम्मिलित है।
- आत्म-प्रबंधनः इसके अंतर्गत भावनात्मक आत्म- नियंत्रण, पारदर्शिता, सत्यनिष्ठता, अनुकूलनता, उपलब्धि झुकाव, सकारात्मक प्रयास और आशावादिता सम्मिलित है।
- सामाजिक संज्ञान: इसके अंतर्गत सहानुभूति संगठनात्मक जागरूकता और सेवा समर्पण आदि सम्मिलित है।
- संबंध व्यवहार प्रबंधन: इसके अंतर्गत प्रभावशाली नेतृत्वशीलता, प्रभाव अन्य का विकास व्यवहार परिवर्तन के कारक, द्वन्द्व प्रबंधन, व्यक्तिक बंधनों को स्थायी, समूह कार्य और सहयोगात्मक व्यवहार सम्मिलित है।
- गोलमैल ने सांवेगिक बुद्धिमत्ता के प्रत्येक संदर्श के लिए भावनाओं के एक पूर्ण चक्र को समाहित किया, जिसमें प्रत्येक में सभी चरण होते है। भावनात्मक क्षमतायें जन्मजात नहीं होती है। वरन अद्वितीय परिणामों, बातों कार्यों को सम्पादित करने के दौरान कोई व्यक्ति एक निश्चित अनुक्रिया में सीखता है।
- गोलमैन में यह बतलाया कि कोई व्यक्ति सामान्य भावनात्मक क्षमता के साथ पैदा होता है, जिसके द्वारा सांवेगिक बुद्धिमत्ता के सभी जटिल पहलुओं को सीखने की क्षमता को सीखता है अपने आस-पास के वातावरण में व्यवहार के द्वारा।
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सांवेगिक बुद्धिमत्ता व्यक्तित्व गुण के रूप में
- गोलमैन के इस दावे ने, कि सांवेगिक बुद्धिमत्ता IQ से दुगुनी महत्वपूर्ण और उच्च सांवेगिक बुद्धिमत्ता वाला व्यक्ति, श्रेष्ठ IQ वाले व्यक्ति से जीवन में अधिक सफल होते है, बौद्धिकता के क्षेत्र में एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया था।
- उन्होंने कार्य के लिए सांवेगिक बुद्धिमत्ता की आवश्यकता पर बल दिया, यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां दिल से ज्यादा दिमाग पर जोर बल दिया जाता है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता की आवश्यकता केवल व्यवसायिक बॉस और नेतृत्वकर्ता के लिए ही आवश्यक नहीं है, वरन् सांवेगिक बुद्धिमत्ता की आवश्यकता प्रत्येक कर्मचारी एवं व्यक्ति को है, क्योंकि वह ही ज्यादा से ज्यादा व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित करता है। (संगठन के अंदर भी और संगठन से बाहर थी)।
- गोलमैन लगभग 500 से अधिक संगठनों का अवलोकन कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जिनकी सांवेगिक बुद्धिमत्ता उच्च होती है, वे निम्न सांवेगिक बुद्धिमत्ता वाले व्यक्ति से व्यवसायिक जगत में सर्वोच्च स्थान पर होते है, इसलिए सांवेगिक बुद्धिमत्ता से संबंधित व्यक्तिव के विभिन्न पक्षों को समझने एवं उनके विस्तार के लिए उपयुक्त प्रयास किए गए है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता सकारात्मक ढ़ंग से व्यक्तित्व के प्रमुख पहलुओं जैसे- सहानुभूति, उद्देश्य, पसंद, जिज्ञासा, सामाजिक उपलब्धि की आवश्यकता, सत्ता की आवश्यकता, उच्च आत्म विश्वास, भरोसा, जोश एवं संवेदन की सामान्यतः सांवेगिक बुद्धिमत्ता से व्यैक्तिक सामाजिक प्रभावशीलता में सुधार होता है।
- उच्च सांवेगिक बुद्धिमत्ता से बेहतर सामाजिक संबंध बनते है। उच्च सांवेगिक बुद्धिमत्ता व्यक्ति भावनाओं को बेहतर ढंग से समझ सकते है तथा अपने विचारों से प्रयोग वे अपने विरोधियों की अपेक्षा उनका अर्थ एवं भावनाओं को अच्छी तरह समझ सकते है।
- ये बोलने में कुशल, सामाजिक तथा बौद्धिक एवं दूसरों से ज्यादा खुले एवं सहमति वाले होते है। ये मनोवैज्ञानिक रूप से स्वस्थ, जीवंत तथा संघर्ष लड़ाई तथा अन्य सामाजिकता से दूर रहने वाले होते है। इसलिए यह जीवन में अधिक संतुष्ट तथा बहुत अच्छी मनोवैज्ञानिक कार्य प्रणाली से संबंधित होते है।
- कुछ शोधकर्ताओं ने सांवेगिक बुद्धिमत्ता एवं स्थापित व्यक्तित्व के पहलुओं के बीच संबंधों के विषय में चिंता व्यक्त की है तथा सांवेगिक बुद्धिमत्ता एवं व्यक्तित्व के बीच संबंध को स्पष्ट करने के लिए और अधिक प्रत्यक्षों की मांग की है।
- जिससे कि इनके बीच के संबंधों को स्पष्ट रूप से समझा जा सके। परंतु कुछ लोगों का कहना है कि सांवेगिक बुद्धिमत्ता स्वयं ही व्यक्तित्व गुण है। इस मुद्दे पर विचारों में विभिन्नता के बाद भी यह स्थापित हो चुका है कि सांवेगिक बुद्धिमत्ता का व्यक्तित्व के साथ गहरा संबंध है।
संवेगात्मक बुद्धि की उपयोगिता
- कोई व्यक्ति जीवन में कितना सफल हो सकता है, इसकी भविष्यवाणी संवेगात्मक बुद्धि E.Q. द्वारा की जा सकती है।
- संवेगात्मक बुद्धि, व्यक्ति के जीवन को सुखमय व शांतिप्रद बनाने में सहायक होती है।
- जीवन के विभिन्न क्षेत्रें एवं कार्य-स्थल पर मिलने वाली सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका इसी की होती है।
- कामकाज की दुनिया में निपुणता तथा दक्षता प्राप्त कराने में भी संवेगात्मक बुद्धि का ही अधिक योगदान पाया जाता है।
- किसी की संवेगात्मक बुद्धि उसे जीवन के विभिन्न क्षेत्रें में वांछित सफलता प्राप्त करने में मदद करती है।
- अपने तथा दूसरों के संवेगों के प्रति सही जानकारी एवं सजगता, संवेगों का उचित प्रबंध दूसरों के साथ संबंधों को ठीक प्रकार से बनाये रखने जैसे कार्यों में संवेगात्मक बुद्धि ही सबसे अधिक सहायक होती है।
- संवेगों का अनुचित दमन नहीं होना चाहिएा। क्रोध, घृणा, निराशा, भय आदि भी समय और परिस्थिति अनुसार उतने ही आवश्यक और हितकारी होते हैं जितने कि साहस, प्रेम, शांति। हमें अपने संवेगों को उचित समय पर, उचित रूप में अभिव्यक्त करने का ढंग आना चाहिए।
- ग्रीक दार्शनिक अरस्तू का कथन है- कोई भी व्यक्ति क्रोध कर सकता है- यह बहुत आसान है परंतु सही व्यक्ति के साथ, सही मात्र में, सही समय पर, सही प्रयोजन हेतु, सही ढंग से, क्रोध करना आसान नहीं है।
- उच्च संवेगात्मक बुद्धि से युक्त अधिकारी राष्ट्रहित में महत्वपूर्ण किसी मिशन को पूरा करते समय अपनी टीम के लिए वैसे अधिकारियों को चयनित करता है जो तेजतर्रार हो।
भावात्मक प्रज्ञता लोगों में किस प्रकार विकसित की जा सकती है? (How Emotional Intelligence can be developed in people?)
- संवेगात्मक बुद्धि को विभिन्न उपायों से विकसित कर व्यक्तियों के जीवन को सुखमय और शांतिमय बनाने में मदद की जा सकती है।
- प्रेरक प्रसंग एवं सफल लोगों की जीवनी का अध्ययन।
- हितोपदेश एवं पंचतंत्र की कहानियों का पठन एवं नाटक के रूप में मंचन।
- आत्म मूल्यांकन- अपनी कमियों का जानना, अपनी क्षमताओं का जानना।
- असफलताओं के कारण को जानना।
- उसे दूर का उपाय निकालना।
- गलती होने पर मनन करना (Reflecting thinking) कि गलती क्यों हुई, कैसे हुई, ऐसा संकल्प करना कि आगे इस गलती को नहीं दोहराना है।
- परिस्थितियाँ निर्मित करके यह पूछा जायें कि आप ऐसे में क्या निर्णय लेंगे? सोचकर बतायें।
- विवादास्पद एवं संवेदनशील मुद्दों पर बोलने से पहले सोचना ताकि लोगों की भावनायें एवं आस्थायें आहत न हो।
- अपने संवेगों की अभिव्यक्ति करने में पर्याप्त सावधानी/सजगता बरतनी चाहिए।
- दूसरों के संवेगों और उनकी भावनाओं को समझने के लिए यह आवश्यक है कि उनकी बात को धैर्यपूर्वक सुना और समझा जाए।
- संवेगों को अपने विचार प्रक्रिया से समन्वित करने का प्रयास करना चाहिए। मस्तिष्क और हृदय दोनों का उचित तालमेल उचित व्यवहार प्रक्रिया में उपयोगी सिद्ध होता है।
- स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अवसर मिलना चाहिए।
- सामाजिक संपर्क और प्रशिक्षण से लोगों का संवेगात्मक व्यवहार संतुलित, संयमित एवं सामाजिक बनाने का प्रयास होना चाहिए।
- दुख और विषाद के अवसर पर उपयुक्त शोक, संवेदना व्यक्त करें।
- गलती होने पर झूठमूठ का बहाना बनाने एवं भयभीत होने की बजाय डर की भावना को खुले रूप से व्यक्ति करें।
- फिल्मों के माध्यम से भी व्यक्ति के संवेगात्मक विकास संभव है। आत्म जागरूकता और सामाजिक जागरूकता बढ़ाने में फिल्मों सहायक हो सकती है।
- संवेगात्मक बुद्धि की प्रश्नावलियों एवं उनके उत्तर संबंधी विभिन्न आयामों की नैतिक रूप से विवेचना कर लोगों में संवेगात्मक बुद्धि का विकास किया जा सकता हैं यहां लोगों को यह बताना चाहिए कि इस परिस्थिति में व्यक्ति की क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए, क्या निर्णय लेना चाहिए और ऐसा निर्णय क्यों लेना चाहिए, क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए आदि।
- संवेगात्मक बुद्धि के उचित विकास हेतु बड़ों को, स्वयं अपने आपको एक ऐसे मॉडल के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए जिसका अनुकरण कर बालक संवेगात्मक रूप से बुद्धिमान बन सके।
- संवेगात्मक वृद्धि के विकास हेतु स्वस्थ्य शारीरिक विकास आवश्यक है। कमजोर एवं बीमार बच्चे संवेगात्मक रूप से अधिक असंतुलित और असमायोजित हो जाते है।
- पारिवारिक वातावरण, सदस्यों का आपसी संबंध, विद्यालय का वातावरण, अध्यापक की कार्य प्रणाली तथा छात्रें के साथ उनके व्यवहार का बच्चे के संवेगात्मक बुद्धि के विकास पर असर डालता है।
- बालकों की संवेगात्मक शक्तियों के उचित प्रकाशन और अभिव्यक्ति के लिए उन्हें गैर-पाठ्यक्रम क्रियाओं (खेलकूद, नाटक, संगोष्ठी, वाद-विवाद, समसामयिकी मुद्दों पर चर्चा) तथा रोचक क्रियाओं के उचित अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
सांवेगिक बुद्धिमत्ता की शासन और प्रशासन में उपयोगिता एवं प्रयोग
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता एक अर्जित किया गया, समाजोपयोगी विशेष गुण है, जो व्यक्ति समाज में उसके मान्यताओं, विश्वासों और विभिन्न मानको के अनुरूप व्यवहार करने की प्रक्रिया के दौरान सीखता है। सांवेगिक बुद्धिमत्ता को सीखा जा सकता, उसको विभिन्न प्रक्रियाओं एवं सामाजिकरण
- द्वारा विकसित किया जा सकता है और किसी परिस्थिति के अनुकूल व्यवहार हेतु सांवेगिक बुद्धिमत्ता में सुधार किया जा सकता है।
- किसी भी प्रकार की कार्यस्थली एवं उत्पादन केन्द्र में सांवेगिक बुद्धिमत्ता निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर के पदाधिकारों एवं उस संगठन से संबंधित विभिन्न प्रकार के कर्मचारियों में उनका आपस में बेहतर संचार और साथ ही साथ भिन्न-भिन्न प्रकार के उससे संबंधित उपभोक्ताओं के साथ भी सुधार किया जा सकता है।
- बेहतर प्रशासन या सुशासन आधुनिक दौर का ‘युग-नारा’ बन चुका है। बेहतर शासन-प्रशासन का सामान्य-सा तात्पर्य ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था से है, जो पारदर्शी, जवाबदेह, संवेदनशील, विकेन्द्रीकृत तथा जनोन्मुखी हो तथा उपरोक्त विशेषताओं की प्राप्ति हेतु एवं भारत में आदि काल से स्थापित परंपरा ‘राम-राज्य’ के सपने की स्थिति को प्राप्त करने में भी सांवेगिक बुद्धिमत्ता का एक बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है। किसी भी प्रकार की शासन व्यवस्था में मुख्य रूप से तीन आयामों की आवश्यकता होती हैः-
- एक कायदे कानून की नियमावली,
- उस कानून को सुचारू रूप से संचालित कराने के लिए उच्च स्तरीय, कुशल प्रबंधक एवं कर्मचारी
- प्रशासन, आम नागरिक एवं प्रशासक के बीच संचार।
- अगर ये तीनों आयामों में संतुलन की स्थिति विद्यमान है तो सुचारू और बेहतरीन तरीके से चलता है और राष्ट्र विकास के पथ में अग्रोन्मुखी हो जाता है, परन्तु जब इन तीनों आयामों में असंतुलन की स्थिति होती है तो अनेक प्रकार की समस्यायें उत्पन्न होती है।
- भारत में जहां पहले बेहतरीन एवं व्यापक स्तर पर एकीकृत आधारभूत संरचना विद्यमान है और यहां पर जनता एवं प्रशासक के बीच को दूरी को कम करके और उनके बीच स्वस्थ संचार का विकास करने में सांवेगिक बुद्धिमत्ता की अति महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है और इस प्रकार से एक प्रशासक में निम्न विशेषताओं की पूर्ति भी सांवेगिक बुद्धिमत्ता के माध्यम की जा सकती है, जैसे कि-
- प्रशासक द्वारा अपने मनोसामाजिक भावों और दूसरे के भावों को एवं संवेगों को प्रबंधित (manage) करता है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता सचमुच में सामाजिक बुद्धि का एक प्रकार है, जिसके द्वारा सामाजिक रूप से प्रशासक अन्य व्यक्तियों के बीच विभेदन कर पाता है, और इससे प्राप्त सूचनाओं के आधार पर वह अपने चिंतन एवं क्रियाओं को निर्देशित करता है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता में व्यक्ति न केवल अपने एवं दूसरे के संवेगों की पहचान करता है, बल्कि उन संवेगो के साथ तर्कणा करता है, उन्हें समझता है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता व्यक्ति को अपने जिंदगी के विभिन्न क्षेत्रें में सफलता दिलाने में बुद्धि लस्धि (intelligence quotients) से अधिक महत्वपूर्ण होती है।
- अतः इस प्रकार से हम कह सकते है, कि सांवेगिक बुद्धिमत्ता का स्वरूप काफी जटिल है, जिसमें कई तरह के तथ्यों का समावेश होता है, सांवेगिक बुद्धिमत्ता का वर्तमान स्वरूप अत्याधुनिक समकालीन परिवेश में नूतन प्रक्रिया है, जिसमें एक व्यक्ति का अपने वाह्य पर्यावरण का उचित रूप से मूल्यांकन एवं उनका समुचित रूप से व्याख्या करना एवं उसकी व्याख्या के पश्चात् होने वाले निर्णय में संवेदात्मक रूप से कितना महत्वपूर्ण निर्णय लिया जाये और ऐसे ही विभिन्न अवसरों पर जब एक प्रशासक या सामान्य व्यक्ति के विभिन्न असामंजस्य योग्य परिस्थिति में निर्णय लेना होता है, तो सांवेगिक बुद्धिमत्ता अति लाभकारी होती है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता के मापन में विभिन्न कारकों की अति महत्वपूर्ण भूमिका होती है ये कारक किसी भी प्रशासक, नेतृत्व के गुणों का आधार होते हैं साथ ही ये गुणात्मक विशेष कारक ही सफल नेतृत्व को उद्भूत करते हैं।
ऐसे कारकों ये मुख्य कारक है-
- एक कुशल प्रशासन व्यवस्था एवं सुशासन की नींव रखने के लिए एक प्रशासक के अन्दर अगर उपरोक्त विशेषताएं विद्यमान है और उनका निर्णयन बाह्य पर्यावरण, सामाजिक पारिस्थितिकी उपरोक्त मूल्यांकन के पश्चात् होता है, तो ऐसे समाज में सुशासन को अर्भिभाव अपने आप ही हो जाता है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता के निम्न आयामों की धारणा के विकास की सर्वाधिक आवश्यकता हमारे पुलिस अधिकारियों एंव उनसे संबंधित लोगों को है। सच्ची शांति और आजादी तभी हासिल की जा सकती है जब हम प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति प्रदत्त मानवीय गरिमा का सम्मान करें और ऐसी सामाजिक राजनीतिक तथा आर्थिक व्यवस्था कायम करे जो सबके लिए सम्मान एवं न्यायपूर्ण हो, इस सच को विश्व दो विश्व युद्धों की विभीषिका झेलने के बाद स्वीकार कर लिया है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता का प्रयोग अनेक प्रकार से विभिन्न रूप में भारतीय प्रशासन के समक्ष उपस्थित चुनौतियों के समाधान में देखा जा सकता है। ऐसे समस्याओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक सुधार वाली चुनौती है- मानवाधिकार।
- मानवाधिकार के मामले में भारत की स्थिति ऐसे विद्यार्थी की है, जिसकी उपलब्धियां कम नहीं है, लेकिन उसे अभी लम्बी यात्र तय करनी है।
- इसलिए जहां हमारी नारी सशक्तीकरण के मार्ग पर सतत अग्रसर है, वही बड़ी तादाद में बच्चे अभी भी बुनियादी शिक्षा से वंचित और मजदूरी करने के लिए विवश है, वृद्ध और विकलांगों की दीर्घकालिक तथा सतत् देखभाल करने वाली हमारी मशीनरी और संस्थाये अब भी बेहद सतही है। सरकार जहां समावेशी विकास सुनिश्चित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है।
- वही आम मानस में जाति और क्षेत्र आधारित विभाजन अब भी कुंडली मारे बैठा है। लेकिन हमारी कमजोरियां चाहे जो भी हो, हम इस बात पर गर्व कर सकते है, कि मानवाधिकार सुनिश्चित करने और सामाजिक न्याय हासिल करने की हमारी संरचना काफी मजबूत है।
- न्यायपालिका ने इसे बार-बार सुनिश्चित किया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय बाल-अधिकार संरक्षण आयोग, इस क्षेत्र में कार्यरत अनेकानेक स्वयं सेवी संगठन तथा हमारी केन्द्र और राज्य सरकारे उपयोगी और अर्थपूर्ण कानून बनाकर उन्हें लागू कराने हेतु सक्रिय है, उनके प्रयास हमारी उम्मीद को सांवेगिक बुद्धिमत्ता के विभिन्न आयाम आधार प्रदान करते है।
- जब सब मिलकर अपने प्रयासों और शक्तियों को लोगों के साथ जोड़ने और समर्थ बनाने में लगाएंगे तभी दक्ष परिवर्तन ला सकेगे। मानवाधिकारों के लिए बेहतर वातावरण प्रदान करने और देश की न्यायिक व्यवस्था और मानवाधिकारों के माध्यम से सामाजिक न्याय की प्राप्ति में सांवेगिक बुद्धिमत्ता का नया आयाम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- आज के सामाजिक वातावरण में मानवाधिकार के पश्चात अन्य दूसरी सबसे चुनौतीपूर्ण समस्या है, भ्रष्टाचार की, जिसके कारण से भारत में आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्यायें भी उभर रही हैं, जिससे कुशल प्रशासन और सुशासन के लक्ष्य की प्राप्ति में सांवेगिक बुद्धिमत्ता की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
- ऐसा क्यों होता है कि सार्वजनिक जीवन में भ्रष्ट आचरण के अनेक प्रमाणों के बावजूद भी कुछ बड़े लोगों को शायद ही कभी जेल जाना पड़ता है। ऐसा इसलिए कि हमारे भ्रष्टाचार विरोधी कानून और उनको अमल में लाने वाली एजेंसियाँ ऐसी है, जो कागजी कार्रवाई भी ठीक से नहीं कर पाती है।
- 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में विकास के मापन में केवल और केवल आर्थिक पैमाने को ही सम्मिलित किया जाता रहा, परन्तु विभिन्न प्रकार के सामाजिक विकास एवं वैज्ञानिक अविष्कारों के द्वारा आये सामाजिक परिदृश्य में आमूल-चूल परिवर्तन से विकास में आर्थिक कारकों के अलावा, सामाजिक स्थिति और व्यक्तित्व के विभिन्न निजी आयामों में विकास भी महत्वपूर्ण कारक के रूप में उभरा है।
- ऐसे कारकों का समाज में उदय के कारणों ने सामाजिक बुद्धि और सांवेगिक बुद्धिमत्ता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
- कोई व्यक्ति आज के दौर के विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के मनोवैज्ञानिक कारकों में, उसकी आज के दौर के प्रतियोगी वातावरण एवं भौतिकता में आंखे मूंदकर चलना काफी हद तक उत्तरदायी है, और इस प्रकार की आधुनिक समस्याओं आदि के निवारण में सांवेगिक बुद्धिमत्ता से प्रयुक्त व्यक्ति बहुत ही शानदार ढंग से अपना आत्मचिंतन, आत्म-अभिप्रेरणा, आत्म-विकास और मूल्य-उन्मुखता के द्वारा समाधान प्राप्त कर, एक स्वस्थ और अच्छे वातावरण के उदय में सहायक सिद्ध हो सकता है।
- आज के दौर का समाज विभिन्न प्रकार की समस्याओं के समाधान हेतु सरकारी प्रयासों का इंतजार नहीं कर रहा है। वरन् वह इन समस्याओं के समाधान हेतु व्यापक जनाक्रोश एवं जन आंदोलन के द्वारा सरकार के कन्धे-से-कन्धा मिलाकर लड़ने हेतु तैयार है।
- ऐसे वातावरण के कुशल अवलोकन एवं शिक्षित एवं जागरूक जनता को नियंत्रित एवं उनकी समस्त क्षमताओं व्यापक एवं स्वरूप दिशा में मोड़कर राष्ट्र को प्रगति के पथ चलाने में सांवेगिक बुद्धिमत्ता की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता की व्यक्तित्व गुणों वाली अवधारणा, मानव की संज्ञानात्मक योग्यता की अवसंरचना के बाहर पायी जाती है। यह महत्वपूर्ण अंतर है, जो कि अवसंरचना के अनुप्रयोगों एवं इससे संबंधित सिद्धांत एवं उपकल्पना के बीच पाया जाता है।
सांवेगिक बुद्धिमत्ता की शासन और प्रशासन में उपयोगिता एवं प्रयोग
स्वविश्वास निर्माण:
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता व्यक्ति में विश्वास निर्मित करती हैं क्योंकि सांवेगिक बुद्धिमत्ता व्यक्ति को बेहतर प्रतिष्ठा बनाने, प्रतिष्ठा के लिए कार्य हेतु प्रेरित करती है साथ ही साथ दूसरों से अंतर्क्रिया करने की क्षमता को बेहतर बनाती है। जिससे व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व में विश्वास की अनुभूति होती है और कार्य करने हेतु अभिप्रेरणा मिलती है।
निर्णयन क्षमता का विकास:
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता व्यक्ति/अधिकारी को किसी भी मुद्दे या समस्या की पूर्ण समझ विकसित करती है जिससे उसमें उस समस्या के समाधान हेतु उपलब्ध सभी विकल्पों का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करने की अभिक्षमता पैदा होती है जिससे व्यक्ति के सही समय पर सटीक निर्णय ले सकता है।
सम्प्रेषण क्षमता का विकास:
- किसी भी प्रशासनिक अधिकारी व नेतृत्व के उत्तम होने की सर्वप्रथम शर्त है उसकी सम्प्रेषण क्षमता का सुदृढ़ व कौशल युक्त होना।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता होने से व्यक्ति में आत्मनियंत्रण, आत्म प्रबंधन का विकास होता है जिससे वह अपनी क्षमता पहचान लेता है। साथ ही साथ परानुभूति द्वारा वह सामने वाले की जरूरत समझकर उसके स्तर पर जाकर सम्प्रेषण कौशल विकसित करता है।
कर्तव्य के प्रति अभिप्रेरणा:
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता व्यक्ति को स्वयं पहचानने, एवं प्रबंधन, स्वानुभूति के साथ-साथ परानुभूति, अन्तर्किया क्षमता आदि कौशल विकसित करती है।
- जब किसी व्यक्ति विशेष में सभी कौशलों का विकास हो जाता है तब उसे अपने कर्तव्यों के निर्वहन हेतु स्वप्रेरित प्रेरणा मिलती रहती है। जिससे वह उच्च कौशल व क्षमता के साथ कर्तव्य निर्वहन करता है।
नेतृत्व क्षमता का विकास:
- एक अच्छा नौकरशाह, राजनेता तभी बनता है जब उसमें नेतृत्व की क्षमता उच्च गुणवत्ता वाली हो और उसके व्यक्तित्व में वो आकर्षक हो कि सभी लोग उसे अनुसरण करें।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता किसी भी व्यक्तित्व में संवेदनशीलता, भावनाओ की समझ, परानुभूति द्वारा नेतृत्व क्षमता का विकास करती है।
लक्ष्योन्मुखी क्षमता:
- उच्च सांवेगिक बुद्धिमत्ता वाले लोग अपने लक्षित उद्देश्य की प्राप्ति तक कार्यरत रहते है। विपरीत परिस्थितियों ने भी स्वयं तथा दूसरों को उद्देश्य प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित करते रहते है, ऋणात्मक सांवेगिक संवदेना पर काबू पाने की दक्षता का विकास कर लेते है तथा वांछित परिणाम पाने के लिए प्रलोभन से दूर रहते है।
- हतोत्साहित होने के बाद भी आशा एवं सकारात्मक बने रहते है। इसलिए सामान्यतः ये बहुत उत्पादनशील एवं प्रभावकारी होते है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता योग्यता प्रबंधक को अपनी तथा दूसरों की भावनाओं से निपटने की शक्ति प्रदान करता है जिससे की लक्ष्य (कार्य) को बिना किसी बाधा के सम्पन्न किया जा सके। इससे प्रबंधक को नकारात्मक भावनाओं या निराशा दूर कर समस्या समाधान का सृजनात्मक रास्तों पर तुरंत वापस आ सके।
- ये परिस्थिति के अनुसार अपनी भावनाओं के प्रबंध एवं व्यक्त करते है। ये अस्वीकारात्मक लेकिन संबंधों में सहानुभूति के साथ देखभाल करने वाले होते है।
सामाजिक समझ का विकास:
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता से सामाजिक स्थिति को भी अच्छे से समझने की योग्यता का विकास होता है। दूसरे लोगों से मिलने तथा सामाजिक नेटवर्क बड़े ही सहज रूप से बनाने में मदद करती है। इन सामाजिक एवं सांवेगिक समझ से भावनाओं एवं सामाजिक समस्याओं का प्रभावकारी ढंग से रूपांतरित करने में मदद मिलती है।
- कार्यस्थलों पर संघर्षों के समाधान का प्रबंधन करने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में सांवेगिक बुद्धिमत्ता कार्य करता है। वे लोग जिनकी सांवेगिक बुद्धिमत्ता उच्च होती है वे व्यक्तिगत एवं संगठनात्मक दोनों ही स्तरों पर संघर्षों को नियंत्रण प्रबंधन एवं हल कर सकते है।
स्वनियंत्रण क्षमता का विकास:
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता वाले लोगों में संबंध उच्च स्तर का स्व-नियंत्रण के साथ ही साथ स्व-अभिप्रेरणा की क्षमता होती है। वे जीवन के हर पहलू के प्रति में सकारात्मक तथा सक्रिय होते है। गोलमैन ने सही कहा है कि प्रभावकारी नेता संकटमय स्थिति में भी सामान्य स्थिति में रहते है तथा इनमें सांवेगिक बुद्धिमत्ता भी उच्च स्तर पाया जाता है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता नेतृत्व की आत्मा है, इसके बिना दुनिया में कोई भी व्यक्ति उच्चतम प्रशिक्षण विश्लेषणकारी नास्तिष्क तथा अंतहिन लुभावने विचारों को दे सकता है, तो भी वह एक महान नेतृत्वकर्ता नहीं बन सकता है।
संबंधों में सामंजस्यता:
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता संबंधों को ज्यादा प्रभाविता से प्रबंधन की क्षमता का विकास करती है इससे ज्यादा सकारात्मक संबंध निर्मित होता है इससे लोकप्रिय होने और सामाजिक रूप से सुरक्षित होने में मदद मिलती है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता प्रबंधक की कार्यस्थल पर स्वयं तथा दूसरों की भावनाओं को समझने में मदद करता है क्योंकि संगठन में लोगों का व्यवहार तथा उनके व्यक्तिगत निर्णय में भी प्रतिक्षण उनकी भावनाओं को निगरानी मनोवैज्ञानिक अंतदृष्टि से करना बहुत ही मुश्किल है। इसी से त्वरित उनके आत्मविश्वास तथा आत्म स्थिति में सुधार होता है।
अनुशासनात्मक समस्या का समाधान:
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता कार्यस्थल एवं व्यक्तिगत रूप से अनुशासन बनाये रखने हेतु मानसिक विकास करती है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता से व्यक्ति अनुशासन के प्रति संवेदनशील हो जाता है। तथा व्यक्ति/कर्मचारी अनुशासन के लाभ-हानि की परख कर सकने की क्षमता से युक्त हो जाता है।
कार्यस्थल पर सफलता:
- उच्च सांवेगिक बुद्धिमत्ता युक्त व्यक्ति ज्यादा सफल होते हैं। डेनियल गोलमैन के अनुसार उच्च सांवेगिक बुद्धिमत्ता वाले व्यक्ति कार्यस्थल पर ज्यादा लोकप्रिय व सफल होते हैं।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता व्यक्ति में स्वीकार्यता व लचीलेपन के गुण का विकास करती है जिससे व्यक्ति नवाचारों व नये अनुभवों का तार्किकता से स्पष्ट करता है। जिससे वह परंपरागत ढ़र्रे वाली सोच से बाहर निकलकर नयी सोच विकसित करता है जिससे कार्यस्थल पर नवीनता के साथ कार्य के प्रति जोश व उत्सुकता बनी रहती है।
परानुभूति:
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता से परानुभूति का विकास होता है। परानुभूति किसी एक समस्या को दूसरे की स्थिति से समझने की योग्यता है।
- यह समझ किसी भी नौकरशाह व नेता की सफलता के लिए प्रमुख गुण है। उदाहरणतः अगर मुजफ्रफरनगर के दंगों में नौकरशाहों व राजनेताओं में परानुभूति की क्षमता होती तो शायद दंगें ना होते।
दबाव मुक्त क्षमता का विकास:
- किसी भी कार्य का दबाव तब महसूस होता है जब उसकी उत्पादकता और प्राथमिकता की गति धीमी होती है। और यह धीमी गति दबाव व परेशानी का निर्माण करती है।
- जिन व्यक्तियों में उच्च सांवेगिक बुद्धिमत्ता होती है उनमें कार्य की उत्पादकता व प्राथमिकताओं के प्रति संवेदनशीलता होती है। साथ ही साथ उत्पाद के प्रति सजगता विकसित होती है। जिसमें व्यक्ति कार्य को दबाव मुक्त होकर उल्लास के साथ पूर्ण करता है।
कुशल प्रबंधन की क्षमता का विकास:
- सांवेंगिक बुद्धिमत्ता से प्रबंधकों के बीच समझ का विकास होता है, समझ सांवेगिक बुद्धिमत्ता का मुख्य आयाम है, यह वह योग्यता है, जिससे की हम दूसरों की समझ एवं उनकी भावनाओं के प्रति संवेदनशील होते है तथा समझ सकते है, कि संगठन में दूसरे लोग क्या महसूस या चाहते है।
- समझ के द्वारा ही हम दूसरों की समस्या जान सकते है, जिससे कि स्वयं को दूसरे के स्थान से स्थिति का आकलन कर सके।
- यह ठीक इसी प्रकार का कार्य है, जिसमें हम अपने पैर दूसरों के जूतों में रखते है। इसलिए प्रभावशील संचालन के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्तिगत भावनायें, प्राथमिकताएं तथा पूर्वधारणा से दूर होकर दूसरों की बातें भी स्पष्ट रूप से सुन सके।
सेवा/सहयोग की भावना का विकास:
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता सहयोग की भावना, सहानुभूति का विकास करती है। यह दूसरे की कठिनाइयों को उसकी जगह अपने आप को रख कर सोचने की प्रतिभा विकसित करती है।
- जो एक लोक सेवक के लिए अनिवार्य है। एक लोक सेवक अपने कर्तव्य को नागरिक के कल्याण के लिए उपयुक्त ढंग से लगाना है चाहे समस्या सामाजिक या प्रशासनिक हो।
अनुकूलन एवं समायोजन क्षमता का विकास:
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता जिस व्यक्ति में अधिक होती है उनमें अनुकूलन क्षमता भी अधिक होती है तथा सामाजिक समायोजन करने की क्षमता अधिक होती है।
- यह क्षमता विभिन्न परिस्थितियों में अपने आप को ढालने हेतु अनुकूलित करती है और व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में निराश न होकर उसे चुनौती के रूप में लेते हैं।
- यह सफलता की कुँजी है जो विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल परिस्थिति में परिवर्तित कर देती है और सर्वश्रेष्ठ सफलता प्राप्त करता है। इसलिए लोक सेवक/प्रबंधक में अनुकूलन व समायोजन क्षमता होनी चाहिए।
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सांवेगिक बुद्धिमत्ता का कार्य स्थलों में विकास हेतु रणनीति एवं सुझाव
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता कोई जन्मजात गुण नहीं है, वरन यह सीखी गयी, अर्जित और सुधार योग्य गुण है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता प्रशिक्षण तथा व्यवहारगत परिवर्तन पर शोधकर्ताओं ने ये सुझाव दियें है, कि कार्यस्थलों पर किसी बड़ी उम्र के लोगों को अधिक सांवेगिक बौद्धित्व का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता किसी भी संगठन के आधार रेखा के निर्माण में सहयोग करती है। यह मानव विकास व्यवसायिकों एवं वरिष्ठ प्रबंधक या अपनी कंपनी को अधिक उत्पादनशील एवं लाभप्रद बनाना चाहते है।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता सीखने के अंतर्गत किसी भी भावना को जानना तथा अच्छे निर्णय लेने के लिये उनका प्रयोग, हतोत्साहित होने की स्थिति में आशा बनाये रखना, सहानुभूति, दया भाव सीखना तथा संबंधों का प्रभावशाली एवं सफलतापूर्वक प्रबंधन आदि में दक्षतायें परिवार प्रबंधन, जीवनचर्या, तथा कार्यस्थलों पर व्यवहार आदि बनाये रखने में बहुत ही महत्वपूर्ण है।
- सृजनात्मक नेतृत्व के केंद्र में यह पाया गया कि कार्यों के पूर्ण न होने के प्रधान कारकों में सांवेगिक पक्षों का विकास नहीं होना है। जैसे कि समझ की कमी स्वयं या दूसरों की भावनाओं की प्रतिक्रियाओं एवं उनका वर्णन।
- इस प्रकार के लोगों को विशेष रूप से आयोजित कार्यशाला के माध्यम से सांवेगिक दक्षता का प्रशिक्षण दिया जा सकता है। यह उन लोगों के बहुत ही कारगर सिद्ध होगी जो कि संघर्षों को सुलझाते है, समझौता-वार्ता करते है।
कार्यस्थलों पर निम्नलिखित सांवेगिक दक्षता को सिखाया जा सकता है-
- दूसरों की भावनाओं की पहचानना एवं समझने की योग्यता का विकास करना। यह स्वयं की संवेदना समझने की भी योग्यता है।
- कार्यस्थल पर सांवेगिक बुद्धिमत्ता के विकास हेतु भावनात्मक कहानियां सुनना चाहिए, इससे भावनाओं को पहचानने एवं व्यक्त करने में सहायता मिलेगी।
- अपने भावनाओं के लिए पूर्व जिम्मेदारी लेना सीखे।
- अपनी संवदेनाओं को पूर्णरूप से महसूस करें एवं उन्हें पूर्व विकास हेतु अवसर देना सीखे।
- भावनाओं के कारणों को प्रकाशित एवं स्पष्ट रखे।
- अपने आस-पास के लोगों की भावनाओं की पहचान एवं समझने की क्षमता का विकास करें। सांवेगिक बुद्धिमत्ता दूसरों की भावनात्मक अनुभवों का समझने की योग्यता है। जिससे कि कार्यस्थलों पर दूसरों की भावनात्मक प्रतिक्रिया को निश्चित रूप से समझने में सहायता मिलेगी।
- भावनाओं को उपयुक्त एवं अनुकूलित रूप से अभिव्यक्त करें। इस क्षमता से दबाव को कम करने में मदद मिलेगी।
- भावनात्मक एवं बौद्धिक बुद्धि को बढ़ावा देने के लिए भावनाओं का परिवर्तित नियंत्रण करे। यह भावनाओं के नियंत्रण एवं भावनाओं की वांछनीय एवं अवांछनीय विशेषताओं को समझने की क्षमता है।
- स्वयं तथा दूसरों में भावनाओं को निंयत्रित करना सीखे। इस योग्यता से संवदेना के नियंत्रण एवं लालच को टालने में मदद मिलेगी।
- भावनाओं के मूल में पर्याप्त विश्वासों को पहचानना सीखे तथा उन्हें इस बात के लिए प्रशिक्षित करें कि वे अक्षम विश्वास हो हटा दें। जिससे अधिक शक्तिशाली विश्वास को लाया जा सके।
- सांवेगिक बुद्धिमत्ता को सीखाया, पढ़ाया जा सकता है, जिससे की भावनात्मक प्रशिक्षण कार्यक्रम का विकास होगा जैसा कि ऊपर वर्णित किया गया है। जिससे कि प्रबंधक एवं कर्मचारियों के बीच भावनात्मक योग्यता बढ़ेगी और इस प्रकार संपूर्ण संगठनात्मक प्रदर्शन एवं सफलता में वृद्धि होगी।
- संगठनों को कार्यस्थलों पर नयी शिक्षा एवं नवाचारों के अनुप्रयोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि भावनात्मक दक्षता को सीखने तथा व्यक्तित्व के उन गुणों को बढ़ाने में मदद मिलेगी। जो कि सांवेगिक बुद्धिमत्ता से बेहद मजबूत रूप से संबंधित है।
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