समानुभूति/तदनुभूति (Empathy)
- यह एक ग्रीक शब्द है जिसे एडवर्ड ब्रेडबोर्ड द्वारा पहली बार प्रयोग किया गया था। मूल रूप से समानुभूति और सहानुभूति को समान अर्थ में प्रयोग किया जाता है, लेकिन समानुभूति या तदनुभूति एक गहरा भावनात्मक अनुभव है।
- दूसरों द्वारा महसूस की जा रही भावनाओं को पहचानने की क्षमता ही समानुभूति है या यह एक ऐसी क्षमता है, जिसके जरिए किसी दूसरे व्यक्ति के सोच-विचार, भाव और स्थिति को पहचाना जाता है।
- भारत में सिविल सेवकों की उदासीनता (Apathy) और असमानुभूति (Antipathy) अक्सर चर्चा का विषय बनती है। अंग्रेजी और अंग्रेजियत से भरी आजादी के पहले की अफसरशाही में भारतीय लोगों की तकलीफों के प्रति असमानुभूति थी, क्योंकि यह कुलीन अंग्रेजों से (Elite British Man) से भरी थी और जिसे औपनिवेशिक हितों के संरक्षण के लिए नियुक्त किया गया था।
- आजादी के बाद की अफसरशाही में जनहितों के प्रति असमानुभूति तो नहीं थी, क्योंकि यह भारतीय थे और लोकतंत्र के भीतर काम करते थे। लेकिन लोगों की तकलीफों के प्रति उदासीनता (Apathy) इसमें मौजूद थी।
- सिविल सेवा में ऐतिहासिक रूप से मौजूद रही लोगों के तकलीफों के प्रति असमानुभूति और उदासीनता को समाप्त करने के लिए सिविल सेवकों के लिए समानुभूति के बुनियादी मूल्यों की सिफारिश की जाती है।
- यह प्रशासनिक सुधारों के अंतर्गत एक चर्चित समस्या रहीं हैं। 1951 में भारत के योजना आयोग ने यह पता लगाने के लिए कि फ्क्या प्रशासनतंत्र नियोजित विकास की जरूरतें पूरा करने के लिए उपयुक्त और साधन संपन्न था ए. डी. गोरवाला समिति का गठन किया था।
- गोरवाला समिति ने अन्य बातों के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारियों की ‘संलग्नता की भावना’ की कमी की तरफ जिक्र किया था। आजादी के पहले गांधीजी ने शिक्षितों की निष्ठुरता को अपने लिए सबसे दुःस्वप्न बताया था। वास्तव में शिक्षितों की इस निष्ठुरता के अंतर्गत प्रशासकों की निष्ठुरता भी शामिल है।
- पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कई बार सिविल सेवकों की उदासीन जीवन शैली तथा साधारण जनता से पृथक रहने की प्रवृत्ति की आलोचना की थी तथा उन्हें इस बात पर दुख हुआ कि किसानों की समस्याओं के विचार के समय बाकी सब उपस्थित थे, लेकिन किसान ही अनुपस्थित थे।
- अक्सर अखबारों में राशनकार्ड बांटने, विस्थापितों की तकलीफों को न समझने, आपदा की चेतावनी के बावजूद समय से पहले उपयुक्त कदम न उठाने जैसी नौकरशाही की उदासीनता की खबरें अखबारों में प्रकाशित होती है।
- मुद्दे सिविल सेवकों की संलग्नता की भावना की कमी निष्ठुरता या उदासीनता की तरफ संकेत करते हैं। श्रीलाल शुक्ल के प्रसिद्ध हिंदी उपन्यास राग दरबारी में भारतीय अफसरशाही की उदासीनता की तमाम कहानियां अंकित की गयी है।
- भारत की प्रशासनिक तस्वीर का एक दूसरा रूप भी है। भारत में कुछ ऐेसे भी सिविल सेवक हैं, जिन्हें कुछ घटनाएं भीतर तक झकझोर देती हैं और वे इस सुचिंतित कार्यक्रमों का शुरुआत कर देते हैं। ऐसी ही एक घटना है गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी अमरजीत सिंह की।
- अमरजीत सिंह ने देखा कि दो गांव वाले एक महिला को बांस पर बिठाकर ला रहे थे। महिला गर्भवती थी और ऐसा लग नहीं रहा था कि इस दुष्कर यात्र में नजदीक के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर पहुंचने तक वह जीवित भी रह पाएगी।
- ऐसी परिस्थिति से गुजरने वाली वह अकेली महिला नहीं थी, क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रसव के दौरान 1.25 लाख माताओं की मौतें हर वर्ष होती है।
- अमरजीत सिह ने समस्या का गहराई से अध्ययन किया। उन्होंने सरकारी चिकित्सकों की पर्याप्त संख्या नहीं होना एक कारण पाया। अमरजीत सिंह ने चिरंजीवी योजना में निजी प्रसव विशेषज्ञों को शामिल कर लिया।
- 2000 से गुजरात के पांच जिलों में शुरू हुई इस योजना की मदद से जनवरी तक 208079 माताओं का सुरक्षित प्रसव हुआ। पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण सचिव पी. के. होता ने अमरजीत सिंह की उपलब्धि को इन शब्दों में बयान किया ‘अमरजीत सिंह ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में सार्वजनिक निजी साझेदारी को इस तरह विकसित किया जिससे गति और दक्षता बढ़ सके।’
- यह मामला बताता है कि जहां संलग्नता की कमी या निष्ठुरता प्रशासनिक दक्षता को कम करती है, वहां दूसरों की पीड़ाओं को समझने और महसूस करने की क्षमता प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाती है।
- दूसरों की तकलीफों और संवेगों को महसूस करने (Feeling) और समझने (Understanding) को समानुभूति कहते हैं। समानुभूति, असमानुभूति के विपरीत और उदासीनता से भिन्न होती है। असमानुभूति में कोई व्यक्ति लोगों के तकलीफ को समझने और महसूस करने की बात तो दूर वह उनके विपरीत होता है।
- समानुभूति उदासीनता (Apathy) से भिन्न होती हैं, जबकि सहानुभूति (Sympathy) से बहुत आगे की भावना है। उदासीनता की मनोदशा में कोई व्यक्ति दूसरे के तकलीफों व संवेगों को न तो महसूस करता है, और न समझता है।
- वह दूसरे व्यक्ति के साथ संलग्न ही नही होता है। सहानुभूति दूसरे के तकलीफ को महसूस करते हैं, लेकिन उसे समझे भी और करूणा भी हो यह आवश्यक नही है।
- प्रसिद्ध मनोविज्ञानविद् बैरन एवं बायर्न के अनुसार किसी व्यक्ति की ऐसी संवेगात्मक प्रतिक्रियाएं जो दूसरे लोगों पर फोकस होती है, या जिसका रूझान दूसरे की तरफ होता है और जिससे करूणा की अनुभूति, सहानुभूति, हमदर्दी और चिंताए शामिल होती है, उसे समानुभूति कहते हैं।
- इस तरह समानुभूति में सहानुभूति शामिल होती है। यदि हम किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति समानुभूति रखते हैं तो इससे हमारी सहायता करने की प्रवृत्ति और मजबूत होती हैं। किंतु सहानुभूति सहायता की प्रवृत्ति की तरफ जाए यह आवश्यक नहीं है।
- समानुभूति की अभिव्यक्ति पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के उस कथन में होती है, जिसमें उन्होंने कहा था फ्मैं आपकी पीड़ा महसूस करता हूं और आपकी पीड़ा समझता हूँ।
- समानुभूति में दो पहलू पाए जाते है एक, समानुभूति वाला व्यक्ति वह महसूस करता है, जो दूसरा महसूस करता है। दूसरा, समानुभूति वाला व्यक्ति वह समझ सकता है जो दूसरा महसूस करता है।
- पहले घटक को भावनात्मक घटक कहते हैं। दूसरे घटक को संज्ञानात्मक घटक कहते हैं। मनोविज्ञानविदों का मानना है कि समानुभूति का भावनात्मक घटक सभी प्राणियों में होता है।
- जबकि समानुभूति का संज्ञानात्मक घटक केवल मनुष्य में होता है। दूसरों की तकलीफ या संवेगों को दूसरे के परिप्रेक्ष्य से समझने की योग्यता (The Ability to Consider to View point of Another Person) केवल मनुष्य में होती है। सामाजिक मनोवैज्ञानिकों के अनुसार समानुभूति दूसरों के तकलीफों या संवेगों के तरीके का परिप्रेक्ष्य ग्रहण करते है।
परिप्रेक्ष्य ग्रहण तीन प्रकार का होता है-

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- किसी व्यक्ति के मन में समानुभूति उत्पन्न होने का एक तरीका यह होता है कि किसी घटना का दूसरे व्यक्ति पर परिणाम क्या होगा, इसकी कल्पना के द्वारा वह चीजों को समझता है। इसे राहगीर की समानुभूति (जो भूकंप, आतंकवादी हमला या सूखा से गुजर रहे होते है) कहते है।
- किसी भूकंप, आंतकवादी हमला या सूखा की आपदा या त्रासदी से न गुजरने वाले भी जब ऐसे लागों की मदद के लिए आगे आते हैं, तो इसे अन्य कल्पना परिप्रेक्ष्य के तरीके पर आधारित समानुभूति कहते हैं।
- ब्रिटेन की दिवंगत राजकुमारी डायना ने बारूदी सुरंगों के खिलाफ पाबंदी लगाने का संघर्ष अन्य कल्पना परिप्रेक्ष्य पर आधारित समानुभूति का उदाहरण है। ‘माई नेम इज खान’ नामक बालीवुड की फिल्म में खान का मदद करना अन्य कल्पना परिप्रेक्ष्य पर आधारित समानुभूति है।
- किसी व्यक्ति के मन में समानुभूति उत्पन्न होने का दूसरा तरीका यह होता है कि वह कल्पना करें कि कोई घटना यदि उसके साथ होती तो उसे कैसा लगता। यह स्व कल्पना परिप्रेक्ष्य है। जैसे बाढ़ या तूफान की घटना को देखने के बाद उसे अपने ऊपर लगाकर देखना कि उसका परिणाम क्या होगा यह स्व कल्पना परिप्रेक्ष्य है। स्व कल्पना परिप्रेक्ष्य पर आधारित समानुभूति में सहायता की प्रवृत्ति तीव्र होती है।
- लोग अधिक समानुभूति व्यक्त करते हैं, जब उन्होनें उसी प्रकार की आपदा का सामना किया हो। उदाहरण के लिए जो लोग पहले तूफान का सामना कर चुके होंगे वे तूफान से प्रभावित व्यक्तियों के प्रति विशेष रूप से प्रतिक्रियात्मक होंगे।
- जिन्होंने भूस्खलन एवं बाढ़ का सामना किया होगा, वे उन लोगों की तुलना में जिन्होंने ऐसी विपदा न झेली हो, जैसे बाढ़ पीडि़तों के प्रति अधिक प्रतिक्रिया करेंगे। गरीबी का अनुभव झेल चुके व्यक्ति गरीब व्यक्ति के प्रति अधिक गहन संवेगात्मक प्रतिक्रिया व्यक्ति करते है।
- किसी व्यक्ति के मन में समानुभूति पैदा होने का एक तरीका फैंटेंसी भी होती है। इससे समानुभूति एक कल्पित चरित्र, कल्पित व्यक्ति या जानवर के लिए होती है। टाइटैनिक फिल्म देखने के दौरान अंत में टाइटैनिक जहाज का डूब जाना और अपनी प्रेमिका के लिए कुर्बानी को देखकर फिल्म के अन्य पात्रें के साथ रोना फैटेंसी के आधार पर पैदा हुई समानुभूति है।
कमजोर वर्गों के प्रति नीति निर्धारण में अन्य अनुप्रयोग
- समानता आधुनिक युग का मूल्य माना जाता है। आधुनिक युग से पहले सभी को मनुष्य होने के नाते समान मानने की न तो सोच थी और न ही चलन और व्यवहार। आधुनिक युग में सिविल सेवा के लिए एक बुनियादी मूल्य समानता माना जाता है।
- आधुनिक युग में निजी जीवन और सार्वजनिक जीवन दोनों के लिए समानता के मूल्यों को स्वीकार किया गया। प्राचीन युग और मध्य युग में न तो परिवार के चारदीवारी के भीतर निजी जीवन में और न ही परिवार के बाहर के राजनीति, प्रशासन आदि के सार्वजनिक जीवन में समानता को स्वीकार किया जाता था।
- समानता के बजाय असमानता स्वाभाविक मानी जाती थी और दास बनाने जैसी असमानतापरक प्रयासों को व राजतंत्र जैसी शासन प्रणालियों को लोग न तो अस्वाभाविक मानते थे न ही अस्वीकार करते थे किंतु आधुनिक युग को निर्मित करने में तीन क्रांतियों में फ्रांसीसी क्रांति ने प्रत्यक्ष रूप में और ब्रिटेन और अमेरिकी क्रांति के अप्रत्यक्ष द्वारा मानव मात्र के समान होने के मूल्य को स्वीकार किया है।
- सामाजिक जीवन में दास प्रथा को नकारना और जीवन में राजतंत्र को नकारने के आधार में समानता का मूल्य निहित है। इससे प्रशासनिक क्षेत्र में सिविल सेवा के लिए समानता भी एक बुनियादी मूल्य के रूप में स्वीकार की गयी है।
- हालांकि ब्रिटेन में 1994 में सार्वजनिक जीवन के मानकों पर बनायी गयी नोलन समिति या किसी अन्य समिति ने सिविल सेवा के बुनियादी मूल्य के रूप में समानता का उल्लेख नही किया।
- इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि राजनीतिक क्षेत्र में लोकतंत्र में एक व्यक्ति एक मत का सिद्धांत कानूनी, न्यायिक क्षेत्र में विधि के समक्ष समता और विधियों के समान संरक्षण का सिद्धांत, धर्म के क्षेत्र में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के अंतर्गत धार्मिक समानता का मूल्य स्वीकार कर लिए जाने से सामाजिक जीवन में दास प्रथा, नस्लीय भेदभाव, लिंगीय भेदभाव को नकारने वाले कानूनों को बनाकर यह मान लिया गया कि सिविल सेवा में समानता का मूल्य अपने आप स्थापित हो जाएगा।
- इसका दूसरा, कारण यह है कि यह मान लिया गया कि आधुनिक युग, विचारधारा, संस्थाओं, और मूल्यों की दृष्टि से आधारभूत तौर पर समतावादी है।
- अमर्त्य सेन ने अपनी किताब ‘आइडिया ऑफ जस्टिस’ में लिखा है कि आधुनिक युग की प्रत्येक विचारधारा किसी न किसी रूप में समानता के मूल्य को स्वीकार करती है।
- किन्तु 2004 में गठित भारत के द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अन्य मूल्यों के साथ-साथ भारत में सिविल सेवकों के लिए कमजोर वर्गों के लिए सहानुभूति के साथ नागरिकों के साथ एक समान व्यवहार के मूल्य को स्वीकार करने का सुझाव दिया गया। यहां दो प्रश्न उठते है?
- पहला कमजोर वर्ग से आशय क्या है? दूसरे जब दुनिया में कहीं भी सिविल सेवकों के लिए बुनियादी मूल्य के अंतर्गत न तो समानता के मूल्य का अलग से उल्लेख किया जाता है, और न ही समानता का तथा कमजोर वर्गों के लिए सहानुभूति,नागरिकों के साथ समान व्यवहार का तो फिर तो भारत में इसे अलग से उल्लेख करने की आवश्यकता क्यों पड़ी।
- भारत में कमजोर वर्ग को पहचानने का आधार आर्थिक भी है, और सामाजिक भी। सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर भारत में अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां, अन्य पिछडे वर्ग, अल्पसंख्यक, महिलाएं और विकलांग कमजोर वर्ग है।
- भारत में अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक, महिलाओं, विकलांगों और बच्चों के प्रति सहानुभूति रखते हुए व्यवहार करना कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति और सहिष्णुता है।
- चूंकि भारत में सामाजिक असमानता और भेदभाव के विभिन्न रूप बहुत समय से मौजूद रहे है। इसलिए कमजोर वर्ग के कल्याण एवं सशक्तिकरण के लिए कानूनी न्याय की धारणा को पर्याप्त नही माना गया है। कमजोर वर्ग के कल्याण एवं सशक्तिकरण के लिए सामाजिक न्याय को आवश्यक माना गया है।
- अपने सबसे स्थूल रूप से सामाजिक न्याय का विचार विशेष जरूरतों का विशेष खयाल रखने का सिद्धांत है। इस सामाजिक न्याय के विचार के अनुरूप भारत में दर्जनों फ्रलैगशिप कार्यक्रम चलाए जा रहे है। इन फ्रलैगशिप कार्यक्रमों को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित करने का कार्य सिविल सेवक करते हैं।
- इंदिरा आवास योजना के तहत कमजोर वर्गों को मकान आवंटन का कार्य हो या मनरेगा के तहत अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के खेतों तक में काम के आवंटन की प्राथमिकता हो, ये सभी कमजोर वर्गों के प्रति करूणा एवं सहिष्णुता के बिना सुचारू रूप से संपादित नही किया जा सकता है।
- इस तरह सिविल सेवा का बुनियादी मूल्य कमजोर वर्गों के प्रति सहिष्णुता और करूणा में गहराई से सामाजिक न्याय के विचार से जुड़ा है। इसीलिए द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग भारत के सिविल सेवकों के लिए इसे बुनियादी मूल्य के रूप में स्वीकार किया है।
- सिविल सेवा में एक जिलाधिकारी की दृष्टि से देखे तो उसे कानून व्यवस्था, विकास प्रशासन, राजस्व प्रशासन, लोक शिकायतों का निपटारा, चुनाव प्रबंधन, प्राकृतिक आपदाओं का प्रबंधन, वीआईपी तथा वीवीआईपी दौरों की देख रेख के काम करने पड़ते है।
- इसमें फ्रलैगशिप कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में वह अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़े, अल्पसंख्यकों, महिलाओं, विकलांगों एवं बच्चों के प्रति हमदर्दी व दया रखें, विकास प्रशासन से जुड़ा पहलू है।
- इसके साथ ही कानून व्यवस्था, प्राकृतिक आपदाओं के मामले में भी सिविल सेवक को कमजोर वर्गों के प्रति दया एवं हमदर्दी की संवेदना रखना अपेक्षित है। जैसे पुलिस व्यवस्था अमीर प्राधिकृत और मुखर शिकायतकर्ता के लिए मददगार बनें, तो इससे प्रशासन कारगर नही बन जाता है।
- प्रशासन के निष्पक्ष एवं कारगर होने का पता तब चलता है जब गरीब, वंचित और पीडि़त के लिए मददगार हो। असमानतापूर्ण समाज होने के कारण भारत के सिविल सेवा का कानून व्यवस्था से लेकर विकास प्रशासन तक में कारगर होने का रास्ता सिविल सेवकों के लिए कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति और दया के बिना संभव नही है।
- इसी तरह सिविल सेवा को नीतियों को बनाने वाले संगठनों की दृष्टि से भी देखा जाए तो इस स्तर पर भी कमजोर वर्गों के प्रति सहिष्णुता और करूणा के आधार पर नीतियां बनाना चाहिए। किंतु इसका यह मतलब नही है कि, सभी लोगों के साथ पूरी तरह से समान व्यवहार किया। इसका यह मतलब है कि, समान लोगों के साथ समान व्यवहार और असमान लोगों के साथ असमान व्यवहार।
- कमजोर वर्गों को असमान वर्ग मान कर, सबल वर्ग से भिन्न व्यवहार किया जाना चाहिए। प्रख्यात विचारक जॉन राल्स ने अपने सामाजिक न्याय के सिद्धांत में प्रतिपादित किया था कि नागरिक आजादियों और अवसर की समानता दे देने के बाद हाशिये पर रहे लोगों के पक्ष में भेदभाव किया जाना चाहिए। जैसे परिवार में किसी बच्चे के बीमार होने पर स्वस्थ बच्चे और वयस्कों की तुलना में ज्यादा भेदभाव किया जाता है।
- ममता का अर्थ है कि अभी नागरिकों के प्रति सिविल सेवक समान व्यवहार करे। किंतु कमजोर वर्गों के लिए सहानुभूति के साथ सभी नागरिकों के साथ एक समान व्यवहार के मूल्य को स्वीकार किया जाता है। किंतु भारत में औपनिवेशिक युग और आजादी के बाद इस मूल्य के अभाव या कमी पर निरंतर चिंताए उठायी गयी।
सहिष्णुता
- सहिष्णुता का अर्थ विभिन्न व्यक्तियों के प्रति आदर एवं प्रेम के भाव का प्रदर्शन करना है। मानव की सबसे बड़ी दुर्बलता यह है कि वह अपने को श्रेष्ठ तथा दूसरे को तुच्छ समझता है जिसके फलस्वरूप संघर्ष होते है। इस संघर्ष को रोकने के लिए विभिन्न धर्मों/व्यक्तियों के प्रति सहनशीलता के दृष्टिकोण को प्रश्रय देने का आदेश निहित है।
- महात्मा गाँधी के अनुसार सहिष्णुता, अहिंसा के सिद्धांत का प्रतिफल है। अहिंसा का सिद्धांत सभी के प्रति वही आदर का भाव व्यक्त करने की सीख देता है जिसे हम अपने प्रति व्यक्त करते है।
- स्वामी विवेकानन्द ने सहिष्णुता के स्थान पर स्वीकृति संप्रत्यय के प्रयोग की आकांक्षा प्रदर्शित की है इसका कारण यह है कि सहनशीलता से निषेधात्मक अर्थ का बोध होता है। जबकि इसके विपरीत स्वीकृति से भावनात्मक अर्थ का बोध होता है। सहिष्णुता के विकास से अंर्तदृष्टि का विकास होता है।
- सहिष्णुता सभी के प्रति उदारता की भावना को प्रश्रय देने का आदेश देता है। सहिष्णुता अपने प्रति उदासीनता का प्रश्रय देने का आदेश नही देता है अपितु अपने प्रति आदर एवं प्रेम की भावना को प्रश्रय देने का आदेश देता है।
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केस स्टडी
- एक युवा दलित जो कि हाल के दिनों में गांव से शहर आया है ताकि उसे रोजगार का बेहतर अवसर प्राप्त हो सके। व्यक्ति अत्यंत ही गरीब है और साथ ही उसके पास कोई पहचान पत्र भी नहीं है जिसके कारण उसे काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
- पहचान पत्र के अभाव में किराए पर आवास भी नहीं मिल पा रहा। बगैर पहचान पत्र के नौकरी देने में नियोक्ता को भी परेशानी हो रही है। राशन और कम कीमत के भोजन का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। इन्हीं समस्याओं को लेकर यह एक अधिकारी से मिलता है। अधिकारी किस प्रकार उसकी सहायता करेगा?
- विकासशील राष्ट्र में नौकरशाह और आम जनता के बीच बेहतर संपर्क का अभाव दिखता है। साथ ही साथ नौकरशाह अपने को विशिष्ट वर्ग समझता है और आम जनता से दूरी बना लेता है। 1980 के दशक में लोक सेवा में कार्यरत लोगों के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वे एक नए ब्राह्मणवादी व्यवस्था के अन्तर्गत आते हैं।
- जितने युवा इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था में प्रवेश करते हैं, सामाजिक व्यवस्था में उच्च स्थान प्राप्त कर लेने के कारण अपने अंहकार का परित्याग करने को तैयार नहीं होते जिसके कारण इन नौकरशाहों और आम जनता के बीच दूरी बन जाती है।
- ये नौकरशाह जिन नीतियों का निर्धारण करते हैं, उसका तत्काल प्रभाव आम जनता पर होता है। दूरी के कारण ये नीतियां गलत प्रभाव डालती हैं।
- इस दूरी को केवल समानुभूति एवं करूणा के मूल्यों के द्वारा ही दूर किया जा सकता है। अगर संबंधित अधिकारी के मन में भारत भूमि के प्रति आस्था विकसित हो जाए तो वह अधिकारी ज्यादा संवेदनशील हो जाएगा।
- अध्ययन के पश्चात एक अजीबोगरीब सच्चाई उभर कर सामने आई है कि निम्न या मध्यम वर्ग के जो लोग लोकसेवक बन जाते हैं वो भी आम जनता से दूरी बना लेते हैं। अब प्रश्न यह है कि आखिर इस प्रकार की दूरी स्थायी क्यों दिख रही है।
- समस्या को समझना और उसका अनुभव करना एक बात है परन्तु इसे दूर करके बेहतर संबंध स्थापित करना एक अलग बात है। ये चीजें करूणा से ही प्राप्त की जा सकती है। नीतियों का निर्धारण जमीनी सच्चाई के आधार पर होना चाहिए और उसे बहाल करते समय लोकसेवकों में समानुभूति और करूणा का भाव होना चाहिए।
- निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि सहिष्णुता का तात्पर्य है, विभिन्न विचार, जातियां, धर्मों आदि के प्रति वस्तुनिष्ठ एवं स्वीकृत प्रवृत्ति रखना। यह एक ऐसी क्षमता है जहां पर भिन्न-भिन्न विचारधाराएं एक साथ स्थायी रूप से विद्यमान रहती है। सहिष्णुता गौरवपूर्ण जीवन और कानून का शासन जैसे मानवीय अधिकारों को स्थापित करती है।
- विभिन्न प्रकार के लोगों के बीच शांति स्थापित करने के लिए सहिष्णुता अनिवार्य है। जिस व्यक्ति में निरपेक्षता और वस्तुनिष्ठता का भाव होगा उस व्यक्ति में सहिष्णुता भी होगा।
- वैसा व्यक्ति जिसमें सहिष्णुता का गुण नहीं होता है वह संकीर्ण विचारधारा का होता है। ऐसा व्यक्ति सभ्य समाज के विरूद्ध होता है और समाज के विकास और कल्याण पर इसका विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।
कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति, संवेदना और सहिष्णुता
- कोई भी संस्था उसके समाज का आईना होती है। सामाजिक चिंतन और विचारधारा का प्रभाव वहां के संगठनात्मक लक्ष्यों में स्पष्ट रूप से दिखता है।
- अतः सरल शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि जैसा समाज होगा वैसी ही वहां की सिविल सेवा होगी। इस बात का तकनीकी पहलू यह भी है कि सिविल सेवक उसी समाज से ही आया करते हैं।
- अतः सिविल सेवा में सहानुभूति सहिष्णुता और संवेदना की अपेक्षा करने से पहले इन मूल्यों को समाज में स्थापित करना अनिवार्य है। अतः प्रथमतः इन मूल्य के विभिन्न सरोकारों का अध्ययन बारी-बारी से करते हैं।
इन पदों को समझने के लिए एक केस अध्ययन पर विचार करते हैं-
- अपार गरीबी व तंगी झेलने के पश्चात् राम ने अंततः सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। आज उसके ऑफिस का पहला दिन है। मां ने बड़े प्यार से तिलक लगाकर यह आर्शीवाद देते हुए पद ग्रहण करने हेतु भेजा कि तुम्हारे पद की गरिमा और मूल्य तभी सिद्ध हो पाएगी जब कार्य के दौरान दूसरों के दुःखों व समस्याओं को उनकी जगह रखकर स्वयं महसूस करोगे।
- राम मां की भावना को लेकर ऑफिस की ओर चल पड़ा। आज उसकी आंखों में खुशी और दर्द दोनों के आंसू नजर आ रहे थे। अब उसे पद ग्रहण करना था परंतु यहां तक का सफर तय करने में उसके मां के दर्द की कहानी एक बार फिर से उसके सामने चलचित्र की भांति उभर आयी।
- ऑफिस में आते ही लोगों ने बड़े भव्य स्वागत के साथ राम का अभिवादन किया। अचानक ही उन की नजर कोने में खड़ी एक वृद्ध महिला पर गयी, परंतु पद ग्रहण करने का प्रथम दिन व अधिक व्यस्तता के कारण वह उस महिला को ध्यान नहीं दे पाया।
- जब दूसरे दिन राम पुनः ऑफिस आया तो उस वृद्ध महिला को पुनः ऑफिस के गेट पर पाया। कार्यालय में प्रवेश करते ही राम ने अपने निजी सहायक से उस महिला की खबर प्राप्त करनी चाही। पता चला कि वह दो दिनों से नहीं बल्कि लगभग दो महीनों से इस दफ्रतर का चक्कर काट रही है।
- कारण पूछने पर पता चला कि उसे अपने पुत्र का जाति प्रमाणपत्र बनवाना है। पंरतु पुत्र के जन्म के साथ ही पति की मृत्यु और सगे-संबंधियों से बिछड़कर दूर-दराज के एक गांव में जाकर बस गयी, जहां इसके पति को कुछ जानने वाले लोग रहा करते थे।
- अब उसका पुत्र कांस्टेबल की भर्ती परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुका है परंतु जाति प्रमाण पत्र के अभाव में उसकी नियुक्ति रूकी हुई है। परंतु उस महिला के पास जाति के संदर्भ में किसी भी प्रकार की तथ्यात्मक सूचना का अभाव था।
- राम ने तुरंत उस महिला को कार्यालय में बुलाया और समाधान का भरोसा दिया। महिला के जाते ही राम मानो जैसे यादों में खो गया हो। उसे अपनी मां के वे दिन याद आने लगे, जब लोगों से पैसे मांग-मांग कर उसे पढ़ाया था। अब उसका हृदय संवेदना से भर गया।
- अपने ऊपर के अधिकारियों से बात कर गांव के पंचायत की मीटिंग बुलाकर सर्वसम्मति के साथ जाति प्रमाण पत्र बना दिया जाता है।
- प्रमाण-पत्र मिलते ही उस वृद्ध महिला ने राम को अपना हाल बताया कि आपसे पहले के अधिकारी से भी मैं बात कर चुकी थी, परन्तु उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि तथ्यों के अभाव के कारण तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता।
- आज उस वृद्ध महिला ने उसे पुनः इसी प्रकार संवेदनशील रहकर त्याग और सेवाभाव से कमजोर वर्गों की सेवा करते रहने का आर्शीवाद दिया।
केस अध्ययन का समानुभूति, सहिष्णुता और संवेदना के आधार पर विश्लेषण
- यदि उपरोक्त केस अध्ययन को समझने का प्रयास करें तो आप पाएंगे कि उस वृद्ध महिला के दुःख को देखकर राम के अंदर से जो अनुभूति हुई वह संवेदना थी।
- वहीं इस संवेदना के कारण उसके हृदय में उस महिला के लिए कुछ करने की जो इच्छा प्रकट हुई वह समानुभूति थी।
- वहीं इस समस्या के समाधान हेतु जब उसने अधिकारियों से बात करते हुए तथा ग्राम पंचायत के मध्य सर्वसम्मति बनाते हुए समायोजन करने का प्रयास किया जो सहिष्णुता का भाव प्रदर्शित कर रहा था। इस समस्या के सामाधान में उसने कभी भी न तो किन्हीं नियमों को तोड़ा और न ही किसी अन्य गलत रास्ते का प्रयोग किया।
- चलिए इन सभी तत्वों को बारी-बारी से समझने का प्रयास करते हैं। यदि समझने का प्रयास किया जाए तो समानुभूति, सहिष्णुता और करूणा का भाव परस्पर संबंधित प्रतीत होता है। चलिए इसे एक अन्य केस अध्ययन के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।
- आप राह चलते हुए एक वृद्ध महिला को असहाय और जर्जर अवस्था में कड़कती धूप में सड़क के किनारे भीख मांगते हुए देख रहे थे, तभी आपके मित्र ने उसे देखकर यह कहा कि देखों बेचारी कितनी असहाय पड़ी है।
- परंतु आपने उसकी स्थिति को देखते ही दौड़कर दुकान से एक बिस्किट का पैकेट लाकर दिया और साथ में पानी भी। उसने आपसे कहा कि बेटा मुझे सड़क पार करा दो और आपने उसे सड़क पार करा दिया।
- कई प्रश्न उठ जाते हैं कि इस दौरान क्या आपने समानुभूति व्यक्त की या दया का भाव दिखाया या सहानुभूति प्रस्तुत की? प्रायः तीनों सुनने में एक समान प्रतीत होते हैं परंतु तीनों तीन स्थिति का बोध कराते है।
- जब आपके मित्र ने उस वृद्ध महिला को देखकर जो भावना व्यक्त की वह सहानुभूति थी अर्थात् यह औपचारिक मात्र थी। परंतु जब आपने उसकी पीड़ा को देखकर मदद किया वह समानुभूति थी। परंतु वहीं जब आपने देखा था कि कुछ व्यक्ति उस महिला के सामने बिना कुछ बोले पैसे फेंक रहे थे, तब वह दया की भावना थी। इन पदों की व्याख्या हम औपचारिक शब्दावली में करते हैं।
सहानुभूति
- प्रायः सहानुभूति दुर्भाग्यपूर्ण अवस्था के लिए ही प्रयोग किया जाता है। किसी पीडि़त व्यक्ति के प्रति औपचारिक रूप से अपनी संवेदना को व्यक्त करना ही सहानुभूति है।
- जब आपने और आपके मित्र ने उस वृद्ध महिला को देखकर एक समान भावना व्यक्त की थी, परंतु आपका मित्र उन भावनाओं के प्रति औपचारिक बना रहा तो वह सहानुभूति की अवस्था पर था।
दया
- इस स्थिति में व्यक्ति पीडि़त व्यक्ति को सहायता तो प्रदान करता है, परंतु उसके प्रति निम्नता या हीनता का भाव होता है जैसे किसी भिखारी को देखकर उसके दान पात्र में कुछ पैसे डाल देना। इसी प्रकार सामान्य जीवन में व्यक्ति ईश्वर के समक्ष ईश्वर की दया प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता है।
- यहां व्यक्ति ईश्वर के समक्ष हीनता या निम्नता की स्थिति में खड़ा होता है। अतः एक सिविल सेवक को सहानुभूति और दया से अधिक समानुभूति की भावना से कार्य करना चाहिए।
समानुभूति
- यह दया और सहानुभूति से अधिक महत्त्वपूर्ण और गहरा अर्थ रखती है। वस्तुतः यह दूसरों की समस्याओं को उनके दृष्टिकोण से देखने व अनुभव करने से संबंधित है। सरलतम शब्दों में यह दूसरे की स्थिति से स्वयं को जोड़कर देखने तथा दूसरे के विचार व भावनाओं में स्वयं को रखने की क्षमता है।
- यहां दूसरे व्यक्ति की संवेदना दुख-सुख इत्यादि भावनाओं को अपने आंतरिक स्तर पर महसूस करना है न कि बाह्य स्तर पर। समानुभूति में व्यक्ति दूसरों की मनोवैज्ञानिक स्थिति में स्वयं को रखकर समझने का प्रयास करता है।
- इस प्रकार सामाजिक आर्थिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के प्रति एक सिविल सेवक में समानुभूति की भावना होनी चाहिए। यहां भावनाओं में हीनता की नहीं समरूपता की स्थिति दिखाई पड़ती है।
- अतः समानुभूति की भावना के विकास के लिए कमजोर वर्गों और समस्या से ग्रसित जनता की समस्या, परिस्थिति, परंपरा, विश्वास को आत्मिक स्तर पर समझते हुए समाधान करने का प्रयास करना चाहिए।
- इसके लिए आवश्यक है कि सिविल सेवक अपने वातानुकूलित कक्षों से बाहर निकलकर क्षेत्रें का दौरा करें उनके बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनकर वास्तविकताओं को महसूस कर समाधान का प्रयास करें।
- चलिए इसे एक व्यावहारिक-उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं। हाल ही में नक्सल प्रभावित इलाकों में तलाशी अभियान के दौरान पुलिस कर्मियों द्वारा आदिवासियों की धार्मिक और पारंपरिक भावनाओं को ठेस पहुंचाए जाने की खबर सामने आयी।
- साथ ही साथ निर्दोंष महिलाओं व बच्चों के साथ दुर्व्यवहार व अमानवीयतापूर्ण बर्ताव एक आम बात सी हो गयी है। यह एक विक्षोभ के रूप में सामने आता है। इस विक्षोभ का फायदा नक्सली उठाते हैं और आदिवासी जनों को प्रशासन के विरूद्ध तैयार करते हैं।
- स्पष्टतः यदि देखने का प्रयास किया जाए तो यहां समानुभूति का अभाव दृष्टिगोचर होता है। यह सही है कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से तलाशी ली जाए परंतु किसी की धार्मिक भावना व व्यक्तिगत मर्यादा को ठेस न पहुंचायी जाए।
- यदि स्थिति पर गौर किया जाए तो सभी आदिवासी समाज नक्सली नहीं है। इनमें से कुछ लोग ही नक्सली होते हैं और संदेह के आधार पर सभी के साथ बर्बरता पूर्ण व्यवहार करना उचित प्रतीत नहीं होता है।
- अतः आवश्यकता है कि नक्सली प्रभावित जिले के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक कार्यवाही के दौरान इस प्रकार के अमर्यादित व्यवहार को रोकने हेतु पुलिस कर्मियों में समानुभूति की भावना जाग्रत करें, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म अत्यंत प्रिय होता है और धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाकर किसी समाज में परिवर्तन लाया जाना संभव नहीं है।
- इसी कारण भारत सरकार की ओर से यह आदेश दिया गया है कि कार्यवाही के दौरान इनकी धार्मिक मान्यताओं की कद्र की जाए तथा महिलाएं, बच्चों व वृद्धों के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार को रोका जाए।
- भारतीय संविधान ने सभी को गरिमामय पूर्ण जीवन जीने का अधिकार दिया है तथा समानुभूति भी संवेदनाओं की समान अनूभूति पर आधारित है।
- समानुभूति को समझने के पश्चात् हम इस बात पर विचार करते हैं कि क्या यह एकाएक उत्पन्न होती है या कुछ क्रमिक अवस्थाओं से ही गुजर कर समानुभूति की भावना व्यक्ति में जाग्रत हो पाती है?
इसे चार भागों में बांट कर देखा जा सकता है-
स्वसमानुभूति
- प्रथमतः व्यक्ति को अपनी संवेदनाओं की समझ होनी चाहिए। सर्वप्रथम व्यक्ति अपनी भावनाओं और आंतरिक संवेदनशीलता के प्रति जागरूक हो।
- सामान्यतः इस आंतरिक अवस्था का जागरण योगाभ्यास ध्यान इत्यादि प्रक्रिया के माध्यम से किया जा सकता है।
- इस संदर्भ में सिविल सेवा प्रशिक्षण के दौरान Right Brain Development कार्यक्रम को प्रायोजित किया जाता है।
काल्पनिक समानुभूति
- इसमें एक व्यक्ति स्वयं की जागरूकता के आधार पर दूसरे के समान स्वयं को अनुभव करने लग जाता है। यहां व्यक्ति कल्पनाशील होकर दूसरे की स्थिति और भावनाओं का अनुभव करने का प्रयास करने लगता है।
प्रतिबिम्ब समानुभूति
- इसे प्रभावी समानुभूति के नाम से भी जानते हैं। इसमें एक व्यक्ति दूसरे को स्वयं में तथा स्वयं को दूसरे में महसूस करता है अर्थात् जैसी अनुभूति उसके किसी व्यवहार से होती है, वैसे ही वह दूसरों के प्रति भी महसूस करता है।
- यह समानुभूति की चरम अवस्था है, जहां दोनों पक्षों की भावनाओं का एकाकार हो जाता है।
कार्यात्मक समानुभूति
- यह समानुभूति का क्रियात्मक चरण है। अब अनुभूति प्राप्त करने वाला व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की पीड़ा, वेदना, आवश्यकता, मूल्य तथा भावनाओं के अनुरूप समाधान या सहयोग का प्रयास करने लग जाता है।
समानुभूति: प्रमुख मनोवैज्ञानिक पहलू
- भिन्न-भिन्न व्यक्ति अपनी समानुभूति की क्षमता में भिन्न-भिन्न होते है। कुछ व्यक्ति दूसरों की तकलीफ देखकर तुरंत व्यथित हो जाते हैं। कुछ तटस्थ रहते हैं और दूसरों की भावनात्मक स्थिति से अप्रभावित रहते हैं।
- लोगों की समानुभूति की क्षमता में विभिन्नता आनुवंशिक और सामाजीकरण दोनों प्रकार के कारकों का परिणाम होता है। समानुभूति की जैविक और संज्ञानात्मक क्षमता तो आनुवांशिक कारकों की देन होती है।
- यह जैविक और संज्ञानात्मक क्षमता सबमें होती है किंतु यह क्षमता कितनी विकसित होगी या कितनी सीमित या बाधित, यह समाजीकरण से जुड़ी हैं।
- समानुभूति को महसूस करने की योग्यता माता-पिता के प्यार से बढ़ती है। यह माता-पिता द्वारा स्पष्ट और प्रभावी संदेशों से बढ़ती है। ऐसे संदेश संकेत करते हैं कि दूसरों को दुखदायी व्यवहार में पीड़ा पहुंचती है, उससे समानुभूति को महसूस करने की योग्यता बढ़ती है।
- अध्ययन बताते हैं कि महिलाओं में पुरुषों की तुलना में समानुभूति का स्तर उच्च होता है। इसका कारण या तो जीव वैज्ञानिक (आनुवांशिक) है या समाज वैज्ञानिक (सामाजीकरण)। परिचितों के प्रति, साथी मनुष्यों के प्रति, या जो हमारे समरूप होते हैं, उनके प्रति समानुभूति अधिक होती है।
- अपरिचितों के प्रति समानुभूति के अंतर्गत सहायता और सहानुभूति की अधिक संभावना तभी होती है, जब समस्या का कारण बाह्य तथा प्रभावित व्यक्ति के नियंत्रण से बाहर हो।
- किसी प्रभावित व्यक्ति के द्वारा जितनी अधिक भावनात्मक व्यथा अभिव्यक्त की जाती है, उतनी अधिक सहायता प्राप्त होती है। लोग अधिक समानुभूति व्यक्त करते है, जब उन्होंने उसी प्रकार की आपदा का सामना किया हो।
सिविल सेवा में इसकी प्रासंगिकता व महत्व
- लोक सेवा में समानुभूति या तदनुभूति आवश्यक तत्व है। प्रशासक को जनता की हृदय की भावना को समझने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे उसे उनकी जरूरतों का पता चलता रहे।
- कोई भी लोकसेवक मानवीय मूल्यों की पहचान किए बिना अपने लक्ष्य तक पहुँचने में कामयाब नहीं हो सकता है।
- इसलिए सिविल सेवक को तदानुभूतिपूर्वक राष्ट्र निर्माण में सहयोग देना चाहिए।
- सिविल सेवकों को कमजोर वर्गों विशेषकर अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों की चिंताओं के प्रति संवेदी होना चाहिए।
करूणा
- करूणा मनुष्य का वह भाव है, जिसमें दूसरों के दुःख को देखकर या दूसरों के दुःख का अनुमान करने के बाद स्वयं एक प्रकार के दुःख का अनुभव करता है।
- करूणा क्रोध के विपरीत मनोविकास है। क्रोध जिसके प्रति पैदा होता है, उसकी हानि की चेष्टा की जाती है।
- करूणा जिसके प्रति उत्पन्न होती है, उसकी भलाई का प्रयास किया जाता है।
- करूणा की एक विशेषता यह भी है कि करूणा उत्पन्न होने के लिए व्यक्ति का परिचित या ज्ञात होना आवश्यक नहीं है।
- करूणा अपरिचित या अज्ञात मनुष्य के दुःख को देखकर भी पैदा होती है।
- करूणा पैदा होने के लिए मात्र दुःख के अलावा और किसी अन्य विशेषता की अपेक्षा नहीं है।
- मनुष्य के स्वभाव में सदाचार या शील और सात्विकता का संस्थापक करूणा मनोविकार है।
- सामाजिक जीवन की स्थिति और पुष्टि के लिए करूणा का प्रसार आवश्यकता है।
- न्यायी होना और करूणावान होना एक-दूसरे का विरोधी माना जाता है।
- आमतौर पर कंपैशन यानी करुणा को लोग सहानुभूति, दया के रूप में समझते हैं। दया तो वह भाव है जो केवल उस हालत में पैदा होती है, जब हम किसी को असहाय देखते हैं। लेकिन ज्यादातर लोगों को, जो अपने पांवों पर खड़े हैं, उन्हें दया या तरस की जरूरत नहीं होती। वे चाहते हैं कि उन्हें स्वीकार किया जाए, उन्हें सम्मान मिले, लोगों का प्यार मिले, न कि किसी तरह की दया।
- करुणा तो एक जज्बा है, एक जूनून है, सबको समा लेने का, अपना बना लेने का।
- केवल जूनून या जज्बा की बात करें जिसे अंग्रेजी में पैशन कहा जाता है, तो यह बुनियादी तौर पर आपको विशिष्ट बनाने की प्रक्रिया है। आपने देखा होगा कि जब दो लोग आपस में बहुत जज्बाती होते हैं, तो उनको दुनिया से कोई मतलब नहीं रह जाता। उनके लिए बाकी दुनिया गायब हो जाती है।
- जज्बातों की यही तो खूबसूरती है कि यह विशिष्ट या खास बनाती है और आपके जज्बातों की गर्मी से दुनिया भाप बन कर उड़ जाती है।
- करुणा कोई रूखी-सूखी दया नहीं है, जिसमें आप खुद को दूसरों से ऊपर समझते हैं और उनके ऊपर दया करते हैं। इसमें आपको पूरी सक्रियता से शामिल होना पड़ता है, यह एक जूनून है। करुणा सबको शामिल करने का, सबको समाहित करने का जज्बा है। यह किसी दूसरे भाव या जज्बात से कई गुना ज्यादा व्यापक है।
- आप जो कुछ भी देखते हैं, उसके प्रति आपके मन में एक भावना जगती है। जिस हवा में आप सांस लेते हैं, जिस जमीन पर आप चलते हैं, जो भोजन आप करते हैं और जिन लोगों से आप मिलते हैं या नहीं भी मिलते, उन सबके प्रति आपके मन में एक जज्बात पैदा होने लगता है। यही करुणा है जहां हर चीज के लिए एक जज्बात है। तो करुणा यानी कंपैशन का मतलब कम पैशन नहीं होता, बल्कि यह तो पैशन (जूनून) का व्यापक रूप है।
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