हैदरअली (Haider Ali)
मैसूर
- तालीकोटा के युद्ध (1565) के बाद विजयनगर साम्राज्य कमजोर हो गया। 1612 सी.ई. में वाड्यार राजवंश की स्थापना हुई। 1704 सी.ई. में मैसूर के राजा चिक्का देवराज ने औरंगजेब की अधीनता स्वीकार कर ली।
- 18वीं शताब्दी के मध्य में मैसूर राज्य के शासक चिक्का कृष्णराज के शासन काल में उसकी वास्तविक शक्ति उसके दो मंत्री देवराज (प्रमुख सेनापति-दलबई) तथा नंदराज (राजस्व-वित्त नियंत्रक सर्वाधिकारी) नामक दो भाईयों के हाथ में आ गई।
- नंदराज मैसूर राज्य का सर्वेसर्वा हो गया और इसी के काल में हैदरअली (Haider Ali) ने अपना सैनिक जीवन प्रारंभ किया था।

हैदरअली (Haider Ali) का उत्कर्ष
- हैदरअली (Haider Ali) का जन्म 1721 सी.ई. में मैसूर राज्य के कोलार जिले में बुदिकोट नामक स्थान पर हुआ। उसके पूर्वज दिल्ली से गुलबर्गा आए और कृषि करते थे।
- इसके पिता फतेह मुहम्मद मैसूर राज्य में फौजदार थे। इनकी मृत्यु 1728 सी.ई. में हुई।
- हैदरअली (Haider Ali) ने अपना सैनिक जीवन मैसूर के नाममात्र राजा चिक्का कृष्णराज के समय नंदराज के यहाँ शुरू किया।
- प्रधानमंत्री नंदराज ने उसकी योग्यता से प्रभावित होकर 1755 सी.ई. में डिंडिगुल का फौजदार नियुक्त किया।
- हैदरअली (Haider Ali) ने 1755 सी.ई. में डिंडिगुल में फ्रांसिसियों की सहायता से एक आधुनिक शस्त्रगार की स्थापना की। इसने अपना सलाहकार खांडेराव नामक एक ब्राह्मण को नियुक्ति किया।
- हैदरअली (Haider Ali) की योग्यता से प्रभावित होकर नंदराज ने 1759 सी.ई. में उसे मैसूर का सेनापति नियुक्त किया।
- राजमाता का समर्थन प्राप्त कर हैदर ने नंदराज का अंत कर दिया और 1761 सी.ई. में स्वयं को मैसूर का शासक घोषित किया।
- 1763 सी.ई. में उसने बेदनूर का नाम बदलकर-हैदरनगर कर दिया। हैदरअली ने मालाबार के नायकों का दमन कर उस पर अधिकार किया और सुंदी (सुन्दा), सीरी, कनारा, गुन्टी को अपने राज्य में मिला लिया।
- 1764 सी.ई. में पेशवा माधवराव ने मैसूर पर आक्रमण कर ‘हलीबली के मैदान’ में हैदर को पराजित किया,
- परिणामस्वरूप मार्च 1765 सी.ई. में हैदरअली को मराठों से संधि करनी पड़ी और उन्हें 32 लाख रुपए तथा गुन्टी तथा सावानूर के जिले देने पड़े।
- हैदर अली दक्कन में भारतीय शक्तियों में पहला व्यक्ति था जिसने अंग्रेजों को पराजित किया।
- इसके समय प्रथम एवं द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध में घायल हो जाने से 1782 सी.ई. में हैदर की मृत्यु हो गयी।
- हैदरअली (Haider Ali) धार्मिक दृष्टि से उदार था। उसने मैसूर की चामुण्डेश्वरी देवी के मंदिर को दान दिया।
- उसके तांबे व सोने के सिक्कों पर शिव, पार्वती तथा विष्णु की आकृतियां अंकित थी। उसने दरिया दोलत नामक भवन, लाल बाग, गंजम शहर का निर्माण कराया।
- अपनी नौसेना की कमी को समझते हुए उसने एक बार कहा था – ‘मैं भूमि से उनके शक्ति साधनों को तो नष्ट कर सकता हूं परन्तु मैं समुद्र को नहीं सुखा सकता।’
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-69 सी.ई.)
- 1765 सी.ई. में निजाम मराठे और अंग्रेजों का गुट हैदरअली (Haider Ali) के विरुद्ध था। हैदर ने सबसे पहले इस त्रिगुट को तोड़ना आवश्यक समझा। जब मराठों ने मैसूर पर आक्रमण किया तो हैदर ने उन्हें 32 लाख रुपए देकर अलग कर दिया।
- युद्ध का कारण हैदर का फ्रांसिसियों से मेल जोल एवं अंग्रेजों का दक्षिण की राजनीति में सक्रिय भागीदारी करना था।
- 1769 में हैदरअली (Haider Ali) ने कावेरीपट्टनम, तंजौर, मंगलौर पर कब्जा किया और 1769 में उसने मद्रास पर भयंकर आक्रमण किया। अतः ब्रिटिश ने विवश होकर 1769 को हैदर से मद्रास की संधि की। इस तरह प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध समाप्त हुआ।
- इस संधि के तहत दोनों पक्षों ने एक दूसरे के जीते हुए क्षेत्र वापस कर दिए और अंग्रेजों ने हैदर को आवश्यकता पड़ने पर सैनिक सहायता देने का वचन दिया।
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-84 सी.ई.)
- प्रारंभ से ही मद्रास की ब्रिटिश सरकार 1769 सी.ई. की अपमानजनक संधि की अवहेलना कर रही थी इसीलिए जब मराठों ने 1771 सी.ई. में हैदर के राज्य पर आक्रमण किया तब अंग्रेजों ने उसकी सहायता नहीं की। इससे वह बहुत क्रोधित हुआ।
- निजाम भी अंग्रेजों से असंतुष्ट था क्योंकि अंग्रेजों ने उत्तरी सरकार के जिलों के बदले 7 लाख रुपया वार्षिक देने के वायदे को पूरा करने से इनकार कर दिया था।
- इस समय मराठे भी अंग्रेजों के विरोधी थे क्योंकि प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध भी शुरू हो चुका था।
- अतः हैदर, निजाम एवं मराठों ने अंग्रेजों के विरुद्ध त्रिगुट बना लिया था।
- इस समय अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के चलते यूरोप में फ्रांस और ब्रिटेन एक दूसरे से उलझ पड़े थे।
- भारत पर भी इसका प्रभाव पड़ा। अंग्रेजों ने फ्रांसीसी बस्ती माहे पर आक्रमण कर कब्जा करने को कोशिश की।
- यह माहे बंदरगाह हैदरअली के संरक्षण में था माहे से ही मैसूर की सेना के लिए आवश्यक सामग्री आती थी।
- अतः हैदर ने निजाम और मराठे के साथ जुलाई 1780 सी.ई. में कर्नाटक में अर्काट पर आक्रमण कर दिया और अंग्रेज सेनापति हेक्टर मुनरो को पराजित किया।
- इस पराजय के बाद अल्फ्रेड लॉयल ने कहा ‘‘भारत में अंग्रेजों का राज्य सबसे नीचे पहुंच गया।’’
- अंग्रेजों ने निजाम को गुन्टूर को क्षेत्र देकर उसे हैदर से अलग कर दिया और मराठों से सलबाई की संधि कर ली फलतः मराठे भी हैदर से अलग हो गए। इस तरह हैदर युद्ध में पूरी तरह से अकेला हो गया।
- वारेन हेस्टिंगस ने सर आयरकूट के नेतृत्व में सेना भेजी। आयरकूट ने हैदर को पोर्टोनोवा, पोलीलूर तथा सुलिंगपुर के युद्ध में 1781 सी.ई. में पराजित किया।
- 1782 सी.ई. के प्रारंभ में एडमिरल सफरिन के नेतृत्व में फ्रांसीसी जलबेड़ा हैदर की भी सहायता को मद्रास पहुंचा।
- युद्ध में घायल होने और कैंसर के कारण 7 दिसम्बर, 1782 सी.ई. को हैदर की मृत्यु हो गई किंतु हैदर के पुत्र टीपू ने युद्ध को जारी रखा।
- टीपू ने ब्रिगेडियर मैथ्यूज को 1782 सी.ई. में पराजित कर सेना सहित बंदी बना लिया। किंतु इसी समय यूरोप में इंग्लैंड-फ्रांस में संधि हो गई और फ्रांसीसी इस संघर्ष से पृथक हो गए।
- उस समय मद्रास का गवर्नर मैकार्टनी था, जो संधि के पक्ष में था। मैकार्टनी की मध्यस्थता से 1784 सी.ई. में टीपू और अंग्रेजों के बीच मंगलौर की संधि हुई।
- इस संधि के द्वारा दोनों ने एक दूसरे के जीते क्षेत्र लौटा दिए और बंदियों को मुक्त कर दिया।
- मंगलौर की संधि से हेस्टिंग्स संतुष्ट नहीं था। उसने कहा ‘यह लार्ड मैकार्टनी कैसा आदमी है? मैं अभी भी विश्वास करता हूं कि वह संधि के बावजूद कर्नाटक को खो देगा।
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1790-92)
- इस समय भारत का गवर्नर जनरल लार्ड कार्नवालिस था। मंगलौर की संधि स्थायी नहीं रही शीघ्र ही मैसूर और अंग्रेजों में युद्ध छिड़ गया।
- टीपू सुल्तान द्वारा फ्रांस के साथ सांठ-गांठ करना और इंग्लैण्ड के मित्र त्रवणकोर के राजा पर आक्रमण करना तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध का प्रमुख कारण था।
- टीपू ने 1787 सी.ई. में फ्रांस और कुस्तुनतुनिया का समर्थन प्राप्त करने के लिए दूत भेजे। दूसरी तरफ कॉर्नवालिस ने निजाम को मित्र राज्यों की सूची दी किन्तु इसमें टीपू का नाम नहीं था। टीपू ने इसे मंगलौर संधि की भावना के विरुद्ध माना।
- दिसम्बर, 1789 सी.ई. को टीपू ने त्रावणकोर राज्य पर हमला कर दिया जो अंग्रेजों का मित्र राज्य था। फलतः कार्नवालिस ने टीपू के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया और मैसूर की राजधानी श्री रंगपट्टनम पर भी आक्रमण कर दिया।
- अंततः मार्च, 1792 सी.ई. में श्रीरंगपट्टनम की संधि के साथ युद्ध समाप्त कर दिया गया। इस युद्ध में अंग्रेज, निजाम और मराठों का त्रिगुट संघर्ष मैसूर के खिलाफ था।
श्रीरंगपट्टनम की संधि (1792 सी.ई.)
- श्रीरंगपट्टनम की संधि 1792 में अंग्रेजों एवं टीपू सुल्तान के मध्य हुआ. तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान की हार हुई और उसे अंग्रेजों के साथ 1792 में श्रीरंगपट्टनम की संधि करनी पड़ी। श्रीरंगपट्टनम की संधि के फल स्वरुप टीपू सुल्तान को अपना आधा राज्य अंग्रेजों को देना पड़ा।
- तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध 1790 से 1792 के मध्य अंग्रेजों एवं मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के बीच हुआ। इस युद्ध में अंग्रेजो का नेतृत्व लार्ड कार्नवालिस कर रहा था।
- अंग्रेज टीपू सुल्तान को दक्षिण भारत में अपना सबसे बड़ा शत्रु समझते थे जो उनके साम्राज्य विस्तार में सबसे बड़ी बाधा थी।
- टीपू सुल्तान अन्य भारतीय राजाओं की तरह अंग्रेजों की कठपुतली नहीं बनना चाहता था बल्कि वह अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए तैयार था।
- टीपू को आधा राज्य अंग्रेजों तथा साथियों को देना पड़ा। इसके तहत-
- अंग्रेजों को बारामहल, डिंडीगुल, मालाबार मिला।
- मराठों को तुंगभद्रा नदी के उत्तर का भाग।
- निजाम को पेन्नार तथा कृष्णा नदी के बीच का भाग मिला।
- टीपू को युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में 30 लाख पाउण्ड कम्पनी को देना था और जब तक इस समस्त राशिका भुगतान नहीं हो जाता है तब तक अपने दो पुत्रों मुइजुद्दीन और अब्दुल खालिक को अंग्रेजों के पास रखना था।
- कॉर्नवालिस ने बोर्ड ऑफ कंट्रोल (BOC) के अध्यक्ष डुण्डास से उस संधि के संदर्भ में कहा कि ‘‘हमने अपने मित्रें को बिना बहुत शक्तिशाली बनाए अपने शत्रु को पंगु बना दिया।
चतर्थु आंग्ल मैसूर युद्ध (1799 सी.ई.)
- इस समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेजली था जो भारत में कम्पनी की सत्ता को सर्वोच्च बनाना चाहता था और भारतीय शक्तियों को सहायक संधि के अधीन लाना चाहता था।
- टीपू ने फ्रांसीसियों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए तथा अरब, काबुल, कुस्तुनतुनिया, मॉरीशस में अपने राजदूत भेजे और वहां से मित्रता का आश्वासन प्राप्त किया। इन कार्यों से अंग्रेज आशंकित हो उठे।
- वेलेजली ने टीपू के पास सहायक संधि का प्रस्ताव भेजा लेकिन टीपू ने इसे अस्वीकार कर दिया। अतः फरवरी 1799 सी.ई. में दोनों पक्षों के बीच युद्धारम्भ हो गया।
- वेलेजली ने निजाम और मराठों को अपने पक्ष में कर लिया था।
- जनरल हैरिस एवं आर्थर वेलेजली के नेतृत्व में एक सेना ने वेल्लोर से चलकर मार्च, 1799 सी.ई. में मैसूर पर आक्रमण किया।
- पश्चिम से जनरल स्टुअर्ट ने आक्रमण किया और टीपू को सदासीर के युद्ध में परास्त किया। दूसरी तरफ हैरिस ने टीपू को मालवेल्ली के युद्ध में हराया। अतः टीपू श्रीरंगपट्टनम के किले में शरण लेने को विवश हुआ।
- 4 मई, 1799 सी.ई. को अंग्रेजों ने श्रीरंगपट्टनम पर हमला किया और टीपू युद्ध के दौरान ही मारा गया।
- युद्ध के पश्चात् टीपू के परिवार के सदस्यों को वेल्लोर के किले में कैद कर दिया गया अंग्रेजों ने पश्चिम में कनारा, दक्षिण-पश्चिम में बाईनाद (बेनाद), कोयम्बटूर और दारापुरम के जिले तथा श्रीरंगपट्टनम् को प्राप्त किया।
- निजाम को उत्तर पूर्व में अपनी सीमा के निकट गुंटी, गुरमकोंडा तथा चित्तलदुर्गा का हिस्सा दिया गया।
- मराठों को सुन्दी एवं हार्पेनलल्ली क्षेत्र देने की पेशकश की गई परन्तु पेशवा ने लेने से इन्कार कर दिया।
- मैसूर का अवशिष्ट राज्य पूववर्ती हिन्दू राजा के वाड्यार वंश के दो वर्षीय बालक कृष्णराज को दे दिया गया और उसके साथ सहायक संधि की गई। टीपू के दोनों पुत्रें को पेंशन दे दी गई।
- वेलेजली ने इस युद्ध के बाद कहाµपूरब का साम्राज्य हमारे कदमों में है।
- मैसूर को जीतने के उपलक्ष्य में वेलेजली को माकिर््वस की उपाधि प्रदान की गई।
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-69 सी.ई.) | अंग्रेज | निजाम | मराठे | मद्रास की संधि |
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1780-84) | हैदरअली (Haider Ali) | निजाम | मराठे | सोलिंगपुर की लड़ाई पोलीलूर (वारेन हैस्टिंग्स) |
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1790- 92 सी.ई.) | टीपू | अंग्रेज | श्रीरंगपट्टनम की संधि (कॉर्नवालिस) | |
चतुर्थ आंग्ल – मैसूर युद्ध (1799) | टीपू | अंग्रेज | सदासीर एवं मालवेली का युद्ध (वेलेजली) |
टीपू सुल्तान
- हैदरअली (Haider Ali) की मृत्यु के पश्चात् 1782 सी.ई. में टीपू मैसूर की गद्दी पर बैठा। उसे अरबी, फारसी, कन्नड़, उर्दू भाषाओं का ज्ञान था।
- 1786 सी.ई. में उसने अपने नाम से खुतबा पढ़वाया और 1787 सी.ई. में बादशाह की उपाधि धारण की।
- टीपू ने अपने नाम के सिक्के चलाए तथा वर्षों और महीनों के हिन्दू नामों के स्थान पर अरबी नामों का प्रयोग किया तथा नए पंचाग प्रारंभ किया।
- टीपू ने सिक्का ढलाई की नई तकनीक अपनाई व माप-तौल के नए पैमाने को अपनाया।
- उसने जागीरदारी प्रथा को समाप्त कर राजकीय आय बढ़ाने की कोशिश की। पोलीगरों की पैतृक संपत्ति को समाप्त करने तथा राज्य और किसानों के बीच मध्यस्थों को समाप्त करने की कोशिश की।
- टीपू के समय भू-राजस्व की दर एक तिहाई थी। उसने अब्बासों पर रोक लगाई। श्रीरंगपट्टनम् की संधि के पश्चात टीपू ने भूमिकर की दरों में 37-5 प्रतिशत की वृद्धि की।
- टीपू ने फ्रांसीसियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए। श्रीरंगपट्टनम में फ्रांसीसियों को जैकोबियन कल्ब बनाने की अनुमति दी।
- वह स्वयं उस क्लब का सदस्य बना और स्वयं को नागरिक टीपू (Citizen Tipu) कहने लगा। श्रीरंगपट्टनम उसने फ्रांसीसी झंडा फहराया और स्वतंत्रता का वृक्ष लगाया।
- टीपू भारतीय शासकों में एकमात्र शासक था जो आर्थिक शक्ति के महत्त्व को सैनिक शक्ति के महत्त्व की नींव मानता था।
- उसने यूरोपीय पद्धति पर व्यापारिक कम्पनी स्थापित करने की कोशिश की। विदेशी व्यापार के विकास के लिए फ्रांस, तुर्की, ईरान एवं पेगू में दूत भेजे एवं चीन के साथ भी व्यापार किया।
- टीपू ने आधुनिक नौसेना खड़ी करने की कोशिश की और इसके लिए जहाजों के नमूने स्वयं तैयार किए। टीपू ने मंगलौर, वाजीदाबाद, मलीदाबाद में तीन शस्त्रागार फ्रांसीसियों की सहायता से स्थापित किए।
- टीपू ने आधुनिक उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित किया और इसके लिए विदेशी कारीगर मंगवाए।
- टीपू ने दरबार में हिन्दुओं को भी उच्च पद दिए। पुरनिया एवं कृष्णा राव दो प्रमुख हिन्दू मंत्री थे।
- मराठों द्वारा 1791 सी.ई. में श्रृंगेरी के मंदिर को तोड़े जाने के पश्चात् टीपू ने मंदिर की मरम्मत के लिए धन दिया साथ ही शारदा देवी की मूर्ति की स्थापना हेतु भी धन दिया।
- टीपू के प्रशासन में प्रधानमंत्री अथवा वजीर का पद नहीं होता था।
- 7 मुख्य विभाग थे जो मीर आशिफ के अधीन होते थे। प्रांतों को आशिफ टुकड़ी कहा जाता था इनकी संख्या 17 होती थी।
- टीपू ने घुड़सवार की अपेक्षा पैदल सेना एवं किलेबन्दी पर अधिक बल दिया। इस कारण उसकी युद्ध नीति आक्रामक होने के स्थान पर सुरक्षात्मक हो गई जो उसकी भूल थी।
- थॉमस मुनरो ने कहा-‘‘टीपू नई रीति चलाने वाली अशांत आत्मा है।’’
- टीपू ने कहा-‘शेर की तरह एक दिन जीना भेड़ की तरह लम्बी जिंदगी जीने से बेहतर है।’’