मध्यकालीन झारखण्ड के इतिहास (History of jharkhand)
- झारखण्ड के इतिहास (History of jharkhand) के संदर्भ में मध्यकाल को 3 कालखंडों में बाँटकर झारखण्ड के इतिहास (History of jharkhand) के विषय में देखेंगे।
- सल्तनत कालीन-दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया। दिल्ली सल्तनत 1526 ई. तक (कुल 320 वर्षों तक) कायम रहा। इन 320 वर्षों में दिल्ली सल्तनत पर 5 राजवंशों एवं 32 शासकों ने राज किया-
- गुलाम वंश (1206-1290 ई.)
- खिलजी वंश (1290-1320 ई.)
- तुगलक वंश (1320-1414 ई.)
- सैयद वंश (1414-1451 ई.)
- लोदी वंश (1451-1526 ई.)
- गुलाम वंश (1206-1290 ई.)

गुलाम वंश (1206-1290 ई.) कालीन झारखण्ड का इतिहास (History of jharkhand)
- गुलाम वंश का प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था। 1203 ई. में कुतबुद्दीन ऐबक का सेनापति बख्तियार खिलजी ने दक्षिणी बिहार पर आक्रमण किया तथा यहाँ नालंदा, उदन्तपुरी एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया गया।
- साथ ही यहाँ रह रहे लोगों को मारा गया एवं अनेक प्रकार से उत्पीड़न किया गया जिस कारण से यहाँ के गैर मुस्लिम लोग इस स्थान को छोड़कर झारखण्ड में शरण लिया।
- इस प्रकार बख्तियार खिलजी को इन आक्रमणों के माध्यम से बंगाल पहुचने का मार्ग झारखण्ड से गुजरता था। इसने 1206 ई. में झारखण्ड से होकर बंगाल पहुँचा तथा वहाँ शासन कर रहे सेनवंशी शासक लक्ष्मण सेन तथा उसकी राजधानी नादियां पर आक्रमण किया।
- इसके पश्चात् गुलाम वंशी शासक इल्तुतमिश (1211-36 ई.) एवं बलबन (1265-68 ई.) के समय झारखण्ड पर प्रभाव अल्प रहा क्योंकि प्राप्त सूचनाओं के आधार पर नागवंशी शासक हरिकर्ण अपने राज्य का संचालन कुशलतापूर्वक चला रहे थे।
- गुलाम वंश 84 वर्षों तक कायम रहा, गुलाम वंश के काल में झारखण्ड में नागवंशी राजाओं में तीन महत्त्वपूर्ण राजाओं ने शासन किया –
- हरिकर्ण राय – 1206-1234 ई.
- शिव कर्ण राय – 1235-1276 ई.
- फेनूकर्णराय – 1277- 1299 ई.
- इस काल में दिल्ली के सुल्तानों को झारखण्ड में आने का मौका नहीं मिला। केवल इल्तुतमिश ने बंगाल पर ध्यान दिया और मलिक सैफुद्दीन को बंगाल का गवर्नर बनाया।
खिलजी वंश (1290-1320 ई.) कालीन झारखण्ड का इतिहास (History of jharkhand)
- इस समय फेनूकर्ण राय शासक था और दिल्ली सल्तनत पर अलाउद्दीन खिलजी का शासन था। उसके शासन काल ने साम्राज्यवादी सिद्धांत का पालन किया गया और दिल्ली सल्तनत का विस्तार होने लगा।
- अलाउद्दीन खिलजी के काल में उसका सेनापति मलिक काफूर ने नागवंशी शासक फेनूकर्ण राय को कर देने के लिए बाध्य किया। तुगलक वंश के सयम दो महत्त्वपूर्ण नागवंशी शासक थे-
- टिहली करण राय (1361-1398 ई.)
- शिवदास करण राय (1399-1427 ई.)
- तुगलक वंश के काल में मुहम्मद बिन तुगलक का ध्यान झारखण्ड की तरफ आकर्षित हुआ क्योंकि यहाँ 1340 ई. के आस-पास बंगाल-बिहार में लूट-पाट की घटना हो रही थी।
- मोहम्मद बिन तुगलक के सेनापति मलिक बयां हजारीबाग क्षेत्र के चाई-चप्पा तक पहुँच गया। परन्तु संथाली साहित्य के अनुसार मोहम्मद तुगलक ने इब्राहिम अली के नेतृत्व में कार्यवाही करने हेतु भेजा।
- इब्राहिम अली की सैन्य टुकड़ी ने संथालों पर आक्रमण कर दिया और संथालों को अपने सरदार भागना पड़ा परिणाम स्वरूप इब्राहिम अली ने बीघा के किले पर अधिकार लिया। मोहम्मद-बिन-तुगलक के समय झारखण्ड का ग्वालियर डोइसा, पलामू क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के अधीन था।
- मुहम्मद बिन-तुगलक के पश्चात् उसका उत्तराधिकारी फिरोज तुगलक (1351-88 ई.) बना। फिरोज तुगलक ने बंगाल के शासक शम्सुद्दीन इलियास शाह को पराजित कर हजारीबाग के सतगाँव क्षेत्र के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया तथा सतगाँव को इस क्षेत्र की राजधानी बनाया। परन्तु फिरोज तुगलक इसके आगे छोटानागपुर खास तक नहीं बढ़ सके क्योंकि यहाँ नागवंशी शक्तिशाली शासक था जिसे पराजित करना कठिन कार्य था।
- पुनः फिरोजशाह ने जब ओडिशा पर आक्रमण किया तो वह इसी झारखण्ड राज्य के रास्ते का उपयोग किया। इसी तुगलक काल में ‘बाघदेव सिंह’ ने ‘रामगढ़’ राज्य की स्थापना की। (बाघदेव सिंह का नागवंशी राजाओं के साथ मतभेद था।)
- फिरोजशाह तुगलक के उत्तराधिकारी 1414 तक बने रहे। इस समय नागवंशी शासक शिवदास करण राय थे। इन्होंने ही घाघरा, गुमला में हापामुनी में 1401 में महामाया मंदिर की स्थापना की।
सैयद वंश (1414-1451 ई.) कालीन झारखण्ड का इतिहास (History of jharkhand)
- इस काल में दिल्ली सल्तनत के शासको को कोई भी महत्त्वपूर्ण चहलकदमी झारखण्ड क्षेत्र में देखने को नहीं मिली। ये सुल्तानों ने झारखण्ड में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया।
लोदी वंश (1451-1526 ई.) कालीन झारखण्ड का इतिहास (History of jharkhand)
- लोदी वंश के शासन काल में पाँच महत्त्वपूर्ण नागवंशी शासक झारखण्ड में हुए। जब भारत में लोदी वंश का राज्यारोहण उस समय लोदी वंश के सुल्तान कमजोर शासक थे तथा इनका प्रभाव क्षेत्र दिल्ली तक सीमित था। अपनी कमजोर स्थिति के कारण ये झारखण्ड में हस्तक्षेप नहीं किए।
- इस समय नागवंशी शासक पृथ्वीकरण राय का शासन था। इस समय लोदी वंश के समकालीन उड़ीसा का अन्तिम गजपति शासक कपिलेन्द्र गजपति ने उड़ीसा में एक नए वंश गजपति वंश की स्थापना की।
- इसने झारखण्ड के संथाल- परगना, हजारीबाग एवं अन्य कुछ क्षेत्रों का छोड़कर झारखण्ड के बड़े भूभाग पर अधिकार कर लिया तथा अपने को झारखण्ड का राजा बताया। नागवंशी राजा पृथ्वीकरण राय के विरुद्ध घटवारों ने विद्रोह किया।
- सिंकदर लोदी के काल में संध्या का राजा नागवंशी राजा पर आक्रमण किया और उन्हें पराजित किया। खान देश का अत्यन्त शक्तिशाली शासक आदिल शाह द्वितीय अथवा आदिल खान द्वितीय ने अपने सैन्य दल को झारखण्ड भेजा जिस कारण इसे ‘झारखण्डी सुल्तान’ कहा जाता था।
मुगलकालीन झारखण्ड का इतिहास (History of jharkhand)
- भारत के मुगलकालीन इतिहास की शुरुआत 1526 ई. से होता है जब दिल्ली सल्तनत के अन्तिम सुल्तान इब्राहिम लोदी को बाबर द्वारा पानीपत के प्रथम युद्ध (1526 ई.) में हराकर मुगल वंश की स्थापना की गई।
- बाबर का शासन काल मात्र चार वर्ष का रहा। इसके पश्चात् बाबर का पुत्र हुमायूँ का शासन 1530 ई. में प्रारम्भ हुआ तथा इसने 1540 ई. तक शासन करता है।
- इसके बाद यह शासन सूर वंश (शेरशाह व उसके वंशज) के हाथों में चला जाता है तथा वह 1540-1555 ई. तक शासन कार्य करता है तत्पश्चात् पुनः 1556 ई. में मुगल शासक हुमायूँ गद्दी पर बैठता है।
- इसके साथ ही मुगलवंश का कुशल दौर प्रारम्भ होता है जिसके शासकों ने 1857 ई. तक शासन किया। 1707 ई. में औरंगजेब के शासन तक मुगल शासन चर्मोत्कर्ष पर था उसके पश्चात् मुगलवंशीय शासक नाममात्र के बादशाह रह गए।
- सन् 1857 ई. के विद्रोह के समय मुगल बादशाह ‘बहादुर शाह-II ‘जफर’ थे जिन्हें अंग्रेजों ने अपदस्थ कर रंगून (बर्मा) निर्वासित कर मुगल वंश की सत्ता को सदैव के लिए समाप्त कर दिया।
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बाबर और हुमायूँ कालीन झारखण्ड का इतिहास (History of jharkhand) (1526-1540 ई.)
- आरम्भ में मुगल शासक बाबर (1526-30 ई.) एवं हुमायूँ (1530-40 ई.) के शासन काल में झारखण्ड उनके प्रभाव क्षेत्र से अछूता रहा है जिस कारण झारखण्ड में क्षेत्रीय शासकों का बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के निर्वाध रूप से शासन चला। इस दौरान झारखण्ड में सबसे बड़ा परिवर्तन यह हुआ चेरों (चेरो वंश) ने रक्सेलों को पराजित कर पलामू में नए राजवंश की स्थापना की।
- मुगल शासन काल में झारखण्ड ‘खोखरा’ के नाम से जाना जाता था। मुगलकालीन बाबर एवं हुमायूँ के समय बाबर ने अफगानों को अपदस्थ कर मुगल वंश की स्थापना की थी अतः अफगान मुगलों से पुनः टक्कर लेने हेतु बंगाल-बिहार में रहते हुए शक्ति जुटा रहे थे।
- इस प्रकार स्पष्ट होता है कि बाबर हुमायूँ के कार्यकाल में झारखण्ड मुगल विरोधी अफगानों का आश्रय-स्थल था। इस समय मुगलों का सबसे बड़ा शत्रु अफगानी सरदार शेरशाह था।
- शेरशाह का उद्देश्य था कि वह मुगलों को हिन्दुस्तान से बाहर कर अपनी सत्ता को स्थापित करेगे। हुमायूँ मुगल-अफगान संघर्ष के दौरान एक मौके पर भरकुण्डा (हजारीबाग जिला) तक घुस आया था। हुमायूँ के सबसे बड़े शत्रु शेरशाह ने मुगल-अफगान संघर्ष (1530-40 ई.) में इस स्थान का कई बार उपयोग किया था।
- 1540 ई. में कन्नौज के पास बिलग्रामी युद्ध में शेरशाह ने हुमायूँ को पराजित कर आगरा की गद्दी पर बैठा। शेरशाह व उसके वंशज 1540-1555 ई. तक भारत पर शासन किए।
शेरशाह कालीन झारखण्ड
- शेरशाह जिसे ‘शेरखाँ’ भी कहा जाता था। यह एक अफगान था। जो 1528 ई. में दक्षिण बिहार का शासक बना। इसने झारखण्ड भू-भाग का उपयोग कई-बार मुगलों के विरफ़द्ध संघर्ष में किया। इसका मुगल शासकों से संघर्ष का दौर 1530-40 ई. के बीच रहा।
- इसने बंगाल के शासक से भी संघर्ष किया तथा इस संघर्ष के दौरान झारखण्ड के मार्ग से होकर गुजरा। इसी दौरान शेरशाह का पुत्र जलाल खाँ तेलियागढ़ी (राजमहल के नजदीक साहेबगंज जिला) की नाकाबंदी करने लगा था।
- शेरखाँ बंगाल के शासक से लूटी गयी संपदा के साथ राजमहल के पास गंगा पार किया और मुगलों को चकमा देते हुए झारखण्ड के रास्ते रोहतास गढ़ पहुँचा एवं 1538 ई. में रोहतासगढ़ पर शेरशाह ने अधिकार कर लिया।
- इस प्रकार शेरखाँ ने झारखण्ड में मुसलमानों के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त कर दिया। शेरशाह जब किसी सैन्य अभियान में जाता था या बाहर रहता था तब चेरों लोग झारखण्ड के जंगलों से निकलकर किसानों को परेशान करते थे, जिससे बंगाल आना-जाना मुश्किल हो गया था।
- इसका दमन करने हेतु 1538 ई. में शेरशाह ने अपने सेनापति ‘खवास खाँ’ एवं ‘दरिया खाँ’ को झारखण्ड के पलामू क्षेत्र के चेरो शासक ‘महारथ चेरो’ पर आक्रमण किया। इन्होंने चेर शासक को पराजित कर कई सामग्रियों के साथ उसका सफेद हाथी भी लूट लिया।
- उस सफेद हाथी का नाम ‘श्यामसुंदर’ था। इस बात का उल्लेख अहमद यादगार ने अपने ग्रंथ ‘तारीख-ए-शेरशाही’ में किया है साथ ही इस बात का उल्लेख अन्य लेखकों के ग्रंथों से भी प्राप्त होता है।
- श्यामसुंदर हाथी की मुख्य विशेषता थी कि वह अपने मस्तक पर भी धूल नहीं डालता था मदमस्त हो जाने पर उसका सामना करना कठिन कार्य था। इस प्रकार शेरशाह ने चेरो युद्ध विजय को मुगल की गद्दी हासिल करने का शुभ संकेत माना।
- 26 जून, 1539 ई. को चौसा के युद्ध में शेरशाह ने मुगलबादशाह हुमायूँ को पराजित कर दिया। चौसा में प्राप्त हुए सफलता के पश्चात रोहतास से लेकर वीरभूम तक का क्षेत्र शेरशाह के अधिकार क्षेत्र में आ गया तथा अगले 35 वर्ष तक राजमहल पर शेरशाह एवं उनके वंशजों का अधिकार रहा।
अकबर कालीन झारखण्ड का इतिहास (History of jharkhand)
- अकबर के गद्दी पर बैठने के समय झारखण्ड स्वतंत्र था। झारखण्ड में अफगानी लोग आश्रय पाते थे और अफगानी मुगलों के विरुद्ध सक्रिय थे।
- अकबर काल में गाजी, हाजीव, जुनैद, बयाजिद, नामक अफगानी झारखण्ड के जंगलों में रहते थे और यहीं से मुगल राज्य पर आक्रमण की योजना बनाते थे।
- वे मैदानी भागों में आक्रमण कर पुनः जंगलों में छिप जाते थे। 1575 ई. तक अफगानी विद्रोहियों का शरण स्थली झारखण्ड रहा। 1575 ई. तक अकबर ने सभी विद्रोहियों का दमन कर दिया।
- इसी संदर्भ में 3 मार्च, 1575 ई. को टकरोई की लड़ाई (अफगानी/मुगल) हुई। उसके बाद जुनैद कर्रानी नामक व्यक्ति झारखण्ड के रास्ते बिहार में प्रवेश करना चाहा, लेकिन शाही सेना ने उसे पराजित कर दिया और वह भागकर रामपुर की पहाडि़यों में आश्रय लिया।
- शाही सेना ने अंततः उसे रामपुर की लड़ाई में मार दिया और इस तरह 1575-1576 ई. आते-आते अकबर के सभी विरोधी अफगान समाप्त हो गए।
- अकबर के शासन काल में झारखण्ड में निम्नलिखित राजवंश शासन कर रहे थे-
- कोकरा के नागवंशी शासक
- पलामू के चेरो वंश
- सिंहभूम के सिंह वंश
- हजारीबाग क्षेत्र में रामगढ़ राजा
- धनबाद, झरिया में पंचेत राजा
- गिरिडीह में खड़गडीहा राजा
- राजा वारिसाल और अफगानों की सफलता के कारण और पुनः झारखण्ड की कोयल नदी से हीरा मिलने के कारण झारखण्ड अकबर के दिमाग में आ चुका था।
- अतः 1585 ई. में शाहबाज खाँ कम्बू के नेतृत्व में मुगल सेना कोकरा गढ़ की ओर बढ़ी और पराजित कर काफी लूट-पाट किया। अंततः नागवंशी राजा मुगलों को कर देना स्वीकार कर लिया उस समय वारिसाल कोकरा का राजा था।
- नागवंशी राजा के पराजय से रामगढ़ राज्य की भी स्थिति खराब हो गई। इसके अतिरिक्त झारखण्ड के अन्य छोटे राजा भी मुगलों की अधीनता को स्वीकार करने लगे।
- पुनः 1592 ई. में जब मानसिंह ओडिशा अभियान के लिए आगे बढ़ा तो झारखण्ड के छोटे राजा उनके अंगरक्षक बन गए। पुनः अकबर के शासन काल में ही टोडरमल ने तेलियागढ़ी को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
नोट:
- तारीख-ए-शाही (लेखक- अहमद यादगार) झारखण्ड राजा महारथ चेरो के विरुद्ध शेरशाह के अभियान का उल्लेख करता है।
- अकबर काल- कोकरा का राजा मधु सिंह था। यही मधुसिंह मधुकरण शाह कहलाया।
जहाँगीर कालीन झारखण्ड का इतिहास (History of jharkhand)
- इसके शासन काल में मुगल-झारखण्ड संबंधों के नए युग का सूत्रपात होता है। यह दो राजाओं से निकट संबंध बनाता है।
मुगल नागवंशी (छोटानागपुर खास का नागवंश)
- मुगल इतिहासकारों ने कोकरह के नागवंशी राजा को ‘जमीदार-ए-खान अलमा’ (हीरा खान का मालिक) कहा गया है। जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहाँगीरी’ में स्थानीय लोगों द्वारा शंख नदी के हीरा प्राप्त करने के तरीके का वर्णन किया है।
- जहाँगीर को कोकरह की नदियों (शंख नदी) से मिलने वाले हीरे की जानकारी प्राप्त थी। इसलिए वह कोकरह के हीरा के खानों पर अधिकार करना चाहता था।
- प्राचीन काल के लेखक टॉलमी ने अपनी पुस्तक ज्योग्राफिया में जिक्र किया है कि एडमाश नदी (शंख नदी) से हीरा निकलता है।
- जहाँगीर के शासन काल में बर्नियर और टैवर्नियर नामक यात्री ने कोकरा में हीरा की चर्चा करता है। उन लोगों ने साडमेलपुर नामक स्थान की चर्चा की है और यह कोकरा का क्षेत्र में जहाँ हीरे पाए जाते हैं।
- जहाँगीर के साथ नागवंशी राजाओं के साथ निकट संबंध रहा और जहाँगीर 1612 ई. में गद्दी पर बैठते ही जफर खाँ को बिहार का सूबेदार बनाया। इसके बाद 1615 ई. में जहाँगीर, नूरजहाँ उर्फ मेहरुनिशा से शादी करने के बाद इब्राहिम खाँ को बिहार का सूबेदार बनाया।
- कोकरह के नए शासक दुर्जनशाल गद्दी पर बैठा। इसने मुगलों की अधीनता को अस्वीकार कर दिया तथा इन्हें वार्षिक कर देना बंद कर दिया।
- इस व्यवहार पर जहाँगीर क्रोधित होकर बिहार के सूबेदार जफर खाँ को कोकरह के हीरों के खानों पर अधिकार करने का आदेश दिया परन्तु दुर्भाग्यवंश जफर खाँ बीमार पड़ गया एवं उसकी मृत्यु हो गयी।
- इसके पश्चात् जहाँगीर ने बिहार के सूबेदार इब्राहिम खाँ को कोकरह के हीरा के खानों पर अधिकार करने का आदेश दिया। इसके पश्चात् इब्राहिम खाँ ने एक कुशल सैन्य लेकर कोकरह क्षेत्र की तरफ प्रस्थान किया।
- दुर्जनशाल ने अपने दूत के माध्यम से हीरे तथा हाथी देने का प्रस्ताव भेजा। परन्तु इब्राहिम खाँ ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तथा उसके ऊपर आक्रमण कर किले को घेर लिया तथा उन्हें बंदी बना लिया। इनके यहाँ का समस्त हीरा छीन लिया गया तथा इन्हें मुगल दरबार में लाया गया।
- मुगल बादशाह जहाँगीर ने दुर्जनशाल को बंदी बनाकर ग्वालियर के किले में भेज दिया जहाँ पर वह 12 वर्षों तक कैद रहा तथा इस अभियान से जुड़े सभी व्यक्तियों को बादशाह ने पुरस्कृत किया।
- कोकरा विजय के उपलक्ष्य में इब्राहिम खाँ को ‘फाथ जंग’ की उपाधि दी गयी। दुर्जन शाह को हीरे के कारण जेल जाना पड़ा। वह हीरे का बहुत अच्छा पारखी था इससे प्रसन्न होकर जहाँगीर ने दुर्जन शाह को रिहा कर दिया। उसका राज्य भी वापस कर दिया।
- दुर्जन शाह को दरबार में बैठने की कुर्सी मिली और दुर्जन शाह 6000 रु. कर देना भी स्वीकार किया और 1627 ई. में झारखण्ड वापस आ गया।
पलामू का चेरों वंश
- सहबल राय 1612 ई. के आस-पास गद्दी पर बैठा और यह अत्यंत शक्तिशाली राजा था और इसने सड़क-ए-आजम (जी.टी.रोड) तक अपना प्रभाव बढ़ाया और ये मुगलों के काफिलों को लूट लेता था।
- अतः 1613 ई. में जहाँगीर सहबल राय पर आक्रमण कर उसे को बंदी बना लिया और दिल्ली ले गया और वहाँ पर उसे बाघ से निहत्था लड़ाया जिसमें सहबल राय की मृत्यु हो गई। अतः चेरो और जहाँगीर के बीच बेहतर संबंध नहीं रहा।
विष्णुपुर व पंचेत पर आक्रमण
- जहाँगीर के शासन काल में मानभूम के विष्णुपुर पर मुगलों ने अधिकार कर लिया।
- बिहार का मुगल सूबेदार अफजल खाँ ने बंगाल के मुगल सूबेदार इस्लाम खाँ से मिलकर पंचेत के जमींदार ‘वीर हमीर’ पर आक्रमण कर दिया वीर हमीर ने बिना प्रतिरोध के सेनापति शेख कमाल के समक्ष समर्पण कर दिया।
शाहजहाँ का राजमहल क्षेत्र में आगमन
- 1622 ई. में शहजादा खुर्रम नूरजहाँ की राजनीति में दखलंदाजी के कारण विद्रोह कर दिया। वह वर्द्धमान होता हुआ राजमहल पहुँचा।
- वहाँ पर बंगाल का सूबेदार इब्राहिम मारा गया एवं शहजादा खुर्रम का अधिकार हो गया।
शाहजहाँ कालीन झारखण्ड का इतिहास (History of jharkhand)
- शाहजहाँ 1628 ई. में शासक बना और उस समय झारखण्ड में कोकरा का नागवंशी शासक दुर्जनशाह हुआ जो जहाँगीर के कैद में रह चुका था।
- कोकरा वापस आने के बाद दुर्जनशाह ने दोइसा को अपनी राजधानी बनाया, क्योंकि दोइसा सामरिक नजरिए से मजबूत था।
- तीन ओर पहाड़ों और चौथी ओर कोयल नदी से घिरा था। दुर्जनसाल ने यहाँ कई भवनों व मंदिर का निर्माण कराया जो मुगल कला से प्रभावित थे। दोइसा में नवरत्न गढ़ का महल काफी प्रसिद्ध था। जो मूलरूप से पाँच मंजिल था।
- आज तीन मंजिला ही दिखाई देता है इसके चारों तरफ जल से भरे रहते थे ताकी कोई दुश्मन अंदर ना आ सके। महल की दीवार ईंटों और पत्थरों से बनीं थी और दीवार 33 इंच मोटी है।
- महल की छत पर कंगूरा शैली में परकोटे बनाए गए हैं। 1639-40 ई. के आस-पास दुर्जनसाल की मृत्यु हो गई। उसके बाद रघुनाथशाल (1640-1990 ई. तक) शासक रहा।
औरंगजेब कालीन झारखण्ड का इतिहास (History of jharkhand)
- औरंगजेब 1658 ई. में गद्दी पर बैठा और झारखण्ड को भी औरंगजेब की साम्राज्यवादिता का सामना करना पड़ा। इस समय नागवंशी राजा रघुनाथशाह का शासन चल रहा था। इसकी राजधानी दोइसा या नवरत्नगढ़ थी।
- इसने यहाँ पर जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया। बेडि़या में मदन मोहन उर्फ राधा कृष्ण के मंदिर का निर्माण कराया।
- चुटिया में इसी काल में हरि ब्रह्मचारी ने राम-सीता मंदिर का निर्माण करवाया था। ये सभी निर्माण यह साबित करते हैं कि रघुनाथ शाह कला का पारखी था और इसके शासन काल में समृद्धि थी।
- चेरो परंपरा के अनुसार मेदनी राय, रघुनाथ शाह के शासन काल में कोकरा पर आक्रमण किया और दोइसा को लूटा। इस लूट में पत्थर का एक विशाल फाटक भी था। जिसे मेदनी राय ने पलामू किला में लगवाया था।
- यह फाटक आज नागपुर दरवाजा के नाम से विख्यात है। मेदनी राय का कार्यकाल 1658-74 ई. तक माना जाता है और यह पलामू के चेरो का महत्त्वपूर्ण शासक था।
- इसके गद्दी पर बैठते ही मुगलों का आक्रमण हुआ। तब इसने मुगलों की अहमियत स्वीकार कर ली। मुगलों में उत्तराधिकार की लड़ाई होने पर इसने मुगलों को कर देना बंद कर दिया।
- औरंगजेब ने मेदनी राय को इस्लाम कबूल करने को कहा लेकिन मेदनी राय नहीं माना और मुगलों ने चेरो पर आक्रमण कर दिया।
- चेर जंगलों में भाग गए। जब दाउद खाँ चेर अभियान से लौट रहा था तो वहाँ उसने नगर गढ़ी का निर्माण करवाया।
- पलामू पर मुगलों का कब्जा 1660-66 ई. तक रहा और यहाँ सूबेदार मनकली खाँ को बनाया गया। मेदनी राय भागकर सरगुज्जा चला गया।
- 1666 ई. में मनकली खाँ का स्थानांतरण बिहार में कर दिया गया। उसके तुरंत बाद मेदनी राय ने पलामू पर फिर से कब्जा कर लिया।
- मेदनी राय का काल चेरो का स्वर्णयुग कहा जाता है और इसके शासन काल में शायद ही ऐसा घर होगा जहाँ न मथनी हो न मक्खन हो।
- 1674 ई. में मेदनी राय की मृत्यु हो गयी इसके बाद- रुद्र राय (1674-80 ई.), दिकपाल राय (1680-97 ई.) तथा साहेब राय (1697-1706 ई.) ने शासन किया 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु हो गयी।
- औरंगजेब के काल में हजारीबाग में क्रमशः 5 राज्य-
- रामगढ़,
- पुण्ड्र,
- खड़गडीहा
- क्षय तथा
- केन्ही थे।
नोट:
- सिंहभूम पर औरंगजेब की संप्रभुत्ता का कोई प्रमाण नहीं मिलता है।
उत्तर मुगलकालीन झारखण्ड का इतिहास (History of jharkhand)(1760-65 ई.)
- औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल सत्ता धीरे-धीरे बिखरने लगी और 1760-65 ई. तक सात मुगल बादशाह सिंहासन पर बैठे। इस काल के नागवंशी शासक निम्नलिखित हैं-
- रघुनाथ शाह,
- रामशाह,
- शिवनाथ शाह,
- उदयनाथ शाह,
- यदुनाथ शाह,
- श्याम सुंदर शाह
- नागवंशी राजाओं के अलावा इस समय छोटानागपुर में खास का नागवंश, पलामू का चेरो राज्य, सिंहभूम का पोरहाट, रामगढ़ केन्द्र खड़गडीहा, पंचेत, राजमहल का राज्य था।
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छोटानागपुर का खास राज्य:
- औरंगजेब की मृत्यु के समय शासक रामशाह था और यह 1715 ई. तक रहा। उसके बाद यदुनाथ शाह गद्दी पर बैठा। औरंगजेब की मृत्यु से मुगल कमजोर हो गए और यदुनाथ शाह ने मुगल को कर देना बंद कर दिया।
- अतः यदुनाथ शाह ने बिना लड़े अधीनता को स्वीकार कर लिया, लेकिन असुरक्षा के कारण दोईसा से राजधानी पालकोट (गुमला) ले गया। पुनः यहाँ भी मराठों का भय था।
- मुगलों के बंगाल के शासक नागवंशियों पर शासन जमाए रहे। इस तरह 1774 ई. तक मुगलों या बंगालों के नवाब का प्रभाव बना रहा उसके बाद मराठों का आक्रमण प्रारंभ हुआ और मराठों का प्रभुत्व शुरू हो गया।
सिंहभूम क्षेत्र:
- इस क्षेत्र में पोरहाट के सिंह वंश का शासन चलता था। उत्तर मुगल काल में काशी राम सिंह यहाँ का राजा था। इसी वंश के विक्रम सिंह ने सरायकेला राज्य की स्थापना की।
- सरायकेला को लेकर पारिवारिक झंझट हुआ। फिर पोरहाट राज्य कमजोर होते चले गए बाद में अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित हो गया।
हजारीबाग का क्षेत्र:
- इस समय हजारीबाग में चार राज्य थे। रामगढ़ के राजा ने खड़गडीह राजा की हत्या कर दी। इस समय रामगढ़ का राजा दलेल सिंह था। दलेल सिंह चेरो राजा रंजीत सिंह की मदद की थी।
- अतः चेरो के राजा ने नागवंशी राजा से टोरीन छीन लिया। 1732 ई. में दलेल सिंह की मृत्यु हुई। उसके बाद विष्णु सिंह रामगढ़ का राजा बना और यह धीरे-धीरे शक्तिशाली होते चला गया और बंगाल के नवाब की इच्छा करने लगा।
- अतः बंगाल का नवाब अलीवर्दी खाँ विष्णु सिंह को 1774 ई. में पराजित किया। 1763 ई. में विष्णु सिंह की मृत्यु हो गई। उसके बाद मुकुद सिंह शासक बने। 1769 ई. में कैप्टन कैमक ने मुकुद सिंह को हटा कर रामगढ़ राज्य को ब्रिटिश राज्य में मिला दिया।
मानभूम:
- 1700 ई. तक मानभूम क्षेत्र में मुगलों की सत्ता पूरी तरह स्थापित हो चुकी थी, लेकिन इसके बाद मुगल संप्रभुता कम होने लगी और मुगल काल में बंगाल-बिहार की समस्या उत्पन्न होने के कारण मुगल ध्यान नहीं दे सकें।
राजमहल क्षेत्र:
- फरुख्शियर अपने पिता की मृत्यु के समय राजमहल में ही था और इसी ने बंगाल के नायब नवाब इजुउधौला ने राजमहल में किले का निर्माण किया।
पलामू क्षेत्र:
- औरंगजेब की मृत्यु के बाद पलामू का राजा साहब राय ने मुगलों को कर देना बंद कर दिया। अतः मुगल आक्रोशित होने लगें, परंतु तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की जा सकीं।
- साहब राय के बाद रजित सिंह (1722 ई.) शासक बना। रजित सिंह के बाद जय कृष्ण शासक बना।
- 1743 ई. में अलीवर्दीखाँ पलामू पर आक्रमण किया और पलामू के राजा से कर वसूलने लगा। बाद में पलामू पर मराठों का वर्चस्व हो गया।