दयालुता (Kindness)
दयालुता (Kindness) से सम्बंधित कथन-
- दयालु बनिए, आपसे मिलने वाला हर व्यक्ति कठिन संघर्ष कर रहा है।- प्लेटो
- अल्लाह उससे भी अधिक प्यार करने वाला और दयालु है जितना कि कोई माँ अपने बच्चे के लिए होती है।- पवित्र कुरान
- मेरा धर्म बहुत सरल है। मेरा धर्म दयालुता है।- दलाई लामा
- यदि आप चाहते हैं कि दूसरे सुखी हों तो करुणा कीजिए। यदि आप सुखी होना चाहते हैं तो करुणा कीजिए।- दलाई लामा
- दयालुता (Kindness) और प्रेम मानवीय समागम में सबसे अधिक उपचारक जड़ी-बूटियाँ व कारक (Agents) है।- फ्रैडरिच नित्शे
- करुणा वह है जो अच्छे लोगों के हृदय को दूसरों के दुख से हिला देती है। यह दूसरों के दर्द को कुचल देती है और नष्ट कर देती है इस प्रकार यह करुणा कहलाती है। यह करुणा इसलिए कहलाती है कि यह दुखियारों को शरण देती और उन्हें अपनाती है।- बुद्ध
- यह कहना सत्य होगा कि प्रेमयुक्त दयालुता और करुणा ही हमारा (बौद्ध) सब कुछ अनुष्ठान है।- बुद्ध
- दयालुता (Kindness) वह भाषा है जिसे बधिर सुन सकता है और अंधा देख सकता है।- मार्कटवेन
- किसी भी जीव या जीवित प्राणी को घायल मत कीजिए, उसका दुरुपयोग मत कीजिए, उस पर अत्याचार (दमन) मत कीजिए, यातना मत दीजिए, तकलीफ मत दीजिए और मारिए मत।- महावीर
- वास्तविक करुणा करने वाला प्रतिकार (प्रतिफल) की कामना नहीं करता भला वर्षा वाले बादलों को दुनिया कुछ दे सकती हैं।- तिरुवल्लुवर
- उपरोक्त कथन दयालुता के विभिन्न पहलुओं को छूते हैं। अरस्तु दयालुता (Kindness) को किसी जरूरतमंद की सहायता करना बताता है जो किसी बात के एवज में नहीं है, ना ही सहायता करने वाले के फायदे के लिए है, किन्तु उस व्यक्ति के लिए है जिसने मदद की है। दयालुता, दोस्ताना, उदारता और दूसरों का ध्यान रखना है।
- यह मानवतावाद तथा साथ ही धर्मिक नैतिक शास्त्र की आधारशिला है। एक सदगुण के तौर पर दयालुता को अनेक प्रकार से विश्लेषित किया जा सकता है।

- दयालुता (Kindness), निकटता से सम्बद्ध गुणों के समूह में से एक है। प्रेम, दया, परोपकार, दूसरों के बारे में सोचना, परहितवाद, तथा दयालुता सभी सम्बद्ध गुण हैं।
- सदगुण के तौर पर दयालुता (Kindness) दूसरों के बारे में है। जो लोग दयालुता के काम करते हैं, वे उसके बदले में कुछ नहीं चाहते, यह बात तिरुवल्लुवर के उपरोक्त कथन में कही गई है।
- दलाईलामा दयालुता (Kindness) को धर्म का मर्म (सार) मानते हैं। यह वास्तव में सभी धर्मों का सत्य है। साथ के मानवों के लिए दान या प्रेम एक केन्द्रीय ईसाई सिद्धान्त हैं।
- इस्लाम में भी इसी प्रकार की अवधारणा ‘रहम’ या दया की है। इसी प्रकार के अर्थों के साथ प्राणियों के प्रति दयालुता का उपदेश देता है। यद्यपि सभी जीव पवित्र समझे जाते हैं, मानव जीवन धरती पर अस्तित्व का सर्वोंच्च रूप माना जाता है।
- महावीर के कथन में दयालुता के एक पहलू को नकारात्मक रूप में या जीवित प्राणियों के विरुद्ध सभी प्रकार की हिंसा को समाप्त करते हुए एक निषेध के तौर पर बताया गया है। यह अहिंसा को दयालुता का मुख्य संघटक के तौर पर मानता है।
- ईसाइयत के दृष्टिकोण से चरित्र के सभी सद्गुण प्रेम से उत्पन्न होते हैं और इसी के अनेक रूप है। जैसाकि सेंट पॉल का कहना है- ‘यह सम्पूर्णता का बंधन है।’
- दयालुता (Kindness) का जन्म मानवीय भावनाओं तथा अनुभवों से होता है- मानव में समानुभूति का गुण होता है जिससे उन्हें एक प्रकार की सहयोजिता या मनावैज्ञानिक अनुरूपण-भावनाओं सुख भोग तथा अन्यों के दर्द का अनुभव होता है।
- मानव जाति अपनी समान मानवता के सद्गुण से दूसरों के साथ सह अनुभूति का बोध बांटती है। इसलिए वे दूसरों के कष्टों से दुखी होते हैं और उनकी तकलीफों को दूर करने की कोशिश करते हैं। वे एक-दूसरे के सुखों (खुशियों) व दुखों में भागीदार बनते हैं, ‘रोते हुए के साथ रोते हैं और उल्लासितों के साथ उल्लासित होते हैं।’
- दयालुता को सामाजिक चेतना का परिणाम माना जा सकता है। अधिकांशतः पुरुष कठोर हो जाते हैं और अपनी भावनाओं की कोमलता को खो देते हैं।
- धार्मिक ग्रंथ और वास्तविक साहित्य पुरुषों (मनुष्यों) में ऐसी भावनाओं को जगाने और जगाए रखने का प्रयास करते हैं।
- दयालुता (Kindness) मात्र एक निष्क्रिय भावना नहीं रह सकती है। इसे व्यावहारिक उपकारी, मुसीबतजदा लोगों की सहायता में सेवा व कार्य करने वाली होना ही होता है।
- दयालुता (Kindness) केवल दान से कहीं अधिक है। दान या उदार अंशदान, निःसहायों और जरूरतमंदों की भौतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है। लेकिन दुखियारे लोग दुःख, उद्विग्नता और एकाकीपन के जिन भावों का अनुभव करते हैं, उनमें उन्हें भावनात्मक एकजुटता, सहायता व देखभाल से कुछ अंशों तक कम किया जा सकता है।
- सच्ची सेवा धन से भी अधिक मूल्यवान होती है। ‘वह व्यक्ति कोई दयालुता नहीं दिखा (दे) सकता जो अपना स्वयं का कुछ इसमें न मिला ले।’
नैतिक सिद्धान्त-
- अधिकतर धर्म सहिष्णुता और क्षमा को व्यावहारिक दयालुता का विशेष रूप मानते हैं। हम उन नैतिक सिद्धान्तों को देख सकते हैं जो ऐसी व्यावहारिक दयालुता के भीतर आते हैं। किसी को दूसरे की बुराई नहीं करनी चाहिए।
- व्यक्ति को सज्जन व नम्र होना चाहिए। व्यक्ति को ऐसी सभी बातों से बचकर रहते हुए जिनसे संघर्ष उत्पन्न होता है, सबके साथ शांति से रहना चाहिए। यदि फिर भी मतान्तर या विवाद होते हैं तो मानव को सहन करना और एक-दूसरे को क्षमा कर देना चाहिए।
- दयालुता पर प्लेटों का कथन अन्यों का ध्यान रखने की प्रवृत्ति की जरूरत की ओर इंगित करता है। प्लेटो इसके लिए कारण बताता है कि हमें दूसरों के लिए क्यों सोचना चाहिए। ऐसा हो सकता है कि वे कठोरतम परिस्थितियों या बड़ी मुसीबत का सामना कर रहे हों। लेकिन ऐसा वास्तव में सच नहीं भी हो सकता है। यह एक ऐसा अनुभवजन्य तथ्य है जिसकी जांच जरूरी है।
- प्लेटो नैतिक एजेण्ट से ऐसी अवधारणा बनाने तथा अन्यों के प्रति उचित नैतिक मुद्दा अपनाने के लिए कहता है। अन्य शब्दों में, उस अवधारणा में, मानव को दूसरों के प्रति अनिवार्यतः दयालुता का व्यवहार करना होगा। दयालुता व्यक्ति के नैतिक अस्तित्व की स्थायी विशेषता हो जाती है।
- मदर टेरेसा के विचार का तात्पर्य है कि हमें गलतियाँ हो जाने का जोखिम लेकर भी दयालु व करुणायुक्त होना चाहिए।
- यदि हम ऐसा करते हैं तो हम कभी भी किसी को हानि नहीं पहुँचाएंगे या दुःखी नहीं करेंगे। इस प्रक्रिया में हम कुछ अनैतिक या अपात्र लोगों के प्रति अतिउत्साही हो सकते हैं। लेकिन हम उन्हें शारीरिक या मनोवैज्ञानिक, किसी भी प्रकार से हानि नहीं पहुंचाएंगे।
- इस अभिव्यक्ति-‘निर्दयता व कठोरता से चमत्कारी काम हो जाते हैं’, की अनेक प्रकार से व्याख्या की जा सकती है महत्वाकांक्षी माता-पिता बच्चों पर शिक्षा का भारी बोझ डाल देते हैं जिससे इस प्रक्रिया में बच्चों की मनोवैज्ञानिक हानि होती है।
- कानूनी प्रणालियाँ दोषियों पर कठोर दण्ड लगा सकती हैं- वह भी न्याय को दया से प्रभावित किए बिना।
- यह अनेक साधनों (रास्तों) का बोध करा सकता है जिनको लोग माने गए महान या उच्च लक्ष्यों को पाने के लिए अपनाते हैं। इस प्रसंग में हम कठोर व निर्दयी सर्वसत्तावादी शासनों, जैसे नाजी जर्मनी, स्टालिन के रूस या साम्यवादी (कम्युनिस्ट) चीन का नाम ले सकते हैं जिनका लक्ष्य पूर्ण सामाजिक बदलाव था। इसकी प्रक्रिया में उन्होंने लाखों लोगों की हत्या की, बेजुबान कर दिया और बर्बाद कर दिया।
- मदर टेरेसा अप्रत्यक्ष रूप से उग्र समाज और राजनैतिक परिवर्तन का या सामाजिक इंजीनियरिंग में बड़े पैमाने पर प्रयोगों का विरोध कर सकती हैं, जिनके साथ अनिवार्यतः भारी हिंसा तथा मानवीय कष्ट होते हैं। वे मानवीय, वर्द्धमान, क्रमशः और शांतिपूर्ण सामाजिक बदलाव की जरूरत को रेखांकित कर रही होगी।
- मार्क ट्वेन का विचार है कि दयालुता एक अनुभूति है जो शब्दों के प्रयोग के बिना ही प्रेषित की जा सकती है। लोग दयाभाव वाले शब्दों व कार्यों को तत्काल देख व अनुभव कर सकते हैं।
- दयालुता (Kindness) ऐसी भावुकता है जो किसी मध्यस्थ माध्यम के बिना ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में चली जाती है। दयालुता वाली भावुकता (भावों) को प्रेषित करने या अनुभव करने के लिए कोई खास गुण या योग्यता की जरूरत नहीं है।
- दयालुता की भावनाओं का अनुभव करने के लिए या दयालुता वाले विचारों को ले लेने के लिए किसी को विद्वान या पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं है।
- अनपढ़ लोग भी दयालू हो सकते हैं। दयालुता, मनुष्य की मूल व प्राकृतिक भावनात्मक बनावट का अंग (भाग) है। कठोर परिस्थितियाँ कभी-कभी इस भावना को नष्ट कर सकती हैं। किन्तु जरा-से प्रयास से उन्हें पुनर्जीवित किया जा सकता है।
- दयालुता, भावनाओं, विचारों, शब्दों और कार्यों की एक विशेषता है। यह सभी धर्मों का केंद्रीय नैतिक सिद्धान्त है। इसके न होने पर मानव, पाशविक, क्रूर, निर्दयी तथा निष्ठुर हो जाते हैं।
- दयालुता (Kindness), सहनशीलता और सौहार्द्र की जरूरत को उस हिंसात्मक टकरावों से समझा (देखा) जा सकता है जो इस समय विश्व के अनेक देशों को एक दूसरे से अलग कर रहे हैं। जैसा कि गेटे का कहना है, ‘दयालुता वह शृंखला है जो समाज को एकसाथ बांधती है।’
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