भारत में श्रमिक आन्दोलन (Labour Movement in India)
- भारत में श्रमिक आन्दोलन (Labour Movement in India) के अंतर्गत भारत में मजदूर संघ की गतिविधियाँ 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में आधुनिक उद्योगों की स्थापना के साथ आरम्भ हुई।

प्रथम फैक्ट्री कमीशन एवं कानूनः
- प्रथम फैक्ट्री कमीशन बॉम्बे में 1875 सी.ई. में स्थापित हुआ और प्रथम फैक्ट्री एक्ट 1881 सी.ई. में रिपन के काल में पारित हुआ।
- उसमें बाल श्रमिकों की सुरक्षा की बात की गई एवं स्त्री श्रमिकों के मुद्दे को छोड़ दिया गया था। 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों में नहीं लगाया जा सकता था।
- साथ ही बारह वर्ष से कम आयु के बच्चों के काम करने के घंटों को सीमित किया गया और खतरनाक मशीनों को बाड़े से घेरने का निर्देश दिया गया।
दूसरा फैक्ट्री कमीशन 1884 सी.ई.
दूसरा फैक्ट्री एक्ट (1891):
- यह एक्ट लैंसडाउन के कार्यकाल में पारित हुआ। इस अधिनियम में कुछ और रियासत देने की बात की गई।
- यह अधिनियम उन कारखानों पर लागू होता था जो बिजली का प्रयोग करते थे, 50 अथवा अधिक संख्या में श्रमिकों को नियुक्त करते थे तथा वर्ष में 120 अथवा उससे अधिक दिन काम करते थे।
- इस अधिनियम में प्रत्येक कर्मचारी के लिये सप्ताह में एक दिन के पूर्ण अवकाश तथा प्रतिदिन दोपहर को आधे घंटे के अवकाश की व्यवस्था की गई थी। कार्यरत बच्चों की न्यूनतम आयु सीमा 9 तथा अधिकतम 14 निर्धारित की गई।
- यह स्त्रियों की स्थिति में सुधार से संबंधित था। इसमें डेढ़ घंटे के मध्यावकाश एवं साप्ताहिक मध्यावकाश की व्यवस्था थी। स्त्रियों को 11 घंटे प्रतिदिन से अधिक काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
तीसरा कारखाना कानून (1911):
- यह औद्योगिक श्रमिकों के सुरक्षा तथा स्वास्थ्य से संबंधित था।
चतुर्थ कारखाना कानून (1922):
- यह केवल फैक्ट्रियों पर लागू होता था।
भारत में श्रमिक आन्दोलन (Labour Movement in India) से संबंधित अन्य प्रमुख तथ्य
- जेनेवा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन का प्रतिनिधित्व एस. वी. परूलेकर ने किया था।
- 1946 में श्रमिक के वेतन के मुद्दे पर रेगे समिति का गठन हुआ।
- 1910 में बंबई में कामगार हितवर्धक सभा का गठन किया गया जो मजदूरों के हितों के लिये कार्य करते थे।
- 1928-29 में औद्योगिक विवादों के निपटारे के मुद्दे पर फॉसेट समिति का गठन किया गया।
भारत में श्रमिक आन्दोलन (Labour Movement in India) का विकास
- बंगाल में एक ब्रह्म समाज सुधारक शशिपाद बनर्जी ने 1870 में एक श्रमिक क्लब की स्थापना की और मासिक पत्रिका भारतीय श्रमजीव का संपादन प्रारंभ किया। मजदूर असंतोष की शुरूआत 1877 में नागपुर की एक्सप्रेस मिल मजदूरों की मालिकों के विरूद्ध हड़ताल से मान सकते हैं।
- 1878 सी.ई. में सोराबजी सुपर बंगाली ने बम्बई विधान परिषद् में श्रमिकों के काम के घंटे कम करने हेतु एक बिल रखने की कोशिश की।
- नारायण मेघाजी लोखोन्दे ने बंबई में श्रमिकों का एक क्लब स्थापित किया और फैक्ट्री कमीशन के सम्मुख एक मसविदा प्रस्तुत किया। यहीं से भारत में ट्रेड यूनियन मूवमेन्ट की शुरुआत हुई।
- बॉम्बे में एम.एन. लोखोन्डे ने 1880 में एक एंग्लो-मराठी साप्ताहिक दीनबंधु का प्रकाशन आरंभ किया और 1890 सी.ई. में बॉम्बे मील हैण्ड एसोसिएशन की स्थापना की।
- द्वारिका नाथ गांगुली जैसे बंगाली नेताओं ने 1880 के दशक में चाय बागानों के श्रमिकों की दशाओं में सुधार के लिए आंदोलन चलाया।
- दूसरा फैक्ट्री एक्ट 1891 में पारित किया गया। इसने साप्ताहिक छुट्टी पर बल दिया। स्त्रियों एवं बच्चों के लिए काम के घण्टे निर्धारित किए गए परन्तु पुरुषों के लिए काम का निश्चित समय नहीं निर्धारित किया गया।
- भारत में श्रमिक आन्दोलन (Labour Movement in India) के तहत कभी-कभी श्रमिकों अपने ही ढँग से संघर्ष करने का प्रयास करते थे और यह संघर्ष छिटपुट दंगों एवं संक्षिप्त हड़तालों में देखा जा सकता था। 1882 एवं 1890 के बीच बॉम्बे एवं मद्रास में 25 महत्त्वपूर्ण हड़तालें दर्ज की गईं।
- 1881 एवं 1892 में और आगे 1901 में बॉम्बे में अनेक बड़ी हड़तालों का उल्लेख मिलता है और 1890 के दशक के मध्य तक कलकत्ता के पटसन मजदूरों में संघर्ष की प्रवृत्ति स्पष्ट दिखाई पड़ती है। कितु इस चरण में श्रमिक आंदोलन की प्रवृत्ति अपने क्षेत्र, अपनी जाति, रक्त संबंध और धर्म की संकीर्ण बातों के आधार पर होती थी। कलकत्ता के औद्योगिक क्षेत्र में एक स्थायी श्रम संगठन, जो संभवतः प्रथम था, मुहम्मडन एसोसिऐशन ऑफ कांकीनारा है।
- भारत में श्रमिक आन्दोलन (Labour Movement in India) के अंतर्गत प्रथम संगठित श्रमिक आंदोलन 1899 सी.ई. में जी.आई.पी. रेलवे में सिग्लरों की हड़ताल थी। 1903-08 के बीच श्रमिक आंदोलन में उछाल आया। अग्रणी श्रमिक नेताओं के रूप में चार व्यक्तियों के नाम उल्लेखनीय हैं- अश्वनी कुमार बनर्जी, प्रभात कुसुम राय चौधरी, अपूर्व कुमार घोष और प्रेम तोष बोस।
- 1905 सी.ई. में हावड़ा में बर्न कंपनी के 247 बंगाली बाबुओं ने कार्य संबंधी एक नए अधिनियम के विरोध में बहिर्गमन किया। 16 अक्टूबर, 1905 में बंगाल के विभाजन के दिन बर्न कंपनी के 12 हजार श्रमिकों ने काम बंद कर कलकत्ता फेडरेशन हॉल की मीटिग में भाग लिया।
- 27 अगस्त, 1905 को जमालपुर कार्यशाला में मजदूरों ने दंगा छेड़ दिया जिसके परिणामस्वरूप वहाँ गोलियाँ चल गई। ए.सी. बनर्जी के निजी कागजात से ज्ञात होता है कि 1906 सी.ई. में बजबज में श्रमिक इण्डियन मील हैण्डस यूनियन की स्थापना करने का प्रयास कर रहे थे। परन्तु 1908 सी.ई. में बंग-भंग आंदोलन के अवसान के साथ ही श्रमिक आंदोलन स्थगित हो गया।
- 1908 में तिलक की गिरफ़्तारी के विरोध में बंबई की कपड़ा मिलों ने हड़ताल की थी यह मजदूरों की पहली राजनीतिक हड़ताल थी।
- 1915 सी.ई. के होमरूल आंदोलन के साथ और 1919 सी.ई. के रॉलेट सत्याग्रह से जुड़ते हुए भारत में श्रमिक आन्दोलन (Labour Movement in India) असहयोग आंदोलन में अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गया।
- अतः 1920-22 के बीच श्रमिक आंदोलन में उछाल आया। 1926 सी.ई. में ट्रेड यूनियन एक्ट पारित किया गया। उसके अनुसार ट्रेड यूनियन को वैधानिक आधार प्रदान किया गया।
- 1918 सी.ई. में स्थापित मद्रास श्रमिक यूनियन भारत में प्रथम ट्रेड यूनियन थी। इसके संस्थापक जीरामानजुलु एवं जी चेलविपत्ति चेट्टी थे। इसके अध्यक्ष वी- पी- वाडिया थे जो एनीबेसेन्ट के सहयोगी थे।
- 1919 में भारत सरकार के इंटरनेशनल लेवर ऑर्गेनाइजेशन (प्स्व्) के वाशिगटन सम्मेलन में मद्रास लेबर यूनियन के अध्यक्ष वी-ई- वाडिया को मजदूर प्रतिनिधि के रूप में भेजा था।
- 1918 सी.ई. में गाँधी ने न्यास के सिद्धांत के आलोक में अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन (मजदूर महाजन सभा) की स्थापना की। काँग्रेस भारतीय पूँजीपति के हित में श्रमिक आंदोलन से पृथक हो रही थी।
- लोकमान्य तिलक, जो बंबई के श्रमिक आंदोलन से जुड़े हुए थे, अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक 1920) के निर्माण में प्रेरक तत्व का काम किया। लाला लाजपतराय इसके प्रथम अध्यक्ष एवं दीवान चमन लाल इसके सचिव हुए। उपाध्यक्ष थे- जोसेफ बैपिस्टा।
- लाला जी भारत के प्रथम नेता थे जिन्होंने पूँजीवाद को साम्राज्यवाद से जोड़ा एवं श्रमिकों को इस गठबंधन के विरुद्ध काम करने के लिये प्रेरित किया। लाला लाजपतराय ने कहा कि सैनिकवाद एवं साम्राज्यवाद पूँजीवाद के जुड़वाँ बच्चे हैं। वे तीनों में एक एवं एक में तीन हैं।
- लाला लाजपतराय के अतिरिक्त कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं ने भी अपने को अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस से जोड़ लिया। सी.आर. दास ने इसके तीसरे एवं चौथे अधिवेशन की अध्यक्षता की और महत्त्वपूर्ण नामों में सी.एफ. एन्ड्रयूज जे.एम. सेनगुप्ता और सत्यमूर्ति के नाम उल्लेखनीय हैं।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1922 में अपने गया अधिवेशन में अखिल भारतीय ट्रेंड यूनियन कांग्रेस (ATTUC) की स्थापना का स्वागत किया और उसके कार्य में सहायता करने के लिए महत्त्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओं की समिति बनाई गई। गाँधी जी आरम्भ से ही (ATTUC से नितान्त अलग रहे।
- अप्रैल 1919 में पंजाब के दमन एवं गाँधी जी की गिरफ्तारी के पश्चात अहमदाबाद एवं गुजरात के अन्य भागों में श्रमिकों ने आंदोलन छेड़ दिया। 1919 और 1921 के बीच बहुत से अवसरों पर रेलवे श्रमिकों ने रॉलेट आंदोलन, असहयोग एवं खिलाफत आंदोलन में हिस्सा लिया।
- 1919 में उत्तर-पश्चिम रेलवे श्रमिकों के द्वारा अखिल भारतीय हड़ताल का आह्नान किया गया और उत्तरी भारत में उसकी सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई।
- बॉम्बे के श्रमिकों ने 1921 सी.ई. में प्रिस ऑफ वेल्स का बहिष्कार किया और नवम्बर 1921 में श्रमिकों ने देशव्यापी हड़ताल की। बम्बई में सूती मील बंद हो गए और 14 हजार श्रमिक सड़क पर आ गए। उन्होंने प्रिस ऑफ वेल्स के स्वागत में आए हुए यूरोपीय एवं पारसियों पर हमला किया।
- असहयोग आंदोलन के अंतिम दिनों में दर्शनानन्द एवं विश्वानंद ने ईस्ट इण्डिया रेलवे में एक सशक्त हड़ताल का नेतृत्व किया जो फरवरी 1922 से अप्रैल 1922 तक चला था। एस. एन. हलधर ने जमशेदपुर लेबर यूनियन की स्थापना की। 1922 में टाटा उद्योग में मजदूरों की हड़ताल हुई।
- अहमदाबाद में अप्रैल 1923 में मजदूरी में 20 प्रतिशत की कटौती को लेकर भारी हड़ताल हुई जिसके दौरान 56 से 64 मीलें बंद हो गईं।
- 1922-23 में मद्रास में बकिधम कर्नाटक मील में 4 हड़तालें हुईं और 1923 सी.ई. में मद्रास के समुद्र तट पर सिगारबेलू द्वारा आयोजित सभा में प्रथम मई दिवस मनाया गया।
- 1925 सी.ई. में North Western Railway में अप्रैल से जून में एक भारी हड़ताल हुई। इस हड़ताल को एक जुलूस ने आविस्मरणीय बना दिया। इसमें कामगार अपने ही खून में लाल किए गए झण्डे लिए चले आ रहे थे। कितु सबसे बड़ी हड़ताल बम्बई की कपड़ा मिल में जनवरी 1924 और सितम्बर-दिसम्बर 1925 में हुई थी।
- दिसम्बर 1925 को सरकार ने उत्पादन शुल्क का अंत कर दिया। अतः अब उद्योगपतियों ने भी बोनस में कटौती के प्रस्ताव को रद्द कर दिया। इसके परिणामस्वरूप मजदूरों ने आंदोलन को वापस ले लिया।
- एक तरफ बॉम्बे टेक्सटाईल लेबर यूनियन एम.एन. जोशी के उदार मानवतावादी नेतृत्व में काम कर रही थी। वहीं बम्बई के मीलों में गिरनी कामगार महामण्डल के नेता के रूप में 1923 में दो जुझारू श्रमिक नेताओं का उदय हुआ।
- ये दोनों नेता थे- ए.ए. अल्वे और जी.आर. कास्ले। 1928 सी.ई. में कम्युनिस्टों ने इसी प्रवृति को आगे बढ़ाकर प्रसिद्ध गिरनी कामगार यूनियन की स्थापना की।
- बॉम्बे टेक्सटाइल लेबर यूनियन नए कानून के अन्तर्गत पँजीकृत होनेवाली पहली यूनियन थी। 1926 में इसका पँजीकरण हुआ। एक दृष्टि से इण्डियन ट्रेड यूनियन एक्ट श्रमिक-हितों के विपरीत भी पड़ता था।
- दिसम्बर 1928 में कलकत्ता के कामगार वर्ग मजदूर किसान पार्टी के नेतृत्व में हजारों की संख्या में कांग्रेस अधिवेशन के स्थान तक जुलूस बनाकर गए। उन्होंने दो घंटे तक पंडाल पर कब्जा बनाए रखा। जुलाई 1928 में साउथ इण्डियन रेलवे में छोटी परन्तु उग्र हड़ताल हुई।
- अप्रैल 1929 में आया जिसके द्वारा सभी हड़तालों पर नियंत्रण लगाने की कोशिश की गई।
- 1929-33 के बीच मेरठ षडयंत्र केस चला। मेरठ षडयंत्र केस के तहत 32 गिरफ्तार नेताओं में बंबई के – डाँगे, मिराजपकर, घाटे, जोगेलकर, अधिकार, निबंकर, अल्बे, कास्ले। मेरठ केस में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के आठ सदस्य भी फँसे हुए थे। अप्रैल-अगस्त 1929 में गिरनी कामगार यूनियन ने एक दूसरी हड़ताल आयोजित की। अब इस यूनियन के नेता थे- देशपाण्डे एवं बी.टी. रणदिवे।
- अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी ने 1929 में बाकर अली मिर्जा की देख-रेख में एक श्रमिक अनुसंधान विभाग की स्थापना की।
- फरवरी-मार्च 1930 सी.ई. में कम्युनिस्टों के नेतृत्व में जी.आई.पी. रेलवे में एक बड़ी कितु असफल हड़ताल हुई। उसी तरह कलकत्ता के सविनय अवज्ञा आंदोलन के ठीक पहले एक कम्युनिस्ट युवक अब्दुल मोमिन ने गाड़ीवालों की एक सफल हड़ताल का नेतृत्व किया।
- पटसन कारखानों में पहली हड़ताल जुलाई-अगस्त 1929 में हुई। इसका संचालन बंगाल जूट वर्कर्स ने किया था जिस पर अधिकांशतः कम्युनिस्टों का नियंत्रण था।
- 1929 में विश्वव्यापी मंदी के दौरान भारतीय ट्रेड यूनियन में भी भूचाल आ गया। 1929 में जब जवाहर लाल नेहरू ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष थे तो इसका दो भागों में विभाजन हो गया। मुख्य मुद्दा था- ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस अंग्रेजों द्वारा नियुक्त रॉयल कमीशन ऑन लेवर का बहिष्कार करेगी कि नहीं। उदारवादी इसमें शामिल होना चाहते थे जबकि उग्रवादी बहिष्कार करना चाहते थे।
- अंत में उदारवादियों ने ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस छोड़ तथा वी.वी. गिरि की अध्यक्षता में इंडियन ट्रेड यूनियन फेडरेशन की स्थापना की। इसके अन्य नेता थे- एम.एन. जोशी, शिवराज तथा लक्ष्मन लाल। आगे इसमें एक दो और संगठन जुड़ गए जिससे इसका नाम बदलकर नेशनल ट्रेड यूनियन फेडरेशन हो गया।
- 1931 में दूसरा विभाजन हुआ। इस बार कम्युनिस्टों ने ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस को छोड़ दिया तथा रेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की।
- यह विभाजन उस समय हुआ जब मालिकों ने हजारों श्रमिकों को नौकरी से निकाल दिया था। रेड ट्रेड यूनियन के प्रमुख नेता थे रणादेवे, देशपांडे, बंकिम मुखर्जी तथा भूपेन्द्र नाथ दत्त आदि।
- आगे 1931-32 के मध्य द्वितीय सविनय अवज्ञा के दौरान सरकार ने श्रमिकों के मध्य हुई फूट का फायदा उठाते हुए व्यापक दमन किया। इससे प्रेरित होकर विभिन्न ट्रेड यूनियनों में एकता का प्रयास प्रारंभ हुआ।
- वी.वी. गिरी के प्रयासों से 1938 में नागपुर में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस तथा नेशनल ट्रेड यूनियन फेडरेशन का संयुक्त अधिवेशन हुआ तथा 1940 में दोनों संगठन संयुक्त हो गए।
- 1941 में एम.एन. रॉय के नेतृत्व में पुनः विश्व युद्ध विरोधी वामपंथियों ने ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांफ्रेंस से पृथक होकर इंडियन फेडरेशन ऑफ लेवर की स्थापना कीं।
- 1935 में कलकत्ता की केशोराम कॉटन मील और अहमदाबाद के कपड़ा मील में हड़ताल हुई। 1936 में कलकत्ता की पटसन मीलों एवं कानपुर की कपड़ा मीलों में हड़तालें हुईं।
- बम्बई के श्रमिक वर्ग विश्व में प्रथम श्रमिक वर्ग थे जिन्होंने 2 अक्टूबर 1939 सी.ई. में युद्ध विरोधी हड़ताले कीं। 1945-47 में श्रमिक आंदोलन में पुनः उभार आया 1945 के अंत में बम्बई और कलकत्ता के गोदी श्रमिक इण्डोनेशिया जाने वाले जहाज में लदान से इंकार कर दिया।
- श्रमिकों ने आजाद हिन्द फौज के जवानों पर मुकद्दमों के मध्य भी हड़तालें कीं। बम्बई के श्रमिकों ने 1946 में नौसेना विद्रोह के समय विद्रोहियों से सहानुभूति दिखाई। 1947 में कांग्रेसी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाले श्रम संगठन इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई। इसकी स्थापना बल्लभभाई पटेल ने की।
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