मुगलकालीन स्थापत्य कला
- मुगल काल को ‘द्वितीय क्लासिकल युग’ कहा जाता है। मुगलकालीन स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषता यह है कि इस काल में पहली बार आकार एवं अलंकरण की विविधता का प्रयोग निर्माण के लिए पत्थर के अलग प्लास्टर एवं पच्चीकारी या पित्रड्यूरा का प्रयेाग किया गया।
- मुगलकालीन स्थापत्य कला में मध्य एशिया की इस्लामी और भारतीय कला का मिश्रित रूप है जिसमें फारसी, तुर्की, गुजराती, बंगाल एवं गुजरात आदि स्थानों की परंपराओं का अद्भूत मिश्रण है।
- सजावट के लिए संगमरमर पर जवाहरात जड़ाउ काम किया गया। इसके अतिरिक्त मुगलकालीन स्थापत्य में पत्थरों को काटकर फूल-पत्ती, बेलबूटे को सफेद संगमरमर से जड़ा जाता था।
- मुगलकालीन स्थापत्य कला में गुंबदों एवं बुर्जों को कलश से सजाया जाता था। भवन का निर्माण बड़े पैमाने पर किया गया भवन धार्मिक एवं धर्मनिरपेक्ष दोनों प्रयोजन हेतु बनाए गए बलुए पत्थर तथा संगमरमर का अधिक प्रयोग शिल्पकारों को अपनी कला को अभिव्यक्त करने का अवसर नहीं मिला।
- मुगलकालीन स्थापत्य कला का शासकों द्वारा स्वयं निरीक्षण किया जाता था। मकबरों एवं मस्जिदों का एकीकृत निर्माण पहली बार लोदी शासकों ने किया, किंतु इस एकीकरण की पूर्णता मुगल काल में आईं शाहजहाँ के काल में उभार वाले गुंबदों और अनेक स्तरों वाली मेहराबों का प्रयोग शुरू हुआ है।
बाबरकालीन स्थापत्य कला
- बाबर कोे गैर धार्मिक भवनों के निर्माण में अधिक रूचि थी। बाबर ग्वालियर की स्थापत्य कला से प्रभावित हुआ। बाबर ने अपने गैर धार्मिक कार्यो के तहत मुख्य रूप से ईरानी शैली पर आधारित बगीचे लगवाए और मंडप बनवाये।
- बाबर ने पानीपत के काबुली बाग की मस्जिद तथा रूहेलखंड के संभल में जामा मस्जिद का निर्माण कराया। पानीपत की मस्जिद का निर्माण ईटों से हुआ।
- बाबर के द्वारा मस्जिद एवं अन्य स्मारक बनाने के लिए कुस्तुनतुनियां से अल्बानिया के प्रसिद्ध भवन निर्माता सिनान के शिष्यों को आमंत्रित किया था परंतु वह भारतीय परिवेश की वजह से नहीं आ सकते थे।
आराम बाग (आगरा)
- पर्शी ब्राउन के अनुसार कुस्तुनतुनियां से कलाकार बुलाना संभव नहीं हुआ था, क्योंकि यदि इस प्रसिद्ध स्कूल का कोई शिष्य भारत आया होता तो मुगलकालीन स्थापत्य कला पर वाइजेंरियन कला का प्रभाव दृष्टिगोचर होता’।
- बाबर के द्वारा लगवाये गये बाग- कश्मीर का निशात बाग लाहौर का शालीमार बाग, पजांब की तराई में पिंजौर बाग प्रमुख है।
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हुमायूँकालीन स्थापत्य कला
- हुमायूँ ने दिल्ली में दीनपनाह भवन की स्थापना की, इसके अतिरिक्त आगरा तथा हिसार में दो मस्जिदों का निर्माण कराया। यह फारसी स्थापत्य शैली पर आधारित थी। यह भवन आज पुराने किले के नाम से विख्यात है।
अकबरकालीन स्थापत्य कला
- अकबर के शासनकाल को मुगलकालीन स्थापत्य कला का निर्माण काल माना जा सकता है। इस दौरान भारतीय-इस्लामी स्थापत्य की मिली-जुली शैली का विकास हुआ।
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हुमायूँ का मकबरा
- हुमायूँ की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी हमीदा बानों बेगम की देख-रेख में इसका निर्माण आरंभ हुआ। इस भवन के स्थापत्य शिल्पी मिराज मिर्जा गियास थे। इसका निर्माण दिल्ली में हुआ।
- हुमायूँ के मकबरे में पहली बार बागानों का उपयोग किया गया और इसे लाल बलुए पत्थर से बने तोरणयुक्त चबूतरे पर स्थापित किया गया।
- यह आकार में अष्टकोणीय है और एक ऊंचे गुंबद से आच्छादित है जो वस्तुतः दोहरा गुंबद है। इसमें दो आवरण और दोनों आवरणों के बीच में जगह छोड़ दी गयी है।
- आंतरिक आवरण अंदरूनी हिस्से की छत का काम करता है और बाहरी आवरण इमारत के अनुपात में ऊपर की ओर शल्क कंद के समान उभरा हुआ है। इस मकबरे को ‘‘ताजमहल का पूर्वगामी’’ कहा गया है।
- मकबरे के हर एक तरफ मध्य में एक द्वार मंडप है जिसके साथ नुकीला मेहराब लगा हुआ है। यह मुख्य कक्ष में जाने का रास्ता है। इस भवन के अंदर कई कक्ष बने हैं। इसमें सबसे बड़ा कक्ष मध्य में है जिसमें सम्राट की कब्र है।
- इसकी सजावट के लिए संगमरमर की पंचघंटियों में भी भारतीय प्रभाव दिखता है। हुमायूँ के मकबरे को ताज का पूर्वगामी माना जाता है। पहली बार इस मकबरे के चारों ओर चहारदीवारी का निर्माण किया गया। सही अर्थों में हुमायुं का मकबरा अकबर के शासन की इमारत है परन्तु खासियतों के कारण इसे मुगलकालीन स्थापत्य के काल से अलग माना जाता है।
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संरचनात्मक स्वरूप
- अकबर के शासन काल में मुगलकालीन स्थापत्य कला के क्षेत्र में देशी तकनीकों को बढ़ावा मिला और अन्य देशों के अनुभव का भी उपयोग किया गया। इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैः-
- भवन निर्माण में मुख्य रूप से लाल बलुए पत्थर का उपयोग किया गया। शहतीरों का अधिकतम उपयोग मेहराबों के संरचनात्मक स्वरूप की अपेक्षा अलंकरण के लिए प्रयोग किया गया। गुंबद ‘लोदी’ शैली में बनते रहे, कभी-कभी इसे खोखला बनाया जाता था, परन्तु तकनीकी तौर पर यह सही अर्थों में दोहरा गुंबद नहीं होता था।
- खंभों का अग्रभाग बहुफलक युक्त होता था और इन खम्भों के शीर्ष पर ब्रैकेट या ताक बने होते थे अंदरूनी हिस्से में अलंकरण के तौर पर स्पष्ट रूप से बड़ी-बड़ी नक्काशी तथा पच्चीकारी (पित्रद्यूरा) की जाती थी और उन्हें चमकीले रंगों से रंगा जाता था।
भवन परियोजना
- अकबर की भवन परियोजनाओं को दो प्रमुख समूहों में बांटा जा सकता है। दोनों अलग-अलग चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। पहले समूह में मुख्य रूप से आगरा-इलाहाबाद और लाहौर में बने किले और कुछ महल और भवन शामिल है। दूसरा समूह मुख्य रूप से फतेहपुर में उसकी नयी राजधानी के निर्माण से संबंद्ध है।
प्रथम चरण
- अकबर के शासन काल की आरंभिक भवन परियोजनाओं में आगरा के किले का निर्माण उल्लेखनीय है। इसका निर्माण किले रूपी महल के रूप में किया गया।
- किले के भीतर गुजरात और बंगाल शैली में कई इमारतें बनवायी गईं आगरे के किले का दिल्ली दरवाजा संभवतः अकबर के आंरभिक स्थापत्यगत प्रयास का नमूना है। यह किले का मुख्य प्रवेश द्वार है। इस दरवाजे के स्थापत्य में नयापन है जो भारत में भवन निर्माण कला के नये युग के आरंभ की सूचना देता है।
- सामने की ओर मध्य में मेहराब पथ और उसके दोनों ओर झुकी हुई अष्टकोणीय दीवारें थीं। पीछे की ओर तोरणयुक्त छत जिसमें मंडप और कगूरे बने हुए थे। लाल बलुए पत्थर सफेद संगमरमर से अलंकरण किया गया।
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जहांगीरी महल
- जहांगीरी महल का निर्माण लाल बलुए पत्थर से किया गया है। यह हिन्दू और इस्लामी भवन निर्माण पद्धति के मिले जुले रूप का सुंदर नमूना है। इसमें विभिन्न कक्ष बने हुए है। पूर्व दिशा के अग्रभाग में प्रवेश द्वार है, जो गुंबदनुमा बड़े कक्ष की ओर जाता है। इस कक्ष के बाद खुला आंगन है।
- इस पूरे भवन के निर्माण में मुख्य रूप से लाल पत्थर, कड़ी और ब्रैकेट या ताक का इस्तेमाल किया गया है। लाहौर और इलाहाबाद के किले में भी यह विशेषता देखने को मिलती है, केवल अजेमर का किला दूसरे ढंग से बना हुआ है।
दूसरा चरण
- अकबर की स्थापत्य योजना के दूसरे चरण की शुरुआत फतेहपुर सीकरी में साम्राज्य की नयी राजधानी के निर्माण के साथ होती है। यह आगरा से 40 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। इसकी राजधानी फतेहपुर थी।
फतेहपुर सीकरी
- फतेहपुर सीकरी एक शहर है। इसका निर्माण एक इस तरीके से किया गया कि सहन, दीवान-ए-आम और जामा मस्जिद जैसे सार्वजनिक स्थल निजी महल के ही अंग बन गये।
- इसमें भवन एक दूसरे के आसपास बने थे और एक दूसरे से जुडे़ थे। सभी भवनों में बेहतरीन लाल बलुए पत्थर और परपरांगत शहतीरी निर्माण पद्धति का प्रयोग किया गया।
- खंभों, कडि़यों, ताकों, टाइलों और स्तंभों का निर्माण स्थानीय पत्थरों से किया गया है उन्हें बिना गारे से जोड़ा गया है। फतेहपुर सीकरी में प्रमुख धार्मिक भवन जामा मस्जिद, बुंलद दरवाजा, शेख सलीम चिश्ती की मजार गैर धार्मिक भवन-महल, प्रशासनिक भवन व अन्य भवन।
- धार्मिक भवनों का निर्माण अर्द्धवृत्ताकार या धनुषाकार शैली में किया गया जबकि गैर धार्मिक भवनों के निर्माण में शहतीरी पद्धति की प्रमुखता थी। जामा मास्जिद की योजना बिल्कुल एक मस्जिद के अनुरूप है- मध्य में एक बरामदा तीन तरफ से तोरण पथ और ऊपर की ओर गुंबदनुमा संरचना।
- उपासना गृह के पश्चिमी तरफ तीन अलग-अलग एकांत स्थल बने हैं, इसमें एक गुंबद और तोरण पथ है। ‘जोधाबाई का महल’ फतेहपुर सीकरी का सबसे बड़ा महल था, इसपर गुजराती प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है।
बुलंद दरवाजा
- अकबर ने दक्षिणी प्रवेश द्वार के स्थान पर बुलंद दरवाजा नामक विजय द्वार निर्मित कराया। यह लाल और पीले बलुए पत्थर से बनाया गया है और मेहराबों की रूपरेखा निर्मित करने में सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है। इसका निर्माण गुजरात विजय की स्मृति में कराया था।
- बाहर की ओर से सीढि़यों की ऊँची लंबी कतार के कारण यह और भी ज्यादा ऊंचा और भव्य दिखाई देता है। फतेहपुर सीकरी महल परिवार में अनेक कक्ष और हिस्से हैं। इनमें सबसे विशाल जोधाबाई महल है। यह भव्य और आडंबरहीन है। दीवान-ए-खास के दक्षिण-पूर्व में पांच मंजिली इमारत खड़ी है, जिसे पंच महल के नाम से जाना जाता है।
दीवाने खास
- प्रशासनिक भवनों में, निस्संदेह दीवाने खास सबसे अलग और खास है। इस भवन की योजना आयताकार रूप में की गयी हैं और बाहर की ओर है। यह दो मंजिला है। इसमें एक सपाट छत है जिसके प्रत्येक कोने के खंभों पर गुंबदनुमा छतरी लगी हुई है।
- बीच में एक खूबसूरत नक्काशी किया हुआ स्तंभ है, जिसके विशाल ताक के ऊपर एक वृत्ताकार पत्थर का चबूतरा बना हुआ है। इस श्रेणी का दूसरा महत्वपूर्ण भवन दीवाने आम है। यह एक बड़ा आयताकार बरामदा है, जो चारों ओर से स्तंभों से घिरा हुआ है।
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महत्वपूर्ण तथ्य
- मरियम का महलः जोधाबाई महल के निकट
- बीरबल का महलः यह दो मंजिला इमारत है जो मरियम के महल की तर्ज पर बनी है।
- तुर्की सुल्ताना की कोठीः रूबिया बेगम या सलीमा बेगम के लिए निर्मित यह लघु आकार की इमारत अत्यधिक आकर्षक है। पर्सी ब्राउन ने इसे ‘‘कलात्मक रत्न’’ कहा।
- फर्ग्यूसनः ‘फतेहपुर सीकरी का महल पाषण का एक ऐसा रोमांस है जैसा कहीं और नहीं मिलेगा।
- अबुल फजल लिखता है कि ‘‘बादशाह सुन्दर भवनों की योजना बनाता है और अपने मस्तिष्क एवं ह्रदय के विचारों को पत्थर एवं गारे का रूप प्रदान करता है।
जहांगीर कालीन स्थापत्य
- भवन निर्माण कला के क्षेत्र में जहांगीर और शाहजहां का शासन काल संगमरमर के प्रयोग का काल है। लाल बलुए पत्थर का स्थान संगमरमर ने ले लिया और इसका बेहतरीन प्रयोग होने लगा। इस काल में कुछ शैलीगत परिवर्तन भी आये।
- मेहराब को नया रूप दिया गया। इसमे घुमावदार फूल पत्ती का उपयोग होने लगा जिसमें आमतौर पर नौ नुकीले सिरे होते थे। रंगे हुए मेहराब संगमरमर के तोरण पथ इस काल की आम विशेषता थी। गुंबद कंदरीय स्वरूप ग्रहण करने लगा और इसमें एक प्रकार की तंगी भी आने लगी। साथ ही दोहरे गुंबद का चलन आम हो गया।
- अलंकरण के लिए पच्चीकारी के प्रयोग में रंगीन पत्थरों का खूब उपयोग किया जाने लगा जहांगीर के शासनकाल के उत्तरार्द्ध से पच्चीकारी का एक नया तरीका सामने आया जिसे पित्रद्यूरा के नाम से जाना जाता है। इसके तहत अशम, लेजुलाइट, सुलेमानी चीनी मिट्टी, पुखराज, कार्नेलियन जैसे पत्थरों को संगमरमर में बड़ी सुन्दरता के साथ फूलपत्तियों के रूप में जड़ा जाता था।
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अकबर का मकबरा
- अकबर का मकबरा मुगलकालीन स्थापत्य कला का पहला प्रमुख और उल्लेखनीय भवन है। यह आगरा से दूर दिल्ली मार्ग पर सिकन्दरा में स्थित है। अकबर ने इसकी रूपरेखा खुद बनायी थी और इसका निर्माण कार्य अपने जीवन काल में ही आरंभ कर दिया था।
- जहाँगीर ने इसकी मूलरेखा में परिवर्तन करके इसे नये रूप से निर्मित करवाया और इसे पूरा किया। यह भवन अकबर और जहांगीर की स्थापत्य योजनाओं का असाधारण सम्मिश्रण है। इस परिसर के बीच में मकबरा है जो चारों ओर से बागान से घिरा है। प्रत्येक ओर की चहारदीवारी के मध्य भाग में प्रवेश द्वार बने है। मकबरा चौकोर है और इसमें पांच मंजिलें हैं।
- पहली मंजिल वस्तुतः छतयुक्त चबूतरा है जो तहखाने का काम करती है। इस चबूतरे के भीतर शवागार कक्ष के चारों ओर शव कक्ष बने हैं। बीच हिस्से में लाल बलुये पत्थर से तीन स्तर है, जिसमें पूरी तरह शहतीराें का उपयोग किया गया है।
- ऊपरी मंजिल पर लाल बलुए पत्थर के स्थान पर संगमरमर का उपयोग किया गया। एक खुला सभागार है जो चारों ओर से जालियों से युक्त स्तंभावलियों से घिरा हुआ है।
- दक्षिणी प्रवेश द्वारा दो मंजिला है जिसके प्रत्येक कोने पर संगमरमर की गोल मीनारें खड़ी हैं। संपूर्ण प्रवेश द्वार का ढ़ांचा रंगीन पलस्तर के रंग से अलंकृत है और इसमें संगमरमर जोड़ा गया था। इस अलंकरण में परंपरागत फूल-पत्ती के बेलबूटों और आयतों के अतिरिक्त, हाथी, हंस, पदम, स्वास्तिक और चक्र का भी प्रयोग किया गया है।
एतमादुद्दौला का मकबरा
- नूरजहां ने अपने पिता मिर्जा ग्यासबेग की कक्ष पर इस मकबरे का निर्माण कराया। यह मकबरा अकबर एवं शाहजहां की शैलियों के मध्य एक कड़ी है। यह मकबरा चौकोर है जो थोड़े से उठे हुए चबूतरे पर बना हुआ है। प्रत्येक कोने पर चार अष्टकोणीय मीनारें हैं। केन्द्रीय कक्ष के चाराें ओर बरामदा है जो खूबसूरत संगमरमर की जाली से घिरा है। इस पर मोजैक और पित्रद्यूरा किया गया है।
- सफेद संगमरमर का मकबरा चारों ओर से बागों और दीवारों से घिरा है। इसके चारों ओर लाल बलुए पत्थर के बने चार प्रवेश द्वार है। जहांगीर ने भवनों की अपेक्षा बागानों और फुलवारियों के निर्माण में अपेक्षाकृत अधिक रुचि दिखाईं कश्मीर में स्थित शालीमार बाग और निशात बाग जैसे मुगल बागान जहांगीर की इसी रूचि के परिचायक है।
शाहजहाँ कालीन स्थापत्य
- मुगलकालीन स्थापत्य कला के अंतर्गत शाहजहाँ एक महान भवन निर्माता माना जाता है। उसके शासन काल के दौरान भवन निर्माण में संगमरमर का बड़े पैमाने पर सर्वोत्कृष्ट कलात्मक उपयोग हुआ। शाहजहां ने निम्न प्रकार के भवन बनवाए-
- किलेरूपी महल, मसलन दिल्ली का लाल किला।
- मस्जिदें, उदाहरणस्वरूप आगरे के किले में स्थित मोेती मस्जिद, दिल्ली की जामा मस्जिद।
- बाग से घिरे मकबरे उदाहरण ताजमहल। इसका प्रथम उदाहरण दिल्ली स्थित हुमायूँ का मकबरा है।
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लाल किला, दिल्ली
- लाल किला आयताकार है। इसका निर्माण 1648 ई- में पूर्ण हुआ। दिल्ली दरवाजा और लाहौरी दरवाजा दो प्रमुख प्रवेश द्वार हैं। दीवार के साथ-साथ नियमित दूरी पर गोलाकार बुर्ज है।
- दरवाजों के दोनों ओर अष्टकोणीय मीनारें है। किले के अंदर उल्लेखनीय भवन है, जिसमें दीवाने आम, दीवाने खास और रंगमहल महत्वपूर्ण है दीवाने आम और रंगमहल छत युक्त वीथियाँ है। इसमें बलुए पत्थर के स्तंभ है जिन पर संगमरमर के चूर्ण का मजबूत प्लास्टर है।
- दीवाने आम की पूर्वी दीवार के साथ सम्राट का सिंहासन वाला चबूतरा बना हुआ है। जिसकी छत बंगाल स्थापत्य की शैली में बनी है। इस इमारत के पूर्वी दिशा में रंगमहल स्थित है, जिसके आगे एक खुला बरामदा है। इन सभी इमारतों की दीवारों, स्तंभों और खंभों पर फूल-पत्तियों का अलंकरण है।
मोती मस्जिद, आगरा किला
- आगरा के किले की मोती मस्जिद मे खुले तोरण युक्त प्रार्थना कक्ष का इस्तेमाल कर शाहजहां ने नया प्रयोग किया। इसमें मीनारों का अभाव है। इनके स्थान पर प्रार्थना कक्ष के चारों कोनों पर छतरियों का उपयोग किया गया है। एक अर्द्धचंद्राकार तोरण के ऊपर तीन उभरे हुए गुंबद बनाये गये हैं। पूरी इमारत संगमरमर से बनाई गई है, और काले संगमरमर से उन पर कुरान की आयतें खुदी हैं। इससे इसका सौन्दर्य और भी बढ़ गया।
जामा मस्जिद, दिल्ली
- दिल्ली की जामा मस्जिद फतेहपुर सीकरी की जामा मस्जिद का विस्तारित और बड़ा रूप है। यह भारत की अपने आपमें एक बड़ी इमारत है। यह एक ऊँचे चबूतरे पर बनी हुई है जिसके चारों ओर तोरण पथ हैं, जिन्हें दो तरफ से खुला छोड़ दिया गया है। मुख्य प्रवेश पूर्वी दिशा में है और ऊपर चढ़ने के लिए सीढि़यां बनी हुई हैं। उत्तरी और दक्षिणी भाग के मध्य में दो छोेटे प्रवेश द्वार है।
- इसके तीन तरफ स्तम्भावलियां है और चौथी तरफ उपासना स्थल है। उपासना स्थल के ऊपर संगमरमर से निर्मित तीन बाहर की ओर उभरे हुए केन्द्रीय गुंबद हैं। पूरी इमारत लाल बलुए पत्थर से बनी है और इनमें प्लास्टर के स्थान और चौखटों के ढ़ांचे को अलंकृत करने के लिए संगमरमर का उपयोग हुआ।
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ताजमहल
- यह महल शाहजहाँ ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज महल की याद में आगरा के यमुना नदी के तट पर बनवाया। इस महल का प्रमुख वास्तुकार ‘उस्ताद अहमद लाहौरी’ था।
- ताजमहल एक चौकोर इमारत है, जिसके चारों ओर चारों कोनों पर एक-एक झिर्रीदार कोष्ठिका बनी हुई है। इस इमारत के शीर्ष पर खूबसूरत उभरे हुए गुंबद हैं, जिसके ऊपर उलटा कमल कलश और एक धातु निर्मित कलश अवस्थित है।
- चबूतरे के चारों कोनों पर चार वृत्ताकार मीनारें है जिसके शीर्ष पर स्तंभ युक्त बुर्जिया है। अंदर की ओर एक केन्द्रीय कक्ष है जिसके आस-पास प्रकोष्ठ है जो एक-दूसरे से एक प्रकाश युक्त गलियारे से जुड़े हुए हैं। मुख्य कक्ष की छत अर्द्धवृत्त गुंबदाकार है। यह दोहरे गुंबद के अंदर का हिस्सा है।
- आयतों की नक्काशियों और पच्चीकारियों से बाहरी ओर का अलंकरण किया गया है, और अंदर की ओर पित्रद्यूरा का प्रयोग किया गया है। मुख्य कक्ष में बनी स्मारक समाधि मूलतः सोने की नक्काशी की गयी जाली से घिरी हुई थी, जिसे औरंगजेब ने हटाकर संगमरमर की जाली लगवा दी।
औरंगजेब कालीन इमारतें
- दिल्ली के लाल किला में बनी मोती मस्जिद का निर्माण औरंगजेब द्वारा कराया गया। इसमें उच्च कोटि के संगमरमर का उपयोग किया गया है। यह आगरा के किले में बनी मोती मस्जिद से मेल खाती है।
- यहां केवल वक्रता ज्यादा उभर कर सामने आयी है। उपासना कक्ष के ऊपर तीन उभरे हुए गुंबद बने हुए हैं, जो एक ही आकार की बुर्जी के रूप में बनाए गए है।
मोती मस्जिद (लालकिला दिल्ली)
- लाहौर की बादशाही मस्जिद आकार और बनावट में दिल्ली की जामा मस्जिद से मेल खाती है। उपासना स्थल के प्रत्येक कोण पर चार छोटी मीनारें है।
- उपासना कब्र के दोनों ओर एक खास अंतर पर मेहराबी प्रवेश द्वार है। इसमें केवल एक चंदोवा है। लाल बलुए पत्थर तथा कहीं-कहीं नाममात्र के लिए संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है।
बीवी का मकबरा (औरंगाबाद)
- बीवी का मकबरा औरंगजेब द्वारा औरंगाबाद में निर्मित कराया गया। इस मकबरे में ताजमहल की नकल करने की कोशिश की गयी। लेकिन औरंगजेब का स्थापत्य शिल्पी मकबरे के कोने पर सही ढंग से मीनारों को स्थापित नहीं कर पाया जिसके कारण पूरे भवन का सामंजस्य बिखर गया।
- इस मकबरे का कुछ भाग अत्यधिक अलंकृत है। कब्र के चारों ओर संगमरमर के अठपहले पदों का प्रयोग तथा उसमें कुशल शिल्पकारी की गयी है। इसके लोहे के प्रवेश द्वारों पर सुंदर फूल-पत्तियों का निर्माण किया गया है, जो उस काल की धातु कला के विकास का सुंदर उदाहरण है।
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