मुगल साम्राज्य (Mughal Empire)
बाबर (1526-1530 सी.ई.)
- बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 सी.ई. को मावराउन्नहर (ट्रान्स अक्सियाना) की एक छोटी-सी रियासत ‘फरगना’ में हुआ था।
- बाबर के पिता का नाम- उमरशेख मिर्जा था, जो फरगना की जागीर का मालिक था।
- बाबर ने नवीन राजवंश मुगल साम्राज्य की नींव डाली, वह तुर्की नस्ल का ‘चगताई वंश’ था। जिसका नाम चंगेज खाँ के द्वितीय पुत्र के नाम पर पड़ा था।
- बाबर ने 1504 सी.ई. में काबुल पर अधिकार कर लिया और परिणामस्वरूप उसने 1507 सी.ई. में ‘पादशाह’ की उपाधि धारण की।
- बाबर ने भारत पर पहला आक्रमण 1519 सी.ई. में ‘बाजौर’ पर किया था और उसी आक्रमण में ही उसने ‘भेरा’ के किले को भी जीता था।
- पानीपत के प्रथम युद्ध (21 अप्रैल, 1526 सी.ई.) में बाबर ने उजबेकों की युद्ध नीति ‘तुगलमा युद्ध-पद्धति’ तथा तोपों को सजाने में ‘उस्मानी विधि’ (रूमी विधि) का प्रयोग किया था।

- पानीपत के युद्ध में बाबर के तोपखाने का नेतृत्व उस्ताद अली और मुस्तफा खाँ नामक दो योग्य तुर्की अधिकारियों ने किया था।
- राणा सांगा और बाबर के बीच शक्ति प्रदर्शन 40 किमी. दूर खानावाँ नामक स्थान पर 17 मार्च, 1527 सी.ई. को हुआ।
- बाबर ने खानवा के युद्ध में विजय प्राप्ति के बाद- ‘गाजी’ (योद्धा एवं धर्म प्रचारक दोनों) की उपाधि धारण की थी।
- बाबर ने इस युद्ध के अवसर पर भी ‘जिहाद’ का नारा दिया था।
- बाबर ने 6 मई, 1529 सी.ई. में घाघरा के युद्ध में बिहार तथा बंगाल की संयुक्त अफगान सेना को पराजित किया।
बाबर के अभियान |
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पानीपत का प्रथम युद्ध | 20 अप्रैल 1526 सी.ई. (बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य) |
खानवा का युद्ध | 16 मार्च 1527 सी.ई. (बाबर और राणा सांगा के मध्य) |
चंदेरी का युद्ध | 29 जनवरी 1528 सी.ई. (बाबर और मेदिनीराय के मध्य) |
घाघरा का युद्ध | 6 मई 1529 सी.ई. (बाबर और अफगानो के मध्य) |
हुमायूँ (1530-1556 सी.ई.)
- हुमायूँ मुगल साम्राज्य के शासकों में एकमात्र शासक था, जिसने अपने भाइयों में साम्राज्य का विभाजन किया था। जो उसकी असफलता का बहुत बड़ा कारण बना। बाबर के चार पुत्रें (हुमायूँ, कामरान, अस्करी और हिन्दाल) में हुमायूँ सबसे बड़ा था।
- मुगल साम्राज्य के शासक हुमायूँ का समकालीन अफगान नेता शेरखाँ था, जो इतिहास में शेरशाह सूरी के नाम से विख्यात हुआ।
- हुमायूँ का कालिंजर आक्रमण मूलतः बहादुर शाह की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने का प्रयास था।
- हुमायूँ ने 1535-36 सी.ई. में बहादुर शाह पर आक्रमण कर दिया। बहादुरशाह पराजित हुआ। हुमायूँ ने माण्डू और चम्पानेर के किलों को जीत लिया।
- 1534 सी.ई. में शेरशाह की सूरजगढ़ विजय तथा 1536 सी.ई. में पुनः बंगाल को जीतकर बंगाल के शासक से 13 लाख दीनार लेने से शेरखाँ के शक्ति और सम्मान में बहुत अधिक वृद्धि हुई।
- फलस्वरूप शेरखाँ को दबाने के लिए हुमायूँ ने चुनारगढ़ का 1538 सी.ई. में दूसरा घेरा डाला और किले पर अधिकार कर लिया।
- 15 अगस्त, 1538 सी.ई. को जब हुमायूँ गौड़ पहुँचा। हुमायूँ अपने घोड़े सहित गंगा नदी में कूद गया और एक भिश्ती की सहायता से अपनी जान बचाया।
- हुमायूँ ने इस उपकार के बदले उसे भिश्ती को मुगल साम्राज्य का एक दिन का बादशाह बना दिया था। इस विजय के फलस्वरूप शेरखाँ ने ‘शेरशाह’ की उपाधि धारण किया।
- 1545 सी.ई. में हुमायूँ ने काबुल और कन्धार पर अधिकार कर द्वारा पुनः राज्य प्राप्ति किया।
- हिन्दुस्तान पर पुनः अधिकार करने के लिए हुमायूँ 5 दिसम्बर, 1554 सी.ई. को पेशावर पहुँचा। फरवरी 1555 सी.ई. में लाहौर पर अधिकार कर लिया।
- इस प्रकार 23 जुलाई, 1555 सी.ई. हुमायूँ एक बार फिर से दिल्ली के तख्त पर बैठा। किन्तु वह बहुत दिनों तक जीवित नहीं रह सका।
- वह दिल्ली में दीनपनाह भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढि़यों से गिरकर मर गया। हुमायूँ को अबुल फजल ने इन्सान-ए-कामिल कहकर सम्बोधित किया है।
हुमायूँ का पीछे हटना और अफ़गानों का पुनर्जागरण (1530-1540)
- सन् 1530 में बाबर की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र हुमायूँ उत्तराधिाकारी बना। हुमायूँ के अधीन परिस्थितियाँ काफ़ी निराशाजनक थीं। हुमायूँ ने जिन समस्याओं का सामना किया वे थीं:
- नए जीत गए प्रदेशों का प्रशासन संगठित नहीं था।
- बाबर की तरह हुमायूँ को उतना सम्मान और मुगलों के आभिजात्य वर्ग से इतनी इज़्ज़त नहीं मिल पाई।
- चुगतई आभिजात्य वर्ग उसके पक्ष में नहीं था और भारतीय कुलीन, जिन्होंने बाबर की सेवाएँ ग्रहण की थीं, उन्होंने हुमायूँ को राजसिंहासन मिलने पर मुगल साम्राज्य का का साथ छोड़ दिया था।
- उसे अफ़गानियों की दुश्मनी का भी सामना करना पड़ा, मुख्यतः बिहार में एक तरफ़ थे शेर खान तो दूसरी तरफ़ था गुजरात का शासक बहादुरशाह।
- तैमूरी परम्पराओं के अनुसार उसे अपने साथियों के साथ बाँट कर शक्तियों पर अधिाकार पाना था। नवस्थापित मुगल साम्राज्य के दो केन्द्र थे-दिल्ली और आगरा मधय भारत का नियन्त्रण हुमायूँ के हाथ में था तो अफ़गानिस्तान और पंजाब उसके भाई कामरान के अधीन था।
- हुमायूँ ने महसूस किया कि अफ़गानी उसके लिए एक बड़ा खतरा थे। वह पूर्व और पश्चिम से अफ़गानियों के संयुक्त विरोधा से बचना चाहता था।
- उस समय तक बहादुरशाह ने भीलसा, रायसेन, उज्जैन और जगरौन पर कब्जा कर लिया था और वह अपनी शक्ति का संयोजन कर रहा था।
- जबकि हुमायूँ पूर्व में चुनार में घेराबंदी कर रहा था, वहीं बहादुरशाह मालवा और राजपूताना की तरफ़ पांव फ़ैला रहा था।
- इन परिस्थितियों में हुमायूँ को आगरा वापस आना पड़ा (1532-33)।
- विस्तार की नीति को जारी रखते हुए बहादुरशाह ने 1534 में चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया।
- युद्धनीति की दृष्टी से चित्तौड़ एक मज़बूत आधार स्थल होने का फ़ायदा उपलब्धा करवा सकता था। इससे उसे राजस्थान, विशेष रुप से अजमेर, नागौर और रणथम्भौर की ओर बढ़ने में मदद मिल सकती थी।
- हुमायूँ ने मांडू पर जीत हासिल कर ली और यहीं पर शिविर बना लिया क्योंकि उसने सोचा कि यहाँ रहकर वह बहादुरशाह की गुजरात वापसी के रास्ते में रुकावट बन सकता है।
- आगरा से लम्बी अवधि तक उसके अनुपस्थित रहने के कारण दोआब और आगरा में बगावत शुरु हो गई और उसे तुरंत वापस लौटना पड़ा।
- माण्डू का नियन्त्रण अब हुमायूँ के भाई मिर्जा़ असकरी की सरपरस्ती में छोड़ा गया था।
- जिस अवधि के दौरान हुमायूँ गुजरात में बहादुरशाह की गतिविधियों की निगरानी रख रहा था, उस अवधि में शेरशाह ने बंगाल और बिहार में अपनी शक्ति का संगठन शुरु कर दिया था।
अकबर (1542-1605 सी.ई.)
- अकबर का जन्म अमरकोट के राणा वीरसाल के महल में 15 अक्टूबर, 1542 सी.ई. को हुआ था।
- मुगल-साम्राज्य के शासक के रूप में अकबर का राज्याभिषेक बैरम खाँ की देख-रेख में पंजाब के गुरूदासपुर जिले के कालानौर नामक स्थान पर 14 फरवरी 1556 सी.ई. को मिर्जा अबुल कासिम ने किया था।
- 1556 सी.ई. में अकबर ने बैरम खाँ को अपना वकील (वजीर) नियुक्त कर उसे खाँन-ए-खाना की उपाधि प्रदान की थी।
- बैरम खाँ पर मक्का जाते समय गुजरात के मुबारक खाँ नामक एक अफगान ने आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी, जिसके पिता को बैरम खाँ ने मच्छीवाड़ा (1555 सी.ई.) के युद्ध में मारा था।
- अकबर ने 1562 सी.ई. में दास प्रथा, 1563 सी.ई. में तीर्थ यात्रकर तथा 1564 सी.ई. में जजिया कर को समाप्त कर दिया था।
- 1562 सी.ई. में जब अकबर अजमेर में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जियारत करने गया था तो मार्ग में राजा भारमल ने उससे मिलकर अपनी पुत्री हरखाबाई से विवाह का प्रस्ताव रखा।
- 1572 सी.ई. में अकबर द्वारा गुजरात पर आक्रमण किया जिसका कारण-इसकी समृद्धि एवं विश्व व्यापार का प्रमुखतम् केन्द्र स्थल होना था।
- अकबर ने अपने गुजरात विजय की स्मृति में राजधानी फतेहपुर सीकरी में एक बुलन्द दरवाजा बनवाया था।
- अकबर के समय में 1564 सी.ई. में उजबेकों ने विद्रोह कर दिया। यह अकबर के समय का पहला विद्रोह था।
- अकबर की राजपूत नीति- ‘दमन और समझौते’ की नीति पर आधारित थी।
- अकबर ने राजपूत राजाओं को बादशाह द्वारा प्रदत्त जागीर के अलावा अपनी पैतृक जागीर (वतन जागीर) पर भी शासन करने का अधिकार दिया था जबकि राजपूतों के अलावा अन्य अमीरों के साथ ऐसा नहीं होता था।
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अकबर की धार्मिक नीति का मूल उद्देश्य-
- ‘सार्वभौमिक सहिष्णुता’ था। इसे ‘सुलहकुल’ की नीति अर्थात् सभी के साथ शान्तिपूर्ण व्यवहार का सिद्धांत भी कहा जाता था।
- अकबर के दार्शनिक एवं धर्मशास्त्रीय विषयों पर वाद- विवाद के लिए अपनी राजधानी फतेहपुर सीकरी में एक ‘इबादतखाना’ (प्रार्थना-भवन) की स्थापना 1575 सी.ई. में करवाया।
- अकबर प्रारम्भ में ‘इबादतखाने’ में केवल इस्लाम धर्मोपदेशकों को ही आमन्त्रित करता था। किन्तु बाद में उनके आचरण से दुखी होकर 1578 सी.ई. में सभी धर्मो के विद्वान के लिये खोल दिया अर्थात् उसे ‘धर्मसंसद’ बना दिया।
- अकबर समस्त धार्मिक मामलों को अपने हाथों में लेने के लिए 1579 सी.ई. में ‘महजरनामा’ या एक घोषणा जारी कराया। जिसने उसे धर्म के मामलों में सर्वोच्च बना दिया। इस पर पाँच उलेमाओं या इस्लामी धर्मविवादों के हस्ताक्षर थे।
- ‘महजर’ नामक दस्तावेज का प्रारूप’ ‘शेख मुबारक’ ने तैयार किया था किन्तु उसे जारी करने की प्रेरणा शेख मुबारक एवं उसके दोनों पुत्रें अबुल फजल एवं फैजी द्वारा दी गयी थी।
- अकबर ने सभी धर्मों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए 1582 सी.ई. में ‘तौहीद-ए-इलाही’ (दैवी एकेश्वरवाद) या ‘दीन-ए-इलाही’ नामक एक नया धर्म प्रवर्तित किया।
- तौहीद-ए-इलाही वास्तव में सूफी सर्वेश्वरवाद पर आधारित एक विचार पद्धति थी। जिसके प्रवर्तन की प्रेरणा मुख्य रूप से ‘सुलहकुल’ या सार्वभौमिक सौहार्द्र से मिली थी।
- ‘विन्सेट स्मिथ’ के अनुसार- दीन-ए-इलाही अकबर की भूल का स्मारक था, बुद्धिमानी का नहीं।
- सूफी मत में आस्था जताते हुए अकबर ने ‘चिश्ती सम्प्रदाय’ को प्रश्रय दिया। वह ‘शेख सलीम चिश्ती’ का परम भक्त था और उसी के नाम पर अपने बेटे का नाम सलीम रखा।
- अकबर ने 1583 में एक नये कैलेन्डर- ‘इलाही संवत्’ को जारी किया।
- अकबर ने बल्लभाचार्य के पुत्र बिट्ठलनाथ को ‘गोकुल’ एवं जैतपुरा की जागीर दी थी। साथ ही अकबर ने जैन धर्म के आचार्य ‘हरिविजय सूरि’ को ‘जगतगुरु’ तथा जिनचन्द्रसूरि को- ‘युग प्रधान’ की उपाधि दी थी।
- अकबर ने मुगल-साम्राज्य से ‘झरोखा दर्शन’ तुलादान, तथा ‘पायबोस’ जैसी पारसी परम्पराओं को आरम्भ किया।
- अकबर ने सिख गुरू रामदास को 1577 सी.ई. में 500 बीघा जमीन प्रदान की। जिसमें एक प्राकृतिक तालाब भी था। यहीं पर कालान्तर में अमृतसर नगर बसा और स्वर्ण मन्दिर का निर्माण कराया गया।
- अकबर ने सती प्रथा को रोकने का प्रयास किया, विधवा विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान की गयी, शराब की बिक्री पर रोक लगायी तथा लड़के एवं लड़कियों के विवाह की आयु 16 और 14 वर्ष निर्धारित की। 25 अक्टबूर 1605 ई में पेचिश से रागे से पीडित़ अकबर की मृत्यु हो गयी।
अकबर के प्रमुख सैन्य अभियान |
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प्रदेश |
शासक |
वर्ष |
मालवा | बाजबहादुर | 1561 |
गोंडवाना | वीरनारायण (शासक) रानी दुर्गावती (संरक्षिका) | 1564 |
आमेर | भारमल (विलय) | 1563 |
मेवाड़ | राणा उदयसिंह | 1568 |
मेवाड़ | राणा प्रताप सिंह | 1576 |
कांलिंजर | रामचन्द्र | 1569 |
गुजरात | मुजफ्रफर खां तृतीय | 1571-72 |
कश्मीर | यूसुफ एवं याकूब | 1586 |
अहमदनगर | बहादुर निजाम शाह (शासक) चांदबीबी (संरक्षिका) | 1589 |
जहाँगीर (1605 से 1627 सी.ई.)
- सलीम (जहाँगीर) का जन्म 30 अगस्त, 1569 सी.ई. को फतेहपुर सीकरी में स्थित शेख सलीम चिश्ती की कुटिया में आमेर (जयपुर) के राजा भारमल की पुत्री मरियम उज्जमानी के गर्भ से हुआ था।
- सलीम का पहला विवाह 1585 सी.ई. में आमेर के राजा भगवानदास की पुत्री और मानसिंह की बहन मानबाई से हुआ था।
- मानबाई को सलीम ने ‘शाह बेगम’ का पद प्रदान किया था। किन्तु बाद में उसने सलीम की आदतों से दुखी होकर आत्महत्या कर ली थी।
- जहाँगीर की बारह घोषणाओं को- ‘आइने-जहाँगीर’ कहा जाता है।
- खुसरो और जहाँगीर के बीच युद्ध जालन्धर के निकट भेरावल नामक स्थान पर हुआ था, जिसमें खुसरो खाँ पराजित हुआ जहाँगीर ने उसे अन्धा करवा दिया और 1622 सी.ई. में शाहजहाँ ने एक हत्यारे द्वारा उसकी हत्या करवा दी।
- मुगल साम्राज्य की दक्षिण विजय में सबसे बड़ी बाधा अहमदनगर के योग्य वजीर मलिक अम्बर की मौजूदगी थी।
- मुगल साम्राज्य से युद्ध के दौरान मलिक अम्बर ने ‘गुरिल्ला युद्ध नीति’ अपनायी और उसने बड़ी संख्या में मराठों को सेना में भर्ती किया।
- जहाँगीर के राज्यकाल की एक उल्लेखनीय सैनिक सफलता 1620 ई में उत्तरी-पूर्वी पजांब की पहाडि़यों पर स्थित कांगडा़ के दुर्ग पर अधिकार करना।
- जहाँगीर के शासन काल में 1622 सी.ई. में फारस के शाह ने कन्धार को मुगलों से छीन लिया। जहाँगीर के शासन काल में 1623 सी.ई. में हुए शाहजहाँ के विद्रोह को दबाने का मुख्य श्रेय- ‘महावत खाँ’ को था।
- जहाँगीर धार्मिक दृष्टि से असहिष्णु नहीं था, उसने 1612 सी.ई. में पहली बार रक्षाबन्धन का त्यौहार मनाया और अपनी कलाई पर राखी बँधवायी।
- जहाँगीर ने ही सर्वप्रथम मराठों के महत्व को समझा और उन्हें मुगल अमीर वर्ग में शामिल किया।
- नूरजहाँ के द्वारा बनाया गया गुट ‘नूरजहाँ गुट’ था। जिसमें उसका पिता एतमादुद्दौला, माता अस्मत बेगम, भाई आसफ खाँ तथा शाहजादा खुर्रम सम्मिलित थे।
- नूरजहाँ के बचपन का नाम मेहरुन्निसा था। नूरजहां ‘अलीकुली खाँ’ (शेर अफगन) की विधवा थी। जिसे कुछ इतिहासकारों के अनुसार जहाँगीर ने मरवा दिया था।
- नूरजहाँ के पिता ‘गयासबेग’ (जिसे जहाँगीर ने ‘ऐतामादुद्दौल’ की उपाधि दी थी) एवं माता अस्मत बेगम फारस के रहने वाले थे, जो अकबर के काल में मुगल दरबार में आये थे।
- नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम ने इत्र बनाने की विधि का अविष्कार किया था।
शाहजहाँ (1627-1658 सी.ई.)
- अक्टूबर 1627 सी.ई. जहांगीर की मृत्यु के समय वह दक्षिण में था। अतएव उसके श्वसुर आसफ खाँ एवं राज्य के दीवान ख्वाजा अबुल हसन ने एक कूटनीतिक चाल के तहत खुसरो के लड़के ‘दावर बख्श’ को मुगल साम्राज्य के सिंहासन पर बैठाया।
- समकालीन इतिहासकारों ने ‘दावर अख्श’ को उचित ही- ‘बलि का बकरा’ कहा है।
- शाहजहाँ के अन्तिम आठ वर्ष आगरा के किले के शाहबुर्ज में एक बन्दी की तरह व्यतीत हुए। इस समय उसकी बड़ी पुत्री जहाँआरा ने साथ रहकर उसकी सेवा की थी।
- मुगल साम्राज्य के बादशाहों ने पुर्तगालियों को नमक के व्यापार का एकाधिकार दे दिया था किन्तु पुर्तगालियों की उद्दण्डता के कारण शाहजहाँ ने 1632 सी.ई. में उसके व्यापारिक केन्द्र हुगली को घेर लिया और उस पर अधिकार कर लिया।
- शाहजहाँ ने दक्षिण भारत में सर्वप्रथम अहमदनगर पर आक्रमण किया और 1633 सी.ई. में उसे जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया तथा अन्तिम निजामशाही सुल्तान हुसैनशाह को ग्वालियर के किले में कैद कर लिया।
- अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिलाने के बाद शाहजहाँ ने गोलकुण्डा पर दबाव डाला। गोलकुण्डा के अल्पायु शासक कुतुबशाह ने भयभीत होकर 1636 सी.ई. में मुगलों से सन्धि कर लिया। मुहम्मद सैय्यद (मीर जुमला) ने शाहजहाँ को कोहिनूर हीरा भेंट किया था।
- शाहजहाँ ने 1636 सी.ई. में बीजापुर पर आक्रमण किया और मुहम्मद आदिलशाह प्रथम को सन्धि करने के लिए विवश कर दिया फलस्वरूप सुल्तान ने 20 लाख रुपये प्रतिवर्ष कर के रूप में देने का वादा किया।
- शाहजहाँ ने मध्य एशिया अर्थात् बल्ख एवं बदख्शाँ की अव्यवस्था का लाभ उठाने की कोशिश की, परन्तु यह अभियान असफल रहा और लगभग 40 करोड़ रुपये की हानि हुई।
- शाहजहाँ के समय कन्धार अन्तिम रूप से मुगलों के अधिकार से छिन गया।
धार्मिक नीति
- शाहजहाँ ने 1636-37 में ‘सिजदा’ एवं ‘पायबोस’ प्रथा को समाप्त कर दिया तथा उसके स्थान पर ‘चहार- तस्लीम’ की प्रथा शुरू करवायी।
- शाहजहाँ ने ‘इलाही संवत्’ के स्थान पर ‘हिजारी संवत्’ चलाया, हिन्दुओं को मुसलमान गुलाम रखने से मना कर दिया, हिन्दुओं पर तीर्थयात्र कर लगाया (यद्यपि कुछ समय बाद हटा लिया) तथा गो-हत्या निषेध सम्बन्धी अकबर और जहाँगीर के आदेश को समाप्त कर दिया।
- शाहजहाँ ने झरोखा-दर्शन, तुलादान और हिन्दू राजाओं के माथे पर ‘तिलक’ लगाने की प्रथा को जारी रखा।
- ‘गंगा लहरी’ और ‘रस गंगाधर’ के लेखक पण्डित जगन्नाथ उसके राजकवि थे। इसके अतिरिक्त चिन्तामणि, कवीन्द्राचार्य और सुन्दरदास आदि अनेक हिन्दू लेखक भी उसके दरबार में थे।
उत्तराधिकार का युद्ध |
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बहादुपुर का युद्ध 14 फरवरी 1658 | बनारस के निकट सुलेमान शिकोह (पुत्र दाराशिकोह) ने शूजा को परास्त किया। |
धरमट का युद्ध 25 अप्रैल 1658 | उज्जैन के निकट मुराद और औरंगजेब के सयुक्त सेना ने दाराशिकोह को परास्त किया। |
सामूगढ़ का युद्ध 29 मई 1658 | औरंगजेब द्वारा दाराशिकोह को पुनः परास्त किया। इस युद्ध ने व्यवहारिक रूप से उत्तराधिकार का निर्णय कर दिया। |
खजुआ का युद्ध (दिसम्बर 1658 सी.ई.) | इलाहाबाद के निकट औरंगजेब द्वारा शूजा को अंतिम रूप से परास्त किया। |
देवराई का युद्ध 12 से 14 अप्रैल 1659 | अजमेर के निकट देवराय की घाटी में औरंगजेब द्वारा दाराशिकोह को अंतिम रूप से पराजित कर मृत्युदण्ड दे दिया। |
औरंगजेब (1658-1707 सी.ई.)
- 18 मई, 1637 सी.ई. को औरंगजेब का विवाह फारस राजघराने की राजकुमारी दिलरास बानो बेगम (रबिया बीबी) से हुआ था।
- सामूगढ़ की विजय के उपरान्त एवं आगरा पर अधिकार कर लेने के पश्चात् औरंगजेब ने 21 जुलाई, 1658 सी.ई. को दिल्ली में अपना ‘प्रथम राज्याभिषेक’ कराया, और ‘अबुल मुजफ्रफर आलमगीर’ की उपाधि धारण की।
- खजुवा और देवराई के युद्ध में क्रमशः शूजा और दारा को अन्तिम रूप से परास्त करने के बाद पुनः 5 जून 1659 सी.ई. को दिल्ली में अपना औपचारिक राज्याभिषेक करवाया।
- औरंगजेब ने 1660 सी.ई. में मीर जुमला को बंगाल का गवर्नर बनाकर उसे पूर्वी प्रान्तों विशेषतः असम और अराकान के विद्रोही जमीदारों का दमन करने का आदेश दिया।
- 1663 सी.ई. में मीरजुमला की मृत्यु के पश्चात् शाइस्ता खां को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया।
- औरंगजबे शाहजहाँ के काल में 1636-44 ई तक दक्षिण के सुबेदार के रूप में रहा और औरंगजेब को मुगल साम्राज्य के दक्षिण सूबे की राजधानी बनाया था।
- 22 सितम्बर, 1686 सी.ई. को अन्तिम आदिलशाही सुल्तान सिकन्दर आदिलशाह ने औरंगजेब के सामने आत्मसमपर्ण कर दिया और फलस्वरूप बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।
- बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिलाने के बाद औरंगजेब ने 1686 सी.ई. में ही शहजादा शाहआलम को गोलकुण्डा पर आक्रमण करने के लिए भेजा।
- 1687 में औरंगजेब ने स्वयं ही गोलकुण्डा पर आक्रमण करके किले को घेर लिया। किन्तु 8 महीने के घेरे के बावजूद भी मुगलों को कोई सफलता नहीं मिला।
- मुगल साम्राज्य के साथ शिवाजी का पहला संघर्ष 1656 सी.ई. में तब आरम्भ हुआ जब शिवाजी ने अहमदनगर और जुन्नार के किले पर आक्रमण किया।
- औरंगजेब ने 1660 सी.ई. में दक्षिण के मुगल सूबेदार शाइस्ता खाँ को शिवाजी पर आक्रमण करने के लिए भेजा।
- 1663 सी.ई. में शिवाजी ने पूना स्थित शाइस्ता खाँ के महल पर रात में चुपके से आक्रमण कर दिया।
- शाइस्ता खाँ बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर, भागा, किन्तु उसका एक अंगूठा कट गया।
- औरंगजेब ने 1665 सी.ई. जयसिंह को शिवाजी के विरूद्ध भेजा।
- जयसिंह ने उसे पराजित कर 22 जून, 1665 सी.ई. को ‘पुरन्दर की सन्धि’ करने के लिए विवश कर दिया।
- 22 मई, 1666 सी.ई. को शिवाजी आगरा के किले में ‘दीवाने-ए-आम’ में उपस्थित हुआ। यहीं पर शिवाजी को कैद कर ‘जयपुर भवन’ में रखा गया। जहाँ से वे गुप्त रूप से फरार हो गये।
धार्मिक नीति
- औरंगजेब एक कट्टर रूढि़वादी सुन्नी मुसलमान था उसने इस्लाम के महत्व को समझते हुए ‘कुरान’ (शरियत) को अपने शासन का आधार बनाया।
- 1559 ई में औरंगजेब ने कुरान के नियमों के अनुरूप इस्लामी आचरण संहिता के नियमों की पुनर्स्थापना के लिए अनके अध्यादेश प्रसारित किया।
- औरंगजेब का प्रमुख लक्ष्य इस देश (भारत) को ‘दार-उल-हर्ब’ (काफिरों का देश) के स्थान पर ‘दार-उल-इस्लाम’ (इस्लाम का देश) देश बनाना था।
- औरंगजेब इस्लामी कानूनों को अक्षरशः मानने के कारण अपनी कट्टर सुन्नी प्रजा के लिए ‘जिन्दा-पीर’ तथा अपने सादे रहन-सहन रोजे और नमाज का नियमित रूप से पालन करने तथा जीवन भर शराब न पीने के कारण ‘शाही दरवेश’ के रूप में भी जाना जाता था।
- औरंगजेब 1663 सी.ई. में सती-प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया तथा हिन्दुओं पर ‘तीर्थयात्र-कर’ लगाया।
- औरंगजेब के आदेश के फलस्वरूप 1669 सी.ई. बनारस का विश्वनाथ मन्दिर, मथुरा में वीरसिंह बुन्देला द्वारा निर्मित केशवराय मन्दिर तथा गुजरात का सोमनाथ मन्दिर तोड़ा गया।
- अपने शासन के 11 वें वर्ष ‘झरोखा-दर्शन’ एवं 12 वे वर्ष ‘तुलादान प्रथा’ (बादशाह को सोने चाँदी से तौलना) को समाप्त कर दिया।
- औरंगजेब ने 1679 सी.ई. में हिन्दुओं पर पुनः जजिया कर लगा दिया यद्यपि उसे 1704 सी.ई. में दक्कन से यह कर उठा लेना पड़ा।
- मारवाड़ और मुगलों के बीच लगभग 30 वर्षों तक युद्ध तीन चरणों में चला- 1681-1687 जिस समय दुर्गादास दक्षिण में था।
- 1687-1701 दुर्गादास के नेतृत्व में 1701-1707 इस काल में राजपूतों ने मारवाड़ को लगभग स्वतंत्र करा लिया था।
- मारवाड़ और मुगलों के बीच हुए ‘तीस वर्षीय युद्ध’ (1679-1709) का नायक दुर्गादास था। जिसे ‘कर्नलटाड’ ने ‘राठौरों का यूलिसीज (न्सलेमे) यूनान का महान योद्धा कहा है।
- औरंगजेब के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह आगरा और दिल्ली क्षेत्र में बसे जाटों ने किया। इस विद्रोह की रीढ़ अधिकतर किसान और काश्तकार थे किन्तु नेतृत्व मुख्यतः जमीदारों ने किया।
- जाटों का विद्रोह आर्थिक कारणों को लेकर शुरू हुआ इस विद्रोह को ‘सतमानी आन्दोलन’ का समर्थन प्राप्त था।
- 1672 सी.ई. में किसानों और मुगलों के बीच मथुरा के निकट नारनौल नामक स्थान पर एक युद्ध हुआ जिसका नेतृत्व ‘सतनामी’ नामक एक धामिर्क सम्पद्राय ने किया था।
- 1705 सी.ई. में छत्रसाल ने औरंगजेब से सन्धि की और उसे 4000 का मनसब और ‘राजा’ घोषित किया गया।
- औरंगजेब के समय मुगलों का असम के अहोमों के बीच लम्बा संघर्ष हुआ, मीरजुमला के नेतृत्व में 1663 सी.ई. मुगल सेना ने अहोमों पर आक्रमण कर उन्हें संधि के लिए मजबूर किया। 1671 में अहोमों ने अपने इलाके मुगलों से दोबारा छीन लिया।
- औरंगजेब के खिलाफ बगावत करने वालों में सिक्ख अन्तिम थे। यह औरंगजेब के काल का एक मात्र विद्रोह था जो धार्मिक कारणों से हुआ था।
- औरंगजेब के खिलाफ सिक्खों का विद्रोह प्रत्यक्ष रूप से 1675 सी.ई. में गुरू तेग बहादुर को प्राणदण्ड दिया जाने के बाद शुरू हुआ।
- औरंगजेब के शव को दौलताबाद से 4 किमी. दूर स्थित फकीर बुरहानुद्दीन (शेख जैन -उल-हक) की कब्र के अहाते में दफना दिया गया।
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