निर्वाचन आयोग की नई डिजिटल पहल
- पांच राज्यों – उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावो के चलते निर्वाचन आयोग की नई डिजिटल पहल की शुरुआत की है।
- निर्वाचन आयोग पांच राज्यों – उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा के लिए चुनाव को स्वतंत्र, निष्पक्ष तथा पारदर्शी बनाने और इसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है।

सी-विजिल ऐप
- आयोग ने आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के मामले दर्ज करने के लिए लोगों से सी-विजिल ऐप का उपयोग करने को कहा है।
- इस एप को मोबाइल पर आसानी से डाउनलोड किया जा सकता है। शिकायतकर्ता को केवल इस ऐप पर किसी भी उम्मीदवार अथवा पार्टी के आदर्श आचार संहिता और चुनाव खर्च संबंधी नियमों के उल्लंघन से जुड़ी फोटो या वीडियो अपलोड करनी होगी।
- इस शिकायत पर संबद्ध अधिकारियों को 100 मिनट के भीतर कार्रवाई करनी होगी।
सुविधा पोर्टल
- निर्वाचन आयोग की नई डिजिटल पहल के तहत निर्वाचन आयोग ने एक और ऐप सुविधा पोर्टल के नाम से शुरू किया है, जिसमें उम्मीदवार और राजनीतिक दल दस्तावेजों को अपलोड करके ऑनलाइन नामांकन भर सकेंगे।
- उम्मीदवार eci.gov.in पर अपना अकाउंट बनाकर नामांकन फॉर्म और जमानत राशि सहित अन्य दस्तावेज जमा करा सकते हैं।
- ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से नामांकन भरने के बाद उम्मीदवार को इसके प्रिंटआउट को नोटरी से स्त्यापित करा कर संबंधित दस्तावेजों के साथ अपने आवेदन को जिला निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से जमा कराना होगा।
- गौरतलब है की ऑनलाइन नामांकन सुविधा एक वैकल्पिक सुविधा है। नामांकन ऑफलाइन भी भरा जा सकता है।
- कोई भी उम्मीदवार, राजनीतिक दल या उनके प्रतिनिधि सुविधा पोर्टल के माध्यम से बैठकों, रैलियों, लाउडस्पीकरों, अस्थायी कार्यालयों और अन्य गतिविधियों की अनुमति के लिए ऑनलाइन आवेदन जमा करा सकते हैं।
- उम्मीदवार उसी पोर्टल के माध्यम से अपने आवेदन की स्थिति का भी पता कर सकते हैं। आयोग ने कोविड को देखते हुए निर्देश दिया है कि सभाओं और रैलियों के लिए सार्वजनिक स्थलों के आवंटन के लिए सुविधा ऐप का उपयोग करने पर जोर दिया है।
कैंडिडेट एफिडेविट पोर्टल
- निर्वाचन आयोग की नई डिजिटल पहल के तहत आयोग ने कैंडिडेट एफिडेविट पोर्टल नाम से एक और पोर्टल बनाया है, जिस पर चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की सूची, उनके शपथ पत्र, प्रोफाइल, नामांकन की स्थिति और शपथपत्र सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रहेंगे।
वोटर टर्नाआउट ऐप
- वोटर टर्नाआउट ऐप में जिला निर्वाचन अधिकारी प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत प्रदर्शित करेंगे।
- मीडियाकर्मी इस ऐप का इस्तेमाल मतदान प्रतिशत के आंकडे जानने के लिए कर सकते हैं। चुनाव के सभी चरणों के वास्तविक समय को इस ऐप के माध्यम से प्रदर्शित किया जाएगा।
राष्ट्रीय शिकायत सेवा पोर्टल
- निर्वाचन आयोग ने एक व्यापक राष्ट्रीय शिकायत सेवा पोर्टल (एनजीएसपी) विकसित किया है। यह एकल खिड़की प्रणाली के रूप में काम करेगा और लोग सीधे इस पोर्टल में सूचना, प्रतिक्रिया, सुझाव और शिकायतें दर्ज करा सकते हैं।
- चूंकि सभी निर्वाचन अधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी, मुख्य निर्वाचन अधिकारी और चुनाव आयोग के अधिकारी इस प्रणाली से जुड़े हैं इसलिए पंजीकरण के बाद शिकायतें या मुद्दे सीधे संबंधित शिकायतकर्ता को भेजे जाते हैं। मतदाता इस पोर्टल से ऑनलाइन लिंक से अपने को जोड़ सकते हैं।
अन्य पहले
- सैन्यकर्मियों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से डाक मतपत्र भेजे जाएंगे। मतदान के बाद वे इसे स्पीड पोस्ट के माध्यम से वापस भेज सकेंगे।
- दिव्यांग मतदाताओं की सुविधा के लिए भी एक ऐप विकसित की गई है, जिसके जरिये दिव्यांग मतदाता अपने पंजीकरण, निवास स्थान और मतदाता सूची में किसी भी परिवर्तन तथा व्हिलचेयर की सुविधा उपलब्ध कराने का अनुरोध कर सकता है। मोबाइल फोन में उपलब्ध फीचर्स के माध्यम से दृष्टिबाधित और मूक-बधिर मतदाता इस सुविधा का लाभ उठा सकेंगे।
- एनकोर काउंटिंग एप्लिकेशन जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा वोटों का डिजिटिकरण करने, चरणबद्ध आंकडों को सारणीबद्ध करने और मतगणना की विभिन्न वैधानिक रिपोर्ट निकालने के लिए किया जाएगा।
- इसी तरह, आम लोगों की सूचना के लिए मतगणना के रुझान और परिणाम के प्रामाणिक आंकडे की जानकारी को संबंधित जिला निर्वाचन अधिकारी निर्वाचन आयोग की वेबसाइट – eci.gov.in पर अपलोड करेंगे।
- इसके अतिरिक्त उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि सहित आपराधिक इतिहास के बारे में जानकारी मतदाताओं के लिए KNOW YOUR CANDIDATE (नो योर कैंडिडेट) ऐप भी उपलब्ध रहेगी।
निर्वाचन आयोग के बारे में
- निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) एक स्वायत्त एवं अर्ध-न्यायिक संस्थान है जिसका गठन भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से विभिन्न से भारत के प्रातिनिधिक संस्थानों में प्रतिनिधि चुनने के लिए किया गया था।
- इसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गयी थी।
- यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
- भारतीय संविधान का भाग 15 चुनावों से संबंधित है जिसमें चुनावों के संचालन के लिये एक आयोग की स्थापना करने की बात कही गई है। संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित हैं।
संरचना
- आयोग में वर्तमान में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं। वर्ष 1950 में गठन के समय से वर्ष 1989 तक केवल मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित यह एक एकल-सदस्यीय निकाय था।
- लेकिन राष्ट्रपति की एक अधिसूचना के ज़रिये 16 अक्तूबर, 1989 को इसे तीन सदस्यीय बना दिया गया।
- इसके बाद कुछ समय के लिये इसे एक सदस्यीय आयोग बना दिया गया और 1 अक्तूबर, 1993 को इसका तीन सदस्यीय आयोग वाला स्वरूप फिर से बहाल कर दिया गया। तब से निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं।
- मुख्य निर्वाचन अधिकारी IAS रैंक का अधिकारी होता है, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति ही करता है।
- इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु ( दोनों में से जो भी पहले हो) तक होता है।
- इन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है और समान वेतन एवं भत्ते मिलते हैं।
- मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान ही पद से हटाया जा सकता है।
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निर्वाचन आयोग का कार्य तथा कार्यप्रणाली
- निर्वाचन आयोग के पास यह उत्तरदायित्व है कि वह निर्वाचनॉ का पर्यवेक्षण, निर्देशन तथा आयोजन करवाये वह राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति, संसद, राज्यविधानसभा के चुनाव करता है
- निर्वाचक नामावली तैयार करवाता है
- राजनैतिक दलॉ का पंजीकरण करता है
- राजनैतिक दलॉ का राष्ट्रीय, राज्य स्तर के दलॉ के रूप मे वर्गीकरण, मान्यता देना, दलॉ-निर्दलीयॉ को चुनाव चिन्ह देना
- सांसद/विधायक की अयोग्यता (दल बदल को छोडकर) पर राष्ट्रपति/राज्यपाल को सलाह देना
- गलत निर्वाचन उपायों का उपयोग करने वाले व्यक्तियॉ को निर्वाचन के लिये अयोग्य घोषित करना
- इंटी ग्लोबल टाउनहॉल की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में भारत में 1 अरब 18 करोड़ मोबाइल फोन के साथ 70 करोड़ इंटरनेट यूजर्स सक्रिय हैं। साथ ही प्रत्येक राजनीतिक पाटी के आईटी सेल भी सक्रिय हैं ।
- वर्तमान समय में गूगल, ट्विटर, फेसबुक, टिकटॉक, इंस्टाग्राम, हैलो, वीचैट को कैसे नियंत्रित करना है, यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है।
- यह सही है कि, शिकायतें संज्ञान में लेने हेतु चुनाव आयोग द्वारा ‘सी-विज़िल एप’ 2018 में तैयार किया गया है, किन्तु प्रत्याशियों और वोटरों को आचार-संहिता की लक्ष्मण रेखा के अंदर बनाये रखना आज भी एक टेढ़ी खीर है।
- क्योंकि डिजिटल प्रचार, एलईडी स्क्रीन से लैस वाहनों, ऑडियो-वीडियो मैसेजिंग करने, होडिंग-बैनर लगाने से लेकर इवेंट मैनेजमेंट का कार्य राजनीतिक पार्टियां नहीं करतीं बल्कि उसे थर्ड पाटी द्वारा किया जाता है।
- मूल प्रश्न यह है कि, क्या ऐसी सेवा प्रदाता प्राइवेट कंपनियां चुनाव आयोग से रजिस्टर्ड होती हैं? यदि निर्वाचन आयोग का ऐसा कोई पोर्टल होता तो पता भी चलता कि कौन-कौन सी कंपनियां रजिस्टर्ड हैं, और किस पार्टी के लिए क्या कर रही हैं। यदि कंपनियां रजिस्टर्ड होती, तो उन्हें चुनाव आचार संहिता का भी पता होता।
- इन सबसे इतर सबसे महत्वपूर्ण बात जिसका ज्यादा ज़िक्र नहीं होता है, वह है आईटी सेल की सरपरस्ती में सोशल मीडिया के अज्ञात पत्थरबाज़। जनता जनार्दन में फेक आईडी वाले कौन से लोग मुखौटा लगाकर दुष्प्रचार में लगे हैं, उन्हें चुनाव के समय रोकना किसका काम है?
- फिर आभासी चुनाव प्रचार में जो गंदगी फैलायी जाती है, उसे चुनाव आयोग कैसे नियंत्रित करेगा? शिकायत के लिए सिर्फ ‘सी-विजिल एप’ बना देने से आयोग अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है।
- निर्वाचन आयोग की नई डिजिटल पहल के तहत पहली मार्च, 2019 को फेसबुक पर दिल्ली के विधायक ओम प्रकाश शर्मा की एक पोस्ट में चुनाव प्रचार हेतु विंग कमांडर अभिनंदन की तस्वीर का प्रयोग किया था।
- शिकायत पर चुनाव आयोग ने उनको कारण बताओ नोटिस जारी किया। तदुपरांत, तत्काल प्रभाव से उस पोस्ट को फेसबुक से हटाने की कार्रवाई हुई। ऐसा माना जाता है कि यह देश की पहली डिजिटल चुनावी कार्रवाई थी।
- इसमें प्रत्याशियों को बताया गया कि आप सेना की छवि का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में नहीं कर सकते, चाहे वह आपका खुद का डिजिटल पेज ही क्यों न हो।
- इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई), जिसकी लीडरशिप में चार बड़े डिजिटल प्लेटफार्म संचालित हो रहे थे, उससे चुनाव आयोग ने इस मुद्दे के समाधान हेतु को-आर्डिनेट किया था।
डिजिटल प्रचार की प्रमुख चुनौतियां
- जज प्रत्याशी की डिजिटल चुनावी खर्च सीमा को खंगालना
- मैसेजिंग डाटा का पता लगाना
- इंटरनेट या साइबर संसाधनों का निष्पक्ष इस्तेमाल
- लैंगिक समानता सुनिश्चित करना
- सभी पार्टियों के लिए एक समान और संतुलित टीवी – रेडियो और बाकी वेब संचार माध्यमों की उपलब्धता सुनिश्चित करना
- सोशल मीडिया पर वैचारिक स्वतंत्रता बनाये रखना
- मानवाधिकार, अल्पसंख्यकों व महिला अधिकारों की सुरक्षा
- आभासी चुनाव प्रचार पर नियंत्रण इत्यादि
यूरोप का संदर्भ
- हम यूरोप के संदर्भ में देखेंगे, तो बात समझ में आ जाएगी कि नीयत सही हो तो किस प्रकार सुधार किया जा सकता है।
- इलेक्टोरल कैपैन में इंटरनेट के इस्तेमाल को लेकर कौसिल ऑफ यूरोप ने साल 2014 से 2017 के बीच एक स्टडी रिपोर्ट तैयार कराई, जिसमें यरोपीय देशों के चुनींदा विश्वविद्यालयों, मीडिया व तकनीकी संस्थानों के साइबर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय ली गई थी।
- 22-23 मार्च, 2016 को ब्रसेल्स में इसकी पहली बैठक हुई, जिसमें यूरोपीय मानवाधिकार निदेशालय के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया था। दामियन तंबिनी इसके दूत बनाये गये थे, जिनकी देखरेख में इस रिपोर्ट के दो हिस्से किये गये।
- पहला, चुनाव में इंटरनेट या साइबर संसाधनों का निष्पक्ष इस्तेमाल, दूसरा लैंगिक समानता सुनिश्चित करना।
- इस समिति का दायरा काफी बड़ा था, जिसमें बोस्निया हर्जेगोबिना से लेकर नॉर्डिक देश तक के एक्सपर्ट शामिल किये गये थे।
- यूरोप के चुनावों में डिजिटल प्रचार को 2017 में लागू करने से पहले सारी तैयारियां चाक-चौबंद कर ली गई थीं। आभासी प्रचार और उस पर प्रतिक्रिया देने में केवल उन्हीं की शिरकत होती थी, जो रजिस्टर्ड थे।
- टीवी-रेडियो और बाकी वेब संचार माध्यमों में कितने एयर टाइम खरीदे जा रहे हैं, वह सभी पार्टियों के लिए एक समान और संतुलित रखा गया। सोशल मीडिया पर वैचारिक स्वतंत्रता. मानवाधिकार, माइनॉरिटी व स्त्री की मान-मर्यादा का कोई हनन न करे, इस पर संबंधित देशों के निर्वाचन आयोगों की नज़र रहती थी।
- पांच वर्षों में हुआ यह कि यूरोपीय संघ के बहुत सारे सदस्य देशों ने चुनाव के समय टीवी-रेडियो पर राजनीतिक दलों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगा दिये। उसके पीछे मकसद यही था कि चुनाव की निष्पक्षता बरकरार रहे। इसे और पारदशी बनाने हेतु यूरोपीय आयोग ने 25 नवंबर, 2021 को एक रिपोर्ट पेश की है।
- भारत के पांच राज्यों में होने वाले आभासी प्रचार पर भी यूरोप की नज़र है। उनके राजदूत यहां हुए डिजिटल प्रचार के श्वेत और स्याह पक्ष की रिपोर्ट अपने-अपने विदेश मंत्रालयों को भेजेंगे।
- इसका मूल कारण 2024 में यूरोपीय संघ के देशों में होने वाला संसदीय चुनाव है, साथ में कई सारे यूरोपीय देशों में स्थानीय चुनाव भी हैं, जिसके प्रचार में डिजिटल संसाधनों का सहारा लिया जाना है।
- यूरोप हमारे मॉडल को इसलिए देख रहा हैं कि उसके आधार पर वहां और सुधार किया जा सके, वहीं हमारे यहाँ अभी तक इस दिशा में कोई ठोस प्रयास होता दिखाई नही दे रहा है।