ई-कचरा प्रबंधन और सिंगल यूज प्लास्टिक की नीति (Policy on E-waste Management and Single Use Plastic)
- वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ई-कचरा प्रबंधन और सिंगल यूज प्लास्टिक की नीति से जुड़े नियमों में बड़े बदलाव की तैयारी में है जिसमें इस पूरी व्यवस्था को और सख्त बनाया जा रहा है।

मुख्य बिंदु:-
- ई-कचरे से निपटने की अब तक तक की कोशिशों की असफलता के देखते हुए सरकार इससे जुड़ी पूरी नीति को ही बदलने की तैयारी में है। इसके तहत ई-कचरा पैदा करने वालों पर ही इसके री-साइक्लिंग की पूरी जवाबदेही होगी। ऐसा न करने पर उनके खिलाफ भारी जुर्माने सहित आपराधिक कार्रवाई हो सकती हैं। इसके अलावा उनके उत्पादों की बिक्री पर भी रोक लगाई जा सकती है।
- नीति में बदलाव की ओर सरकार ने यह कदम पिछले आठ साल के अनुभवों के बाद बढ़ाया है। मौजूदा समय में जितना ई-कचरा पैदा हो रहा है, उसका सिर्फ 10 प्रतिशत हिस्सा ही संग्रहित हो पा रहा है।
- नई नीति में यह काम री-साइक्लर करेंगे जो ई-कचरे का संग्रह भी करेंगे और उसका निस्तारण भी करेंगे। वह जितना ई-कचरा री-साइकिल करेंगे, उसका सर्टिफिकेट ब्रांड उत्पादकों को बेच सकेंगे।
- वहीं, ब्रांड उत्पादक भी ई-कचरे के संग्रहण और री-साइकिल आदि के झंझट से मुक्त रहेंगे। बदले में उन्हें अब पैदा किए जाने वाले ई-कचरे की मात्रा के बराबर या तय मानक के तहत किसी भी री-साइक्लर से सिर्फ उतनी मात्रा का री-साइक्लिंग का सर्टिफिकेट खरीदना होगा।
- हालांकि री-साइक्लिंग सर्टिफिकेट का रेट क्या होगा. इसका निर्धारण खरीददार (ब्रांड उत्पादक) और बिक्री करने वाले (री-साइक्लर) आपस में तय करेंगे।
- ई-कचरा प्रबंधन और सिंगल यूज की प्लास्टिक की नीति हेतु नए नियमों को लाने की तैयारी लगभग अंतिम चरण में है। हालांकि इसे अंतिम रूप से देने से पहले लोगों से इस पर सुझाव भी लिए जाएंगे। जिन नए नियमों पर काम हो रहा है उसके तहत प्रत्येक ब्रांड उत्पाद को हर साल केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सामने अपने रीसाइक्लिंग सर्टिफिकेट को प्रस्तुत करना होगा।
- इसके आधार पर ही उन्हें ईपीआर (उत्पादक उत्तरदायित्व प्राधिकार) प्रदान किया जाएगा। यदि कोई ब्रांड उत्पादक ऐसा करने में अक्षम रहता है तो उसके खिलाफ जुर्माने सहित नए नियमों के तहत अपराधिक कार्रवाई भी की जाएगी।
- विशेषज्ञों के अनुसार इससे इलेक्ट्रानिक्स और इलेक्ट्रिकल चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन यह पर्यावरण और जनजीवन के सामने जितना बड़ा खतरा बना हुआ है, उसे देखते हुए कीमत कोई मुद्दा नहीं है।
- सरकार यह कदम ऐसे समय उठा रही है जब देश में मौजूदा समय में 468 अधिकृत री-साइक्लर है। इन सभी को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अधिकृत किया है। इन सभी की ई-कचरा री-साइकिल करने की क्षमता 85 लाख टन है।
- जबकि अनुमान के मुताबिक देश में मौजूदा समय में हर साल करीब 11 लाख टन ई-कचरा पैदा हो रहा है। यानी री-साइक्लिंग की क्षमता ई-कचरा उत्पादन से ज्यादा है।
क्या है मौजूदा कानून
- वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक ई-कचरे के बेहतर प्रबंधन के लिए वर्ष 2016 में कानून लाया गया था। इसके तहत मोबाइल, लैपटाप सहित करीब 16 इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रानिक्स उपकरणों को चिहिनत किया था, जिन्हें आय खत्म होने के बाद अनिवार्य रूप से संग्रहित करना होता है।
- इसके लिए ब्रांड उत्पादकों से लेकर इसके डीलरों तक की जवाबदेही तय है। लेकिन सख्त कानून नहीं होने से इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं कराया जा सका।
- घरों, संस्थानों और फैक्टरियों से निकलने वाले अपशिष्ट (कूड़ा) से निपटने के लिए भारत सरकार अपनी नीतियों को तेजी से विकसित कर रही है। अब ये बदलाव हमारी गतिविधियों में भी परिलक्षित होना चाहिए।
- हमारा कूड़ा हमारा संसाधन बनना चाहिए जोकि दोबारा काम और इस्तेमाल लायक बनाया जा सके।
- यह कदम हमारी दुनिया में न सिर्फ अधिक से अधिक समान की खपत को कम करेगा बल्कि पर्यावरण को होने वाले नुकसान से भी बचाएगा। यह सभी के लिए हितकारी समाधान है।
- हम जानते हैं कि समाज जब अमीर और शहरी बनता है, तो ठोस अपशिष्ट की प्रकृति बदल जाती है। सड़नशील (गीला) कूड़े की जगह घरों से प्लास्टिक, कागज, धातु और अन्य गैर-सड़नशील (सूखा) कूड़ा ज्यादा निकलता है।
ई – कचरा:
- ई-कचरा इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट का संक्षिप्त रूप है और इस शब्द का प्रयोग चलन से बाहर हो चुके पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का वर्णन करने के लिये किया जाता है। इसमें उनके घटक, उपभोग्य वस्तुएंँ और पुर्जे शामिल होते हैं।
- इसे दो व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत 21 प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
- सूचना प्रौद्योगिकी और संचार उपकरण।
- उपभोक्ता इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स।
- भारत में ई-कचरे के प्रबंधन के लिये वर्ष 2011 से कानून लागू है, जो यह अनिवार्य करता है कि अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता द्वारा ही ई-कचरा एकत्र किया जाए। इसके लिये वर्ष 2017 में ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 अधिनियमित किया गया था।
- घरेलू और व्यावसायिक इकाइयों से कचरे को अलग करने, प्रसंस्करण और निपटान के लिये भारत का पहला ई-कचरा क्लिनिक भोपाल, मध्य प्रदेश में स्थापित किया गया है।
- मूल रूप सेबेसल कन्वेंशन (1992) ने ई-कचरे का उल्लेख नहीं किया था, लेकिन बाद में इसने 2006 (COP8) में ई-कचरे के मुद्दों को संबोधित किया।
- नैरोबी घोषणा को खतरनाक कचरे के सीमा पार आवागमन के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन के COP9 में अपनाया गया था। इसका उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक कचरे के पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन के लिये अभिनव समाधान तैयार करना है।
ई-कचरा उत्पादन:
- इस वर्ष का अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE) कुल लगभग 4 मिलियन टन (MT) होगा और यह चीन की महान दीवार के वज़न से अधिक होगा।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)के अनुसार, भारत ने 2019-20 में 10 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न किया, जो 2017-18 के 7 लाख टन से काफी अधिक है। इसके विपरीत 2017-18 से ई-कचरा निपटान क्षमता 82 लाख टन से नहीं बढ़ाई गई है।
ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 को अधिसूचित किया गया था।
- इस नियम से पहले ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 लागू था।
- इस नियम के दायरे में कुल 21 प्रकार के उत्पाद (अनुसूची-1) शामिल किये गए हैं। इसमें अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अलावा कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (CFL) और मरकरी पारा युक्त लैंप शामिल हैं।
- इस अधिनियम के तहत पहली बार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माताओं को विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी (EPR) के दायरे में लाया गया। उत्पादकों को ई-कचरे के संग्रहण तथा आदान-प्रदान के लिये उत्तरदायी बनाया गया है।
- डिपॉज़िट रिफंड स्कीम को एक अतिरिक्त आर्थिक साधन के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें निर्माता इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री के समय जमा राशि के रूप में एक अतिरिक्त राशि वसूलता है और उपभोक्ता को यह राशि उपकरण लौटाने पर ब्याज समेत लौटा दी जाती है।
- निराकरण और पुनर्चक्रण कार्यों में शामिल श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास सुनिश्चित करने का कार्य राज्य सरकारों को सौंपा गया है।
- नियमों के उल्लंघन की स्थिति में दंड का प्रावधान भी सुनिश्चित किया गया है।
- ई-कचरे के निराकरण और पुनर्चक्रण के लिये मौजूदा और आगामी औद्योगिक इकाइयों को उचित स्थान के आवंटन की भी व्यवस्था की गई है।
शहरी इलाकों में कूड़ा उत्पादन में भारी वृद्धि
- साथ ही प्रति व्यक्ति कूड़े का उत्पादन भी बढ़ जाता है। देश के बहुत सारे शहरी इलाकों में कूड़ा उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है।
- साल 2020 में जब पहला म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट रूल्स आया था, तो वो बहुत सारे अन्य देशों में पहले से मौजूद नियमों पर आधारित था।
- इसके तहत कूड़े को संग्रह कर उसे परिवहन के माध्यम से सुरक्षित लैंडफिल साइट पर ले जाना और उसका निपटान करना था। इसका मुख्य उद्देश्य हमारे आसपास की गंदगी को हटाकर शहर को “साफ” करना था। लेकिन यह नीति व्यवहार में प्रतिबिंबित होने में विफल रही और हमारे शहर में कूड़े का कहर बढ़ता चला गया।
- नगरपालिका सेवाओं की कमी के चलते जो कूड़ा नहीं उठाया जा सका, वो हमारे पड़ोस में जमा हो गया। जिसे उठाया गया, उसे डम्प कर दिया गया और वो आज शर्मिंदगी के “पहाड़” के रूप में दिख रहा है।
- पिछले कुछ सालों में देश में कूड़ा प्रबंधन की रणनीति में तेजी से बदलाव हुआ है। केंद्र सरकार की वर्तमान नीति जिसके तहत स्वच्छ भारत अभियान (एसबीएम) 0 को शुरू किया गया है। इसका पूरा ध्यान स्रोत पर ही कूड़े की छटाई, गीले और सूखे कचरे का प्रसंस्करण और कम से कम कूड़े को लैंडफिल साइट्स पर भेजना है।
एसबीएम के दिशानिर्देश
- एसबीएम के दिशानिर्देशों के मुताबिक, केवल प्रतिक्रयाहीन और प्रसंस्करण में रिजेक्ट हो चुके अपशिष्ट, जिनका गीले या सूखे रूप में अपशिष्ट प्रबंधन नहीं किया जा सकता है, उन्हें ही लैंडफिल साइट्स पर भेजा जा सकता है, लेकिन इनकी मात्रा कल अपशिष्ट का सिर्फ 20 प्रतिशत होना चाहिए।
- अर्थात निर्देशों का मुख्य आधार यह है कि शहर लैंडफिल से मुक्त हो। वे सभी अपशिष्टों को रिकवर और उनका पुनः प्रसंस्करण करें।
- गाइडलाइन इस बात पर जोर देती है कि “अपशिष्ट से ऊर्जा” (डब्ल्यूटीई) प्रोजेक्ट आर्थिक और संचालन के रूप में तभी व्यावहारिक है, जब प्रतिदिन न्यूनतम 150-200 टन गैर वर्गकण और उच्च ऊर्जा मान वाले पृथक किये गये सूखे अपशिष्ट जाएं।
- सीख यह रही है कि म्युनिसिपल अपशिष्ट को जलाकर ऊर्जा उत्पादन करने का वादा करने वाला डब्ल्यूटीई कोई जादूई हथियार नहीं है।
- ये गंभीर कि जलाने और ऊर्जा उत्पादन के लिए जो अपशिष्ट भेजा जाता है, वो उन गणवत्ता का होता है और उसे उच्च स्तर पर पृथक करने की मांग है और ऐसा स्रोत स्थल पर करना ही बेहतर है। यह सब किये बिना प्लान्टमाया क्षमता से कम काम करते हैं और निष्क्रिय हो जाते हैं।
- दिशानिर्देश 3,0 लैंडफिल साइट्स को अपशिष्ट मुक्त करने का भी अवसर देता है, जहां केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक 800 मिलियन टन अपशिष्ट पड़ा हुआ है।
- यह न केवल बहुमूल्य जमीन को मुक्त करेगा जिससे कि उस जमीन को हरा-भरा कर बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है बल्कि ये पर्यावरणीय आपदाओं को रोकने में भी मदद कर सकता है।
अपशिष्ट की बायोमाइनिंग
- इन पारम्परिक लैंडफिल्स में डम्प हुए अपशिष्ट की बायोमाइनिंग कर उन्हें दोबारा इस्तेमाल करने के लिए विचारपूर्वक रणनीति की मांग है।
- शहरों से भी इन लैंडफिल साइट्स में अपशिष्ट भेजना बंद करना होगा अन्यथा साफ किये जाने के बाद भी ये दोबारा भर जाएंगे।
- अच्छी खबर यह है कि भारत की ठोस कूड़ा-कचरा प्रबंधन रणनीति इस तरह से तैयार की गई है जो वस्तु की खपत के बाद उसे दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाती है। यह असल चक्रीय अर्थव्यवस्था के लक्ष्य पर आधारित दृष्टिकोण है।
- चूंकि रणनीति में चीजों के पूरी तरह दोबारा इस्तेमाल और बेकार नहीं रखने पर जोर है, तो हम सीख पाएंगे कि हम किन चीजों की रीसाइक्लिंग नहीं कर सकते और ऐसी चीजों का इस्तेमाल कम करेंगे।
- यह नीति और व्यवहार को और भी पर्यावरण हितैषी बनाएगा। नीतियां तो विकसित हो रही हैं, लेकिन हमारे व्यवहार में तेजी आना बाकी है। स्रोत स्थल पर अपशिष्ट को पृथक करना अब भी हमारा कमजोर पक्ष है। यह जिस स्तर पर और जिस तेजी से होना चाहिए, वैसा हो नहीं रहा है।
- अगर घरेलू स्तर पर अपशिष्ट को पृथक किया भी जाता है, तो वो पृथक रूप में प्रसंस्करण इकाइयों तक पहुंचता नहीं है।
- सच तो यह है कि प्रसंस्करण दुर्घटनावश हो रहा है और वो भी इसलिए हो रहा है क्योंकि ऐसे लोग भी हैं जिन्हें रोजी-रोटी के लिए अपशिष्ट चाहिए। इन्हें हम कूड़ा बीनने वाला कहते हैं।
- शहर प्रबंधक अब भी इस कूड़े के प्रसंस्करण और प्रभावी तरीके से प्रबंधन कर इससे कमाई करने के लिए कई विकल्पों पर काम कर रहे हैं। बुरा तो यह है कि प्लास्टिक कूड़ा, जिसका बड़ा हिस्सा पैकेजिंग से आता है, हमारे शहरों में बढ़ और भर रहा है।
- हम अब भी यह स्वीकार नहीं करते कि ज्यादातर “प्लास्टिक” जिसका हम इस्तेमाल करते हैं, उन्हें रीसायकल नहीं किया जा सकता है और इसलिए इनका इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए।
- ई-कचरा प्रबंधन और सिंगल यूज प्लास्टिक की वर्तमान नीति से जुड़े नियमों में बड़े बदलाव की तैयारी में है, जिसमें कुछ उत्पादों का चयन इसे भविष्य में खत्म करने के लिए किया गया है, इस वृहद समस्या से निपटने के लिए काफी नहीं है।
- हम विकास के एक रोमांचक चरण में हैं, जहां शहर के प्रबंधक और नेता अपशिष्ट रणनीतियों पर दोबारा काम कर रहे हैं।
- सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने “वेस्ट-वाइज” शहरों के बेहतर कामों का दस्तावेजीकरण करने के लिए नीति आयोग के साथ साझेदारी की है।
- यह नई सीख और सबक वाली पुस्तक की तरह होगी जिसे हमें बड़े पैमाने पर अभ्यास करना है। बदलाव का यह एक वास्तविक मौका है।
क्या है सिंगल यूज प्लास्टिक?
- सिंगल यूज प्लास्टिक का उत्पादन और निर्माण इस तरह से किया जाता है कि एक बार इस्तेमाल होने के बाद उसे फेंक दिया जाए।
- इस परिभाषा के हिसाब से प्लास्टिक के तमाम उत्पाद इसी श्रेणी में आते हैं। इसमें डिस्पोजेबल स्ट्रा से लेकर डिस्पोजेबल सीरिंज तक सभी शामिल हैं।
- भारत में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन संशोधित नियम 2021, में सिंगल यूज प्लास्टिक को ‘प्लास्टिक की ऐसी वस्तु बताया गया है, जिसे नष्ट करने या रिसाइकिल करने से पहले एक मकसद से केवल एक बार ही उपयोग में लाया जाता हो।’
- जिन पर प्रतिबंध लगना है, उन बीस सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों की पहचान केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के निर्देश पर रसायन एवं पेट्रोरसायन विभाग द्वारा गठित विशेषज्ञों की एक समिति ने की है।
- इस समिति में नीति- निर्माताओं के अलावा प्लास्टिक और उससे संबंधित क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिक, शिक्षाविद और शोधार्थी शामिल हैं।
- समिति ने किसी प्लास्टिक को ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ मानने के दो पैमाने बनाए हैं – पहला कि उसकी उपयोगिता क्या है और दूसरा, उसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है।